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उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 2): अल्लाह के साथ संबंध स्थापित करें

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विवरण: इस्लाम उदासी को दूर करने के कई तरीके प्रदान करता है, ये सभी तरीके अल्लाह और उसके दूत के साथ संबंध स्थापित करने से जुड़े हैं। यहां हम आजीवन संबंध बनाने के तीन तरीके बताएंगे।

द्वारा Aisha Stacey (© 2012 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,275 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·अल्लाह के करीब होने के तीन तरीके जानना।

अरबी शब्द:

·सब्र - धैर्य और यह एक मूल शब्द से आया है जिसका अर्थ है रुकना या बचना।

·शुक्र - आभार और कृतज्ञता, और अल्लाह के उपकार को मानना।

·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।

अल्लाह पर पूर्ण विश्वास रख कर अपना जीवन जीने के लिए हमें अपने निर्माता के साथ संबंध बनाना आवश्यक है। विकसित दुनिया में रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा लगने वाली उदासी और चिंता से निपटने के लिए हमें अल्लाह पर भरोसा करने की ज़रूरत है। यदि हम अल्लाह पर अपना विश्वास और भरोसा रखते हैं, और सब्र और शुक्र के साथ अपनी परीक्षाओं और समस्याओं को सहते हैं, तो जीवन के बारे में हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है। बेशक हम चिंता मुक्त होने की उम्मीद नहीं कर सकते क्योंकि बाधाओं का सामना करना मानवीय जीवन का हिस्सा है। हालांकि समस्याओं का सामना करना, अल्लाह पर भरोसा करना और अपने लिए उसके आदेश पर संतोष करना, जीवन को आसान और खुशहाल बनाता है।

आप किसी को अच्छी तरह से जाने बिना उस पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकते हैं और अल्लाह पर भरोसा करने का मामला भी ऐसा ही है। इससे पहले कि हम खुद को अल्लाह की इच्छा के अधीन करें, हमें यह जानना चाहिए कि हम जिसके अधीन हो रहे हैं वो कौन है। ऐसे कई तरीके हैं जिनसे व्यक्ति अल्लाह के साथ संबंध स्थापित कर सकता है। इसके अलावा, अल्लाह के करीब रहने से हमें उन अपरिहार्य पीड़ाओं और दुखों का मुकाबला करने में मदद मिलेगी जो जीवित रहने का हिस्सा हैं। हम केवल तीन तरीके देखेंगे जिनसे व्यक्ति अल्लाह के करीब पहुंच सकता है और दुख और तनाव के समय का सामना कर सकता है।

अल्लाह को उसके सबसे खूबसूरत नामों से पुकारना

मुसलमानों को हर समय अल्लाह को याद करने और उनके प्रति आभारी रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, हालांकि यह विशेष रूप से उनके लिए फायदेमंद हो सकता है जो निराशा की गहराई में खो जाता है या यहां तक ​​कि दिन या सप्ताह में हल्का तनाव महसूस करता है। हमें अल्लाह के सुंदर नामों को जानने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है और इस प्रकार हम अपने निर्माता को जान सकते हैं और अपनी आवश्यकतानुसार उन नामों से पुकार सकते हैं।

पैगंबर मुहम्मद ने हमें अल्लाह को उसके सबसे खूबसूरत नामों से पुकारने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने अपनी खुद की प्रार्थनाओं मे कहा, "ऐ अल्लाह, मैं आपसे हर उस नाम से मांगता हूं जिसे आपने अपने लिए रखा है, या जिसे आपने अपनी पुस्तक में प्रकट किया है, या जिसे आपने अपनी किसी भी रचना को सिखाया है, या जिसे आपने अपने अदृश्य ज्ञान में छिपा रखा है।”[1]

“वही अल्लाह है, नहीं है कोई वंदनीय (पूज्य) परन्तु वही है। उसी के उत्तम नाम हैं।” (क़ुरआन 20:8)

“और अल्लाह ही के शुभ नाम हैं, अतः उसे उन्हीं के द्वारा पुकारो ...” (क़ुरआन 7:180)

अल्लाह के नाम का जाप करने से बड़ी राहत मिलती है। यह हमें उनकी महानता का एहसास कराता है और हमारे विश्वास को बढ़ाता है। यह हमें शांत और धैर्यवान रहने पर ध्यान केंद्रित करने में भी मदद करता है। यह समझना महत्वपूर्ण है कि यद्यपि आस्तिक को दुख और पीड़ा में हताश या तनाव और समस्याओं के बारे में शिकायत न करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, उसे प्रोत्साहित किया जाता है कि वह अल्लाह की ओर मुड़ें, उनसे प्रार्थना करें और उनसे राहत मांगें। जरूरत के अनुरूप अल्लाह के नामों का उपयोग करना भी एक सराहनीय और शांत करने वाला कार्य है।

