शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 1)
विवरण: अन्य देवताओं को अल्लाह के साथ जोड़ने और जो चीज़े सिर्फ अल्लाह के लिए अनन्य और अद्वितीय हैं उसको दूसरों की बताने के संबंध में इस्लामी रुख। भाग 1: शिर्क की परिभाषा और इसके प्रकार। बड़े शिर्क।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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आवश्यक शर्तें
·अल्लाह पर विश्वास (2 भाग)।
उद्देश्य
·शिर्क की सटीक परिभाषा जानना।
·क़ुरआन और सुन्नत से शिर्क की गंभीरता को समझना।
·शिर्क के प्रकार जानना।
·शिर्क को जानना अल्लाह के:
oआधिपत्य।
oनाम और गुणों।
अरबी शब्द
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
परिचय
अरबी शब्द शिर्क [1] तौहीद (सिर्फ एक अल्लाह और उसकी विशिष्टता) के विपरीत है, और बहुदेववाद और मूर्तिपूजा से अधिक समावेशी है। शिर्क क़ुरआन में बताये गए सृजन के उद्देश्य का खंडन करता है:
“और नहीं उत्पन्न किया है मैंने जिन्न तथा मनुष्य को, परन्तु ताकि मेरी ही पूजा करें।” (क़ुरआन 51:56)
पैगंबरो को इस मिशन के साथ भेजा गया था कि वे शिर्क को मिटा दें और मानवता को सिर्फ अल्लाह की पूजा करने के लिए आमंत्रित करें।
शिर्क क्या है?
अल्लाह के अलावा किसी अन्य को उन चीज़ों में जोड़ना जो सिर्फ अल्लाह और उसके अनन्य अधिकार के लिए अद्वितीय हैं शिर्क कहलता है। सृजित प्राणियों की पूजा करना जैसे अल्लाह की पूजा की जाती है, सृजित प्राणियों की वंदना करना जैसे अल्लाह की वंदना की जाती है, और अल्लाह की दिव्यता का एक हिस्सा किसी और को देना शिर्क कहलाता है।
शिर्क की गंभीरता
ऐसा कोई और मुद्दा नहीं है जिस पर इस्लाम तौहीद (एकेश्वरवाद) जितना सख्त हो। इसलिए शिर्क को सबसे बड़ा उल्लंघन माना जाता है जिससे आसमान और पृथ्वी के ईश्वर की अवहेलना होती है। शिर्क की गंभीरता को निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेपित किया जा सकता है:
(1)शिर्क निर्माता को अपनी रचना की तरह बनाता है, वो चीज़ें जो सिर्फ अल्लाह के लिए है, उसमे दूसरों को जोड़ना जिनके पास इसका कोई अधिकार नहीं है। इसलिए अल्लाह शिर्क को सबसे बड़ा पाप घोषित करता है,
“साझी मत बना अल्लाह का, वास्तव में, शिर्क (मिश्रणवाद) बड़ा घोर अत्याचार है” (क़ुरआन 31:13)
(2) अल्लाह ने घोषणा कर दी है कि वह शिर्क के पाप को तब तक माफ नहीं करेगा जब तक कि व्यक्ति इसका पश्चाताप न करे,
“निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा।” (क़ुरआन 4:48)
(3) अल्लाह ने उन लोगों के लिए स्वर्ग वर्जित कर दिया है जो शिर्क करने से पश्चाताप नहीं करते हैं, उन्हें अनंत काल तक नर्क मे डाल दिया जायेगा,
“वास्तव में, जिसने अल्लाह का साझी बना लिया, उसपर अल्लाह ने स्वर्ग को वर्जित कर दिया और उसका निवास स्थान नरक है” (क़ुरआन 5:72)
(3) व्यक्ति द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्य नष्ट हो जाते हैं, बेकार हो जाते हैं, और व्यर्थ हो जाते हैं यदि कोई व्यक्ति शिर्क से पश्चाताप किये बिना मर जाता है,
“तथा वह़्यी की गई है आपकी ओर तथा उन पैगंबरो की ओर, जो आपसे पूर्व हुए कि यदि आपने शिर्क किया, तो अवश्य व्यर्थ हो जायेगा आपका कर्म तथा आप हो जायेंगे क्षतिग्रस्तों में से।” (क़ुरआन 39:65)
(4)शिर्क सभी बड़े पापों में सबसे घातक है। एक बार पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने अपने साथियों से पूछा कि क्या वे जानते हैं कि सभी प्रमुख पापों में सबसे बड़ा क्या है। फिर पैगंबर ने उनको समझाया,
“प्रमुख पाप हैं: शिर्क करना, अपने माता-पिता के प्रति दयालु नहीं होना…” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
शिर्क के प्रकार
(1) बड़ा शिर्क (शिर्क अकबर)
(2) छोटा शिर्क (शिर्क असगर)
बड़े शिर्क की परिभाषा
बड़ा शिर्क दूसरों को अल्लाह के साथ उन पहलुओं में जोड़ना है जो सिर्फ अल्लाह के लिए अद्वितीय है, और अल्लाह के लिए एक प्रतिद्वंद्वी या सहयोगी बना लेना और उसे अल्लाह के बराबर मानना।
