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परिवार को बताना (2 का भाग 2)

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विवरण: इस्लाम अपनाने वाले नए लोगों के लिए अपने मित्रों और परिवार को अपनी नई आस्था के बारे मे बताने के लिए व्यावहारिक सलाह वाला एक दो-भाग वाला पाठ। भाग 2: यह पाठ इस बात पर बहुत जोर देता है कि माता-पिता के साथ कैसे व्यवहार किया जाए और उन्हें बताते हुए उनका सम्मान कैसे बनाए रखा जाए।

द्वारा NewMuslims.com

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,860 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·इस्लाम में माता-पिता के अधिकारों को जानना।

·माता-पिता की आज्ञा मानने की सीमाओं से अवगत होना।

·यह जानना कि माता-पिता के साथ कैसे व्यवहार करें और उन्हें बताते समय उनके प्रति कैसे सम्मान बनाए रखें।

·पैगंबरो के कथनों के माध्यम से वास्तविक जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए साहस हासिल करना।

अरबी शब्द

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

माता-पिता के अधिकार

सबसे पहले, इस्लाम में अपने माता-पिता के अधिकारों को जानना एक अच्छा विचार है, क्योंकि गैर-मुस्लिम माता-पिता का भी आप पर बड़ा अधिकार है। अल्लाह कहता है:

“और हमने मनुष्य को अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यनिष्ठ और दयालु होने का आदेश दिया है” (क़ुरआन 46:15)

माता-पिता महत्वपूर्ण क्यों हैं?

इस्लाम में माता-पिता के प्रति दयालु होना अल्लाह और उसके दूत की आज्ञाकारिता माना जाता है, और इसके लिए परलोक में पुरस्कृत किया जाएगा। उनका सम्मान करना और उनका पालन करना उनके द्वारा किए गए बलिदानों और आपके पालन-पोषण में उनके द्वारा की गई देखभाल के लिए उनके प्रति कृतज्ञता दिखाने का एक तरीका है। उनका सम्मान करना और उनका सत्कार करना मित्रता और प्यार को बढ़ाता है, जो अब पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि उन्हें लग सकता है कि आपने उन्हें अपनी नई जीवन शैली में अस्वीकार कर दिया है। याद रखें कि अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना और उनका सम्मान करना स्वर्ग में प्रवेश करने का एक साधन है, और अपने माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करना ईश्वर की इच्छा से आपके अपने बच्चों के लिए आपके साथ अच्छा व्यवहार करने का कारण होगा।

आप उनके प्रति दयालु कैसे हो सकते हैं? उनकी आज्ञा का पालन करो, उनका सम्मान करो, उनके सामने अपनी आवाज नीची रखो , मुस्कुराओ, विनम्र बनो, उनके प्रति अपनी नाराजगी मत दिखाओ, उनकी सेवा करो, उनकी इच्छाओं को पूरा करो, उनसे परामर्श करो, उनकी बात सुनो और उनके प्रति जिद्दी मत बनो। साथ ही, उनसे मिलने जाओ, उनके साथ समय बिताओ, उन्हें उपहार दो, जब आप छोटे थे तब आपका पालन-पोषण करने के लिए उनका धन्यवाद करो। सबसे बढ़कर, उनके मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करो।

हालांकि, उनकी आज्ञा का पालन करने की सीमाएं हैं। अल्लाह कहता है:

“और यदि वे दोनों दबाव डालें तुमपर कि तुम साझी बनाओ मेरा उसे, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान नहीं, तो न मानो उन दोनों की बात और उनके साथ रहो संसार में सुचारु रूप से” (क़ुरआन 31:14-15)

माता-पिता की बात नहीं माननी चाहिए यदि वे आपसे अल्लाह या उसके दूत की अवज्ञा करने और इस्लामी शिक्षाओं का उल्लंघन करने के लिए कहते हैं। यदि आप किसी ऐसी स्थिति का सामना कर रहे हैं जिसमें आप किसी ऐसी चीज़ में शामिल होना हैं जिसकी इस्लाम में अनुमति नहीं है, तो ऐसा न करने का प्रयास करें। यदि वे रात के खाने मे हैम (सुअर के पैर के ऊपरी भाग से मांस) दें, तो उन्हें यह बताये कि आपका ये खाने का मन नहीं है। सभी मामलों में, यथासंभव उन्हें ठेस न पहुंचाने का प्रयास करें।

