पैगंबर इब्राहिम के जीवन की झलकियां
विवरण: पैगंबर इब्राहिम के जीवन की घटनाएं जो हमें मूल्यवान सबक सिखाती है और जो आज भी प्रासंगिक हैं।
द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 25 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,640 (दैनिक औसत: 4)
उद्देश्य:
·पैगंबर इब्राहिम (अब्राहम) के जीवन की कई घटनाओं को जानना।
·यह समझना कि इस्लाम में अल्लाह की इच्छा के आगे झुकना एक बहुत ही महत्वपूर्ण अवधारणा है।
·यह जानना कि अल्लाह जिसे चाहता है उसे ज्ञान देता है और यह उम्र पर आधारित नही होता है।
अरबी शब्द:
·इब्राहिम - अब्राहम का अरबी शब्द।
·शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है।
पैगंबर इब्राहिम अल्लाह के पैगंबर थे और उन्हें अल्लाह ने खलील-अल्लाह कह कर सम्मानित किया, जिसका अर्थ है जिसे ईश्वर ने अपने प्यार के लिए चुना।
क़ुरआन के विभिन्न अध्यायों में इब्राहिम की धार्मिकता के मॉडल के रूप में प्रशंसा की जाती है। वह एक ऐसा व्यक्ति थे जिनका चरित्र सभी विश्वासियों के लिए एक उदाहरण है; वह दयालु, सहनशील, बहादुर और भरोसेमंद थे। अल्लाह उनका वर्णन इस प्रकार करता है, वह कहता है:
वास्तव में, इब्राहीम एक सरदार था, अल्लाह का आज्ञाकारी एकेश्वरवादी था और मिश्रणवादियों (मुश्रिकों) में से नहीं था। अल्लाह के उपकारों को मानता था, अल्लाह ने उसे चुन लिया और उसे सीधी राह दिखा दी। और हमने उसे संसार में भलाई दी और वास्तव में वह परलोक में सदाचारियों में से होगा। (क़ुरआन 16: 120-122)
सबक 1
माता-पिता अपने बच्चों से सीख सकते हैं और बुजुर्ग युवाओं से सीख सकते हैं।
जरूरी नहीं कि ज्ञान और समझ उम्र के साथ आये और सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति उम्र मे बड़ा है इसका मतलब यह नहीं है कि उसका अनुसरण किया जाये। जिस तरह से पैगंबर इब्राहिम ने अपने पिता के साथ व्यवहार किया, वह एक बच्चे का अपने माता-पिता का सम्मान करने लेकिन फिर भी अपने माता-पिता के तरीकों और जीवन शैली को खारिज करने का एक बहुत अच्छा उदाहरण है।
तथा जब इब्राहीम ने अपने पिता आज़र से कहाः क्या आप मुर्तियों को पूज्य बनाते हो? मैं आपको तथा आपकी जाति को खुले कुपथ में देख रहा हूं।” (क़ुरआन 6: 74)
इब्राहिम के पिता आज़र मूर्तियों के मूर्तिकार थे, इसलिए छोटी उम्र से ही इब्राहिम को पता था कि मूर्तियां लकड़ी या पत्थर के टुकड़ों से ज्यादा कुछ नहीं हैं - निर्जीव वस्तुएं जो कोई लाभ या हानि नहीं पहुंचा सकती है। उन्हें यह असाधारण लगा कि लोग उन्हें देवताओं के रूप में पूजते हैं!
