इस्लामी विवाह के विस्तृत व्यावहारिक पहलू
विवरण: इस लेख में इस्लामी विवाह के महत्वपूर्ण विवरणों पर चर्चा की गई है जो हर नए मुसलमान को शादी करने से पहले पता होना चाहिए।
द्वारा Imam Mufti (© 2012 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य:
·शादी के लक्ष्यों को जानना।
·एक वली का अर्थ और भूमिका जानना।
·जीवनसाथी चुनने के मानदंडों को समझना।
·शादी से पहले किसी संभावित से मिलने और शादी के प्रस्ताव के नियम जानना।
·एक वैध इस्लामी विवाह अनुबंध की शर्तों को समझना।
·दहेज और शादी की दावत के बारे में जानना।
अरबी शब्द:
·ईमान - आस्था, विश्वास या दृढ़ विश्वास।
·हलाल - जिसकी अनुमति है।
·इमाम - नमाज़ पढ़ाने वाला।
·वली - कानूनी अभिभावक।
·तक़वा - अल्लाह का खौफ या डर, धर्मपरायणता, ईश्वर-चेतना। यह बताता है कि व्यक्ति जो कुछ भी करता है उसे अल्लाह देख रहा है।
·इद्दा - विधवा या तलाकशुदा के लिए प्रतीक्षा अवधि।
·इस्तिखारा प्रार्थना - मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना।
·महर - दहेज, दुल्हन का उपहार, आदमी द्वारा अपनी पत्नी को दिया गया।
·वलीमा - शादी की दावत।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
इस्लाम में शादी एक खूबसूरत प्रथा है। यह एक दूसरे से प्यार करने, एक दूसरे की मदद करने और बच्चे पैदा करने, उनके पालन-पोषण और उन्हें अच्छे मुसलमान बनाने के उद्देश्य से एक पुरुष और एक महिला को जीवन भर के लिए एकजुट करने वाला बंधन है। दरअसल, शादी के जरिए एक मुस्लिम मर्द और औरत अल्लाह की पूजा करते हैं। अल्लाह के पैगंबर ने कहा, "जब व्यक्ति शादी करता है, तो उसका आधा ईमान (विश्वास) बन जाता है, बाकी के आधे के लिए उसे अल्लाह के प्रति सचेत रहने दें।" (तबरानी)
विवाह के लक्ष्य
1. प्राकृतिक तरीके से बच्चे पैदा करके संतान पाना और मानव प्रजाति को जारी रखना।
2. अल्लाह के उपहारों का आनंद लेना, साथी ढूंढना, अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करना और हलाल (अनुमेय) तरीके से आनंद लेना।
3. निगाहें नीची रखना, आत्म-संयम रखना, मर्यादा बनाए रखना और वर्जित चीजों से खुद को दूर रखना।
अल्लाह के पैगंबर ने मुसलमानों को शादी करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “जवान लोगो, तुम में से जो कोई विवाह करने के योग्य हो, वह विवाह कर ले, क्योंकि यह दृष्टि नीची रखने और पवित्रता की रक्षा करने के लिए बेहतर है। जो कोई शादी करने का जोखिम नहीं उठा सकता, वो उपवास करे, क्योंकि उपवास उसके लिए संयम का काम करेगा।” (सहीह अल-बुखारी)
यदि कोई व्यक्ति आत्मसंयम का अभ्यास नहीं कर सकता है और किसी वर्जित कार्य को करने से चिंतित है, तो विवाह करना अनिवार्य हो जाता है।
विवाह अभिभावक (वली)
एक मुस्लिम महिला को इस प्रक्रिया में मदद करने के लिए एक विवाह अभिभावक की आवश्यकता होती है, जिसे वली के रूप में जाना जाता है। एक महिला के मुस्लिम पिता या भाई उसके वली के रूप में कार्य करते हैं। एक नया मुस्लिम जिसका कोई पुरुष मुस्लिम रिश्तेदार नही है, उसके लिए मस्जिद के इमाम को एक वली के रूप में कार्य करना चाहिए या वह किसी को उसके वली के रूप में नियुक्त कर सकता है और इस प्रक्रिया में उसकी मदद कर सकता है।
एक वली का काम महिला की शादी करने में मदद करना, संभावित लड़के से बात करना, उनसे उनके इरादों के बारे में सवाल करना, आवश्यक जांच करना और उनकी उपयुक्तता पर सलाह देना है। एक उपयुक्त पुरुष से शादी करने में महिला की मदद और सुविधा के लिए वली होता है।
जीवनसाथी चुनना
पैगंबर ने समझाया,
“एक महिला का विवाह चार कारणों से होता है: उसके धन, उसके कुलीन वंश, उसकी सुंदरता और उसके धर्म के कारण। इसलिए, जो धार्मिक है उससे शादी करो और तुम समृद्ध हो जाओगे।” (सहीह अल-बुखारी)
एक और ख़ूबसूरत हदीस में उन्होंने कहा, "संसार कुछ समय का सुख है, और इस दुनिया का सबसे अच्छा आनंद एक धर्मी पत्नी है।" (सहीह मुस्लिम)
पैगंबर ने एक धार्मिक स्वभाव वाली महिला से शादी करने की सलाह दी है क्योंकि वह अल्लाह को प्रसन्न करने वाले दैनिक जीवन जीने मे पुरुष की सहायता करेगी और उसे पाप मे पड़ने से बचाएगी।
भावी पत्नी में क्या देखें:
·तक़वा (धर्मपरायणता)
·स्नेही स्वभाव
·आज्ञाकारिता
·धैर्य
·संतोष
भावी पति में क्या देखें:
·तक़वा (धर्मपरायणता)
·अपना परिवार पालने के लिए हलाल आय
·बुनियादी इस्लामी ज्ञान
·अच्छी तरह से सोचने की क्षमता
·सहनशीलता, क्रोध पर नियंत्रण
·ज़िम्मेदारी
शादी से पहले मुलाकात
एक मुस्लिम पुरुष और एक मुस्लिम महिला को शादी करने के इरादे से एक दूसरे से मिलने, एक दूसरे को देखने और एक दूसरे से बात करने की अनुमति है। हालांकि कुछ प्रतिबंधों का पालन किया जाना चाहिए। उन्हें अकेले मे नहीं मिलना चाहिए। उन्हें डेट नहीं करना चाहिए। उन्हें सेक्स की बातें नही करना चाहिए। उनके इरादे की घोषणा की जानी चाहिए और उनकी बैठक की निगरानी की जानी चाहिए। ऐसा इसलिए ताकि वे शीलता की सीमा से समझौता किए बिना सही निर्णय ले सकें। इन बैठकों की व्यवस्था करने में वली एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
पैगंबर ने कहा,
“यदि आप में से कोई अपने दिल में महसूस करता है कि उसे एक निश्चित महिला को शादी का प्रस्ताव देना चाहिए, तो उसे एक बार देखने दें, क्योंकि इससे उनके बीच प्यार को बढ़ावा मिलने की अधिक संभावना है।" (मुसनद)
विवाह का प्रस्ताव
विवाह के लिए एक उपयुक्त महिला मिलने के बाद, पुरुष का अगला कदम प्रस्ताव देना है। इस्लाम मे, शादी का प्रस्ताव शादी करने का एक वादा है। बिना किसी अच्छे कारण के उस वादे को तोड़ना बेईमानी होगी।
यदि महिला विधवा है या तलाकशुदा है, तो पुरुष को उसकी इद्दा (प्रतीक्षा अवधि) समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इद्दा को बाद के पाठ में और अधिक विस्तार से समझाया जाएगा। उस महिला को प्रस्ताव देने की भी अनुमति नहीं है जिसे किसी अन्य पुरुष ने पहले से प्रस्ताव दे रखा हो और उसका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया हो।
मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना (इस्तिकारा) और सलाह मांगना
पैगंबर मुहम्मद ने हमें एक विशेष प्रार्थना करना सिखाया जिसे इस्तिखारा प्रार्थना या मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय लेने या जटिल स्थिति में चुनाव करते समय अल्लाह से मार्गदर्शन मांगने के लिए किया जाता है। इस्तिखारा नमाज़ की दो इकाई होती है, जिसके बाद एक विशेष प्रार्थना की जाती है। इसमें, एक व्यक्ति अल्लाह से कार्य करने के सर्वोत्तम तरीके के लिए पूछता है[1]। इस प्रार्थना के अलावा, उन लोगों से सलाह भी लेनी चाहिए जिन पर वह भरोसा करता है।
विवाह अनुबंध
इस्लाम में, शादी दो पक्षों के बीच एक अनुबंध है। विवाह अनुबंध के वैध होने की चार बुनियादी शर्तें हैं:
1.महिला के वली (विवाह अभिभावक) की सहमति
2.महिला की सहमति
3.दो पुरुष, मुस्लिम गवाह
4.शादी का प्रस्ताव और उसकी स्वीकृति
दुल्हन को दहेज का अधिकार (महर)
इस्लाम में, पत्नी का पति पर अधिकार है कि पति उसे दहेज दे, जिसे अरबी में "महर" के रूप में जाना जाता है। महर क्या है? यह एक ऐसा उपहार है जो एक पति अपनी पत्नी को शादी के समय बदले में बिना किसी चीज़ की उम्मीद के अपनी मर्जी से देता है। महर अपने पति पर एक महिला का अधिकार है जो उसकी संपत्ति बन जाती है। महर के लिए कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं है। शादी को आसान बनाने के लिए इसे किफायती रखना बेहतर है। महर कुछ भी हो सकता है जिसके लिए दोनों पक्ष सहमत हों। यह सिर्फ एक टोकन या एक घर और कार, या इससे भी अधिक हो सकता है। पैगंबर ने घोषणा की है कि एक लोहे की अंगूठी अगर दुल्हन इसे स्वीकार करे या उसे क़ुरआन के कुछ अध्याय सिखाना भी पर्याप्त है।
शादी की दावत (वलीमा)
नए शादीशुदा पुरुष को पारंपरिक शादी की दावत देने की सलाह दी जाती है, जिसे अरबी में "वलीमा" कहते हैं। यह दावत पैगंबर मुहम्मद की एक स्थापित सुन्नत है। जब उनके एक साथी, अब्दुर-रहमान बिन औफ की शादी हुई, तो पैगंबर ने उन्हें निर्देश दिया, "शादी का जश्न मनाने के लिए एक दावत दो, भले ही इसमें एक भेड़ से ज्यादा न हो।”[2]जब पैगंबर ने सफिया से शादी की, तो उन्होंने तीन दिनों के बाद शादी की दावत दी।[3]
वलीमा की दावत में किसे आमंत्रित किया जाता है? पति को अमीर और गरीब में फर्क नहीं करना चाहिए। अल्लाह के पैगंबर ने कहा, "शादी की दावत का सबसे खराब भोजन वह है जिसमें केवल अमीरों को आमंत्रित किया जाता है और गरीबों से परहेज किया जाता है। और जो भी निमंत्रण के बाद नही आया उसने अल्लाह और उसके दूत की अवज्ञा की।" (सहीह अल-बुखारी)
फुटनोट:
[1] इस्तिखारा के बारे में अधिक जानकारी के लिए, कृपया देखें: http://www.newmuslims.com/lessons/163/
[2] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम
[3] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम
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