लॉग इन करें
स्तर
-
स्तर 1 (23)
- आस्था की गवाही
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 1)
- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)
- नए मुसलमान बने लोगों के कुछ सामान्य प्रश्न
- ज्ञान प्राप्त करने का महत्व
- स्वर्ग (2 का भाग 1)
- स्वर्ग (2 का भाग 2)
- रात की यात्रा
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 1)
- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 2)
- परिवार को बताना (2 का भाग 1)
- परिवार को बताना (2 का भाग 2)
- मुस्लिम समुदाय के साथ तालमेल बिठाना
- अच्छी संगति रखना
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 1): तौहीद की श्रेणियां
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 2): शिर्क, तौहीद का विपरीत
- पैगंबरो पर विश्वास
- धर्मग्रंथों में विश्वास
- स्वर्गदूतों में विश्वास
- न्याय के दिन में विश्वास
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)
- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 2)
- एक नए मुस्लिम के लिए अध्ययन पद्धति
-
स्तर 2 (25)
- आओ मुहम्मद के बारे मे जानें (2 का भाग 1)
- आओ मुहम्मद के बारे मे जानें (2 का भाग 2)
- पवित्र क़ुरआन का संरक्षण
- प्रार्थना (नमाज) का महत्व
- अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) का शिष्टाचार
- वुज़ू (वूदू)
- नए मुसलमानों के लिए प्रार्थना (2 का भाग 1): प्रार्थना करने से पहले
- नए मुसलमानों के लिए प्रार्थना (2 का भाग 2): प्रार्थना का विवरण
- प्रार्थना के आध्यात्मिक लाभ
- नमाज़ के चिकित्सा लाभ
- पेशाब या शौच करने का तौर-तरीका
- माहवारी
- इस्लाम के आहार कानून का परिचय
- मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 1)
- मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 2)
- ईश्वर के प्रति प्रेम और उसे कैसे प्राप्त करें (2 का भाग 1)
- ईश्वर के प्रति प्रेम और उसे कैसे प्राप्त करें (2 का भाग 2)
- उपवास का परिचय
- उपवास कैसे करें
- ईद और रमजान की समाप्ति
- अल्लाह कहां है?
- इब्राहिम (2 का भाग 1)
- इब्राहिम (2 का भाग 2)
- सूरह अल-फातिहा की सरल व्याख्या
- क़ुरआन के तीन छोटी सूरह की सरल व्याख्या
-
स्तर 3 (30)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 1)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 2)
- क़ुरआन के लिए शुरुआती मार्गदर्शक (3 का भाग 3)
- हदीस और सुन्नत के लिए शुरुआती मार्गदर्शक
- नमाज़ का महत्व
- नमाज़ के पूर्व-आवश्यकताएँ
- इस्लाम मे स्वच्छता
- स्नान (घुस्ल)
- अंगशुद्धि (वुज़ू)
- दो रकाअत नमाज़ पढ़ना
- तीन रकाअत नमाज़ पढ़ना
- चार रकाअत नमाज़ पढ़ना
- नमाज़ के सामान्य बिंदु
- एक मुसलमान के जीवन का एक दिन (2 का भाग 1): जागने से लेकर देर सुबह तक
- एक मुसलमान के जीवन का एक दिन (2 का भाग 2): दोपहर से ले कर सोने तक
- गैर-मुस्लिमों का भाग्य
- पश्चाताप (3 का भाग 1): मोक्ष का द्वार
- पश्चाताप (3 का भाग 2): पश्चाताप की शर्तें
- पश्चाताप (3 का भाग 3): पश्चाताप की प्रार्थना
- क्या हम अल्लाह को देख सकते हैं?
