पैगंबरो पर विश्वास
विवरण: अल्लाह पैगंबरो और दूतों के माध्यम से मानवता को अपना संदेश देता है। इन दूतों की प्रकृति क्या थी और वे क्या संदेश लाए थे? क्या वे दैवीय गुणों वाले मनुष्य थे? यह पाठ इन सवालो के जवाबों पर प्रकाश डालता है।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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आवश्यक शर्तें
·इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भाग)।
उद्देश्य
·मानवजाति के लिए भेजे गए दूतों की आवश्यकता और उनके उद्देश्य को जानना और समझना।
·यह जानना कि दूतों पर विश्वास मे क्या शामिल है।
·दूतों की प्रकृति और उनके द्वारा लाए गए संदेश से परिचित होना।
अरबी शब्द
·तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
दूतों पर विश्वास करना इस्लामी आस्था का एक आवश्यक अनुच्छेद है।
“दूत (मुहम्मद) ने उस चीज़ पर विश्वास किया, जो उनके लिए अल्लाह की ओर से उतारी गई तथा सब आस्तिको ने उसपर विश्वास किया। उन सब ने अल्लाह तथा उसके स्वर्गदूतों और उसकी सब पुस्तकों एवं दूतों पर विश्वास किया। (वे कहते हैः) हम उसके दूतों में से किसी के बीच अन्तर नहीं करते।’” (क़ुरआन 2:285)
अल्लाह अपने संदेश को दूतों के माध्यम से मानवता तक पहुंचाता है। वे मनुष्यों और आकाश के बीच एक कड़ी बनाते हैं, इस अर्थ में कि अल्लाह ने उन्हें मानवता को अपना संदेश देने के लिए चुना है। केवल दूतों के माध्यम से ही ईश्वरीय संदेश मानवजाति तक पहुंचाया गया। यह अल्लाह और मानवजाति के बीच बात करने का तरीका है। अल्लाह हर एक व्यक्ति के पास स्वर्गदूत नहीं भेजता और न ही वह 'आसमान खोलता है' ताकि लोग संदेश लेने के लिए ऊपर चढ़ सकें। उनके बात करने का तरीका मानव दूतों के माध्यम से है जो स्वर्गदूतों के माध्यम से संदेश प्राप्त करते हैं। अल्लाह ने केवल पुरुषों को पैगंबर और दूत के रूप में भेजा। मानवजाति को संदेश देने के लिए किसी स्वर्गदूत को नहीं भेजा गया था। महान अल्लाह कहता है:
‘तथा उन्होंने कहाः इस (पैगंबर) पर कोई स्वर्गदूत क्यों नहीं उतारा गया? और यदि हम कोई स्वर्गदूत उतार देते, तो निर्णय ही कर दिया जाता, फिर उन्हें अवसर नहीं दिया जाता। और यदि हम किसी स्वर्गदूत को पैगंबर बनाते, तो उसे किसी पुरुष ही के रूप में बनाते और उन्हें उसी संदेह में डाल देते, जो संदेह अब कर रहे हैं।’ (क़ुरआन 6:8-9)
दूतों पर विश्वास करने मे क्या शामिल है?
दूतों में विश्वास करना यह है की दृढ़ता से विश्वास करें कि अल्लाह ने अपने संदेश को सहन करने और इसे मानवता तक पहुंचाने के लिए नैतिक रूप से ईमानदार लोगों को चुना। धन्य थे वे लोग जो उनका अनुसरण करते थे, अभागे थे वे लोग जिन्होंने आज्ञा मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने संदेश को ईमानदारी से बिना छुपाए, बिना बदले या बिना भ्रष्ट किए पहुंचाया। दूत को ठुकराना उसे भेजनेवाले को ठुकराना है। एक दूत की अवज्ञा करना उस की अवज्ञा करना है जिसने उसकी आज्ञा का पालन करने का आदेश दिया है।
एक दूत पर विश्वास न करना सभी दूतों पर विश्वास न करने जैसा है। महान अल्लाह निम्नलिखित छंद में कहता है कि नूह के लोगों ने सभी दूतों पर विश्वास नहीं किया, भले ही उन्हें केवल नूह का पालन करने की आज्ञा दी गई थी:
‘नूह़ की जाति ने भी दूतों को झुठलाया।’ (क़ुरआन 26:105)
विशेष रूप से, दूतों में विश्वास का अर्थ है:
(1) अल्लाह ने प्रत्येक राष्ट्र में उनमें से एक पैगंबर भेजा, कि उन्हें केवल अल्लाह की पूजा करने और झूठे देवताओं से दूर होने के लिए कहा।
“तथा ऐ पैगंबर (मुहम्मद)! आप पूछ लें उनसे जिन्हें हमने भेजा है आपसे पहले, अपने दूतों में से कि क्या हमने बनाये हैं अत्यंत कृपाशील (अल्लाह) के अतिरिक्त वंदनीय, जिनकी वंदना की जाये?’” (क़ुरआन 43:45)
वे ईश्वरीय संदेश मे कुछ भी जोड़ते या छोड़ते नहीं है।
“तो दूतों को केवल स्पष्ट रूप से उपदेश पहुंचा देना है।” (क़ुरआन 16:35)
