अच्छी संगति रखना
विवरण: अच्छे मित्र और संगति चुनना धर्म को संरक्षित और सुरक्षित रखने में मदद करता है। यह पाठ बताएगा कि कोई इसे कैसे कर सकता है।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·अपने मित्रों और अपनी संगति को चुनते समय चयनात्मक होने का तरीका जानना।
·साथियों के एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव और प्रकार को जानना।
·धर्मी मुसलमानों से मित्रता करने के फायदे जानना।
अरबी शब्द
·इब्लीस - शैतान का अरबी नाम।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·शैतान - यह इस्लाम और अरबी भाषा में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो शैतान यानि बुराई की पहचान को दर्शाता है।
·ज़कात - अनिवार्य दान।
·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।
अपने धर्म का संरक्षण और बचाव करने का मुसलमान के लिए सबसे अच्छे तरीकों में से एक है कि वे ध्यान दे कि वे किससे मित्रता कर रहा है और कैसी संगति मे है। हम देखते हैं कि बिना किसी प्रयास के साथियों का एक-दूसरे पर कितना प्रभाव पड़ता है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) का यह कहना पर्याप्त है कि:
"एक व्यक्ति अपने करीबी मित्र के जीवन (दीन) के रास्ते पर है, इसलिए लोगों को यह देखना होगा कि वे किसे करीबी मित्र मानते हैं।" (अबू दाऊद)
एक स्पष्ट तथ्य यह है कि लोग करीबी मित्र आमतौर पर उन चीजों के कारण होते हैं जो उनमें समान होती हैं। उनकी रुचियां और शौक समान होते हैं, एक-दूसरे से अच्छी तरह से संबंधित होते हैं, और अपने मित्रों की पसंद की चीजों को पूरा करके एक-दूसरे को खुश करने की कोशिश करते हैं। इस कारण से वे एक ही दीन या एक ही जीवन के तरीके पर होते हैं। यदि कोई व्यक्ति बदमाश है, तो उसके मित्र भी बदमाश होंगे; यदि कोई व्यक्ति वैज्ञानिक है, तो उसके मित्र भी अन्य वैज्ञानिक होंगे; और यदि कोई अपना जीवन इस्लाम के लिए समर्पित कर देता है, तो वे अन्य अच्छे मुसलमानों को ही मित्र बनाएगा।
जब कोई बुरे मित्र बनाएगा, तो वे उसे बुरे काम करने के लिए कहेंगे, या कम से कम वे उसे अच्छे कर्म करने से रोकेंगे। दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति ध्यान से अपने मित्रों को चुनता है और केवल धर्मियों की संगति मे रहता है, तो वे एक दूसरे को धार्मिकता और पवित्रता की सलाह देंगे और एक दूसरे को बुराई करने से रोकेंगे और चेतावनी देंगे। इसका एक स्पष्ट उदाहरण यह है कि यदि नमाज़ पढ़ने वाला मुसलमान किसी ऐसे व्यक्ति से मित्रता करता है जो नमाज़ नहीं पढ़ता, तो उसका नमाज़ न पढ़ने वाला मित्र शायद उसे याद नहीं दिलाएगा कि यह नमाज़ का समय है। इसके बजाय, यह हो सकता है कि जब नमाज पढ़ने वाला खुद नमाज न पढ़ने का कोई बहाना चाहता है, तो उसका मित्र उसे रोकने की कोशिश कर सकता है या उसे बाद में नमाज पढ़ने के लिए कह सकता है। इसके अलावा, यदि कोई ऐसे व्यक्ति से मित्रता करता है जो पाप करने में जरा भी नहीं हिचकता है, वे अपने मित्रों को भी वही पाप करने के लिए कह सकता है। अल्लाह ने निम्नलिखित छंद मे बताया कि एक व्यक्ति जिसके बुरे साथी थे वह क़यामत के दिन क्या कहेगा:
“उस दिन, अत्याचारी अपने दोनों हाथ चबायेगा, वह कहेगाः क्या ही अच्छा होता कि मैं दूत के रास्ते पर चला होता। हाय मेरा दुर्भाग्य! काश मैंने फलाने को मित्र न बनाया होता। उसने मुझे कुपथ कर दिया शिक्षा (क़ुरआन) से, इसके बावजूद कि वो मेरे पास आया और शैतान मनुष्य को समय पर धोखा देने वाला है।” (क़ुरआन 25:27-29)
पैगंबर ने दुष्ट साथी के संबंध में कहा:
