सूरह अल-इखलास की व्याख्या
विवरण: क़ुरआन के 112वें सूरह के अर्थ और महत्व को समझना और यह जानना कि यह तौहीद के अर्थ का स्पष्टीकरण भी है।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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अरबी शब्द:
·अंसार - मददगार। मदीना के वो लोग जिन्होंने मक्का से आये पैगंबर मुहम्मद और उनके अनुयायियों के लिए अपने घर, जीवन और शहर के द्वार खोल दिए थे।
·आयात - (एकवचन - आयत) आयत शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं। इसका लगभग हमेशा अल्लाह से सबूत के बारे में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अर्थों मे शामिल है सबूत, छंद, सबक, संकेत और रहस्योद्घाटन।
·तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।
·इखलास - ईमानदारी, पवित्रता या एकांत। इस्लामी रूप से यह अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए हमारे उद्देश्यों और इरादों को शुद्ध करने को दर्शाता है। यह क़ुरआन के 112वें अध्याय का नाम भी है।
·सूरह - क़ुरआन का अध्याय।
·शहादा - आस्था की गवाही
·रकात - नमाज़ की इकाई।
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।
सूरह 112 अल-इखलास (जिसे पवित्रता, ईमानदारी या तौहीद की सूरह के रूप में भी जाना जाता है) केवल चार आयतों (छंद) की है, फिर भी इसमे इस्लाम का सार है। अल्लाह एक है और उसके समान कुछ भी नहीं है।
कह दोः अल्लाह अकेला है। अल्लाह निरपेक्ष (और सर्वाधार है, जिसकी सभी प्राणियों को आवश्यकता है, वह न तो खाता है और न ही पीता है) है न उसकी कोई संतान है और न वह किसी की संतान है। और न उसके बराबर कोई है।” (क़ुरआन 112)
इस्लाम के शुरुआती दिनों में सूरह अल-इखलास पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के लिए प्रकट हुआ था। मक्का के बहुदेववादियों और अन्यजातियों ने एक दिन उनके पास आकर उन्हें यह कहते हुए चुनौती दी, "हमें अपने रब की वंशावली बताओ।" उस समय अल्लाह ने इस सूरह को प्रकट किया था।
सूरह अल-इखलास अल्लाह की एकता की घोषणा करता है और इस अवधारणा को पहली आयत में प्रस्तुत किया गया है। दूसरी आयत घोषित करती है कि अल्लाह अस-समद है जिसका अर्थ है कि उसके पास पूर्णता के सभी गुण हैं। अस-समद अल्लाह के नामों में से एक है। इसका मतलब है कि जिस पर हर कोई निर्भर है, लेकिन जो किसी पर निर्भर नहीं है, ये यह भी इंगित करता है कि अल्लाह उसकी रचना के विपरीत है। तीसरी आयत बताती है कि न तो उसे किसी ने पैदा किया है और न ही उसने किसी को पैदा किया है। और अंतिम आयत घोषित करती है कि अल्लाह तुलना से परे है। सूरह अल-इखलास सीधे इस्लाम के पहले स्तंभ शहादा का समर्थन करता है। "अल्लाह के सिवा कोई सच्चा देवता नहीं है।"
सूरह अल-इखलास अल्लाह की एकता की पुष्टि है और इस तरह यह सभी प्रकार के बहुदेववाद और मूर्तिपूजा को नकारता है। यह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस नींव पर हमारी आस्था बानी है वह है पूर्ण विश्वास कि अल्लाह एक है। एक ईश्वर में विश्वास के लिए निश्चितता आवश्यक है। मुसलमान सिर्फ अल्लाह की पूजा करते हैं, अल्लाह का कोई साथी, सहयोगी या मददगार नहीं है। पूजा केवल अल्लाह के लिए निर्देशित है, क्योंकि वह एकमात्र पूजा के योग्य है।
सूरह अल-इखलास उन पहले सूरहों में से एक है जिसे कई मुसलमान बच्चे याद करते हैं और यह उन लोगों के लिए भी सच है जो नए मुसलमान बनते हैं। जब व्यक्ति पांच दैनिक नमाज़ों की मूल बातें सीख लेता है, तो वे आमतौर पर अपनी नमाज़ों में क़ुरआन की छोटी सूरह को पढ़ना चाहते हैं, और लगभग हमेशा सूरह अल-इखलास उनमें से एक होती है।