(2) उन पर विश्वास करो जिनका उल्लेख विशेष रूप से किया गया है, जैसे कि मुहम्मद, इब्राहीम, मूसा, यीशु और नूह (इन सभी पर शांति हो)। हम उन लोगों पर एक सामान्य विश्वास रखते हैं जिनका उल्लेख नाम से नहीं किया गया है जैसा कि अल्लाह कहता है:
“तथा ऐ मुहम्मद हम भेज चुके हैं बहुत से दूतों को आपसे पूर्व, जिनमें से कुछ का वर्णन हम आपसे कर चुके हैं तथा कुछ का वर्णन आपसे नहीं किया है” (क़ुरआन 40:78)
हम मानते हैं कि अंतिम दूत हमारे पैगंबर मुहम्मद थे और उनके बाद कोई पैगंबर या दूत नहीं है जैसा कि अल्लाह ने क़ुरआन में कहा है:
“मुह़म्मद तुम्हारे लोगों में से किसी के पिता नहीं हैं। किन्तु, वे अल्लाह के दूत और सब पैगंबरो में अन्तिम हैं और अल्लाह प्रत्येक वस्तु का अति ज्ञानी है।” (क़ुरआन 33:40)
पैगंबर ने स्पष्ट रूप से कहा:
“मेरे बाद कोई पैगंबर न होगा।” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
पिछले पैगंबरों को सिर्फ उस समय के लोगों के लिए नियमों और आज्ञाओं के साथ भेजा गया था। हालांकि पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) को सभी समय, लोगों और स्थानों के लिए संदेश के साथ भेजा गया था; इसलिए, और पैगंबरो के आने की कोई आवश्यकता नहीं है। एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि कुछ राष्ट्रों में एक से अधिक पैगंबरो को धर्म में किए गए परिवर्तनों के कारण भेजा गया था। चूंकि ईश्वर ने वादा किया है कि पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं में कभी बदलाव नहीं आएगा और हमेशा मूल भाषा में उनके प्राथमिक स्रोतों - क़ुरआन और सुन्नत में संरक्षित किया जाएगा, इसलिए किसी अन्य पैगंबर की कोई आवश्यकता नहीं है। पहले के पैगंबरो के मामलों में, शास्त्र खो गए थे या उनका संदेश इस हद तक भ्रष्ट हो गया था कि सत्य और असत्य मे शायद ही फर्क किया जा सकता था।
(3) दूतों के कथनों पर विश्वास करना। उदाहरण के लिए, पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाएं (सुन्नत) हदीस की किताबों में संरक्षित हैं।
(4) हमारे पास भेजे गए दूत यानि अंतिम पैगंबर, मुहम्मद, जिन्हें पूरी मानवता के लिए भेजा गया था उनके नियमों का पालन करना। अल्लाह कहता है:
“तो आपके पालनहार की शपथ! वे कभी विश्वासी नहीं हो सकते, जब तक अपने आपस के विवाद में आपको निर्णायक न बनाएं, फिर आप जो निर्णय कर दें, उससे अपने दिलों में तनिक भी संकीर्णता (तंगी) का अनुभव न करें और पूर्णता स्वीकार कर लें।” (क़ुरआन 4:65)
उद्देश्य
दूत भेजने का उद्देश्य क्या है?
(1) लोगों को अन्य सृजित प्राणियों की पूजा करने से रोकना और सिर्फ निर्माता की पूजा करने को कहना, सृष्टि की गुलामी करने से रोकना और सिर्फ अपने पालनहार की पूजा करने की स्वतंत्रता तक ले जाना।
(2) लोगों को बताना की उनके जीवन का उद्देश्य अल्लाह की पूजा करना और उसकी सेवा करना है। सृष्टि के वास्तविक उद्देश्य को खोजने का कोई अन्य निश्चित तरीका नहीं है।
(3) दूत भेजकर इंसानियत के ख़िलाफ़ सबूत क़ायम करना, ताकि न्याय के दिन लोगों से सवाल किए जाने पर वो कोई बहाना न बना पाएं। वे यह नहीं कह पाएं कि उन्हें नहीं पता था कि उन्हें जीवन में क्या करना है।
(4) सामान्य लोगों और भौतिक ब्रह्मांड से परे कुछ 'अनदेखी दुनिया' को उजागर करना, जैसे अल्लाह के बारे मे बताना, स्वर्गदूतों का अस्तित्व बताना, न्याय के दिन की वास्तविकता बताना।
(5) मनुष्य को नैतिक, धार्मिक, उद्देश्य से संचालित जीवन को बिना संदेह और भ्रम से मुक्त जीने के लिए व्यावहारिक उदाहरण प्रदान करना।
(6) आत्मा को भौतिकवाद, पाप और बेख्याली से शुद्ध करना।
संदेश
अपने लोगों के लिए सभी पैगंबरो और दूतों का एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण संदेश था सिर्फ अल्लाह की पूजा करना और उसकी इच्छा के सामने झुकना। नूह, इब्राहीम, इसहाक, इस्माइल, मूसा, हारून, दाऊद, सुलैमान, यीशु, मुहम्मद, और जिन्हें हम जानते भी नहीं हैं - उन सभी ने लोगों को अल्लाह की पूजा करने और झूठे देवताओं से दूर रहने के लिए कहा।