इब्राहिम ने अपने पिता को समझाने की कोशिश की कि मूर्ति पूजा की उनकी प्रथा गलत थी और अंततः बेकार थी। उसने कोमल स्वर में, दयालु शब्दों का उपयोग करते हुए अपने पिता से बात की, और मूर्तियों की पूजा में निहित खतरों के बारे में चेतावनी देने की कोशिश की, लेकिन उनके पिता नाराज और क्रोधित हो गए।
जब उसने कहा अपने पिता सेः हे मेरे प्रिय पिता! क्यों आप उसे पूजते हैं, जो न सुनता है, न देखता है और न आपके कुछ काम आता है? हे मेरे पिता! मेरे पास वह ज्ञान आ गया है, जो आपके पास नहीं आया, अतः आप मेरा अनुसरण करें, मैं आपको सीधी राह दिखा दूंगा। हे मेरे प्रिय पिता! शैतान की पूजा न करें, वास्तव में, शैतान अत्यंत कृपाशील अल्लाह का अवज्ञाकारी है। हे मेरे पिता! वास्तव में, मुझे भय हो रहा है कि आपको अत्यंत कृपाशील की कोई यातना आ लगे, तो आप शैतान के मित्र हो जायेंगे। उनके पिता ने कहाः क्या तू हमारे पूज्यों से विमुख हो रहा है? हे इब्राहीम! यदि तू इससे नहीं रुका, तो मैं तुझे पत्थरों से मार दूंगा और तू मुझसे विलग हो जा, सदा के लिए।" (क़ुरआन 19: 42-46)
इब्राहिम को डर था कि कहीं उनके पिता भटक न जाएं और शैतान के चंगुल मे न फंस जाएं। वह अपनी उम्र से अधिक बुद्धिमान थे फिर भी इब्राहिम के पिता ने शायद इस तथ्य को खारिज करते हुए नहीं सुना कि उसका बच्चा उसे कैसे मार्गदर्शन कर सकता है और सिखा सकता है। इब्राहिम ने अपना आपा नहीं खोया बल्कि सम्मान और समझदारी के साथ अपने पिता के धमकी भरे रवैये का जवाब दिया।
इब्राहीम ने कहाः सलाम है आपको! मैं क्षमा की प्रार्थना करता रहूंगा आपके लिए अपने पालनहार से, मेरा पालनहार मेरे प्रति बड़ा करुणामय है। तथा मैं तुम सभी को छोड़ता हूं और जिसे तुम पुकारते हो अल्लाह के सिवा और प्रार्थना करता रहूंगा अपने पालनहार से। मुझे विश्वास है कि मैं अपने पालनहार से प्रार्थना करके असफल नहीं होऊंगा।” (क़ुरआन 19:47-48)
सबक 2
इस्लाम तार्किक है।
इस्लाम के दृष्टिकोण से पैगंबर इब्राहिम को न तो यहूदी माना जाता है और न ही ईसाई; वह एक पैगंबर थे जो अल्लाह की इच्छा के सामने झुके और इस प्रकार वो एक मुसलमान है। ईश्वर हमें क़ुरआन में बताता है कि कम उम्र से ही पैगंबर इब्राहिम उस एक ईश्वर को खोजने लगे जो पूजा के योग्य हो। उन्होंने महसूस किया कि उनके लोग उनके पिता द्वारा बनाई गई जिन मूर्तियों की पूजा करते थे वे लकड़ी और पत्थर के अलावा और कुछ नहीं थीं। वह सहज रूप से जानते थे कि सूर्य, चंद्रमा और तारे किसी भी प्रकार के देवता नहीं हैं। इस्लाम हमें बताता है कि यदि कोई व्यक्ति खोज करे तो अल्लाह की पूजा करना ही एकमात्र तार्किक निष्कर्ष निकलेगा। ठीक ऐसा ही इब्राहिम ने किया था। सबसे पहले उन्होंने लकड़ी की मूर्तियों को जवाब देने के लिए कहा और फिर उन्होंने मूर्तियों को नष्ट कर दिया। वे न बोल सकते थे और न ही अपनी रक्षा कर सकते थे। फिर उन्होंने आकाश की ओर देखा और उत्तर खोजने का प्रयास किया।
तो जब उसपर रात छा गयी, तो उसने एक तारा देखा। कहाः ये मेरा पालनहार है। फिर जब वह डूब गया, तो कहाः मैं डूबने वालों से प्रेम नहीं करता। फिर जब उसने चांद को चमकते देखा, तो कहाः ये मेरा पालनहार है। फिर जब वह डूब गया, तो कहाः यदि मुझे मेरे पालनहार ने मार्गदर्शन नहीं दिया, तो मैं अवश्य कुपथों में से हो जाऊंगा। फिर जब (प्रातः) सूर्य को चमकते देखा, तो कहाः ये मेरा पालनहार है। ये सबसे बड़ा है। फिर जब वह भी डूब गया, तो उसने कहाः हे मेरी जाति के लोगो! निःसंदेह मैं उससे विरक्त हूं, जिसे तुम अल्लाह का साझी बनाते हो। मैंने तो अपना मुख एकाग्र होकर, उसकी ओर कर लिया है, जिसने आकाशों तथा धरती की रचना की है और मैं मुश्रिकों में से नहीं हूं।" (क़ुरआन 6: 76-79)
पैगंबर इब्राहिम के जीवन की इस घटना से सीखने के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। तर्क का उपयोग करके, कोई भी आसानी से उन संकेतों को देख सकता है जो अल्लाह के अस्तित्व की ओर इशारा करते हैं और यह कि वह अकेला ही पूजा के योग्य है। सूर्य, चंद्रमा और तारे अपने आप में देवता नहीं हैं बल्कि अल्लाह के अस्तित्व और महानता के प्रतीक हैं। अपने चिंतन के माध्यम से इब्राहिम ने अल्लाह के अस्तित्व और उदात्त प्रकृति को समझ लिया।
