पैगंबर युसूफ के जीवन की झलकियां
विवरण: पैगंबर यूसुफ के जीवन की घटनाएं मूल्यवान सबक सिखाती हैं जो आज के समय मे भी वैसे ही लागू होती है जैसा वो यूसुफ के समय मे थीं।
द्वारा Aisha Stacey (© 2012 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य:
·पैगंबर यूसुफ के जीवन की कई घटनाओं को जानना और उन पर चर्चा करना कि इक्कीसवी शताब्दी के मुसलमान होने के नाते हम इन घटनाओं से क्या सीख सकते हैं और अपने जीवन मे लागू कर सकते हैं।
अरबी शब्द:
·यूसुफ - पैगंबर जोसेफ का अरबी नाम।
·याकूब - पैगंबर जैकब का अरबी नाम।
·सूरह - क़ुरआन का अध्याय।
·सब्र - धैर्य और यह एक मूल शब्द से आया है जिसका अर्थ है रुकना।
·सब्र जमील - सुंदर धैर्य।
·फ़ितना - एक अरबी शब्द जिसका आसानी से अंग्रेजी में अनुवाद नही हो सकता। इसका अर्थ है परीक्षण या समस्या का समय, विशेष रूप से ऐसी स्थिति जो किसी व्यक्ति को सही ढंग से ईश्वर की आराधना करने से रोकती है, या अवज्ञा या अविश्वास के कृत्यों का कारण बनती है।
क़ुरआन अल्लाह के सिद्धांतो की व्याख्या करता है, यह विस्तार से बताता है कि क्या करने की अनुमति है और क्या वर्जित है, यह अच्छे शिष्टाचार और नैतिकता की मूल बातें बताता है, और पूजा के नियम बताता है। यह स्वर्ग और नर्क के बारे मे बताता है और पैगंबरो और हमारे धर्मी पूर्वजो की कहानियां बताता है। क़ुरआन में कहानियां आमतौर पर छोटे-छोटे टुकड़ों में बताई जाती हैं और कई छंदो में प्रकट होती हैं; हालांकि पैगंबर यूसुफ की कहानी एक छंद मे शुरू से अंत तक बताई गई है। हालांकि पूरे क़ुरआन में कई जगहों पर पैगंबर यूसुफ का उल्लेख है, लेकिन छंद 12 में उनकी पूरी कहानी है।
छंद यूसुफ का सार है धैर्य, प्रतिकूल परिस्थितियों में सब्र। सब्र का अर्थ है जो हमारे नियंत्रण से बाहर है उसे स्वीकार करना, कुछ ऐसा जो पैगंबर यूसुफ ने बहुत कम उम्र से सीख लिया था। तनाव और चिंता के समय में, ईश्वर की इच्छा के सामने आत्मसमर्पण राहत है, युसुफ ने शुरू से ही कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया और न ही हांथ पर हांथ रख कर बैठे रहे। उन्होंने अपने जीवन के सभी पहलुओं में अल्लाह को खुश करने का प्रयास किया। जाने-माने इस्लामिक विद्वान इब्नुल कय्यम ने हमें बताया कि सब्र का अर्थ है खुद को निराशा न होने देना, शिकायत करने से बचना, और दुख और चिंता के समय में खुद को नियंत्रित करना। वो छंद युसूफ से और 1000 सबक लेने मे सक्षम थे।
हालांकि इस लेख में हम पैगंबर यूसुफ के जीवन की एक झलक देखेंगे और केवल तीन अत्यंत महत्वपूर्ण सबक को सीखेंगे।
सबक 1
सभी चीजों पर अल्लाह का ही नियंत्रण है।
जब पैगंबर यूसुफ युवा किशोर थे तब उनके ईर्ष्यालु भाइयों ने उन्हें कुएं में डाल दिया था, और बाद में एक काफिले ने उन्हें उठाया और गुलामी में बेच दिया था। पैगंबर यूसुफ के जीवन के बारे में अधिक विस्तृत कहानी के लिए, कृपया देखें:
http://www.islamreligion.com/articles/1790/viewall/
उनके बड़े भाई अपने बुजुर्ग पिता के साथ यूसुफ के सबंध से ईर्ष्या करते थे, इसलिए उन्होंने अपने पिता को यूसुफ को खेलने ले जाने के लिए मना लिया, लेकिन उनका इरादा उसे मारना था। हालांकि उनमें से एक ने अपनी गलती को महसूस किया और सुझाव दिया कि यूसुफ को मारने के बजाय कुएं में डाल देना चाहिए। और जब यूसुफ किसी राहगीर को मिलेगा तो वो उसे गुलामी के लिए बेच देगा, इस तरह से यूसुफ परिवार के लिए मृत के समान हो जायेगा। उनकी अंधेपनवाली सोच में यह भी था कि यूसुफ की अनुपस्थिति उसे, उनके पिता के विचारों से दूर कर देगी।
अल्लाह की योजना अलग थी, इसलिए जब उनके भाइ खुद को बधाई दे रहे थे, तो अल्लाह ने यूसुफ को मिस्र की भूमि में भेज दिया ताकि उसे ज्ञान और समझ की शिक्षा मिल सके। यूसुफ ने अपने पिता से अलग होने का दर्द और पीड़ा महसूस की और गुलामी में बेचे जाने की भयावह परीक्षा यूसुफ के चरित्र को ढालने के लिए बनाई गई थी। वे महानता की सीढ़ी पर यूसुफ के पहले कदम थे और उन्होंने उसे अल्लाह के पैगंबर के रूप में स्थापित किया। विश्वासघाती भाइयों की साजिशें और योजनाएं महत्वहीन थीं।