“धर्मी और दुष्ट साथी का उदाहरण उस व्यक्ति के समान है जो इत्र रखता है और दूसरा जो लोहार है। जो इत्र रखनेवाला है, वह या तो तुम्हें कुछ इत्र देगा जो तुम उससे खरीद सकते हो या [कम से कम] तुम्हे उसके साथ एक सुखद सुगंध मिलेगी। जो लोहार है, या तो वह (लोहार) अपने कपड़े जलाएगा, या तुम्हे उससे आ रही एक भयानक गंध मिलेगी।” (सहीह अल-बुखारी)
यह उन मुसलमानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जिन्होंने हाल ही में इस्लाम को अपनाया है, या वे लोग जो मुस्लिम परिवारों में पैदा हुए हैं जिन्होंने हाल ही में धर्म के सिद्धांतों का पालन करना चुना है। उनकी कई ऐसी आदतें हो सकती हैं और वे विभिन्न तरीकों के आदी हो सकते हैं जिन्हें इस्लाम में पाप माना जाता है, और उन्हें ये सब छोड़ने के संघर्ष में उनकी मदद करने के लिए उन्हें अच्छी संगति की आवश्यकता होती है। एक अच्छा उदाहरण धूम्रपान या शराब पीना है। यदि कोई व्यक्ति "इस आदत को दूर करना" चाहता है, तो धूम्रपान या शराब पीने वाले मुसलमानों से दोस्ती करना या धूम्रपान या शराब पीने वाले पुराने दोस्तों के साथ संगति रखना उनके लिए हानिकारक होगा। बल्कि उन्हें उन लोगों के साथ रहना चाहिए जो उन्हें अल्लाह की याद दिलाते हों और अपने सिद्धांतों का पालन करने के साथ-साथ धर्म को सीखते और सिखाते हों।
अक्सर, इस्लाम को अपनाने वालों में से कई लोगों को विरोध, असहमति और नुकसान का सामना करना पड़ता है, खासकर उनके सबसे करीबी लोगों से। आपको इसे ध्यान में रखना चाहिए और पता होना चाहिए कि इसके माध्यम से आपका स्तर बढ़ेगा, पापों का शुद्धिकरण होगा, और ये एक परीक्षण है जिसके माध्यम से अल्लाह आपकी परीक्षा ले रहा है, यह सब आपके धर्म पर आपकी सच्चाई और दृढ़ता की सीमा को देखने के लिए है। पवित्र मुसलमान मित्रों का होना आपके लिए एक अतिरिक्त सहायता होगी, और वे आपकी ज़रूरत के समय में आपके साथ रहने की कोशिश करेंगे।
धार्मिक लोगों से मिलने और उनसे मित्रता करने के कई तरीके हैं, और सबसे अच्छी जगहों में से एक प्रार्थना की जगह (मस्जिद) है। वहां आपको सबसे अच्छे मुसलमान मिलेंगे। अल्लाह ने अक्सर अपने पास आने वाले मुसलमानों का वर्णन करते हुए कहा:
“वास्तव में, अल्लाह की मस्जिदों को वही आबाद करता है, जो अल्लाह पर और अन्तिम दिन (प्रलय) पर विश्वास करता है, नमाज़ की स्थापना करता है, ज़कात देता है और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरता है। तो आशा है कि वही सीधी राह चलेंगे।” (क़ुरआन 9:18)
यदि आपकी मस्जिद में शिक्षा की व्यवस्था है, तो उसमे भाग लें, क्योंकि सबसे अच्छी सभा वे हैं जिनमें अल्लाह के धर्म की चर्चा होती है। यदि आप एक विश्वविद्यालय के छात्र हैं, तो अच्छे लोगों से मिलने के लिए मुस्लिम छात्र संघ एक अच्छी जगह हो सकती है। यदि आपके क्षेत्र में कोई मस्जिद नहीं है और आप मुसलमानों से बहुत दूर रहते हैं, तो आप उस क्षेत्र में जाने पर विचार करें जहां अधिक मुसलमान रहते हैं। यदि आप ऐसा नही कर सकते हैं, तो आप कम से कम सप्ताह में एक बार किसी बड़े शहर की मस्जिद में जाने की कोशिश करें। तब तक के लिए, इंटरनेट पर कुछ लाभकारी समूह और अध्ययन मंडलियां हैं जिसे आप देख सकते हैं। हर कीमत पर आपको अच्छी संगति बनाए रखने के लिए अपना भरसक प्रयास करना चाहिए; ये लोग आपको अपने धर्म का पालन करने के लिए प्रोत्साहित और मदद करेंगे।
