ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
विवरण: हमारी पूजा में रिया कैसे आ जाती है और हमारी ईमानदारी को कैसे भ्रष्ट कर सकती है, इस बारे में चर्चा।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 19 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,352 (दैनिक औसत: 3)
उद्देश्य
·रिया की अवधारणा को समझना और जानना कि हम अपनी पूजा और अल्लाह के साथ अपने संबंध को बर्बाद होने से कैसे बचाएं।
अरबी शब्द
·आयात - (एकवचन - आयत ) आयत शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं। इसका लगभग हमेशा अल्लाह से सबूत के बारे में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अर्थों मे शामिल है सबूत, छंद, सबक, संकेत और रहस्योद्घाटन।
·दुनिया - यह संसार, परलोक के संसार का विपरीत।
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·हदीस कुदसी - मानवजाति के लिए अल्लाह का संदेश जो पैगंबर मुहम्मद के शब्दों द्वारा दिया गया हो, जो आमतौर पर आध्यात्मिक या नैतिक विषयों से संबंधित होता है।
·इहसान - पूर्णता या उत्कृष्टता। इस्लामी रूप से, यह अल्लाह की पूजा करना है जैसे मानो आप अल्लाह को देख रहे हैं। अल्लाह को कोई नहीं देख सकता है, लेकिन यह समझना कि अल्लाह सब कुछ देख रहा है।
·इखलास - ईमानदारी, पवित्रता या एकांत। इस्लामी रूप से यह अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए हमारे उद्देश्यों और इरादों को शुद्ध करने को दर्शाता है। यह क़ुरआन के 112वें अध्याय का नाम भी है।
·रिया - यह र'आ शब्द से बना है जिसका अर्थ है देखना। इस प्रकार रिया शब्द का अर्थ है दिखावा, पाखंड और ढोंग। इस्लाम में रिया का अर्थ है किसी अन्य को प्रसन्न करने के इरादे से ऐसे कार्य करना जो अल्लाह को पसंद है।
·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।
·शरिया - इस्लामी कानून।
·शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है।
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·सूरह - क़ुरआन का अध्याय।
·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।
इखलास का अर्थ है कि किसी का दिल शुद्ध है और वह केवल अल्लाह को खुश करने के लिए उसकी पूजा करता है। पाठ 1 में हमने स्थापित किया कि एक विश्वासी के कर्मों को अल्लाह तभी स्वीकार करता है जब कार्य इखलास के साथ किया जाए, सबसे पहले इरादा सही होना चाहिए और उन्हें शरिया के अनुसार किया जाना चाहिए। हम उन चीजों पर चर्चा करके अपना पाठ जारी रखेंगे जो हमारे इखलास का खंडन या भ्रष्ट कर सकती हैं; यानी रिया। रिया वास्तव में छोटा शिर्क है, इसमे हम अल्लाह को खुश करने की बजाय लोगों की प्रशंसा के लिए कार्य करते हैं।
इस्लाम के एक महान विद्वान ने एक बार कहा था, "वास्तव में इस दुनिया में हासिल करने के लिए सबसे कठिन चीज इखलास है। कितनी बार मैंने अपने दिल से रिया (दिखावा) को मिटाने के लिए संघर्ष किया, लेकिन हर बार वह फिर से एक अलग रूप में दिखाई दिया”?[1] इस कथन से स्पष्ट है कि सबसे शिक्षित लोग भी ईमानदार बने रहने और रिया से बचने के लिए संघर्ष करते हैं। लेकिन वास्तव में यह एक ऐसी चीज है जिससे हमें बचना चाहिए। पैगंबर मुहम्मद ने कहा कि यह वह चीज है जिससे वह अपनी उम्मत के लिए सबसे ज्यादा डरते हैं। उन्होंने कहा "वास्तव में जिस चीज से मुझे आपके लिए सबसे ज्यादा डर लगता है, वह है छोटा शिर्क।" सहाबा ने पूछा, "ऐ अल्लाह के दूत, छोटा शिर्क क्या होता है?" जिस पर उन्होंने जवाब दिया, "यह रिया है। न्याय के दिन - जब लोगों को उनके कर्मों के लिए भुगतान किया जा रहा होगा - अल्लाह रिया करने वाले लोगों से कहेगा 'उन लोगों के पास जाओ जिन्हें तुमने अपने कर्मों को दुनिया में दिखाया था, और देखो कि क्या तुम उनसे इनाम पा सकते हो!’”[2]
