पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
विवरण: वह आदमी जिसने सच सुना और इस्लाम को अपना लिया, लेकिन उसका जीवन यातना और दुर्व्यवहार से भर गया। अल्लाह की दया और पैगंबर मुहम्मद की सहानुभूति की वजह से वह इतिहास और स्वर्ग में जाने के लिए जीवित रहा।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·अम्मार इब्न यासिर के जीवन और सच्चाई के लिए उनकी दृढ़ता के बारे में जानना।
अरबी शब्द
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·हिज्राह - एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना। इस्लाम में, हिज्राह मक्का से मदीना की ओर पलायन करने वाले मुसलमानों को संदर्भित करता है और इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत का भी प्रतीक है।
·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।
·आयात - (एकवचन - आयत ) आयत शब्द के कई अर्थ हो सकते हैं। इसका लगभग हमेशा अल्लाह से सबूत के बारे में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अर्थों मे शामिल है सबूत, छंद, सबक, संकेत और रहस्योद्घाटन।
·मुहाजिरून - प्रवास करने वाले। अधिक विशेष रूप से और आमतौर पर यह उन लोगों को संदर्भित करता है जो मक्का से मदीना गए थे।
अम्मार इब्न[1] यासिर पैगंबर मुहम्मद के इस्लाम के आह्वान का जवाब देने वाले पहले लोगों में से एक थे। उन्हें कुरैश[2] के हाथों दुर्व्यवहार और अपमान का सामना करना पड़ा और अपने माता-पिता को इस्लाम के सबसे बड़े दुश्मन के हाथों मरते हुए देखा। उन्होंने एबिसिनिया के पहले प्रवास में भाग लिया और बाद में पैगंबर मुहम्मद के साथ मदीना हिज्राह भी किया। अम्मार ने पहली मस्जिद के निर्माण में भाग लिया और नए मुस्लिम राष्ट्र द्वारा लड़े गए सभी युद्धों में पैगंबर मुहम्मद के साथ थे। कई हदीसें अम्मार की ओर से हैं और पैगंबर मुहम्मद ने कहा था कि वह उनके इतने करीब हैं जैसे आंख नाक के करीब है।[3]
माना जाता है कि अम्मार इब्न यासिर का जन्म 570 सीई के आसपास हुआ था, पैगंबर मुहम्मद के जन्म से लगभग एक साल पहले। इस्लाम के आगमन से पहले वे दोस्त थे और ऐसा माना जाता है कि मुहम्मद और खदीजा[4] के विवाह की व्यवस्था करने में अम्मार की कुछ भूमिका थी। अम्मार को अल-अरक़म के घर में बुलाया गया जहां पैगंबर मुहम्मद गुप्त रूप से प्रचार करते थे। उन्होंने पैगंबर मुहम्मद और क़ुरआन में अल्लाह के शब्दों को सुना और इस्लाम स्वीकार कर लिया।
अम्मार के माता-पिता यासिर और सुमय्या ने भी उसी दिन इस्लाम स्वीकार कर लिया था क्योंकि यासिर ने पिछली रात एक सपना देखा था। उसने सपने मे देखा कि अम्मार और उनकी पत्नी आग से विभाजित घाटी के एक बगीचे से उन्हें बुला रहे थे। पूरे परिवार ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, जो कुरैश के एक सरदार अबू जहल को पसंद न आया और वो नफरत करने लगा। कुरैश के कई लोगों का समय व्यतीत करने का पसंदीदा तरीका नए धर्म के कमजोर अनुयायियों को यातना देना और पीड़ा देना था। मक्का समुदाय के गरीब और हाशिए के सदस्यों के पास अपनी पीड़ा को झेलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। यासिर के परिवार का लगातार यातना दी जाती और पैगंबर मुहम्मद उन्हें यह कहते हुए धैर्य रखने के लिए प्रोत्साहित करते थे कि वे स्वर्ग जायेंगे।[5]
आखिरकार अम्मार के सामने उनके पिता यासिर और सुमय्या की हत्या कर दी गई। सुमय्या की चाकू मारकर हत्या कर दी गई और इस दुखद तरीके से वह इस्लाम में पहली शहीद (यानी इस्लाम के लिए मरने वाला पहला व्यक्ति) बन गई। कुछ समय बाद यासिर की भी हत्या कर दी गई। अम्मार दुख और भय से उबर गए और उन्होंने वही किया जो उनके माता-पिता ने करने से मना किया था; उन्होंने इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद को शाप दिया। उल्लासपूर्वक अबू जहल ने अम्मार को जाने दिया और वह सीधे पैगंबर मुहम्मद के पास गया। अम्मार अपने स्वयं के व्यवहार से अभिभूत और स्तब्ध था, वह अपने माता-पिता और खुद को मिली यातना से आहत था। पैगंबर मुहम्मद ने उन्हें सांत्वना दी और उनके डर को कम किया, उन्हें ईश्वर की क्षमा के बारे मे बताया। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थिति के लिए क़ुरआन के निम्नलिखित छंद का खुलासा किया गया था।