मूसा ने घोषणा की:
“ऐ इस्राएल सुन, यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है।” (व्यवस्थाविवरण 6:4)
1500 साल बाद यीशु ने इसे दोहराया जब उन्होंने कहा:
“सब आज्ञाओं में से पहली यह है, कि हे इस्राएल, सुन; यहोवा हमारा परमेश्वर है, यहोवा एक ही है’” (मरकुस 12:29)
अंत में, लगभग 600 साल बाद मुहम्मद की पुकार मक्का की पहाड़ियों में गूंज उठी:
“और तुम्हारा पूज्य एक ही पूज्य है, उस अत्यंत दयालु, दयावान के सिवा कोई पूज्य नहीं।” (क़ुरआन 2:163)
क़ुरआन इस तथ्य को स्पष्ट रूप से बताता है:
“और नहीं भेजा हमने आपसे पहले कोई भी दूत, परन्तु उसकी ओर यही वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही पूजा (वंदना) करो।’” (क़ुरआन 21:25)
उनके द्वारा लाए गए कानून अलग-अलग थे, प्रत्येक अपने समय और लोगों के लिए उपयुक्त थे:
“आप में से प्रत्येक के लिए, हमने एक कानून और एक स्पष्ट मार्ग निर्धारित किया है”(क़ुरआन 5:48)
लेकिन एक केंद्रीय मूल संदेश अल्लाह का एक होना, तौहीद और पूजा था। जो की इस्लाम था; इस्लाम अपने व्यापक, सामान्य अर्थ में अल्लाह के प्रति अधीनता है।
“निःसंदेह, वास्तविक धर्म अल्लाह के पास इस्लाम ही है।” (क़ुरआन 3:19)
संदेश वाहक
अल्लाह ने अपना संदेश देने के लिए मनुष्यों में से सर्वश्रेष्ठ को चुना। उच्च शिक्षा की तरह पैगंबरी अर्जित नहीं की जाती है। इस उद्देश्य के लिए अल्लाह जिसे चाहता है उसे चुनता है।
वे नैतिकता में सर्वश्रेष्ठ थे और मानसिक और शारीरिक रूप से फिट थे, अल्लाह ने उन्हें बड़े पाप करने से सुरक्षित रखा था। उन्होंने संदेश देने में कोई भूल या गलती नहीं की। वे बहुत से पैगंबर और दूत थे, जिन्हें सारी मानवजाति, सब राष्ट्रों और जातियों, और संसार के कोने-कोने में भेजा गया था। कुछ पैगंबर दूसरों से श्रेष्ठ थे, कुछ दूत बाकी से श्रेष्ठ थे। उनमें से सबसे अच्छे थे नूह, इब्राहीम, मूसा, यीशु और मुहम्मद।
कुछ पैगंबर पैगंबरी के संबंध में चरम सीमा पर चले गए। कुछ को खारिज कर दिया गया और उन पर जादू करने, पागल होने और झूठे होने का आरोप लगाया गया। दूसरों को उनके अनुयायियों द्वारा देवताओं में बदल दिया गया था या उन्हें ईश्वर के पुत्र के रूप में माना जाता था जैसा यीशु के साथ हुआ था।
वास्तव में, वे पूरी तरह से मानव थे जिनमें कोई दैवीय गुण या शक्ति नहीं थी। वे अल्लाह के उपासक दास थे। उन्होंने खाया, पिया, सोया और सामान्य मानव जीवन व्यतीत किया। उनके पास किसी को अपना संदेश स्वीकार करवाने या पापों को क्षमा करने की शक्ति नहीं थी। भविष्य के बारे में उनका ज्ञान वहीं तक सीमित था जो अल्लाह ने उन को बताया था। ब्रह्मांड को चलाने में उनका कोई हिस्सा नहीं था।
- आस्था की गवाही
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 1)
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)
- नए मुसलमान बने लोगों के कुछ सामान्य प्रश्न
- ज्ञान प्राप्त करने का महत्व
- स्वर्ग (2 का भाग 1)
- स्वर्ग (2 का भाग 2)
- रात की यात्रा
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 1)
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 2)
- परिवार को बताना (2 का भाग 1)
- परिवार को बताना (2 का भाग 2)
- मुस्लिम समुदाय के साथ तालमेल बिठाना
- अच्छी संगति रखना
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 1): तौहीद की श्रेणियां
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 2): शिर्क, तौहीद का विपरीत
- पैगंबरो पर विश्वास
- धर्मग्रंथों में विश्वास
- स्वर्गदूतों में विश्वास
- न्याय के दिन में विश्वास
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 2)
- एक नए मुस्लिम के लिए अध्ययन पद्धति