पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 2): मदीना अवधि
विवरण: एक इस्लामी राष्ट्र का निर्माण।
द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य:
·यह जानना कि पहले इस्लामिक राज्य की स्थापना कैसे हुई।
अरबी शब्द:
·हज - मक्का की तीर्थयात्रा, जहां तीर्थयात्री अनुष्ठानों की एक श्रृंखला का पालन करते हैं। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।
·उमरा - सऊदी अरब के मक्का शहर में अल्लाह के पवित्र घर की तीर्थयात्रा। अक्सर इसे छोटी तीर्थयात्रा के रूप में जाना जाता है। इसे वर्ष के किसी भी समय किया जा सकता है।
·हिज्राह - एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना। इस्लाम में, हिज्राह मक्का से मदीना की ओर पलायन करने वाले मुसलमानों को संदर्भित करता है और इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत का भी प्रतीक है।
·मुहाजिरून - प्रवास करने वाले। अधिक विशेष रूप से और आमतौर पर यह उन लोगों को संदर्भित करता है जिन्होंने मक्का से मदीना प्रवास किया।
·अंसार - मददगार। मदीना के वो लोग जिन्होंने मक्का से आने वाले पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायियों के लिए अपने घर, जीवन और शहर के द्वार खोले।
मक्का के उत्तर में 200 मील से अधिक दूरी पर स्थित याथ्रिब शहर को एक मजबूत सरदार की जरूरत थी, और याथ्रिब के एक प्रतिनिधिमंडल ने पैगंबर मुहम्मद को उनके साथ बसने के लिए आमंत्रित किया। इसके बदले में, उन्होंने सिर्फ अल्लाह की पूजा करने, मुहम्मद का पालन करने और उनके और उनके अनुयायियों की रक्षा करने का वचन दिया। इसके साथ ही पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने याथ्रिब जाने की योजना बनाई।
मुसलमान छोटे समूहों में या व्यक्तिगत रूप से जाने लगे और मक्का के लोगों द्वारा उनको रोकने की सारी कोशिश नाकाम होने लगी। उन्होंने पैगंबर मुहम्मद को मारने की अपनी योजना को अमल में लाने का फैसला किया। कबीले इकट्ठे होकर कार्य करने और सोते समय पैगंबर की हत्या करने पर सहमत हुए। इस तरह किसी एक व्यक्ति या कबीले को दोषी नहीं ठहराया जा सकेगा जिससे प्रतिशोध का युद्ध होने से रुक जायेगा
इस योजना को दैवीय हस्तक्षेप ने असफल कर दिया; अल्लाह ने अपने पैगंबर को खतरे की सूचना दी और उन्हें गुप्त रूप से मक्का छोड़ने और याथ्रिब शहर जाने का आदेश दिया। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) और उनके करीबी दोस्त अबू बक्र ने रात के अंधेरे मे मक्का छोड़ दिया और एक गुफा में चले गए। मदीना की ओर उनका प्रवास एक घटनापूर्ण और प्रेरक कहानी है और अगर अल्लाह ने चाहा तो इसे आगे के पाठों में विस्तार से बताया जाएगा। याथ्रिब शहर जल्द ही मदीना के रूप में जाना जाने लगा - प्रकाश का शहर, या प्रबुद्ध शहर। संभवत: वह प्रकाश जो इस्लामी राष्ट्र दुनिया में लाने वाला था।
जब पैगंबर मुहम्मद और अबू बक्र आखिरकार याथ्रिब शहर पहुंचे तो वहां बड़ा जश्न मनाया गया। इस यात्रा को हिज्राह के रूप में जाना जाता है और यह इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत का प्रतीक है। याथ्रिब के कई निवासियों ने पहले ही इस्लाम धर्म अपना लिया था और पैगंबर मुहम्मद ने मदीना के पुरुषों को उन पुरुषों के साथ मिलाया जो भाईचारे के बंधन के लिए मक्का से आए थे। यह महान इस्लामी संहिता का एक आदर्श उदाहरण था, जिसमें प्रत्येक मुसलमान को अपने भाई या बहन के रूप में मान्यता दी गई थी, जिसे व्यवहार में लाया जा रहा था। मदीना के मुसलमानों के पास जो कुछ भी था, उन्होंने उसे अप्रवासियों यानि मक्का के लोगों के साथ खुशी-खुशी साझा किया।