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 1)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 2)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 3)
- सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 4)
- भोजन करना – इस्लामी तरीका (2 का भाग 1)
- भोजन करना – इस्लामी तरीका (2 का भाग 2)
- क़ुरआन की सबसे महानतम आयत की सरल व्याख्या: आयतुल कुर्सी
- मोज़े के ऊपर से पोंछना, छूटी हुई प्रार्थना पूरी करना, और एक यात्री की प्रार्थना
- शकुन
- टोटका और ताबीज
-
स्तर 4 (30)
- अज़ान (2 का भाग 1): प्रार्थना के लिए पुकार
- अज़ान (2 का भाग 2): प्रार्थना के लिए पुकार
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 1)
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 2)
- शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 3)
- अनुष्ठान स्नान (ग़ुस्ल) के अनुशंसित नियम
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 1)
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 2)
- सूरह अल-फातिहा पर विचार (3 का भाग 3)
- सूखी वुज़ू (तयम्मुम)
- संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 1)
- संप्रदायों का परिचय (2 का भाग 2)
- शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 1)
- शैतान से सुरक्षा (2 का भाग 2)
- अपने चरित्र को सुधारना
- आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 1)
- आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 2)
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 1)
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 2): अवराह और महरम
- इस्लामी पहनावा (3 का भाग 3): प्रार्थना और ज्ञान
- शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 1)
- शैतान: मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन (2 का भाग 2)
- प्रार्थना (2 का भाग 1)
- प्रार्थना (2 का भाग 2)
- अल्लाह की दया (2 का भाग 1)
- अल्लाह की दया (2 का भाग 2)
- इस्लाम में रोल मॉडल (2 का भाग 1): मुसलमानों की पहली पीढ़ी
- इस्लाम में रोल मॉडल (2 का भाग 2)
- धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षा और समस्याएं (2 का भाग 1): जीवन की कठिनाइयों में अल्लाह की दया होती है
- धर्म परिवर्तन के बाद परीक्षण और समस्याएं (2 का भाग 2)
-
स्तर 5 (29)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 1)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 2)
- अच्छी आदतें जो नए मुसलमानों को सीखना चाहिए
- पैगंबर नूह के जीवन की झलकियां
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 1)
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 2)
- पैगंबर इब्राहिम के जीवन की झलकियां
- विवाह सलाह (2 का भाग 1)
- विवाह सलाह (2 का भाग 2): व्यावहारिक कदम
- पतियों और पत्नियों के अधिकार और जिम्मेदारियां
- इस्लामी विवाह के विस्तृत व्यावहारिक पहलू
- पैगंबर लूत के जीवन की झलकियां
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 1): धैर्य, कृतज्ञता और विश्वास
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 2): अल्लाह के साथ संबंध स्थापित करें
- पैगंबर युसूफ के जीवन की झलकियां
- इस्तिखारा प्रार्थना
- पैगंबर अय्यूब के जीवन की झलकियां
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 1)
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 2)
- पैगंबर मूसा के जीवन की झलकियां
- क्या मुझे अपना नाम बदलना चाहिए?
- पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां
- संदेह से निपटना
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 1): मक्का अवधि
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 2): मदीना अवधि
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 1)
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 2)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 1)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 2)
-
स्तर 6 (27)
- स्वैच्छिक प्रार्थना
- जानवरों के प्रति व्यवहार
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 2)
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 1): आस्था हमेशा स्थिर स्तर पर क्यों नहीं रहती
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 2): अपनी आस्था (ईमान) बढ़ाना और पुरस्कार अर्जित करना
- स्वैच्छिक उपवास
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 1): छोटी निशानियां
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 2): प्रमुख निशानियां
- व्यभिचार, वैश्यावृति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 1)
- व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 2)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 1)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 2)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 1)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 2)
- मानव स्वभाव के अनुरूप कार्य (सुनन अल-फ़ित्रह)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 1)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 2)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 3)
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 1): बिदअत के दो प्रकार
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 2): क्या यह एक बिदअत है?
- रमजान: अंतिम दस रातें
- उम्रह (2 का भाग 1)
- उम्रह (2 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 3)
-
स्तर 7 (30)
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास
-
स्तर 8 (29)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्?
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)
-
स्तर 9 (30)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
- जीवन का उद्देश्य
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 1)
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 2)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 1)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 2)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 1)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 2)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 2)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 2)
- इस्लाम मे सोशल मीडिया
- आराम, मस्ती और मनोरंजन
- ज्योतिष और भविष्यवाणी
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 2)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 1)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 2)
- उपवास और दान के आध्यात्मिक लाभ
- सपने की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 3)
-
स्तर 10 (26)
- जिहाद क्या है?
