धर्मग्रंथों में विश्वास
विवरण: इस्लाम मे क़ुरआन को 'एकमात्र' ऐसा प्रकट धर्मग्रंथ माना जाता है जो अपने मूल रूप में बना हुआ है, इसके बावजूद, यह पिछले धर्मग्रंथों में विश्वास से इंकार नहीं करता है। यह पाठ इस बात को बताता है कि ईश्वर ने अपने संदेश को धर्मग्रंथों के रूप में क्यों प्रकट किया, और दो धर्मग्रंथों का संक्षिप्त विवरण: बाइबिल और क़ुरआन।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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आवश्यक शर्तें
·इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भाग)।
उद्देश्य
·धर्मग्रंथो के प्रकट होने के उद्देश्य को समझना।
·यह जानना कि 'धर्मग्रंथो पर विश्वास' मे क्या शामिल है।
·दो मामलों के बीच अंतर करना: मूल तौरात, इंजील, जबूर और और वर्तमान बाइबिल।
·इस बात को मानना कि क़ुरआन वास्तव में कई मामलों में अन्य धर्मग्रंथों से अलग है।
धर्मग्रंथो में विश्वास इस्लामी आस्था का तीसरा अनुच्छेद है।
आइए सबसे पहले देखें कि इन्हें क्यों प्रकट किया गया था।
(1) एक पैगंबर को दिया गया ग्रंथ धर्म सीखने और अल्लाह और साथी मनुष्यों के प्रति दायित्वों को जानने का स्त्रोत है। अल्लाह ईश्वरीय धर्मग्रंथो को प्रकट करके मनुष्यों का मार्गदर्शन करता है जिसके माध्यम से उन्हें अपनी रचना के उद्देश्य का एहसास होता है।
(2) इसका हवाला देकर इसके अनुयायियों के बीच धार्मिक विवाद और मतभेद सुलझाए जा सकते हैं।
(3) धर्मग्रंथ किसी पैगंबर की मृत्यु के बाद कम से कम कुछ समय के लिए धर्म को भ्रष्ट होने से सुरक्षित रखने का काम करते हैं। हालांकि, हमारे पैगंबर को बताया गया क़ुरआन समय के अंत तक भ्रष्टाचार से सुरक्षित रहेगा। महान अल्लाह कहता है:
‘वास्तव में, यह हम ही हैं जिन्होंने संदेश भेजा और वास्तव में, हम इसके संरक्षक होंगे।’ (क़ुरआन 15:9)
(4)ताकि मनुष्यों के विरुद्ध दूतों द्वारा लाया गया अल्लाह का निर्णायक तर्क उनकी मृत्यु के बाद भी बना रहे।
“ये सभी दूत शुभ सूचना सुनाने वाले और डराने वाले थे, ताकि इन दूतों के पश्चात् लोगों के लिए अल्लाह पर कोई तर्क न रह जाये और अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ है।” (क़ुरआन 4:165)
जब तक धर्मग्रंथ मौजूद हैं तब तक कोई यह दलील नहीं दे सकता है कि पैगंबरो और उनके संदेश अस्तित्व में नहीं हैं।
धर्मग्रंथो पर विश्वास में शामिल है:
(i) मानना की अल्लाह ने उन्हें सच में प्रकट किया।
(ii) कुछ धर्मग्रंथो के नामों में विश्वास करना।
(iii) विश्वास करना कि उनमें सच्चाई है। क्योंकि क़ुरआन से पहले के धर्मग्रंथो को बदल दिया गया है, इसलिए हम उन मूल धर्मग्रंथो में विश्वास करते हैं जो पैगंबरो के लिए प्रकट हुए थे।
(iv) विश्वास करना कि क़ुरआन उनका गवाह है और उनकी पुष्टि करता है। सत्य एक है और हमेशा रहता है, और इस प्रकार क़ुरआन उस सत्य की पुष्टि करता है जो उनमें था। कानून के मामले मे, क़ुरआन ने पिछले धर्मग्रंथो को निरस्त कर दिया है।
पहला, एक मुसलमान दृढ़ता से मानता है कि अल्लाह ने अपने दूतों पर मानवजाति का मार्गदर्शन करने के लिए ईश्वरीय धर्मग्रंथो को प्रकट किया था। मुसलमानों का मानना है कि क़ुरआन केवल अल्लाह का बोला जाने वाला शब्द नहीं है, बल्कि यह कि अल्लाह ने पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) से पहले के पैगंबरो से भी बात की थी।
“…और मूसा से अल्लाह ने सीधे बात की।” (क़ुरआन 4:164)
अल्लाह कहता है सच्चा आस्तिक वो है जो:
