शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 1)
विवरण: अलौकिक हानि पर चर्चा और इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार खुद को आध्यात्मिक रूप से कैसे सुरक्षित रखें।
द्वारा Imam Mufti (© 2012 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·"अलौकिक" का अर्थ समझना।
·अलौकिक हानि के स्रोतों की पहचानना: शैतान, "बुरी नजर," और जादू टोना।
·इस बात को समझना कि हमारे जीवन में शैतान अल्लाह के नियंत्रण से बाहर नहीं है।
·अल्लाह द्वारा बताई गई प्रार्थनाओं और आह्वानों से अपनी रक्षा करना सीखना।
आजकल अधिकांश आधुनिक कथाओं, फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में अलौकिक घटनाओं पर जोर दिया जाता है। चुड़ैलों, जादूगरों, पिशाचों, भटकती आत्माओं और भेड़ियामानवो के बारे में सभी ने पढ़ा है। जबकि इसमें से अधिकांश बस कल्पना है, इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार अलौकिक घटना में कुछ सच्चाई भी है। हो सकता है कि कुछ लोगों को डर का अनुभव हुआ हो, हमेशा प्रश्न थे, लेकिन कभी उत्तर नही मिल पाया।
पहले हमें अलौकिक घटना का अर्थ समझने की जरूरत है। "अलौकिक" का अर्थ है प्रकृति के बाहर की चीज़ और इसलिए ये विज्ञान से भी बाहर है। इसलिए जो अलौकिक है वह स्वाभाविक रूप से रहस्यमय है और इसलिए डरावना भी लगता है। मनुष्य उस चीज से डरता है जिसे वह नहीं जानता।
इसलिए कल्पना से तथ्य को अलग करने के लिए, हम अलौकिक ज्ञान के एकमात्र सच्चे स्रोत पर भरोसा करते हैं, और वह है अल्लाह का रहस्योद्घाटन जो क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत में है। एक बार जब हम समझ जाते हैं कि अलौकिक को रहस्योद्घाटन के माध्यम से समझा जा सकता है, तो हमें अज्ञात चीज़ो से डर नहीं लगता क्योंकि अल्लाह ने हमें सुरक्षित रहने का तरीका बताया है।
इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, अलौकिक हानि के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं:
जिन्न और शैतान
जिन्न असली मे होते हैं और उन्हें अल्लाह ने बनाया है। उनमें शैतान (अविश्वास करने वाले जिन्न) और विश्वास करने वाले शामिल हैं। वे हमें देख सकते हैं लेकिन हम उन्हें नहीं देख सकते। शैतान मनुष्यों पर हमला कर सकते हैं और उन्हें डरा सकते हैं। मनुष्य से प्यार के कारण, उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए या संभवतः किसी अन्य कारण से शैतान मनुष्य का रूप भी धारण कर सकते हैं।
दूसरों से ईर्ष्या और जलन
विनाशकारी ईर्ष्या का अर्थ है कि यह कामना करना कि अल्लाह ने दूसरे व्यक्ति को जो आशीर्वाद दिया है वह उससे छीन लिया जाए। किसी अन्य के पास (कोई वस्तु या कौशल) जो कुछ भी है उसे पाने की इच्छा ईर्ष्या नहीं है, इसे उनसे छीनने की कामना करना इसे विनाशकारी बनाती है।
“बुरी नज़र”
"बुरी नज़र" वह है जब कोई व्यक्ति अपने "घूरने" से दूसरे को हानि पहुंचाता है। इसकी शुरुआती तब होती है जब कोई व्यक्ति किसी चीज को पसंद करता है, और फिर ईर्ष्या से बार-बार उस वस्तु को देखता है, जिससे उसकी बुरी भावनाएं उसे प्रभावित करती हैं। इसे और अधिक सरल भाषा में समझाने के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे के आस-पास है जिससे वह शादी करना चाहता है, और वह उसकी तरफ देख के मुस्कुराती है, तो उस समय व्यक्ति को चक्कर आ सकता है और वह गिर भी हो सकता है; इसी तरह, जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के पास होता है जिससे वह डरता है, जैसे कि उसका बॉस, और उसे डर रहता है कि उसे निकाल दिया जाएगा, और उसे अचानक बुलाया जाता है, तो उस व्यक्ति को हल्का दर्द महसूस होगा और वह बेहोश भी हो सकता है। बुरी नजर में यह पहलू शामिल है, इसके साथ ही यह स्वयं के स्वभाव से भी आगे जाता है ... किसी व्यक्ति के पास जो चीज़ है उसके लिए दूसरा व्यक्ति उससे ईर्ष्या और घृणा करता है और चाहता है कि वह चीज़ उससे छीन ली जाए। हर कोई जो दूसरे पर "बुरी नज़र" डालता है, वह ईर्ष्यालु होता है, लेकिन ईर्ष्या करने वाला हर कोई दूसरे पर "बुरी नज़र" नहीं डालता।