कोई यह सोच सकता है कि उन लोगों के साथ घनिष्ठ मित्रता रख सकते हैं जो अन्य धर्मों को मानते हैं लेकिन अच्छे लोग हैं। हमें पता होना चाहिए कि इस्लाम में सबसे बड़ा पाप यह है कि कोई इस्लाम धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म का पालन करता है। अन्य धर्मों के लोगों के साथ संगति करने में बहुत नुकसान है। यह स्पष्ट है कि वे इस्लाम धर्म के बारे मे संदेह और भ्रम के कारण इसका पालन नहीं करते हैं। ये लोग खुले तौर पर मुसलमानों के साथ अपने संदेह और भ्रम पर चर्चा कर सकते हैं, या उन्हें सीधे तौर पर या गुप्त तरीके से अपने धर्म में परिवर्तित करने की कोशिश कर सकते हैं। जिन मुसलमानों को इस्लाम के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है, वे उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर संदेह कर सकते हैं। यह अन्य धर्मों के लोगों के साथ लगातार जुड़ाव रखने के कई हानिकारक प्रभावों में से एक है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको अपने पहले के सभी रिश्तों से दूर हो जाना चाहिए, बल्कि आपको सावधान रहना चाहिए कि आप किसके साथ और किस हद तक घुलते-मिलते हैं।
हालांकि इसका मतलब यह नही है कि आप किसी भी मुसलमान से मित्रता कर लें। बल्कि, आपको धर्म के जानकार मुसलमानों की तलाश करनी चाहिए जो खुद धर्म के सिद्धांतों का पालन करने की पूरी कोशिश करते हैं। आप कई मुसलमानों को देख सकते हैं जो अपने धर्म के दायित्वों और धर्म द्वारा निषेधित चीजों का पालन नही करते हैं। मुसलमान अपने धर्म का कितना पालन करते हैं यह सब लोगो के लिए अलग-अलग होता है, और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शैतान लोगों को गुमराह करने की पूरी कोशिश करता है। अल्लाह कहता है:
“[शैतान ( इब्लीस )] ने कहा: 'तो तेरे प्रताप की शपथ! मैं अवश्य कुपथ करके रहूंगा सबको।" (क़ुरआन 38:82)
इससे आप निराश न हों; बल्कि, आप इसे धर्म की सेवा करने और लोगों को इसकी ओर बुलाने के लिए अपना भरसक प्रयास करने सबसे बड़ा प्रोत्साहन बना लें।
यह भी अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप अपने धर्म को उसके उचित और विश्वसनीय स्रोतों यानी अल्लाह की किताब और उसके दूत की प्रामाणिक शिक्षाओं (सुन्नत) से समझें। धर्म के दूत मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) को अपना आदर्श और लीडर बना लें, और उनकी जीवनी से सीखें ताकि आप अपना जीवन उनके जैसा बना सकें। जितना हो सके ज्ञानी लोगों और अन्य अच्छे व्यवहार करने वाले मुसलमानों की संगति मे रहने का प्रयास करें, और ज्ञान के लिए सभी मुसलमानों पर भरोसा न करें। आप जिन लोगों से ज्ञान ले रहे हैं उन्हें अच्छी तरह से जांच लें या जो आप पढ़ते हैं उसकी तुलना अल्लाह की किताब और मुहम्मद की सुन्नत और उनके सही निर्देशित उत्तराधिकारियों से करें। जो कुछ भी उनकी सुन्नत के अनुसार हो उसे ले लें और बाकी को छोड़ दें।
हम अल्लाह से प्रार्थना करते हैं कि वह हमारे दिलों को धर्म पर दृढ़ रखे, और हमारा मार्गदर्शन करने के बाद हमें पथभ्रष्ट की ओर न ले जाए। अल्लाह हमें सत्य को सत्य के रूप में दिखाए और उस पर चलने के लिए हमारा मार्गदर्शन करे, और वह हमें असत्य को असत्य के रूप में दिखाए और इससे बचने के लिए हमारा मार्गदर्शन करे।
- आस्था की गवाही
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- इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भागो का भाग 2)
- नए मुसलमान बने लोगों के कुछ सामान्य प्रश्न
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- हाल ही में परिवर्तित हुए लोग कैसे प्रार्थना करें (2 का भाग 1)
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- मुस्लिम समुदाय के साथ तालमेल बिठाना
- अच्छी संगति रखना
- अल्लाह पर विश्वास (2 का भाग 1): तौहीद की श्रेणियां
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- ईश्वरीय पूर्वनियति में विश्वास (2 का भाग 1)
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