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पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह

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विवरण: इस्लाम के पहले मुअज्जिन, बिलाल इब्न रबाह की एक संक्षिप्त जीवनी।

द्वारा Aisha Stacey (© 2014 IslamReligion.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 26 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,930 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·बिलाल इब्न रबाह के जीवन के बारे में जानना और उनके धैर्य और दृढ़ता ने कैसे उन्हें सफल बनाया।

अरबी शब्द

·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।

·अहद - एक ईश्वर।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·अज़ान - मुसलमानों को पांच अनिवार्य प्रार्थनाओं के लिए बुलाने का एक इस्लामी तरीका।

·मुअज्जिन - वह जो अज़ान देता है।

BilalibnRabah.jpgबिलाल इब्न रबाह दूसरे व्यक्ति हैं जिनके जीवन के बारे में हम पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के साथियों की इस श्रृंखला में जानेंगे। बिलाल को कभी-कभी बिलाल अल-हबशी के रूप में जाना जाता है जो उनकी इथियोपियाई (एबिसिनियन) विरासत से है। सहाबी बिलाल इब्न रबाह पैगंबर मुहम्मद के सबसे करीबी लोगों में से एक थे। उन्होंने एक गुलाम के रूप में जीवन शुरू किया, कई यातनापूर्ण वर्षों तक जीवित रहे, वह नमाज़ के लिए लोगों को बुलाने वाले पहले व्यक्ति थे, इस्लाम की सेवा में दृढ बने रहे और चौंसठ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। बिलाल की कहानी का उपयोग बार-बार यह दिखाने के लिए किया जाता है कि कैसे बहुलवाद और नस्लीय समानता की अवधारणाएं इस्लाम धर्म में निहित हैं।

बिलाल गुलामी में पैदा हुए थे; उनकी मां उमय्याह इब्न खलाफ के घराने में एक दासी थी। बिलाल एक वफादार मेहनती दास होने के लिए प्रतिष्ठित थे और हम अनुमान लगा सकते हैं कि उन्हें जीवन के बारे में कोई भ्रम नहीं था। उन्होंने शायद सोचा था कि वह कड़ी मेहनत का जीवन जियेंगे और कभी भी आजाद न हो पाएंगे। हालांकि वह विश्व इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय में पैदा हुए थे। यह इस्लाम के उदय का समय था और एक अनपढ़ व्यक्ति लोगों को एक ईश्वर की पूजा करने के लिए बुला रहा था; अरबी में, अहद मतलब एक। बिलाल के मालिक कुरैश[1], के नेताओं में से एक थे, इसलिए बिलाल मक्का में जीवन के बारे में उन लोगो राय सुनते थे और पैगंबर मुहम्मद के बारे में उनकी चर्चा सुनते थे।

मक्का का आर्थिक जीवन मूर्ति पूजा पर निर्भर था और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं से वह आजीविका नष्ट हो रही थी। पैगंबर मुहम्मद भी कुरैश के कबीले से थे और लोग उनकी ईमानदारी को पहचानते थे। बिलाल ने होने वाली चर्चाओं को सुना और निःसंदेह निश्चय किया कि दया, क्षमा और न्याय का संदेश एक प्रकाश और एक ऐसी आशा है, जिससे जुड़े रहना चाहिए। बिलाल ने इस्लाम के संदेश को स्वीकार करने की घोषणा की और इससे उनका कड़ी मेहनत और दुर्व्यवहार वाला जीवन दर्द के दुःस्वप्न में बदल गया। बिलाल एक ईश्वर, अहद की अवधारणा से आकर्षित थे और यह वह शब्द था जिसने अनिवार्य रूप से उनकी जान बचाई।

जीवनी लेखक इब्न इशाक हमें बताते हैं कि मुहम्मद के इस्लाम के संदेश को तत्काल स्वीकार करने के कारण बिलाल को बहुत प्रताड़ना झेलना पड़ा। उन्हें बेरहमी से पीटा गया, उनकी गर्दन पकड़ के मक्का की पहाड़ियों के चारों ओर घसीटा गया और उन्हें चिलचिलाती धूप मे लंबे समय तक भूखे और प्यासे रहना पड़ा। इब्न इशाक ने लिखा है कि बिलाल के मालिक उमय्याह इब्न खलाफ, "...दिन के सबसे गर्म हिस्से में उन्हें बाहर लाते और खुली घाटी में उन्हें पीठ के बल फेंक देते और उनकी छाती पर एक बड़ी चट्टान डाल देते; तब वह उनसे कहता, 'तुम यहां तब तक रहोगे जब तक तुम मर नहीं जाते या मुहम्मद का इनकार नहीं करते और अल-लत और अल-उज्जा [2] की पूजा नहीं करते। बिलाल ने इस्लाम को नही छोड़ा और केवल एक ही शब्द बोला - अहद।

यातना झेलने वाले गुलाम की खबर, जिसका एकमात्र शब्द अहद था, जल्द ही पैगंबर मुहम्मद तक पहुंच गया। उन्होंने अबू बक्र को पता लगाने के लिए भेजा। अबू बक्र को पूरे मक्का में उस व्यक्ति के रूप में जाना जाते थे जो गुलाम को खरीदकर मुक्त कर देते थे और उम्मयाह इब्न खलाफ ने एक बहु अधिक कीमत वसूल की। हालांकि अबू बक्र ने बिलाल को खरीद लिया और मुक्त कर दिया। बिलाल ने जितना संभव हो पैगंबर मुहम्मद के करीब रहने की कोशिश की और पैगंबर मुहम्मद को यह पता चलने मे ज्यादा समय नही लगा कि बिलाल के पास एक सुंदर आवाज है।

इस्लाम का संदेश आज भी उतना ही सुंदर है जितना कि धर्म के आगमन के समय था। जो लोग पददलित, हाशिए पर हैं और उत्पीड़ित हैं वे जीवन के एक ऐसे तरीके की ओर आकर्षित होते हैं जो सभी के लिए न्याय और दया प्रदान करता है। यद्यपि इस आधुनिक दुनिया में हम मानवजाति को किसी तरह विकसित और बर्बरता से अलग समझते हैं, जिसके बारे में हमने अपने इतिहास में पढ़ा है, थोड़ी जांच पड़ताल से हमें पता चलता है कि ऐसा नहीं है। गुलामी अभी भी मौजूद है, उत्पीड़न को नए और घातक स्तरों पर ले जाया गया है और बहुत से लोग आराम के किसी भी स्रोत से उजाड़ और कटे हुए महसूस करते हैं। दुनिया भर में इस्लाम में परिवर्तित होने वाले लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि इस बात का प्रमाण है कि अहद (एक ईश्वर, सबसे दयालु और सबसे क्षमाशील) की अवधारणा में आराम मिलता है।

बिलाल की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। वर्ष 622 सीई में पैगंबर मुहम्मद, बिलाल और अधिकांश मुस्लिम समुदाय मदीना चले गए। जब भी संभव होता बिलाल अपने पैगंबर के साथ रहते और जैसा कि एक टिप्पणीकार ने कहा, "मोहम्मद के जीवन की हर घटना बिलाल के जीवन की एक घटना थी।”[3] कई हदीसों के अनुसार पैगंबर मुहम्मद अपने बढ़ते समुदाय को नमाज़ के लिए बुलाने का एक तरीका खोजने की आवश्यकता से चिंतित हो गए। एक सहाबा के सपने को सुनने के बाद, पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "... बिलाल को बुलाए और उन्हें बताएं कि आपने क्या देखा है, उसे वो शब्द सिखाएं ताकि वह लोगो को पुकार सके, क्योंकि उसकी आवाज बहुत सुंदर है…”[4] इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बिलाल की कहानी अज़ान की कहानी है, नमाज़ के लिए बुलाना क्योंकि बिलाल को प्रथम मुअज्जिन होने का सम्मान प्राप्त है। नमाज़ के लिए बुलाने की कहानी यहां देखी जा सकती है: http://www.islamreligion.com/articles/4744/

मदीना मे प्रवास के बाद के दशक में बिलाल पैगंबर मुहम्मद के सभी सैन्य अभियानों में मौजूद थे और कई मौकों पर उन्हें पैगंबर का भाला ले जाने का सम्मान मिला था। इस्लाम अपनाने के बाद उनके जीवन में बहुत खुशी के कई क्षण और विनाशकारी दुख का एक क्षण शामिल है। पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु ने उन्हें बहुत प्रभावित किया था, जैसा कि सभी सहाबा को किया था । बिलाल ने अज़ान देना बंद कर दिया और मदीना में अपने पैगंबर और गुरु के बिना जीवन को असहनीय पाया। कई लोगों का मानना ​​है कि बिलाल की मृत्यु सीरिया में 638 और 642 ईस्वी के बीच हुई थी, दूसरों की राय है कि उनकी मृत्यु मदीना में हुई थी। उनकी मृत्यु का स्थान वास्तव में कोई मायने नहीं रखता क्योंकि हम जानते हैं कि उनका शाश्वत निवास स्वर्ग है क्योंकि पैगंबर मुहम्मद ने उन्हें "स्वर्ग का आदमी" कहा था।[5]



फुटनोट:

[1] इस्लाम के आगमन के समय कुरैश मक्का में सबसे शक्तिशाली जनजाति थी और इसी जनजाति से पैगंबर मुहम्मद थे। यह क़ुरआन में एक सूरह का नाम भी है।

[2] अल-लत, अल-उज्जा और मनात मूर्तियों की एक तिकड़ी थी जिसकी पूजा पूर्व-इस्लामिक अरब में की जाती थी।

[3] एच ए एल क्रेग (http://www.alhamra.com/Excerpts/BilalExcerpt.htm)

[4] अहमद, अत-तिर्मिज़ी,अबू दाऊद, और इब्न माजा

[5] सहीह मुस्लिम

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