हर मौके पर दुआ मांगना

यदि कोई व्यक्ति व्यथित महसूस कर रहा है तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि अल्लाह करीब है और उस तक पहुंचने का एक प्रभावी तरीका दुआ करना है। जब कोई परम दयालु को पुकारता है, तो वह (अल्लाह) उत्तर देता है। "जब मेरे भक्त मेरे विषय में आपसे प्रश्न करें, तो उन्हें बता दें कि निश्चय मैं समीप हूं। मैं प्रार्थी की प्रार्थना का उत्तर देता हूं। अतः, उन्हें भी चाहिये कि मेरे आज्ञाकारी बनें तथा मुझपर विश्वास रखें, ताकि वे सीधी राह पायें।” (क़ुरआन 2:186)

पैगंबर मोहम्मद ने अपने अनुयायियों को विशेष रूप से उन लोगों के लिए एक दुआ सिखाई जो दुखी और व्यथित महसूस करते हैं।

“ऐसा कोई भी नहीं है जो संकट और दुख से न पीड़ित हो, और कहे: अल्लाहुम्मा इनि अब्दुका, इब्नु अब्दिका, इब्नु अमातिका, नासियाति बि-यदिका, माजिन फ़िय्या हुकुमका, अदलुन फ़िय्या क़दा-उका अस-अलुका बी कुली इस्मिन हुआ लका सम्मैता बिही नफ़्सका, औ अंजलतहु फी किताबिका औ अल्लमतहु अहदन मिन ख़लकिका औ इस्ता-तहरता बिही फि 'इल्मिल-ग़ैबी' इंदका, 'अन-तज-'अलल-क़ुरआना रबी'अ क़ल्बी व नूर सदरी व जला हुज़नी वा जहाबा हम्मी (ऐ अल्लाह यकीनन मै तेरा बन्दा हु और तेरे ही बन्दे और तेरी बन्दी की औलाद हूं। मेरी परेशानी तेरे ही हाथ में है। मुझमें तेरा ही हुक्म जारी है। मेरे बारे में तेरा फैसला न्यायसंगत है। मैं तेरे हर उस खास नाम के जरिये से तुझसे दरख्वास्त करता हु जो तूने खुद अपना नाम रखा है या उसे अपनी किताब में नाजिल फरमाया है या अपनी मखलुक में से किसि कों सिखाया है या तूने इसे इल्मे गैब में अपने पास (रखने को) खास किया है (मै दरख्वास्त करता हु ) के तु क़ुरआन मेरे दिल की बहार बना दे। और मेरे सीने का नूर, मेरे गमो का इलाज और मेरे संकट को दूर करने वाला।) और अल्लाह उसके संकट और दुख को दूर करके उसे खुशी से बदल दे।" उनसे पूछा गया: "अल्लाह के दूत, क्या हमें यह सीखना चाहिए?" उन्होंने कहा: “बेशक; जो कोई भी इसे सुने, उसे ये सीखना चाहिए।”[2]

दुआ विश्वास को बढ़ाती है, व्यथित को आशा और राहत देती है और प्रार्थना करने वाले को निराशा और अलगाव से बचाती है। ईमानदारी से दुआ करना वास्तव में एक ऐसा हथियार है जो सबसे गंभीर तनाव और दुख से भी लड़ सकता है। ऐसे अनगिनत अवसर हैं जब पैगंबरो और हमारे नेक पूर्वजो ने दुआ की है और अल्लाह ने उन्हें खतरे, विपत्ति या दर्द से बचाया।

इस दुनिया के जीवन की वास्तविकता को समझना

अक्सर हमें अपने कार्यों के कारण दुर्भाग्य, दर्द और पीड़ा होती है। हम पाप करते हैं, लेकिन अल्लाह हमें धन, स्वास्थ्य या जिन चीजों से हम प्यार करते हैं, उनके द्वारा हानि से शुद्ध करते हैं। कभी-कभी इस दुनिया का दुख, अगले जन्म में दुख की भरपाई करता है; कभी-कभी सारे दर्द और संकट का मतलब है कि हम स्वर्ग में एक उच्च पद प्राप्त करेंगे।

बुरे लोगों के साथ अच्छा क्यों होती हैं, या अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है, इसके पीछे की परम ज्ञान अल्लाह ही जानता है। सामान्य तौर पर, जो कुछ भी अल्लाह की ओर मुड़ने का कारण बनता है वह अच्छा है। संकट के समय लोग अल्लाह के करीब आते हैं। अल्लाह प्रदाता है और वह सबसे उदार है। वह हमें अनन्त जीवन का पुरस्कार देना चाहता है और अगर दर्द और पीड़ा हमें स्वर्ग के करीब लाती हैं, तो खराब स्वास्थ्य और चोट एक आशीर्वाद है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "अगर अल्लाह किसी के लिए अच्छा करना चाहता है, तो वह उसे परीक्षणों से पीड़ित करता है।”[3]



फुटनोट:

[1] इमाम अहमद

[2] इमाम अहमद

[3] सहीह अल-बुखारी

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