सबक 3
एक सच्चा आस्तिक अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए कुछ भी या किसी को भी त्यागने के लिए तैयार रहता है।
इस्लाम के अनुसार पैगंबर इब्राहिम के सबसे बड़े बेटे पैगंबर इस्माइल थे। जब पैगंबर इस्माइल अपने पिता के साथ चलने और उनसे बात करने की उम्र के हो गए, तो इब्राहिम ने उन्हें समझाया कि मैंने एक सपना देखा है जिसमें मै तुम्हे मार रहा हूं। पैगंबरो के सपने रहस्योद्घाटन का रूप होते हैं; इस प्रकार वे ईश्वर का एक आदेश होता है। वास्तव में अगर किसी व्यक्ति का पिता उससे कहे कि उसे एक सपने के कारण मारा जायेगा, तो वे सपने पर संदेह करेगा और साथ ही उस व्यक्ति के विवेक पर सवाल उठाएगा! लेकिन इस्माइल अपने पिता की स्थिति को जानते थे। वह वास्तव में एक धर्मपरायण व्यक्ति थे, एक धर्मपरायण पिता का पुत्र थे, जो दोनों ही अल्लाह के अधीन होने के लिए प्रतिबद्ध थे। पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे को उस स्थान पर ले गए जहां उसकी बलि दी जानी थी और उसे मुंह के बल लिटा दिया। इसलिए ईश्वर ने उन्हें सबसे सुंदर शब्दों में वर्णित किया है, अधीन होने के सार का एक चित्र चित्रित किया है; जो आंखों में आंसू ला देता है
अन्ततः, जब दोनों ने स्वयं को अर्पित कर दिया और उस (पिता) ने उसे गिरा दिया माथे के बल (बलि देने के लिए)। (क़ुरआन 37: 103)
जैसे ही इब्राहीम का चाकू चलने को तैयार था, एक आवाज ने उसे रोक लिया
तब हमने उसे आवाज़ दी कि हे इब्राहीम! तूने सच कर दिया अपना सपना। इसी प्रकार, हम प्रतिफल प्रदान करते हैं सदाचारियों को। वास्तव में, ये खुली परीक्षा थी। (क़ुरआन 37: 104-106)
वास्तव में, यह सबसे बड़ी परीक्षा थी, अपने प्यारे बच्चे का बलिदान, जो उसके बुढ़ापे मे और संतान की लालसा के वर्षों बाद पैदा हुआ था। यहां, इब्राहीम ने अल्लाह की खातिर कुछ भी बलिदान करने की इच्छा दिखाई, और इस कारण से, उन्हें सभी मानवता का सरदार बना दिया गया, और ईश्वर ने उनकी सभी संतानो को पैगंबर होने का आशीर्वाद दिया। यह महत्वपूर्ण घटना हमें सिखाती है कि किसी व्यक्ति के अस्तित्व का कोई अर्थ या मूल्य नहीं है सिवाय इसके कि वह इसका उपयोग अल्लाह को खुश करने के लिए करे।
पिछला पाठ: शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 2)
अगला पाठ: विवाह सलाह (2 का भाग 1)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 1)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 2)
- अच्छी आदतें जो नए मुसलमानों को सीखना चाहिए
- पैगंबर नूह के जीवन की झलकियां
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 1)
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 2)
- पैगंबर इब्राहिम के जीवन की झलकियां
- विवाह सलाह (2 का भाग 1)
- विवाह सलाह (2 का भाग 2): व्यावहारिक कदम
- पतियों और पत्नियों के अधिकार और जिम्मेदारियां
- इस्लामी विवाह के विस्तृत व्यावहारिक पहलू
- पैगंबर लूत के जीवन की झलकियां
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 1): धैर्य, कृतज्ञता और विश्वास
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 2): अल्लाह के साथ संबंध स्थापित करें
- पैगंबर युसूफ के जीवन की झलकियां
- इस्तिखारा प्रार्थना
- पैगंबर अय्यूब के जीवन की झलकियां
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 1)
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 2)
- पैगंबर मूसा के जीवन की झलकियां
- क्या मुझे अपना नाम बदलना चाहिए?
- पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां
- संदेह से निपटना
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 1): मक्का अवधि
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 2): मदीना अवधि
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 1)
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 2)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 1)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 2)