जब आपको लगे कि समय सही है और आप इस्लाम को अपनाने के बारे में अपने माता-पिता से बात करना चाहते हैं, तो उन्हें धन्यवाद देने के साधन खोजें, खासकर अतीत की यादें। उन्हें बताएं कि आप कितने शरारती बच्चे रहे होंगे, और उन्हें इस तरह परेशान करने के लिए आपको कितना बुरा लगता है। उन्हें स्पष्ट रूप से समझाएं कि आपने इस्लाम को क्यों चुना। उन्हें बताएं कि उनके साथ आपका रिश्ता बरकरार है।

ध्यान रखें कि माता-पिता या किसी अन्य के साथ 'मेरा धर्म बनाम तुम्हारा धर्म' की धार्मिक बहस में न पड़ें। यदि वे आपको 'आंकते' हैं या आपका अपमान करते हैं, या 'इस्लाम विरोधी' भावनाओं को व्यक्त करते हैं, तो मुस्लिम होने के आपके निर्णय के लिए शर्मिंदा या अपमानित महसूस न करें। धैर्य के 'उपहार' को याद रखें और उसे जाने दें। ऊपर वर्णित प्रार्थनाओं से शक्ति प्राप्त करें।

यदि वे अपनी आशंका या डर व्यक्त करते हैं, तो उन्हें इस आधार पर संबोधित करें कि आप अब तक इस्लाम के बारे में क्या जानते हैं। उन सवालो का जवाब देने से बचें जिनके उत्तर आपके पास नहीं हैं। महसूस करें कि आप अभी भी अपना धर्म सीख रहे हैं। उन्हें 'धर्मांतरित' करने की कोशिश न करें या साबित न करें कि आप सही हैं और वे गलत हैं। इस्लाम या आपके इस्लाम अपनाने के बारे में उनके जो भी डर हैं उसको दूर करने के लिए जितना संभव हो उतना प्रयास करें। किसी भी बातचीत को यह बताकर समाप्त करना अच्छा है कि आप उनसे प्यार करते हैं और उनके लिए प्रार्थना करेंगे। उनके सुनने के लिए कुछ अच्छे उपहार देना भी अच्छा होगा और मुस्लिम उदारता का एक उदाहरण होगा, जिनमें से कोई भी उन्हें स्वयं धर्मांतरण पर विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है। उनके साथ अच्छा व्यवहार करने से उन्हें लगेगा कि आप उनके सबसे अच्छे परिचित हैं, और यह कि आप अच्छे हैं ईमानदारी से और उनके लिए अच्छा चाहते हैं।

याद रखें बदलाव धीरे-धीरे आता है। कुछ लंबे समय तक अप्रभावित रहते हैं, और अधिकांश आपके धर्मांतरण के कारण संबंधो मे हुए तनाव को ठीक कर लेंगे। कुछ ईश्वरीय मार्गदर्शन से आपके साथ जुड़ जाएंगे। आपका रिश्ता समय के साथ विकसित होगा। यह आप पर निर्भर करता है। कथनी की तुलना में करनी ज़्यादा असरदार होती है। आपके साथ उनके रिश्ते में उन्हें आशावाद, दृढ़ता और हर्षित गर्मजोशी देखने दें। यहां पैगंबर मुहम्मद के साथियों में से एक की एक सुंदर कहानी है। अबू हुरैरा ने कहा:

“मैं अपनी मां को तब इस्लाम में आमंत्रित करता था जब वह एक बहुदेववादी थी। एक दिन मैंने उन्हें इस्लाम में आमंत्रित किया और उन्होंने अल्लाह के दूत के बारे में कुछ ऐसा कहा जिससे मैं परेशान हो गया। मैं रोते हुए अल्लाह के दूत के पास गया और कहा: 'अल्लाह के दूत, मैं अपनी मां को इस्लाम में आमंत्रित कर रहा था और वो मना कर रही थीं। आज मैंने उन्हें आमंत्रित किया और उन्होंने आपके बारे में कुछ ऐसा कहा जिससे मैं परेशान हो गया। अबू हुरैरा की मां का मार्गदर्शन करने के लिए अल्लाह से प्रार्थना करें।' तो अल्लाह के दूत ने कहा: "ऐ अल्लाह, अबू हुरैरा की मां का मार्गदर्शन करें।”

