ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 1)
विवरण: मुसलमान दो त्योहार मनाते हैं: ईद उल-फ़ित्र और ईद-उल-अजहा। इन पाठों में वह सब कुछ शामिल है जो आपको ईद-उल-अजहा के बारे में जानने की जरूरत है ताकि ये आपके जीवन का हिस्सा बन सके और आप अल्लाह को खुश कर सकें।
द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य:
·ईद-उल-अजहा के बारे में कुछ बुनियादी तथ्य जानना।
·अल-अय्याम उल-अशर (दस दिन) और उनके महत्व के बारे में जानना।
·यौम उल-अराफा (अराफा का दिन) और इसके महत्व के बारे में जानना।
·ईद-उल-अजहा के इतिहास और उद्देश्य के बारे में जानना।
अरबी शब्द:
·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।
·ईद उल-फ़ित्र - रमजान के अंत में मुस्लिम उत्सव।
·ईद-उल-अजहा - "बलिदान का पर्व"।
·रमजान - इस्लामी चंद्र कैलेंडर का नौवां महीना। यह वह महीना है जिसमें अनिवार्य उपवास निर्धारित किया गया है।
·हज - मक्का की तीर्थयात्रा जहां तीर्थयात्री अनुष्ठानों का एक सेट करता है। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।
·ज़िल-हिज्जा - इस्लामी चंद्र कैलेंडर के 12वें महीने का नाम।
·यौम उल-अराफा - अराफा का दिन वो है जब तीर्थयात्री अराफा नामक स्थान पर इकट्ठा होते हैं।
·हलाल - जिसकी अनुमति है।
·अल-अय्याम उल-अशर - इस्लामी महीने ज़िल-हिज्जा के दस दिन।
·लैलत-अल-क़द्र - उपवास के महीने रमज़ान के आखिरी दस दिनों मे एक धन्य रात।
·सुभानअल्लाह - कितना मुकम्मल है अल्लाह, हर अधूरेपन से दूर है अल्लाह।
·अल्हम्दुलिल्लाह - सभी प्रशंसा और धन्यवाद अल्लाह के लिए है। यह कहकर हम आभारी होते हैं और हम स्वीकार करते हैं कि सब कुछ अल्लाह की ओर से है।
·अल्लाहु अकबर - अल्लाह सबसे महान है।
एक मुस्लिम परिवार के बिना, क्रिसमस, फसह, या अन्य धार्मिक उत्सवों की जगह मुस्लिम त्योहारों को मनाना काफी बदलाव भरा हो सकता है। लेकिन, चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। बदलाव करने के लिए पहला कदम किसी विषय को पढ़ना और सीखना है। दूसरी सलाह यह है कि दिए गए सुझावों का पालन करें। तीसरा, अल्लाह से दुआ करें, वह वास्तव में हमारी मदद करने वाला है। ये पाठ आपको सरल सुझावों के साथ-साथ वह सब कुछ सिखाएंगे जो आपको जानने की जरूरत है ताकि आप इस अद्भुत त्योहार से अधिक लाभ उठा सकें और पूरी तरह से इस्लामी जीवन का अनुभव कर सकें।
ईद-उल-अजहा बुनियादी तथ्य
इस्लाम में दो खूबसूरत उत्सव हैं जो आपके जीवन का हिस्सा होंगे: ईद उल-फ़ित्र और ईद-उल-अजहा। ईद-उल-अजहा के बारे में कुछ बुनियादी तथ्य:
·ईद-उल-अजहा, इसका अनुवाद "बलिदान का पर्व" के रूप में किया जा सकता है।
·ईद-उल-अजहा हज से जुड़ा हुआ है - पवित्र शहर मक्का की तीर्थयात्रा जहां हर साल दुनिया भर से 2 मिलियन मुसलमान जाते हैं।