हिज्राह के दूसरे वर्ष के दौरान, पैगंबर मुहम्मद ने मदीना के संविधान का दस्तावेज तैयार किया। इसने आदिवासी समूहों और विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्गों को एकीकृत करके पहले इस्लामी समुदाय में विभिन्न समूहों के बीच संबंधों को परिभाषित किया। यह सामाजिक न्याय और धार्मिक सहिष्णुता की इस्लामी अवधारणाओं से ओतप्रोत एक दस्तावेज था। उसी वर्ष दैवीय आदेश ने दैनिक प्रार्थनाओं की दिशा यरुशलम से मक्का कर दी, इस प्रकार इस्लाम को यहूदी और ईसाई धर्म से काफी अलग एक एकेश्वरवादी धर्म के रूप में पहचान मिली।
मदीना के कुछ परिवारों और कुछ प्रमुख हस्तियों ने पीछे हटना शुरू कर दिया, लेकिन धीरे-धीरे मदीना के सभी अरबों ने इस्लाम धर्म अपना लिया। फिर भी, आदिवासी और धार्मिक विभाजन बने रहे। जैसे से ही पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने नए इस्लामी समुदाय (मुहाजिरून और अंसार) को एकीकृत किया, मदीना के यहूदी समुदाय और नई स्थापित इस्लामी व्यवस्था के बीच दुश्मनी बढ़ी, और इसी तरह मक्का और मुसलमानों के बीच की दुश्मनी भी बढ़ी। हालांकि पैगंबर मुहम्मद किसी भी समूह के खिलाफ तब तक कूच नहीं करते थे जब तक कि अल्लाह की अनुमति न मिल जाये।
मुहाजिरून जब मक्का से मदीना जाने लगे, तो उनमें से कई को अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया और उनकी संपत्तियों को जब्त कर लिया गया। मक्का के सरदारों ने जब्त धन का उपयोग व्यापार में किया। 624 सीई में, मुसलमानों को मक्का के प्रमुखों से संबंधित एक व्यापार कारवां के बारे में पता चला जो मदीना के नजदीक एक व्यापार मार्ग से होकर गुजरने वाला था। पैगंबर मुहम्मद ने मुसलमानों से मक्का में जब्त किए गए धन के बदले कारवां लेने का आह्वान किया। इसकी वजह से बद्र नामक स्थान पर एक निर्णायक युद्ध हुआ जहां 1000 लोगों की मक्का सेना ने 313 मुसलमानों की एक कमजोर और बहुत छोटी सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। बद्र की लड़ाई इस्लामी इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटना थी। मुसलमानों ने एक उल्लेखनीय जीत हासिल की; हालांकि पैगंबर के नौ सबसे करीबी साथी मारे गए थे। हालांकि रेगिस्तान में एक मामूली प्रतीत होने वाले युद्ध ने विश्व इतिहास बदल दिया।
हालांकि, मक्का ने इस्लामी समुदाय को नष्ट करने की अपनी कोशिश नहीं छोड़ी और 625 सीई में उन्होंने 3,000 पुरुषों की एक सेना भेजी; इस सेना ने मदीना के पास उहुद पर्वत के पास मुसलमानों से युद्ध किया। मुसलमानों को शुरुआत में कुछ सफलता मिली, लेकिन युद्ध के दौरान पैगंबर मुहम्मद के कई अनुयायी यह सोचकर भाग गए कि पैगंबर की मृत्यु हो गई है। यह असत्य निकला, हालांकि घायल हुए पैगंबर मुहम्मद की रक्षा की गई और सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया, हालांकि उहुद की लड़ाई में कई प्रतिष्ठित मुसलमानों ने अपनी जान गंवा दी।