- पैगंबर आदम: मानवजाति की शुरुआत (2 का भाग 1)
- पैगंबर आदम: मानवजाति की शुरुआत (2 का भाग 2)
- सूरह अज़-ज़ल्ज़ला की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की नैतिकता (2 का भाग 2)
- पर्यावरण का संरक्षण
- इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 1)
- इस्लाम में अपराध और सजा (2 का भाग 2)
- भूलने का सजदा
- हदीस शब्दावली का परिचय
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मदीना अवधि (3 का भाग 3)
- सृजन की कहानी (2 का भाग 1)
- सृजन की कहानी (2 का भाग 2)
- अंतिम संस्कार (2 का भाग 1)
- अंतिम संस्कार (2 का भाग 2)
- इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 1)
- इस्लामी वसीयत और विरासत (2 का भाग 2)
- पैगंबर के कथन: ईमानदारी
- मीडिया स्टीरियोटाइपिंग को समझना
- स्वास्थ्य और फ़िटनेस (2 का भाग 1)
- स्वास्थ्य और फ़िटनेस (2 का भाग 2)
- अंतरंग मुद्दे
- इस्लाम कुछ विचित्र के रूप में शुरू हुआ
श्रेणियाँ
खोजें
इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
विवरण: इस पाठ मे हम पाठकों को पापों, उनके प्रकार, और उनकी गंभीरता से परिचित कराएंगे और बताएंगे की उनके लिए क्षमा कैसे मांगे और आने वाले जीवन में ये व्यक्ति को कैसे प्रभावित करेंगे।
द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,559 (दैनिक औसत: 3)
उद्देश्य:
·पाप और अविश्वास की परिभाषा जानना।
·पापों के प्रकार जानना।
·अविश्वास के कुछ उदाहरण जानना।
·यह जानना कि अविश्वासी कौन है।
·उन 4 कारणों को जानना जो एक मुसलमान को काफिर बनने से बचाते हैं।
·यह जानना कि क्या कोई व्यक्ति इस्लाम छोड़ने के बाद वापस इस्लाम अपना सकता है।
अरबी शब्द:
·ईमान - आस्था, विश्वास या दृढ़ विश्वास।
·कुफ्र - अविश्वास।
·काफ़िर - (बहुवचन: कुफ़्फ़ार) अविश्वासी।
·शहादा - आस्था की गवाही
·शरिया - इस्लामी कानून।
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
पाप की परिभाषा और उसके प्रकार
पाप को अवज्ञा के कार्य के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें व्यक्ति अल्लाह के आदेश को पूरा नहीं करता। एक पापी क़ुरआन या सुन्नत में दिए गए अल्लाह के आदेश को न मान के शरिया का खंडन करता है। निषिद्ध चीज़ों को करके और अनिवार्य चीज़ों को छोड़कर ईश्वरीय आज्ञाकारिता से "बाहर निकलने" को विद्वानों ने पाप बताया है। इस्लाम सिखाता है कि आदमी पापी पैदा नहीं होता, बल्कि पाप करने पर वह पापी बन जाता है।
पापों को इसमे वर्गीकृत किया जा सकता है:
ए) कुफ्र (अविश्वास): यह व्यक्ति को इस्लाम से बाहर ले जाता है और उसे काफिर बना देता है। इस पाप के उदाहरणों को नीचे स्पष्ट किया जाएगा, लेकिन यह स्पष्ट होना चाहिए कि कुफ्र व्यक्ति को इस्लाम से बाहर ले जाता है जब वे अपने करने वाले पापों की प्रकृति और गंभीरता को जानते हैं। संक्षेप में, कुफ्र पूरी तरह से इस्लाम और ईश्वरीय आज्ञाकारिता से "बाहर निकलने" का कारण बनता है। कुफ्र करने वाले व्यक्ति को 'अविश्वासी' (अरबी: काफिर) कहा जाता है और वह मुसलमान नही कहलाता है। यदि वह इस अवस्था में मर जाता है, तो वह नर्क में प्रवेश करेगा और सदा वहीं रहेगा (क़ुरआन 9:84; 24:55)। यह ध्यान रखना चाहिए कि कोई सामान्य व्यक्ति किसी को काफिर (अविश्वासी) न कहे; यह इस्लामी विद्वानों द्वारा जारी एक आदेश है। अगर कोई मुसलमान दूसरे को कुफ्र करते हुए देखता है तो उन्हें उस व्यक्ति को बार-बार समझाना चाहिए, लेकिन उसे 'काफिर' नही कहना चाहिए।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अविश्वासी बनने के बावजूद, व्यक्ति मृत्यु से पहले किसी भी समय इस्लाम में फिर से प्रवेश कर सकता है।
बी)बड़े और छोटे पाप: जो बड़े और छोटे पाप करता है वह पूरी तरह अविश्वासी नहीं बनता, और इस्लाम के दायरे में रहता है (क़ुरआन 49:6; 2:282)। ऐसा व्यक्ति मुस्लिम तो रहता है, लेकिन कम आस्था (अरबी: "ईमान") के साथ।
अगले पाठों मे अविश्वास की व्याख्या होगी।
अविश्वास की परिभाषा
“अविश्वास" (अरबी: कुफ्र) को सभी मुस्लिम विद्वानों ने आस्था (अरबी: ईमान) न होने के रूप में परिभाषित किया है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति इसके बारे में बोलता है या इसे दिल में रखता है।[1] दूसरे शब्दों में, 'अविश्वास' (अरबी: कुफ्र) कोई भी ऐसा शब्द, कार्य या विश्वास है जो आस्था (अरबी: ईमान) का खंडन करता है।
अविश्वास के उदाहरण
1.शिर्क करना।
2.ईश्वर और क़ुरआन को कोसना या नफरत करना।
3.पैगंबर मुहम्मद से नफरत करना, कोसना, गाली देना या उनका मजाक बनाना भले ही कोई व्यक्ति उनकी सच्चाई पर विश्वास करता हो।
4.कहना कि पैगंबर मुहम्मद ने झूठ बोला था।
5.यह जानना कि पैगंबर ने सच बताया था, लेकिन उनकी शिक्षाओं का पालन करने से इनकार करना।
6.इस्लाम की किसी भी शिक्षा का मजाक बनाना।
7.किसी मूर्ति के सामने झुकना।
8.जिस तरह ईसाई यीशु की पूजा करते हैं, उसी तरह पैगंबर मुहम्मद की पूजा करना।
अविश्वासी या काफिर कौन है?
अविश्वासी वह व्यक्ति है जो पैगंबर मुहम्मद के संदेश में अविश्वास करता है। यह वह है जिसने दो गवाही नहीं दी है, सही इस्लामी आस्था (ईमान) की कमी है, या कोई अन्य विश्वास रखता है, कोई शब्द कहता है, या अविश्वास का कार्य करता है।
यहां समझने के लिए एक महत्वपूर्ण बिंदु है। यदि कोई व्यक्ति जो आस्था की गवाही (शहादा) का उच्चारण करके मुसलमान बना है, वह विश्वास रखता है, कहता है, या कुफ्र करता है, तो वह अनिवार्य रूप से अविश्वासी नहीं बन जाता। कारण यह है कि मुसलमान बनने के बाद कुछ बाधाएं आती हैं जो व्यक्ति को काफिर बनने से रोकती हैं।
वह कारण जो व्यक्ति को अविश्वासी बनने से बचाते हैं
एक मुसलमान अविश्वास में पड़ सकता है, लेकिन निम्नलिखित में से किसी एक कारण से काफिर नहीं बन सकता:[2]
1.अज्ञानता
एक धर्मांतरित मुस्लिम जो एक दूरस्थ क्षेत्र में पला-बढ़ा है, या एक मुसलमान जो एक अधार्मिक वातावरण में पला-बढ़ा है, वह इस्लाम के मूल विश्वासों, धार्मिक कर्तव्यों और निषेधों से अनभिज्ञ हो सकता है। उदाहरण के लिए, ऐसे व्यक्ति को यह नहीं पता होगा कि इस्लाम मे समलैंगिकता पर प्रतिबंधित है या दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है। ये लोग कुफ़्र में पड़ सकते हैं, लेकिन काफ़िर नहीं बनेंगे क्योंकि अल्लाह उनकी अज्ञानता के कारण उन्हें माफ़ कर सकता है।
2.गलती
व्यक्ति गलती से कुछ ऐसा कर सकता है जिसका उसने कभी इरादा नहीं किया था। वह बस अनजाने में गलती कर सकता है। उदाहरण के लिए, इस्लाम में परिवर्तित नया मुसलमान यह सोच सकता है कि केवल प्रार्थना के समय शराब का सेवन करना मना है। शाब्दिक दृष्टिकोण से, शराब को वैध मानते हुए इसका सेवन अविश्वास का कार्य है, लेकिन इस व्यक्ति ने अनजाने मे गलती की है जिसके कारण वो काफिर नहीं बनेगा।
3.बाध्यता
व्यक्ति अविश्वास के शब्द कहने या अविश्वास करने के लिए मजबूर हो सकता है यदि उसे अपने जीवन या अपने अंग या अपने प्रियजनों के जीवन का खतरा लगे। यदि ऐसी किसी भी स्थिति में दिल मे हमेशा इस्लामी आस्था और ईमान बना रहे, तो व्यक्ति कुफ्र कह सकता है या कर सकता है (16:106)।
4.गलत अर्थ समझना
व्यक्ति को किसी चीज़ का पालन करने मे भ्रम हो सकता है और कुछ गलत समझ हो सकती है, यह सोचकर कि वह जो मानता है वह वास्तव में इस्लाम का हिस्सा है जबकि ऐसा नहीं है।
इस्लाम छोड़ने के बाद वापस इस्लाम अपनाना
कोई व्यक्ति जिसने जानबूझकर इस्लाम को छोड़ दिया, वह फिर से मुसलमान बन सकता है। उसका 'पश्चाताप' इस्लाम में फिर से प्रवेश करना है और वह आस्था की गवाही (शहादा) को दोहराकर ऐसा करता है।
यदि उसने एक अनिवार्य कर्तव्य का विरोध करने के लिए इस्लाम छोड़ा था, तो उसे उस कर्तव्य को भी स्वीकार करना चाहिए। मान लो वह रोजाना की पांच नमाज की बाध्यता को अस्वीकार करता था। जब वह इस्लाम में फिर से प्रवेश करेगा, तो उसे स्वीकार करना चाहिए कि इन नमाज़ो की आवश्यकता है, अन्यथा उसका पश्चाताप स्वीकार नहीं किया जाएगा।
पिछला पाठ: उम्रह (2 का भाग 2)
अगला पाठ: इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
- स्वैच्छिक प्रार्थना
- जानवरों के प्रति व्यवहार
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 1)
- झूठ बोलना, चुगली करना और झूठी निंदा करना (2 का भाग 2)
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 1): आस्था हमेशा स्थिर स्तर पर क्यों नहीं रहती
- आस्था बढ़ाना (2 का भाग 2): अपनी आस्था (ईमान) बढ़ाना और पुरस्कार अर्जित करना
- स्वैच्छिक उपवास
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 1): छोटी निशानियां
- न्याय के दिन की निशानियां (2 का भाग 2): प्रमुख निशानियां
- व्यभिचार, वैश्यावृति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 1)
- व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, और पोर्नोग्राफ़ी (2 का भाग 2)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 1)
- विपरीत लिंगो के बीच मेलजोल के इस्लामी दिशानिर्देश (2 का भाग 2)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 1)
- शरिया का परिचय (2 का भाग 2)
- मानव स्वभाव के अनुरूप कार्य (सुनन अल-फ़ित्रह)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 1)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 2)
- ईद-उल-अजहा शुरू से आखिर तक (3 का भाग 3)
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 1): बिदअत के दो प्रकार
- इस्लाम में नवाचार (2 का भाग 2): क्या यह एक बिदअत है?
- रमजान: अंतिम दस रातें
- उम्रह (2 का भाग 1)
- उम्रह (2 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
- इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 3)
इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 1)
हम गारंटी देते हैं कि आपके द्वारा दर्ज किए गए ईमेल पतों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाएगा।
कृपया केवल उन्हीं लोगों को भेजें जिन्हें आप जानते हैं।
तारांकित (*) फील्ड आवश्यक हैं।'
تطوير وتشغيل مؤسسة تميز المحتوى
कॉपीराइट © 2011 - 2024 NewMuslims.com. सर्वाधिकार सुरक्षित।
NewMuslim.com गोपनीयता नीति