·ईद-उल-अजहा चार दिनों तक चलता है। दूसरी ओर, रमजान के समापन पर मनाया जाने वाला ईद उल-फ़ित्र एक दिन का उत्सव है।
·ईद-उल-अजहा के समय, कई मुस्लिम परिवार एक जानवर की बलि देते हैं और उसके मांस को गरीबों के साथ साझा करते हैं।
अल्लाह के आदेश के अनुसार पैगंबर मुहम्मद के समय से ही दोनों मुस्लिम त्योहार मनाए जा रहे हैं। इसलिए वे अल्लाह की ओर से हैं और प्रामाणिक हैं। किसी इंसान ने उन्हें नहीं बनाया। इसका अर्थ क्या है? हमारे पैगंबर ने हमें बताया,
“ये खाने, पीने और अल्लाह के स्मरण के दिन हैं।”[1]
दूसरे शब्दों में, हम अपने निर्माता को भूले बिना हलाल भोजन का आनंद उठा सकते है और त्यौहार का आनंद ले सकते हैं।
ईद-उल-अजहा से पहले
जैसा कि पहले बताया गया है, ईद-उल-अजहा हज से जुड़ा हुआ है । हज करना इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है जो इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने (ज़िल-हिज्जा) में किया जाता है। ईद-उल-अजहा दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा ज़िल-हिज्जा महीने के 10वें दिन मनाया जाता है। इस महीने के पहले दस दिनों का विशेष लाभ है। अरबी में इन्हें 'अल-अय्याम उल-अशर' कहते हैं। पूजा का मौसम कई लाभ लाता है, जैसे कि किसी के दोषों को सुधारने का अवसर और कमियों या किसी भी चीज को जो उसने छोड़ दी है उसको पूरा करने का अवसर।
'दस दिन' के गुण
'अल-अय्याम उल-अशर' (दस दिन) के पांच गुण निम्नलिखित हैं:
1. अल्लाह क़ुरआन में इनकी कसम खाता है, और किसी चीज की कसम खाना इसका सर्वोपरि महत्व और वास्तविक लाभ दिखाता है। अल्लाह कहता है:
“शपथ है भोर की! तथा दस रात्रियों की!” (क़ुरआन 89:1-2)
क़ुरआन के प्रारंभिक अधिकारियों ने समझाया है कि यह छंद ज़िल-हिज्जा के पहले दस दिनों को संदर्भित करता है।
2. हमें इन दिनों के महत्त्व को और अधिक समझाने के लिए, पैगंबर ने गवाही दी कि ये दुनिया के "सर्वश्रेष्ठ" दिन हैं। ये दस दिन साल के अन्य सभी दिनों से बेहतर हैं, बिना किसी अपवाद के, रमज़ान के आखिरी दस दिन भी नहीं ! लेकिन रमजान के आखिरी दस रातें बेहतर हैं, क्योंकि उनमें लैलत-अल-क़द्र ("शक्ति की रात") शामिल है।
3. अल्लाह को इन दस दिनों की तुलना मे कोई और दिन अधिक प्रिय नही है, जिसमे अल्लाह अच्छे कर्मों को अधिक पसंद करता है, इसलिए एक मुसलमान को इन दिनों मे "सुभानअल्लाह", "अल्हम्दुलिल्लाह" और "अल्लाहु अकबर" का बार-बार पाठ करना चाहिए।
4. इन दस दिनों में बलिदान और हज के दिन शामिल हैं।
5. ज़िल-हिज्जा के नौवें दिन को 'यौम उल अराफ़ा' (अराफ़ा का दिन ) कहा जाता है। यह वह दिन है जब तीर्थयात्री मक्का से छह मील दूर अराफा के मैदान में इकट्ठा होते हैं। अराफा के दिन में ही कई गुण हैं।
अराफा के दिन के गुण और इस दिन क्या करना चाहिए
1. यौम अल-अराफा वह दिन है जिस दिन अल्लाह ने इस्लाम धर्म को पूरा किया।