“जिसने अल्लाह के साथ कुफ़्र किया, अपने ईमान लाने के पश्चात्, परन्तु जो बाध्य कर दिया गया हो, इस दशा में कि उसका दिल ईमान से संतुष्ट हो, (उसके लिए क्षमा है)। परन्तु जिसने कुफ़्र के साथ सीना खोल दिया हो, तो उन्हीं पर अल्लाह का प्रकोप है और उन्हीं के लिए महा यातना है।” (क़ुरआन 16: 106)
जब दूसरों ने अम्मार की आलोचना की और उन्हें अविश्वासी कहा, तो पैगंबर मुहम्मद ने उनका बचाव किया। पैगंबर ने लोगों के तानो का जवाब देते हुए कहा, "नहीं, अम्मार वास्तव में सिर से पांव तक विश्वासी है।”[6] नई आस्था के कई अनुयायियों के अथक उत्पीड़न और पीड़ा को कम करने के लिए, पैगंबर ने उनमें से सबसे कमजोर लोगों के एक समूह को एबिसिनिया भेजा। इस समूह में अम्मार भी शामिल थे। अम्मार बाद में मदीना प्रवास करने के लिए मक्का लौट आए। वह मक्का से मदीना जाने वाले पहले मुहाजिरों में से थे।
अम्मार उन लोगों में से थे जिन्होंने मदीना में पहली मस्जिद का निर्माण किया था। निर्माण के लिए ईंटों को ले जाते समय, पैगंबर मुहम्मद ने देखा कि जब हर कोई एक ईंट ले जा रहा था, तब अम्मार दो ईंटें ले जा रहे थे। पैगंबर ने कहा, "उन्हें एक इनाम मिलेगा जबकि आपको (अम्मार) दो मिलेंगे।" अम्मार, बद्र की लड़ाई सहित युवा राष्ट्र के सामने आने वाली हर लड़ाई में पैगंबर मुहम्मद के साथ थे। जब उस लड़ाई में अबू जहल मारा गया, तो पैगंबर मुहम्मद ने अम्मार की ओर रुख किया और कहा, "तुम्हारी मां का हत्यारा मर चुका है।”
अम्मार इब्न यासिर को कई हदीसों का श्रेय दिया गया है, विशेष रूप से तयम्मुम[7] से संबंधित कुछ। विशेष रूप से एक हदीस अम्मार और उमर इब्न अल-खत्ताब के एक साथ यात्रा पर होने के बारे में है। एक आदमी उमर इब्न अल-खत्ताब के पास आया और कहा, "मैं अशुद्ध हो गया था लेकिन पानी उपलब्ध नहीं था।" अम्मार इब्न यासिर ने उमर से कहा, "क्या आपको याद है कि जब हम यात्रा पर थे तब आप और मैं अशुद्ध हो गए थे और आपने नमाज नहीं पढ़ी थी लेकिन मैं जमीन पर लोटने के बाद नमाज़ पढ़ी थी? मैंने पैगंबर को इसके बारे में बताया और उन्होंने कहा, 'आपके लिए ऐसा करना काफी था।' पैगंबर ने फिर अपने हाथों से पृथ्वी को हल्के से सहलाया और फिर अपने हाथों पर जमा हुई अतिरिक्त धूल को हटा दिया और अपने हाथों को अपने चेहरे और हाथों पर मला था।”[8]
यह हदीस हमें न केवल तयम्मुम के बारे में जानकारी देती है बल्कि दर्शाती है कि अम्मार पैगंबर मुहम्मद और उनके आंतरिक घेरे के कितने करीब थे। याद रखें कि अम्मार एक ऐसे व्यक्ति थे जो डर गए थे और वह उस यातना को सहन नहीं कर सके थे जिसे उन्हें और उनके परिवार को सहना पड़ा था। जब अम्मार ने इस्लाम को कोसा, तो उन्हें क्षमा कर दिया गया और उन्होंने आध्यात्मिक और शारीरिक शक्ति प्राप्त की। बद्र में मौजूद पुरुषों को सबसे अच्छा माना जाता था, लेकिन वे भी इंसान थे। कभी-कभी जब कोई व्यक्ति इस्लाम धर्म अपनाता है तो उसका जीवन खुशी और घबराहट का रोलरकोस्टर बन सकता है और ऐसी जगहों से धमकियां मिलने लगती हैं जिसे पहले सुरक्षित माना जाता था। अम्मार की कहानी दर्शाती है कि अल्लाह की दया और सुरक्षा निकट है, आस्तिक को केवल पूछने की जरूरत है।
कहा जाता है कि अम्मार नब्बे वर्ष की आयु के आसपास युद्ध में मारे गए थे। उनकी मृत्यु की भविष्यवाणी पैगंबर मुहम्मद ने की थी और कुछ का मानना है कि भविष्यवाणी इतनी सटीक थी कि यह भविष्यवाणी के संकेतों में से एक थी। "हाय! एक विद्रोही समूह जो सच्चाई से भटक गया होगा, अम्मार की हत्या कर देगा। अम्मार उन्हें स्वर्ग की ओर बुला रहे होंगे और वे उसे नर्क की ओर बुला रहे होंगे। उसका हत्यारा और उसके हथियार और कपड़े छीनने वाले नर्क में होंगे।”[9]
फुटनोट:
[1] इब्न का अर्थ है उसका पुत्र, कभी-कभी इसे गलती से बिन लिखा जाता है।
[2] इस्लाम के आगमन के समय कुरैश मक्का में सबसे शक्तिशाली जनजाति थी और इसी जनजाति से पैगंबर मुहम्मद थे। यह क़ुरआन के एक अध्याय का नाम भी है।
[3] इब्न हिशाम, अस-सिरह, खंड 2
[4] खुवाय्लिद की बेटी खदीजा, पैगंबर मुहम्मद की पहली और 25 साल तक एकमात्र पत्नी थीं।
[5] अत-तिर्मिज़ी
[6] इब्न माजा
[7] तयम्मुम पर यहां विस्तार से चर्चा की गई है: http://www.newmuslims.com/lessons/123/
[8] सहीह अल-बुखारी
[9] अन्य लोगों के साथ-साथ सहीह अल-बुखारी, अत-तिर्मिज़ी, और इमाम अहमद और 25 साहबा के माध्यम से प्रेषित।
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