“…ऐ मुहम्मद! आप पर उतारी गयी (पुस्तक क़ुरआन) तथा आपसे पूर्व उतारी गयी (पुस्तकों) पर विश्वास करो” (क़ुरआन 2:4)
सभी धर्मग्रंथों का सबसे महत्वपूर्ण और केंद्रीय संदेश केवल अल्लाह की पूजा करना था।
“और नहीं भेजा हमने आपसे पहले कोई भी दूत, परन्तु उसकी ओर यही वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही पूजा करो।” (क़ुरआन 21:25)
दूसरा, हम क़ुरआन में वर्णित धर्मग्रंथो में विश्वास करते हैं:
(i) क़ुरआन खुद पैगंबर मुहम्मद को प्रकट किया गया था।
(ii) तौरात (अरबी में तौराह) पैगंबर मूसा को प्रकट किया गया (आज पढ़े गए पुराने नियम से अलग)।
(iii) सुसमाचार (अरबी में इंजील) पैगंबर यीशु को प्रकट किया गया था (आज चर्चों में पढ़े जाने वाले नए नियम से अलग)।
(iv) ज़बूर, पैगंबर दाऊद पर प्रकट किया गया था।
(v) मूसा और इब्राहीम के ग्रंथ (अरबी में सुहुफ)।
हमारी एक आम धारणा है कि अल्लाह ने और भी धर्मग्रंथो को प्रकट किया था जिनके नाम और विशिष्टताएं हमें पता नहीं हैं। इसलिए हम निश्चित रूप से इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते हैं कि मुहम्मद से पहले अन्य धर्मग्रंथों (ऊपर बताये गए धर्मग्रंथो के अलावा) को अल्लाह की ओर से प्रकट किया गया था।
तीसरा, मुसलमान मानते हैं कि उनमें जो कुछ भी है वो सच है और पिछले धर्मग्रंथो में उसे बदला या भ्रष्ट नहीं किया गया है। इसके बारे मे नीचे विस्तार से बताया जाएगा ताकि यह स्पष्ट हो जाए और कोई भ्रम न रहे।
चौथा, विश्वास करना कि अल्लाह ने क़ुरआन को पिछले धर्मग्रंथों के गवाह के रूप में और उनकी पुष्टि करने के लिए प्रकट किया, जैसा कि अल्लाह कहता है:
“और (ऐ मुहम्मद!) हमने आपकी ओर सत्य पर आधारित पुस्तक (क़ुरआन) उतार दी, जो अपने पूर्व की पुस्तकों को सच बताने वाली तथा संरक्षक है” (क़ुरआन 5:48)
मतलब क़ुरआन यह पुष्टि करता है की पहले के धर्मग्रंथों में जो कुछ था वो सत्य है, और मानव हाथों ने जो भी परिवर्तन किए हैं उन्हें खारिज करता है, और क़ुरआन द्वारा लाए गए कानून पिछले धर्मों द्वारा लाए गए किसी भी कानून को रद्द करते हैं और निरस्त करते हैं।
मूल धर्मग्रंथ और बाइबिल
हमें दो मामलों के बीच अंतर करना चाहिए: मूल तौरात, सुसमाचार, और ज़बूर और वर्तमान बाइबिल। हम मानते हैं कि मूल अल्लाह के रहस्योद्घाटन थे, लेकिन वर्तमान की बाइबिल में सटीक मूल ग्रंथ नहीं है।
क़ुरआन को छोड़कर आज कोई भी धर्मग्रंथ मौजूद नहीं है जो अपनी मूल भाषा मे हो। बाइबिल अंग्रेजी में प्रकट नहीं किया गया था। आज की बाइबल की विभिन्न पुस्तकें अनुवादों के अनुवाद हैं और विभिन्न संस्करण मौजूद हैं। ये अनुवाद उन लोगों द्वारा किए गए थे जिनका ज्ञान या ईमानदारी ज्ञात नहीं है। परिणामस्वरूप, कुछ बाइबिल दूसरों से बड़ी हैं और उनमें अंतर्विरोध और आंतरिक विसंगतियां हैं! कोई मूल मौजूद नहीं है। दूसरी ओर, क़ुरआन एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो अपनी मूल भाषा में आज भी अस्तित्व में है और आंतरिक रूप से बिना किसी विरोधाभास के मौजूद है। यह आज भी वैसा ही है जैसा कि 1400 साल पहले प्रकट हुआ था, जो याद रखने और लिखने की एक सटीक परंपरा द्वारा प्रसारित किया गया था। बहुत कम लोगों ने कभी पूरी बाइबिल को कंठस्थ किया है, यहां तक कि किसी पोप ने भी नहीं, जबकि संपूर्ण क़ुरआन को लगभग हर इस्लामी विद्वान और सैकड़ों हजारों आम मुसलमान पीढ़ी दर पीढ़ी कंठस्थ करते हैं। इसे संरक्षण कहते हैं!
पिछले धर्मग्रंथो में अनिवार्य रूप से शामिल हैं:
(i) मनुष्य की रचना और पहले के राष्ट्रों की कहानियां, आने वाले की भविष्यवाणियां, न्याय के दिन से पहले के चिन्ह और नए पैगंबर, और अन्य समाचार।
आज सभाओं और चर्चो में पढ़ी जाने वाली बाईबिल की कहानियां, भविष्यवाणियां और समाचार आंशिक रूप से सत्य और आंशिक रूप से असत्य हैं। इन पुस्तकों में अल्लाह द्वारा प्रकट किए गए मूल ग्रंथ के कुछ अनुवादित अंश, कुछ पैगंबरो के कथन, विद्वानों की मिश्रित व्याख्या, शास्त्रियों की त्रुटियां, और द्वेषपूर्ण जोड़ना और छोड़ना शामिल हैं। अंतिम और भरोसेमंद ग्रंथ क़ुरआन हमें कल्पना से तथ्य को अलग करने में मदद करता है। इसमें असत्य मे से सत्य को आंकने की कसौटी है। उदाहरण के लिए, बाइबिल में अभी भी कुछ स्पष्ट अंश हैं जो अल्लाह के एक होने की ओर इशारा करते हैं।[1] इसके अलावा, पैगंबर मुहम्मद के बारे में कुछ भविष्यवाणियां बाइबिल में भी पाई जाती हैं। [2] फिर भी, ऐसे अंश हैं यहां तक कि पूरी किताबें भी लगभग पूरी तरह से लोगों की जालसाजी और करतूत मानी जाती है।[3]
(ii) कानून और नियम, मूसा के कानून की तरह वैध और निषिद्ध।
अगर हम कानून मान लें, यानी पिछली किताबों में निहित 'वैध और निषिद्ध' भ्रष्टाचार का शिकार नहीं हुए हैं, तो क़ुरआन फिर भी उन फैसलों को रद्द करता है, क्योंकि यह उस पुराने कानून को रद्द कर देता है जो अपने समय के लिए उपयुक्त था और अब लागू नहीं है। उदाहरण के लिए, आहार, अनुष्ठान प्रार्थना, उपवास, विरासत, विवाह और तलाक से संबंधित कई पुराने कानूनों को इस्लामी कानून द्वारा निरस्त कर दिया गया है, जबकि अन्य वैसे ही हैं।
क़ुरआन
क़ुरआन अन्य धर्मग्रंथों से निम्नलिखित मामलों में अलग है:
(1) क़ुरआन चमत्कारी और अनुपम है। कोई भी मनुष्य इसके जैसा नहीं बना सकता है।
(2) क़ुरआन के बाद अल्लाह की ओर से और कोई धर्मग्रंथ प्रकट नही होगा। जिस तरह पैगंबर मुहम्मद अंतिम पैगंबर हैं, उसी तरह क़ुरआन अंतिम ग्रंथ है।
(3) अल्लाह ने क़ुरआन को परिवर्तन से बचाने, उसे भ्रष्टाचार से बचाने और उसे विकृति से बचाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली है। दूसरी ओर, पिछले धर्मग्रंथो में परिवर्तन और विकृति हुई है और वे अपने मूल रूप में नहीं है।
(4) क़ुरआन पिछले धर्मग्रंथो की पुष्टि करता है उनके लिए एक भरोसेमंद गवाह है।
(5) क़ुरआन उन्हें निरस्त करता है, जिसका अर्थ है कि यह पिछले धर्मग्रंथों के कई फैसलों को रद्द करता है और उन्हें अनुपयुक्त बताता है। इस प्रकार पुराने धर्मग्रंथों के कानूनों का अब लागू नहीं कर सकते हैं, क़ुरआन जो लाया है उससे पिछले फैसलों को रद्द कर दिया गया है या उनकी पुष्टि की गई है।
फुटनोट:
[1]उदाहरण के लिए मूसा की घोषणा: "ऐ इस्राइल, सुन, यहोवा हमारा ईश्वर है, यहोवा एक ही है" (व्यवस्थाविवरण 6:4)और यीशु की घोषणा: "... सभी आज्ञाओं में से पहली है, सुनो, ऐ इस्राइल; यहोवा हमारा ईश्वर है, यहोवा एक ही है।” (मरकुस 12:29)
[2] व्यवस्थाविवरण 18:18, व्यवस्थाविवरण 33:1-2, यशायाह 28:11, यशायाह 42:1-13, हबक्कूक 3:3, यूहन्ना 16:13, यूहन्ना 1:19-21, मत्ती 21:42, 43 और इससे भी अधिक देखें।
[3] उदाहरण के लिए, कृपया अपोक्रिफा की पुस्तकों को देखें।
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- आस्था की गवाही
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 1)
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)
- नए मुसलमान बने लोगों के कुछ सामान्य प्रश्न
- ज्ञान प्राप्त करने का महत्व
- स्वर्ग (2 का भाग 1)
- स्वर्ग (2 का भाग 2)
- रात की यात्रा
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 1)
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 2)
- परिवार को बताना (2 का भाग 1)
- परिवार को बताना (2 का भाग 2)
- मुस्लिम समुदाय के साथ तालमेल बिठाना
- अच्छी संगति रखना
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 1): तौहीद की श्रेणियां
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 2): शिर्क, तौहीद का विपरीत
- पैगंबरो पर विश्वास
- धर्मग्रंथों में विश्वास
- स्वर्गदूतों में विश्वास
- न्याय के दिन में विश्वास
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 2)
- एक नए मुस्लिम के लिए अध्ययन पद्धति