सबक 2
सच्चा सब्र स्वर्ग के द्वार की कुंजी है।
जब यूसुफ के भाई अपने पिता के पास लौटे और उन्हें बताया कि यूसुफ को एक भेड़िया ले गया है, तो याकूब का दिल दर्द और भय से सिकुड़ गया। वह जानते थे कि उनके बेटे झूठ बोल रहे हैं, लेकिन उनके पास अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण के साथ उस डर का सामना करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। वह आशा और धैर्य के साथ अल्लाह की ओर मुड़े। इस प्रकार के सब्र को इस्लाम में सब्र जमील यानि सुंदर सब्र कहा जाता है।
“बल्कि तुम्हारे मन ने तुम्हारे लिए एक सुन्दर बात बना ली है! तो अब धैर्य धारण करना ही उत्तम है और उसके संबन्ध में जो बात तुम बना रहे हो, अल्ला ही से सहायता मांगनी है।” (क़ुरआन 12:18)
जब तक कई सालों बाद याकूब ने अपने प्यारे बेटे यूसुफ को फिर से नहीं देखा, उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। एक समय जब उनके बेटों ने पूछा कि क्या वह हमेशा के लिए रोयेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया कि "मैंने केवल अल्लाह से अपने दुख और उदासी की शिकायत की" और अल्लाह पर पूरी तरह से निर्भर होने से वह वो जानते थे जो उनके पुत्र नहीं जानते थे।
सबक 3
अच्छा, बुरा, आसान या कठिन, सभी स्थितियों में हमेशा अल्लाह पर पूर्ण विश्वास करना चाहिए।
यदि हम स्वीकार कर लें कि हम अल्लाह के दास से अधिक कुछ नहीं हैं और इस धरती पर परीक्षण और परीक्षा के लिए आये हैं, तो यह जीवन पूरी तरह से एक नया अर्थ ले लेगा। यूसुफ और उनके पिता याकूब दोनों ने माना कि उनके जीवन में ईश्वर ही एक ऐसी चीज है जिस पर वे पूरी तरह भरोसा कर सकते हैं।
मिस्र के शीर्ष मंत्रियों में से एक के घर में अपना समय बिताने के दौरान यूसुफ को अपने मालिक की पत्नी ने यौन कामनाओं को पूरा करने पर मजबूर करना चाहा। यूसुफ ने मदद के लिए अल्लाह को पुकारा और कहा,
“यूसुफ़ ने प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! मुझे क़ैद उससे अधिक प्रिय है, जिसकी ओर ये औरतें मुझे बुला रही हैं और यदि तूने मुझसे इनके छल को दूर नहीं किया, तो मैं इनकी ओर झुक पडूंगा और अज्ञानों में से हो जाऊंगा।” (क़ुरआन 12:33)
युसूफ का मानना था कि वासना, लालच और प्रलोभन के माहौल में रहने के बजाय जेल में रहना बेहतर होगा। वह फितना के अधीन नहीं होना चाहता था, जो कि हमारे 21वीं सदी के जीवन में भी व्याप्त है। अल्लाह ने उसकी प्रार्थना का उत्तर दिया और उसे जेल भेजने की अनुमति देकर बचाया। यूसुफ की धैर्यवान रहने, दृढ़ रहने और पाप से दूर रहने की क्षमता ने उन्हें सफलता दिलाई।
सबक 4
दूसरों को क्षमा करना।
पैगंबर यूसुफ हमें सिखाते हैं की दूसरों के साथ सहज और क्षमाशील होना चाहिए और अल्लाह की दया और क्षमा की आशा नहीं छोड़नी चाहिए। पैगंबर यूसुफ ने अपने भाइयों को माफ कर दिया। जब यूसुफ ने अपने भाइयों को अपनी असली पहचान बताई तो उन्होंने उनसे इस तरह से बात की कि उन्हें पता चल जाये कि उन्होंने उनके कठोर व्यवहार के लिए माफ कर दिया है।
यूसुफ़ ने कहाः आज तुमपर कोई दोष नहीं, अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे! वही सर्वाधिक दयावान् है।” (क़ुरआन 12:92)
इसी तरह पैगंबर याकूब ने अद्भुत संयम और क्षमा का प्रदर्शन किया।
सब (भाईयों) ने कहाः हे हमारे पिता! हमारे लिए हमारे पापों की क्षमा मांगिये, वास्तव में, हम ही दोषी थे। याक़ूब ने कहाः मैं तुम्हारे लिए अपने पालनहार से क्षमा की प्रार्थना करूंगा, वास्तव में, वह अति क्षमी, दयावान् है।” (क़ुरआन 12: 97-98)
एक अन्य स्थान पर क़ुरआन क्रोध को दबाने और लोगों को क्षमा करने के गुण की प्रशंसा करता है:
“...और जो अपना क्रोध पी जाते और लोगों के दोष क्षमा कर दिया करते हैं और अल्लाह सदाचारियों से प्रेम करता है।” (क़ुरआन 3:134)
पैगंबर यूसुफ के जीवन के बारे में अधिक विस्तृत कहानी के लिए, कृपया देखें:
http://www.islamreligion.com/articles/1790/viewall/
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