जादू टोना और तंत्र
जादू टोना और तंत्र असल में होते हैं और लोगों को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रभावित कर सकते हैं, जिससे वे बीमार हो जाते हैं और यहां तक कि पति-पत्नी को भी अलग किया जा सकता है। इसमें से अधिकांश शिर्क के माध्यम से किया जाता है और शैतानो को उनकी पसंद की चीज़ दे के किया जाता है।
सच तो यह है कि अपने आप में कोई भी चीज़ आपको तब तक हानि नही पहुंचा सकती जब तक कि अल्लाह इसकी अनुमति न दे। दूसरे शब्दों में, आपको दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि सब अल्लाह के नियंत्रण में है, न कि किसी सृजित प्राणी के। इसलिए मुसलमान को व्यामोह, चिन्ता, शंका, संदेह और अपसामान्य गतिविधियों के अत्यधिक भय को अपने ऊपर इस कदर हावी नहीं होने देना चाहिए कि वह मानसिक रोगों से ग्रसित हो जाए। अल्लाह के बारे में सकारात्मक सोचना चाहिए और समझना चाहिए कि जो कुछ भी होता है वह अल्लाह की अनुमति से ही होता है। शैतान अल्लाह के वश से बाहर नहीं है। कोई जादूगर, शैतान, या "बुरी नज़र" नहीं है जो अल्लाह से अधिक शक्तिशाली हो। चूंकि, अल्लाह का नियंत्रण है, इसलिए वह अकेले ही सभी हानि को दूर करने और संकट को दूर करने में सक्षम है। यदि यह बात समझ में आ जाए तो व्यक्ति अल्लाह की ओर मुड़ जायेगा और उस पर पूरा विश्वास करेगा।
अल्लाह पर पूरी तरह से भरोसा करने के लिए, एक मुसलमान को सही विश्वास और ज्ञान होना चाहिए। सबसे पहला, अल्लाह जानता है कि सबसे अच्छा क्या है। क़ुरआन में अल्लाह कहता है,
“… हो सकता है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वही तुम्हारे लिए अच्छी हो और इसी प्रकार सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।” (क़ुरआन 2:216)
दूसरा, अल्लाह न्यायी है। वह हमें बताता है,
“… आपका पालनहार किसी पर अत्याचार नहीं करेगा।” (क़ुरआन 18:49)
तीसरा, अल्लाह उसके लिए काफी है जो उस पर भरोसा करता है। उन्होंने बताया है,
“…तथा जो अल्लाह पर निर्भर रहेगा, तो वही उसे पर्याप्त है...” (क़ुरआन 65:3)
एक मुसलमान पापों को त्याग कर, अनिवार्य धार्मिक कर्तव्यों का पालन करके, अल्लाह पर दृढ़ विश्वास रख के, ऊपर बताए अनुसार उस पर भरोसा करके, और पैगंबर मुहम्मद की बताई गई सुरक्षा की प्रार्थनाओं को पढ़कर अल्लाह की शरण ले के अपनी रक्षा कर सकता है।
अगले पाठ में हम शैतानो से सुरक्षित रहने के सामान्य आह्वानों को बताएंगे। ये हमें सामान्य रूप से हानिकारक चीजों से और उन शैतानों की फुसफुसाहट से भी बचाते हैं जो हमारे मन मे संदेह डालते हैं और हमें झूठ बोलने और पाप करने के लिए उकसाते हैं। इन्हें एक सामान्य दर्द निवारक दवा समझें। विशिष्ट प्रार्थनाएं भी होती हैं, जैसे डॉक्टर द्वारा निर्धारित दवाएं, लेकिन उनका उपयोग केवल ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जिसे कोई विशिष्ट बीमारी हुई हो। कृपया इन प्रार्थनाओं को प्रतिदिन करने की आदत डालें। जैसे दैनिक मल्टीविटामिन या पौष्टिक आहार आपके शरीर के लिए अच्छा है, वैसे ही ये आपको आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करेंगे जब तक आप दृढ़ विश्वास बनाए रखते हैं और शराब, ड्रग्स, जुआ आदि जैसे पापों से दूर रहते हैं। ध्यान रखें कि ये प्रभावी नहीं होंगे यदि आप प्रार्थना नहीं करते हैं या बड़े पापों में लिप्त हैं।
पिछला पाठ: संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 2)
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