इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
विवरण: एक नजर कि पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) और सहाबा ने अपने पड़ोसियों के साथ कैसा व्यवहार किया था।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,296 (दैनिक औसत: 3)
उद्देश्य
·यह जानना और समझना कि पड़ोसी के साथ संबंध कैसे व्यापक समुदाय पर प्रतिबिंबित होते हैं।
·यह समझना कि अच्छे पड़ोसियों और पड़ोसी की चिंता अल्लाह का आशीर्वाद है और इसे बनाए रखना चाहिए और इसकी देखभाल करना चाहिए।
·यह महसूस करना कि पड़ोसियों की चिंता का अर्थ सभी पड़ोसियों के लिए है न कि केवल एक ही जाति या धर्म के लोगों के लिए।
अरबी शब्द
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।
एक प्रामाणिक हदीस में, पड़ोसियों के साथ अच्छा और दयालु व्यवहार अल्लाह पर विश्वास और इस्लाम के सिद्धांतो से जुड़ा हुआ है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "जो कोई अल्लाह और न्याय के दिन में विश्वास रखता है, उसके लिए यह आवश्यक है कि वह अपने पड़ोसियों को नुकसान न पहुंचाए…” [1] इससे हम यह समझ सकते हैं कि इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकारों का उच्च स्थान है। तथ्य यह है कि पैगंबर मुहम्मद की प्यारी पत्नी आयशा ने एक अन्य हदीस में बताया कि स्वर्गदूत जिब्रील ने पड़ोसियों के अधिकारों को बरकरार रखने पर इतना जोर दिया कि पैगंबर मुहम्मद ने सोचा कि क्या विरासत के अधिकार भी करीबी पड़ोसियों को दिए जाएंगे।
सहाबा ने शब्दो और कर्म दोनों से लगातार बताया कि अल्लाह और उसके दूत ने पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार पर बहुत महत्व दिया था। पैगंबर मुहम्मद का एक पड़ोसी था जिसने उन्हें हर मौके पर नुकसान पहुंचाया और उनका अपमान किया। जब कुछ दिन बीत गए और पैगंबर उस आदमी से नहीं मिले, तो वह उससे मिलने गए क्योंकि उन्हें चिंता थी कि उनका पड़ोसी बीमार हो सकता है या उसे मदद की ज़रूरत हो सकती है। पैगंबर मुहम्मद ने अपने पड़ोसियों के साथ इसी तरह का व्यवहार किया, यहां तक कि उनके साथ भी जो गैर-मुस्लिम थे। एक अच्छा पड़ोसी वह है जो आराम, रक्षा और सुरक्षा की गारंटी देता है। पड़ोसियों की जाती या धर्म की परवाह किए बिना यह लागू होता है। सामुदायिक संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं और नस्ल, धर्म या राजनीतिक संबद्धता जैसी कथित बाधाओं को पार करने में सक्षम होना चाहिए।
मुस्लिम समाज, विशेष रूप से मदीना शहर में स्थापित समाज ने सामुदायिक एकता पर बहुत जोर दिया। यदि समुदाय का एक सदस्य पीड़ित है तो पूरे समुदाय को खतरा होता है। अतीत में, पड़ोसी और व्यापक समुदाय के सदस्य संघर्ष या आपदा के समय एक दूसरे पर निर्भर रहते थे। यह उन परिस्थितियों से ज्यादा अलग नहीं है जिनमें हम आज खुद को पाते हैं; बूढ़े अकेलेपन मे मर जाते हैं और भुला दिए जाते हैं और पड़ोसी बंद दरवाजों के पीछे भूखे रह जाते हैं। इस तरह की कई सामुदायिक समस्याओं को पड़ोसी की चिंता से हल किया जा सकता है।
हाल ही में सिडनी ऑस्ट्रेलिया में हाई स्कूल के लड़कों के एक समूह ने अपने असमर्थ बुजुर्ग पड़ोसियों के लॉन की घास काटी और यार्ड की सफाई की।[2] लड़के मुसलमान थे; हालांकि उनके अधिकांश पड़ोसी गैर-मुस्लिम थे। इन युवाओं का अपने प्यारे पैगंबर के नक्शेकदम पर चलने का क्या ही अच्छा तरीका है। आस-पड़ोस के लोग शुरुआत मे आश्चर्यचकित थे और लड़कों के इरादों के बारे में बाते करते थे लेकिन समय के साथ वे सहज हो गए। अच्छे पड़ोसी के साथ संबंध ठीक वैसा ही है जैसा पैगंबर मुहम्मद ने कहा था; किसी के जीवन में एक खुशी।
