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शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 1)

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विवरण: शुक्रवार की नमाज - मुसलमानों के लिए सबसे महत्वपूर्ण साप्ताहिक प्रार्थना - के बारे में एक मुसलमान को क्या-क्या जानने की जरूरत है।

द्वारा Imam Mufti (© 2012 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 23 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,886 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य:

·यह समझना कि शुक्रवार की नमाज़ कैसे पढ़ी जाती है और नमाज़ पढ़ना किसके लिए आवश्यक है।

·शुक्रवार की नमाज़ पढ़ने के पीछे के ज्ञान को समझना।

·शुक्रवार की नमाज़ के फायदे जानना।

अरबी शब्द:

·सलात उल जुमा - शुक्रवार की नमाज।

·ज़ुहर - दोपहर की नमाज़।

·ख़ुतबा - प्रवचन

·खातिब - उपदेश देने वाला व्यक्ति।

·रकात - प्रार्थना की इकाई।

·इमाम - नमाज़ पढ़ाने वाला।

·अज़ान - मुसलमानों को पांच अनिवार्य प्रार्थनाओं के लिए बुलाने का एक इस्लामी तरीका।

FridayPrayer1.jpgहर शुक्रवार को, ज़ुहर (दोपहर की नमाज़) की जगह सलात उल- जुमा की नमाज पढ़ी जाती है। सलात उल- जुमा मे एक छोटा प्रवचन और एक सामूहिक प्रार्थना होती है। शुक्रवार की नमाज घर पर या अकेले पढ़ने की अनुमति नही है। यही कारण है कि मुसलमान एक केंद्रीय मस्जिद में नमाज पढ़ने और प्रवचन जिसे अरबी में खुतबा कहा जाता है, सुनने के लिए इकट्ठा होते हैं। एक इमाम (नमाज पढ़ाने वाला) का खुतबा पढ़ना आम बात है, लेकिन कभी-कभी आमंत्रित मेहमान या किसी समुदाय के सामान्य सदस्य भी इसे पढ़ते हैं।

पश्चिमी देशो में, प्रवचन ज्यादातर अंग्रेजी में दिए जाते हैं, हालांकि कभी-कभी वे सिर्फ अरबी मे होते हैं। किसी भी मामले में, प्रवचन का कम से कम एक हिस्सा हमेशा अरबी मे होता है। प्रवचन मे दो भाग होते हैं। पहला भाग समाप्त होने के बाद, खातिब (खुतबा देने वाला व्यक्ति) थोड़ी देर रुकता है और बैठता है, और फिर दूसरे भाग को पढता है। इस्लाम के जानकार विद्वान या किसी सामान्य व्यक्ति के प्रवचन की गुणवत्ता उस वक्ता के आधार पर बहुत भिन्न होती है। वक्ता अल्लाह की स्तुति करेगा और फिर मुस्लिम समुदाय से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करेगा। इसके बाद इमाम समूह को दो रकात की नमाज़ पढ़ाएंगे। सलात उल-जुमा (प्रवचन और प्रार्थना), आमतौर पर एक घंटे या उससे कम समय का होता है।

पुरुषों को सलात उल-जुमा की नमाज़ पढ़नी ही चाहिए

शुक्रवार की नमाज़ सभी मुस्लिम पुरुषों के लिए अनिवार्य है। यह क़ुरआन पर आधारित है जिसमें अल्लाह कहता है,

“ऐ आस्तिको! जब अज़ान हो जाये नमाज़ के लिए जुमा के दिन, तो दौड़ जाओ अल्लाह की याद की ओर तथा त्याग दो क्रय-विक्रय। ये उत्तम है तुम्हारे लिए, यदि तुम जानो।” (क़ुरआन 62:9)

पैगंबर मुहम्मद ने बहुत स्पष्ट रूप से बताया है कि सलात उल-जुमा की नमाज़ किसे पढ़नी ही है और किसके लिए छूट है:

“शुक्रवार की नमाज़ समूह में चार को छोड़कर हर मुसलमान पर एक अनिवार्य कर्तव्य है: गुलाम, महिला, बच्चा और बीमार व्यक्ति।”[1]

युवावस्था में पहुंचने वाले प्रत्येक मुस्लिम पुरुष को शुक्रवार की नमाज़ पढ़ने की आवश्यकता है। यहां बताये गए चार भी शुक्रवार की नमाज़ पढ़ सकते हैं, लेकिन यदि वे नही पढ़ते हैं तो वे पापी नही होंगे।

इसके अतिरिक्त, पैगंबर मुहम्मद ने जुमे की नमाज को छोड़ने के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी है। उन्होंने कहा,

“लोगों को जुमे की नमाज़ नही छोड़ना चाहिए अन्यथा अल्लाह उनके दिलों पर मुहर लगा देगा और इस तरह वे बेपरवाहों में से होंगे।”[2]

कोई मुस्लिम व्यक्ति जो बीमार है या यात्रा कर रहा है, वह शुक्रवार की नमाज़ छोड़ सकता है। मुस्लिम महिला को शुक्रवार की नमाज पढ़ने की आवश्यकता नही है, लेकिन अगर वह चाहती है तो उसे नमाज पढ़ने की अनुमति है। अधिकांश मस्जिदों मे महिलाओं के बैठने की अलग व्यवस्था होती है, लेकिन कुछ मस्जिदों में शुक्रवार की नमाज पढ़ने के लिए महिलाओं के लिए जगह की कमी हो सकती है। इसके अलावा, जो महिलाएं सलात उल-जुमा नही पढ़ना चाहती, उन्हें घर पर नियमित रूप से ज़ुहर की नमाज पढ़ना चाहिए।

शुक्रवार की नमाज़ के पीछे का ज्ञान

1. शुक्रवार की नमाज के लिए स्थानीय मुसलमान एक निश्चित दिन पर एक स्थान पर इकट्ठे होते हैं, जिससे मुसलमानों के बीच भाईचारा बढ़ता है।

2. खुतबा (प्रवचन) का उद्देश्य मुसलमानों को शिक्षित करना है और अल्लाह और साथी मनुष्यों के प्रति उनके कर्तव्यों के बारे मे याद दिलाना है। यह पाप और अल्लाह की अवज्ञा के खिलाफ चेतावनी देता है, और अच्छा बनने और अल्लाह की आज्ञा का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

3. विषय विविध होते हैं और अक्सर मुसलमानों को वर्तमान मुद्दों और उसमे मुस्लिम क्या भूमिका होनी चाहिए, इसके बारे मे जानकारी दी जाती है।

शुक्रवार के फायदे

शुक्रवार का दिन कई खास गुणों से भरा है।

1. पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

“शुक्रवार के दिन स्वर्गदूत मस्जिद के द्वार पर खड़े होते हैं और मस्जिद में आने वाले व्यक्तियों के नाम उनके आगमन के अनुसार लिखते रहते हैं। सबसे पहले मस्जिद में आने वाले को एक ऊंट के कुर्बानी का पुण्य मिलता है। उसके बाद आने वाले को एक गाय और फिर उसके बाद आने वाले को एक मेढ़े और फिर उसके बाद आने वाले को एक मुर्गी और फिर उसके बाद आने वाले को एक अंडा चढ़ाने के जितना पुण्य मिलता है। जब इमाम (शुक्रवार की नमाज़ पढ़ाने के लिए) आते हैं तो वे (अर्थात स्वर्गदूत) लिखना छोड़ के और खुतबा सुनने लगते हैं।”[3]

यह वर्णन शुक्रवार की नमाज़ के लिए जल्दी आने के प्रतिफल को दर्शाता है। एक व्यक्ति जितनी जल्दी आता है, उसका इनाम उतना ही अधिक होता है। पहले आने वाले को अल्लाह के लिए ऊंट की बलि देने का फल मिलता है, लेकिन बाद में आने वालों को कम इनाम मिलता है।

2. उन्होंने यह भी कहा:

“सबसे अच्छा दिन जिस दिन सूर्य पहली बार ऊगा था वह शुक्रवार का दिन था। जिस दिन आदम पैदा हुए, जिस दिन उन्हें स्वर्ग में दाखिल किया गया, और जिस दिन उन्हें स्वर्ग से निकाला गया शुक्रवार था, और जिस दिन हिसाब-किताब लिया जायेगा वह शुक्रवार का दिन होगा।”[4]

इस कथन का उद्देश्य हमें शुक्रवार को हुई या होने वाली भव्य घटनाओं के बारे में बताना है।



फुटनोट:

[1]अबू दाऊद

[2]सहीह मुस्लिम

[3]सहीह अल-बुखारी

[4]सहीह मुस्लिम

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