मदीना के यहूदी जिन्हें उहुद के बाद खैबर शहर में भगा दिया गया था, उन्होंने कुरैश से मदीना समुदाय के खिलाफ लड़ाई जारी रखने का आग्रह किया। 10,000 पुरुषों की एक सेना ने मदीना पर चढ़ाई की, जिसे मुसलमानों द्वारा शहर के चारों ओर खोदी गई खाई ने नाकाम कर दिया। खाई को पार करने में असमर्थ होने पर मक्का सेना ने शहर की घेराबंदी की जिससे उन्हें सफलता न मिली। आक्रमणकारी सेना धीरे-धीरे तितर-बितर होने लगी, जिससे मुसलमानों को खाई की लड़ाई में विजयी मिली।
628 सीई में जब इस्लामी समुदाय अधिक स्थापित हो गया था, पैगंबर मुहम्मद ने एक बड़े दल का नेतृत्व किया जो मक्का में उमरा करने का इरादा रखते थे और बलिदान के लिए कई जानवर लिए। चूंकि मक्का के एक दल ने मक्का जाने का उनका रास्ता अवरुद्ध कर दिया था, इसलिए उन्होंने अल-हुदैबिया नामक स्थान पर डेरा डाला और शांतिपूर्ण यात्रा पर चर्चा करने के लिए एक साथी को भेजा। वार्ता के परिणाम की प्रतीक्षा करते हुए, पैगंबर मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को इकट्ठा किया और उन्हें सभी परिस्थितियों में मृत्यु तक उनका पालन करने के लिए निष्ठा की शपथ दिलाई। उनका साथी मक्का के नेताओं के एक समूह के साथ लौटा और एक समझौता और दस साल का संघर्ष विराम स्थापित किया गया, जिसे बाद में हुदैबिया की संधि के रूप में जाना जाने लगा।
इस संधि ने मुसलमानों को अरब में एक नई ताकत के रूप में मान्यता दिलाई और उन्हें पूरे अरब में बिना किसी नुकसान के घूमने की आजादी दी। मक्का ने एक साल बाद संधि का उल्लंघन किया लेकिन तब तक शक्ति का संतुलन बदल गया था। 630 की शुरुआत में, मुसलमानों ने मक्का पर चढ़ाई की और रास्ते में कई जनजातियां शामिल हो गई। उन्होंने बिना रक्तपात और दोष के मक्का में प्रवेश किया। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने मुस्लिम समाज के खिलाफ की गई गलतियों और मक्का के लोगों को माफ कर दिया, और वे इस्लामी राष्ट्र में शामिल होने लगे। इसे मक्का की जीत के रूप में जाना जाने लगा।
632 ई. में पैगंबर मुहम्मद ने अपना पहला और एकमात्र इस्लामी हज किया। उस समय, मक्का की अपनी यात्रा पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध विदाई धर्मोपदेश दिया और क़ुरआन के अंतिम छंद प्रकट हुए, इस प्रकार पवित्र पुस्तक पूरी हुई। "... आज मैंने तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिय है तथा तुमपर अपना पुरस्कार पूरा कर दिया और तुम्हारे लिए इस्लाम को धर्म स्वरूप स्वीकार कर लिया है ..." (क़ुरआन 5:3)। उसी वर्ष बाद में पैगंबर मुहम्मद को तेज बुखार हुआ, और 632 ई. में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु ने नए बने इस्लामी राष्ट्र को झकझोर दिया और उनके शोकग्रस्त परिवार और दोस्तों ने अपने प्यारे पैगंबर को उनकी पत्नी आयशा (ईश्वर उन से प्रसन्न हो) के घर में दफना दिया।
उनकी मृत्यु के सौ वर्षों के भीतर, पैगंबर मुहम्मद की विरासत, एक नया धर्म और एक नई व्यवस्था, अटलांटिक से चीन सागर तक और फ्रांस से भारत तक फैल गई। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) एक सुधारक, एक राजनेता, एक सैन्य नेता, एक कानूनविद और एक क्रांतिकारी थे। इस विनम्र, दयालु और सहनशील व्यक्ति ने एक सामाजिक क्रांति लाई और एक सच्चे धर्म की स्थापना की जिसके आज 1.5 बिलियन से अधिक अनुयायी हैं।
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