अल्लाह के ईश्वर होने में शिर्क
इस श्रेणी में शामिल हैं:
(i) नास्तिकता (यह विश्वास कि मनुष्य का कोई ईश्वर नहीं है)।
फिरौन ने अल्लाह के अस्तित्व को नकारा था और खुद को मूसा और मिस्र के लोगों का प्रभु होने का दावा किया था। उसे घोषणा की थी:
“मैं तुम्हारा परम पालनहार हूं।” (क़ुरआन 79:24)
आधुनिक समाज के वह दार्शनिक जो अल्लाह के अस्तित्व को नकारते हैं या ऐसे वैज्ञानिक जो ब्रह्मांड को स्वयं निर्मित मानते हैं या मानते हैं कि इसका कोई आदि या अंत नहीं है, इसी श्रेणी में आते हैं। इसके साथ यह विचार कि प्रकृति ही ईश्वर है, या ईश्वर अपनी रचना के भीतर निवास करता है, यह भी शिर्क है।
(b) यह विश्वास करना कि अल्लाह सृष्टि पर अपना शासन और नियंत्रण साझा करता है।
इस श्रेणी में आने वाले लोग वे हैं जो अल्लाह की शक्तियों और क्षमताओं में विश्वास करते हैं, लेकिन यह भी मानते हैं कि अल्लाह कई सारे "व्यक्ति" हैं और वह किसी तरह अलग-अलग प्राणियों में "विभाजित" है। एक उदाहरण ईसाई हैं जो मानते हैं कि अल्लाह एक ही समय में पिता ईश्वर, पुत्र ईश्वर और पवित्र आत्मा ईश्वर है। इसके अलावा, हिंदू एक ईश्वर में विश्वास करते हैं जिसने ब्रह्मा (निर्माता-देवता), विष्णु (संरक्षक-देवता) और शिव (संहारक-देवता) का रूप धारण किया है। इस्लाम सिखाता है कि अल्लाह हर मायने में एक है: उत्तम, अविभाज्य और पूर्ण।
इस शिर्क का एक और उदाहरण वो लोग हैं जो मृतकों से प्रार्थना करते हैं। उनका मानना है कि संतों और अन्य लोगों की आत्माएं नश्वर लोगों के मामलों में हस्तक्षेप कर सकती हैं, या किसी तरह से दिवंगत आत्माएं पुरुषों और महिलाओं के जीवन में उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर देकर या अन्य तरीकों से बदलाव ला सकती हैं। सच तो यह है कि मरे हुओं का जीवितों के जीवन पर कोई अधिकार नहीं है; वे किसी की प्रार्थना का उत्तर नहीं दे सकते, न ही उनकी रक्षा कर सकते हैं, न ही उनकी इच्छा पूरी कर सकते हैं।
बड़े शिर्क: अल्लाह के नाम और गुणों में शिर्क
अल्लाह को सृष्टि के समान मानना या सृष्टि को अल्लाह के समान मानना अल्लाह के नाम और गुणों में शिर्क का सार है। इसे आगे दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
(i) अल्लाह के गुण को इंसानों के समान बताकर अल्लाह का मानवीकरण करना शिर्क है। पेंटिंग और मूर्तिकला में ईश्वर का चित्रण इसी प्रकार के शिर्क हैं। पश्चिम का प्रमुख धर्म, ईसाई धर्म, ईश्वर को मानवीय दृष्टि से देखता है, क्योंकि वे यीशु को ईश्वर का अवतार मानते हैं, इसलिए इसने स्वाभाविक रूप से माइकल एंजेलो जैसे को प्रस्तुत किया जिसने चित्रों में 'ईश्वर' के चेहरे और हाथ को चित्रित किया। हिंदू अनगिनत मूर्तियों को ईश्वर के रूप में पूजते हैं। इसके विपरीत, क़ुरआन की स्पष्ट शिक्षाओं के कारण इस मुद्दे पर मुस्लिम परंपरा स्पष्ट है,
“उसकी कोई प्रतिमा नहीं और वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।” (क़ुरआन 42:11)
(ii) इस प्रकार के शिर्क का दूसरा रूप वह है जब मनुष्य को दैवीय नाम या गुण देकर देवता बनाया जाता है। उदाहरण के लिए, ईसाई यीशु की माता मरियम में दयालुता जैसे अल्लाह के कुछ गुण बताकर उसे दिव्य बनाते हैं। वे मरियम को ईश्वर की माता भी कहते हैं, 'ईश्वर' उनके पुत्र यीशु के संदर्भ मे। यीशु को वो जीवित ईश्वर कहते हैं, प्रथम और अंतिम - ये नाम केवल ईश्वर के लिए आरक्षित हैं। अल्लाह के दूत (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“सर्वशक्तिमान अल्लाह ने कहा है: 'आदम के पुत्र ... ने मुझे गाली दी हालांकि उसे ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं था ... और इसका मुझे गाली देना यह है कि यह कहता है कि अल्लाह की औलाद है, हालांकि मै अकेला और शाश्वत हूं। न मैंने किसी को पैदा किया और न ही किसी ने मुझे पैदा किया है, और मेरे समान कोई दूसरा नहीं है।’” (सहीह अल-बुखारी, अन-नसाई)
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