एक हदीस क़ुदसी भी है जिसमें अल्लाह कहता है, "मैं सभी भागीदारों से स्वतंत्र हूं (जो लोग मेरे लिए मानते हैं)। जो कोई मेरा साझीदार बनाकर कर्म करेगा, मैं उसे और उसके शिर्क को छोड़ दूंगा।”[3] रिया को अल्लाह के अलावा किसी अन्य को प्रसन्न करने के इरादे से किए गए कार्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह शिर्क का एक रूप है और इससे डरने की बात है क्योंकि व्यक्ति इसमे पड़ जाता है और उसे पता भी नही चलता।
हमारे अच्छे कर्म और कार्य रिया की वजह से बर्बाद हो सकते हैं। आइए हम एक ऐसे व्यक्ति का उदाहरण लेते हैं जिसके पास 100 रुपये है और वह दान करना चाहता है। वह शुद्ध और सच्चे दिल से अपने कार्य की शुरुआत करता है और 50 रुपये दान करता है, लेकिन फिर उसे यह दिखाने का विचार आता है कि वह कितना अमीर है, इसलिए वह और 50 रुपये दिखावे के रूप मे दान करता है। यह संभव है कि अल्लाह उसेक दूसरे 50 रुपये को दान के रूप में अस्वीकार कर देगा क्योंकि यह दिखावा करने की इच्छा के साथ किया गया था। हालांकि अगर दिखावे का विचार कुल 100 रुपये दान करने के बाद आया तो यह दान के कार्य को प्रभावित या अमान्य नहीं करेगा।
इसके साथ ही यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि यदि कोई व्यक्ति पूजा करने के बाद प्रसन्न होता है तो यह दिखावा नहीं है। यह विश्वास की निशानी है। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा, "जो अपने अच्छे कामों से खुश और अपने बुरे कामों से दुखी होता है, वह आस्तिक है।”[4] इसके अतिरिक्त यदि लोग किसी भले काम के लिये तेरी प्रशंसा करें, तो इसमें लज्जित होने या डरने की कोई बात नहीं, यह परलोक के शुभ समाचार का हिस्सा है। पैगंबर मुहम्मद से पूछा गया, "आपको क्या लगता है अगर एक आदमी एक अच्छा काम करता है और लोग उसके लिए उसकी प्रशंसा करते हैं?" पैगंबर ने कहा: "यह उस विश्वासी के लिए खुशखबरी का हिस्सा है जो उसे इस दुनिया में दिया गया है।”[5]
ऐसी कई चीजें हैं जिन पर आप अधिक ध्यान देना चाहेंगे ताकि आपकी पूजा में आने वाली किसी भी रिया को दूर किया जा सके।
·इहसन की अवधारणा को ध्यान में रखने की कोशिश करें। अल्लाह हमेशा देख रहा है।
·या तो छुपा के उपासना करें या सचेतन प्रयास करें कि उसका दिखावा न करें।
·अपनी कमियों और अपनी उपलब्धियों पर चिंतन करें। याद रखें कि अल्लाह ही हमारी उपलब्धियों का स्रोत है।
·अपनी पूजा में किसी भी रिया को दूर करने के लिए अल्लाह की मदद मांगे।
·उस आयत पर चिंतन करें जिसे हम अपनी नमाज़ों में दिन में कई बार पढ़ते हैं। "(ऐ अल्लाह!) हम केवल तुझी को पूजते हैं और केवल तुझी से सहायता मांगते हैं।" (क़ुरआन 1:5)
ध्यान रखने वाली एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें रिया के डर से अच्छे कर्म करना बंद नहीं करना चाहिए। यह शैतान की चालों में से एक है। वह लोगों के संकल्प को कमजोर करने की कोशिश करता है ताकि वे उन चीजों को करने से बचें जिनसे अल्लाह प्यार करता है और प्रसन्न होता है। अगर हम ध्यान से सिर्फ अल्लाह को खुश करने का इरादा रखें, तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रिया हमारी पूजा में न आये।
अंत में हमें यह याद रखना चाहिए कि पूजा में ईमानदारी महत्वपूर्ण है। ईमान वालों को चाहिए कि उनका दिल साफ हो और वे जो कुछ भी करते हैं उसमें अल्लाह को खुश करने का इरादा रखें।
पिछला पाठ: ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
अगला पाठ: वैध कमाई
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्?
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)