मैं पैगंबर की प्रार्थना के कारण आशान्वित होकर चला आया। जब मैं घर पहुंचा तो देखा कि दरवाजा खुला था। मेरी मां ने मेरे कदमों की आवाज़ सुनी और कहा, 'अबू हुरैरा तुम जहां हो वहीं रहो!' मैं वहां पानी की आवाज सुन सकता था। उन्होंने खुद को साफ किया, कपड़े पहने और अपने सिर को ढक लिया। फिर उन्होंने दरवाज़ा खोला और कहा, 'ऐ अबू हुरैरा, मैं गवाही देती हूं कि अल्लाह के सिवा कोई पूजा के लायक नहीं है, और मैं गवाही देती हूं कि मुहम्मद उसका दास और दूत है।’

मैं खुशी से रोते हुए अल्लाह के दूत के पास वापस गया, और कहा, 'अल्लाह के दूत, खुशखबरी! अल्लाह ने आपकी प्रार्थना का उत्तर दिया है और अबू हुरैरा की मां का मार्गदर्शन किया है।' उन्होंने अल्लाह की स्तुति और धन्यवाद किया, और कहा, 'यह अच्छा है।' मैंने कहा, 'अल्लाह के दूत, अल्लाह से प्रार्थना करो कि मेरी मां और मुझे अपने आस्तिक ग़ुलामों के बीच प्रिय बना दे और उन्हें हमारे बीच प्रिय बना दे।' अल्लाह के दूत ने कहा, 'ऐ अल्लाह, इस दास को और इसकी मां को अपने आस्तिक दासों के नजदीक प्रिय बनाओ, और आस्तिकों को इनके नजदीक प्रिय बनाओ।' ऐसा कोई आस्तिक नहीं है जो मुझे सुनता या देखता हो, परन्तु वह मुझ से प्रेम रखता है।” (सहीह अल बुखारी)

विभिन्न हदीसें

मैं पैगंबर के कुछ सुंदर कथनों के साथ समाप्त करूंगा जो आपको वास्तविक जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए आध्यात्मिक रूप से बहादुर बना देगा।

पैगंबर ने अपने साथियों को दृढ़ रहने में प्रोत्साहित करने के लिए स्वर्ग का उपयोग किया। अल्लाह के दूत यासिर, उनकी पत्नी और उनके बेटे अम्मार के पास से गुजरे, जब उन्हें मक्का के अन्यजातियों द्वारा यातना दी जा रही थी और कहा:

“धैर्य, यासिर का परिवार, धैर्य, यासिर का परिवार, आपकी मंजिल स्वर्ग है।” (अल-हकीम)

अल्लाह के दूत (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:

“अगली दुनिया की तुलना में यह दुनिया समुद्र में अपनी उंगली डालने और उस पर वापस आने वाले पानी को देखने जैसा है।” (सहीह मुस्लिम )

पैगंबर कहते थे:

“ऐ अल्लाह, अगली दुनिया के जीवन के अलावा कोई जीवन नहीं है।” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)

अल्लाह के दूत ने कहा:

“नर्क के वासियों मे से एक जो इस दुनिया में सबसे धनी व्यक्ति था, उसे न्याय के दिन लाया जाएगा और एक बार स्वर्ग मे डुबकी लगवा के पूछा जायेगा, 'आदम के पुत्र! क्या तेरे साथ कभी कुछ अच्छा हुआ? क्या तूने कभी किसी ईश्वरकृपा का अनुभव किया?' वह कहेगा, 'अल्लाह की कसम, नहीं, मेरे रब'। स्वर्ग वासियों मे से एक और जो इस दुनिया में सबसे दुखी व्यक्ति था, उसे लाया जाएगा और स्वर्ग में डुबोया जाएगा और फिर पूछा जाएगा, 'आदम के पुत्र! क्या तूने कभी किसी दुख का अनुभव किया? क्या तूने कभी किसी कठिनाई का सामना किया ?' वह कहेगा, 'अल्लाह की कसम, नहीं। मैंने कभी किसी दुख का अनुभव नहीं किया और मैंने कभी कोई कठिनाई नहीं झेली।’” (सहीह मुस्लिम)

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