सूरह अल-इखलास पढ़ना स्वर्ग प्राप्त करने और अल्लाह के प्यार को अर्जित करने का साधन हो सकता है। हदीस के अनुसार हम इस छोटी सूरह में उल्लिखित सिद्धांतों से प्यार कर के, इसे पढ़ कर और इसके अनुसार जीवन जी कर कई लाभ पा सकते हैं।
पैगंबर मुहम्मद ने एक व्यक्ति को एक अभियान का नेतृत्व करने के लिए भेजा। यात्रा के दौरान, प्रत्येक नमाज़ मे उसने सूरह अल-इखलास पढ़ा। उसकी वापसी पर उसके साथियों ने पैगंबर मुहम्मद को ये बात बताई, पैगंबर ने कहा, "उससे पूछो कि उसने ऐसा क्यों किया"। जब उस आदमी से पूछा गया, तो उसने जवाब दिया, "इस सूरह में दयालु अल्लाह के गुण बताए गए हैं; इसलिए, मैं इसे बार-बार पढ़ना पसंद करता हूं।" जब पैगंबर मुहम्मद ने यह जवाब सुना, तो उन्होंने लोगों से कहा, "उसे सूचित करो कि अल्लाह उससे बहुत प्यार और सम्मान करता है।”[1]
अंसार में से एक व्यक्ति ने क़ुबा मस्जिद में नमाज़ पढ़ाता था। वह हर रकात मे पहले सूरह अल-इखलास पढता और फिर इसके साथ कोई अन्य सूरह पढता। लोगों ने इसका विरोध किया और उससे कहा, "क्या आपको नहीं लगता कि सूरह अल-इखलास अपने आप में काफी है? आप इसमें एक और सूरह क्यों जोड़ते हो? आपको या तो केवल इस सूरह को पढ़ना चाहिए, या इसे छोड़ कर कोई अन्य सूरह पढ़ना चाहिए। उसने कहा: “मैं इसे नहीं छोड़ सकता; इसके बजाय, मैं नमाज़ पढ़ाना छोड़ दूंगा।” लोग नहीं चाहते थे कि कोई और नमाज़ पढ़ाये, इसलिए वे इस मामले को लेकर पैगंबर मुहम्मद के पास गए। पैगंबर ने उस आदमी से पूछा, “तुम्हारे साथी जो चाहते हैं उसे मानने से तुम्हें क्या रोकता है? आप हर रकात में इस विशेष सूरह को क्यों पढ़ते हैं?" उस व्यक्ति ने उत्तर दिया, "मुझे इससे बहुत प्रेम है।" पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "इस सूरह के प्रति आपके प्यार ने आपको स्वर्ग में प्रवेश दिला दिया है।”[2]
सूरह अल-इखलास को क़ुरआन के एक तिहाई के बराबर बताया गया है। इसे पढ़ने से क़ुरआन के एक तिहाई पाठ के समान ही प्रतिफल मिलता है।
पैगंबर मुहम्मद ने सहाबा से कहा, "मेरे सामने इकट्ठे हो जाओ, क्योंकि मैं आपको क़ुरआन का एक तिहाई सुनाऊंगा।" जब वे इकट्ठे हो गए, तो पैगंबर मुहम्मद ने उनके सामने सूरह अल-इखलास का पाठ किया, और फिर वह अपने घर लौट गए। सहाबा इस बारे में आपस में बातें करने लगें। किसी ने कहा, "मुझे लगता है कि आसमान से एक रहस्योद्घाटन अभी उनके पास आया है। इसलिए वह वापस अंदर चले गए हैं।" फिर पैगंबर अपने घर से निकले और कहा, "मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हें क़ुरआन का एक तिहाई सुनाऊंगा। यह वास्तव में क़ुरआन का एक तिहाई है।”[3]
एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को (प्रार्थना में) पढ़ते हुए सुना: "कहो, 'अल्लाह अकेला है।" और वह इसे बार-बार पढ़ रहा था। सुबह वह पैगंबर के पास गया और उसे इस बारे में उन्हें बताया क्योंकि उसे लगा कि इस सूरह का पाठ अपने आप में पर्याप्त नहीं है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "जिसके हाथ में मेरा जीवन है उसकी शपथ, यह क़ुरआन के एक तिहाई के बराबर है।”[4]
संक्षेप और निष्कर्ष यह है कि बेशक सूरह अल-इखलास क़ुरआन के सबसे छोटे अध्यायों में से एक है, लेकिन फिर भी यह सबसे प्रगाढ़ में से एक है। यह मुस्लिम की आस्था की नींव को रेखांकित करने वाला एक अध्याय है, और यह क़ुरआन के एक तिहाई के बराबर है।
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