2. यौम अल-अराफा दुनिया में किसी भी जगह की सबसे बड़ी सभाओं में से एक है।
3. यौम अल-अराफा एक ऐसा दिन है जिस दिन प्रार्थनाओं का उत्तर मिलता है। इस दिन प्रार्थना करने के शिष्टाचारों में से एक है हाथ उठा के मांगना क्योंकि अल्लाह के दूत ने अराफा में दुआ की, उनके हाथ उनकी छाती तक उठे थे। (अबू दाऊद)
4. जो लोग हज नहीं कर रहे हैं उनको अराफा के दिन उपवास करने की सलाह दी जाती है। पैगंबर ने कहा,
“अराफ़ा के दिन का उपवास दो वर्षो के लिए प्रायश्चित है, एक वर्ष इससे पहले का और एक इसके बाद का।”[2]
“लेकिन तीर्थयात्रियों के लिए अराफा में अराफा के दिन का उपवास करना नापसंद किया गया है जैसा कि अल्लाह के दूत ने बताया था।”[3]
यदि आप बलि देना चाहते हैं या आपके लिए बलि दिया जा रहा है, तो आपको इन दस दिनों के शुरु होने पर अपने बाल और नाखून काटना बंद कर देना चाहिए, जब तक कि आप बलि नहीं दे देते या आपकी ओर से बलि नही दी जाती।
ईद-उल-अजहा का इतिहास और उद्देश्य
ईद-उल-अजहा का इतिहास पैगंबर इब्राहिम के समय से है, ये यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। ईद-उल-अजहा उस महान घटना की याद दिलाता है जब अल्लाह ने इब्राहीम को सपने में आज्ञाकारिता के लिए अपने बेटे का बलिदान करने को कहा था।
“फिर जब वह पहुंचा उसके साथ चलने-फिरने की आयु को, तो इब्राहीम ने कहाः हे मेरे प्रिय पुत्र! मैं देख रहा हूं स्वप्न में कि मैं तुझे वध कर रहा हूं। अब, तू बता कि तेरा क्या विचार है? उसने कहाः हे पिता! पालन करें, जिसका आदेश आपको दिया जा रहा है। आप पायेंगे मुझे सहनशीलों में से, यदि अल्लाह की इच्छा हूई।’” (क़ुरआन 37:102)
जैसे ही इब्राहीम अपने बेटे की बलि देने वाला था, अल्लाह ने उसे बताया कि उसका "बलिदान" पूर्ण हो गया है। ऐसा करके उन्होंने दिखाया था कि अपने ईश्वर के प्रति उनका प्यार अन्य सभी चीज़ो से बढ़कर है, कि वह अल्लाह के अधीन होने के लिए कोई भी बलिदान कर सकता है। कहानी का एक संस्करण बाइबिल के पुराने नियम में भी है।
कुछ लोग अस्पष्ट हैं कि अल्लाह ने इब्राहीम को अपने ही बेटे को मारने के लिए क्यों कहा। प्रसिद्ध प्रतिष्ठित इस्लामी विद्वान इब्न अल-क़य्यम ने समझाया, "उद्देश्य इब्राहिम का अपने बेटे को मारना नहीं था; बल्कि उसका अपने दिल में बलिदान करना था, ताकि सारा प्यार सिर्फ अल्लाह के लिए हो।”
इसलिए यह हमारी परंपरा का एक हिस्सा है कि ज़िल-हिज्जा के दस धन्य दिनों के दौरान और ईद-उल-अजहा के दिन हम इब्राहीम के बलिदान को याद करते हैं। हम इस बात पर चिंतन करते हैं कि किस बात ने उसे इतना मजबूत विश्वासी बनाया और अल्लाह का प्रिय बनाया था, जिसे अल्लाह ने आशीर्वाद दिया और उन सभी राष्ट्रों का सरदार बनाया, जिनका अनुसरण किया जाना था।
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