जैसा कि हम सिडनी के उदाहरण से देख सकते हैं, मुस्लिम समुदायों के पास देने के लिए कुछ ऐसा है जो अक्सर गायब होता जा रहा है जैसे-जैसे दुनिया आगे बढ़ रही है: सामुदायिक एकता और एक सुरक्षित वातावरण। मुस्लिम जानते हैं कि अल्लाह और उसके दूत की आज्ञा मानने का एक हिस्सा सभी के लिए एक सुरक्षित समुदाय सुनिश्चित करना है। हमें इसे वास्तविकता बनाने के तरीकों को खोजने की ज़रूरत नहीं है, बस क़ुरआन और प्रामाणिक सुन्नत के मार्गदर्शन का पालन करना है।
अच्छे पड़ोसी होने के महत्व के कारण, लोग किसी दूसरी जगह शिफ्ट होने से पहले अक्सर पूछताछ करते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि एक गलत पड़ोसी जीवन को दयनीय बना सकता है। जिस तरह एक पड़ोसी के साथ एक बुरा रिश्ता जीवन को खराब कर सकता है, उसी तरह एक अच्छा पड़ोसी जीवन को अच्छा बना सकता है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "इस जीवन में एक आस्तिक के लिए खुशी लाने वाली चीजों में एक धर्मी पड़ोसी, एक विशाल घर और परिवहन का एक आरामदायक साधन है"।[3] यदि हम अनिश्चित हैं कि अपने पड़ोसियों के साथ कैसा व्यवहार करें, तो हम सहाबा के जीवन को देख सकते हैं और अपने समय और स्थान के अनुकूल उनके व्यवहार का अनुकरण करने का प्रयास कर सकते हैं।
पैगंबर मुहम्मद ने अबू जऱ को अपने पास अधिक पानी रखने के लिए कहा था ताकि वो अपने पड़ोसियों को कुछ पानी दे सके।[4] अब्दुल्ला इब्न अम्र ने एक बार अपने नौकर से भेड़ को मारने के बाद पूछा, "क्या तुमने अपने यहूदी पड़ोसी को कुछ दिया?"[5] एक आस्तिक को उपहार देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, भले ही वे कम मूल्य के हों। उपहार का वास्तविक मूल्य वह भावना है जिसके साथ इसे दिया जाता है। उपहार देने से मित्रता और अच्छे पड़ोसी संबंधों को बढ़ावा मिलता है। जब पैगंबर की पत्नी आयशा ने उनसे पूछा कि उन्हें किन पड़ोसियों को उपहार भेजना चाहिए, तो उन्होंने जवाब दिया, "उसको जिसका दरवाजा आपके सबसे करीब है"।[6] हालांकि हमें अपने सबसे नज़दीकी पड़ोसी का सबसे पहले ध्यान रखना चाहिए, इस्लाम हमें अपने सभी पड़ोसियों की देखभाल करने और व्यापक समुदाय के प्रति सचेत रहने का आग्रह करता है।
कई हदीसें हैं जो पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार के महत्व पर जोर देती हैं। "अल्लाह का सबसे अच्छा साथी वह है जो अपने साथी के लिए सबसे अच्छा है, और अल्लाह का सबसे अच्छा पड़ोसी वह है जो अपने पड़ोसी के लिए सबसे अच्छा है।" लेकिन उन पड़ोसियों के बारे में क्या जो एक व्यक्ति के अपने घर में उचित आनंद को बाधित करते हैं? पैगंबर मुहम्मद से एक महिला के बारे में पूछा गया जो अपने पर अनिवार्य प्रार्थना से अधिक प्रार्थना और उपवास करती थी, और उदारता से दान करती थी, लेकिन दुर्भाग्य से वह अपने पड़ोसियों से कठोर भाषा बोलती थी। पैगंबर ने उसके बारे मे बताया कि वह नर्क के लोगों मे से है। पैगंबर को एक और औरत के बारे मे बताया गया जो अपने पर अनिवार्य से अधिक पूजा नहीं करती थी और पैगंबर ने कहा कि वह स्वर्ग के लोगो मे से है क्योंकि वह एक अच्छी पड़ोसी थी।[7]
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास