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विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?

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विवरण: विश्वासियों की माताओं शब्द की परिभाषा और पैगंबर मुहम्मद की पहली चार पत्नियों की एक संक्षिप्त जीवनी।

द्वारा Aisha Stacey (© 2015 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 25 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,768 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·यह समझना कि हम विश्वासियों की माता शब्द का उपयोग कैसे और क्यों करते हैं।

·पैगंबर मुहम्मद की चार पत्नियों के जीवन और समय के बारे में जानना और समझना।

अरबी शब्द

·दुनिया - यह संसार, परलोक के संसार के विपरीत।

·आख़िरत - परलोक, मृत्यु के बाद का जीवन।

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·मुशफ - वह किताब जिसमें क़ुरआन निहित है।

MothersofBelievers_01.jpgविश्वासियों की माताएं कौन हैं? आपने उम्महत अल-मोमीनीन की अभिव्यक्ति सुनी होगी। इसका हिंदी अनुवाद 'विश्वासियों की माताएं' है और यह एक शीर्षक है जो पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की पत्नियों को संदर्भित करता है। वे इस दुनिया में पैगंबर की पत्नियां थीं और आख़िरत में भी उनकी पत्नियां रहेंगी। इनमें से प्रत्येक महिला ने इस्लाम के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और विभिन्न स्थितियों में उनका व्यवहार हमें आज लागू होने वाले कई सबक सिखाता है। वे हमें बताते हैं और सिखाते हैं कि अपने दैनिक जीवन में सुन्नत का पालन कैसे करें। उन्होंने धार्मिक और सामाजिक जीवन दोनों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और बहुतों को यह खुशखबरी मिली कि उनका अंतिम गंतव्य स्वर्ग होगा। वे हमें सत्यनिष्ठा, वफादारी, ईमानदारी और शालीनता सिखाते हैं और वे इस्लाम में महिलाओं की अनूठी स्थिति का प्रदर्शन करते हैं।

अल्लाह क़ुरआन में पैगंबर मुहम्मद की पत्नियों को संदर्भित करता है और वह उन्हें विश्वासियों की माता कहता है। अल्लाह कहता है, "पैगंबर अधिक समीप (प्रिय) है विश्वासिओं से, उनके प्राणों से और आपकी पत्नियां उनकी (विश्वासिओं की) मातायें हैं..." (क़ुरआन 33:6)। इस संदर्भ और शीर्षक का उपयोग करके पैगंबर मुहम्मद की पत्नियों को एक विशेष दर्जा दिया गया। उन्हें उच्च स्तर का सम्मान दिया गया और पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद उन्हें फिर से शादी करने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि कानूनी तौर पर उन्हें सभी मुस्लिम पुरुषों की मां माना जाता था।

·खुवाय्लिद की बेटी खदीजा[1] (जन्म 556 – मृत्यु 619 सीई)

“इमरान की बेटी मरयम (अपने समय की) महिलाओं में सबसे अच्छी थी और खदीजा (इस देश की) महिलाओं में सबसे अच्छी थी।”[2] खदीजा पैगंबर मुहम्मद की पहली पत्नी थीं, जो पैगंबर से एक धनी व्यापारी की विधवा के रूप में मिली थीं, लेकिन अपने आप में समृद्ध हो गई थीं। उन्होंने मुहम्मद को एक व्यापारिक एजेंट के रूप में काम पर रखा लेकिन जल्द ही उन्हें एक उपयुक्त पति के रूप में देखने लगी। अधिकांश स्रोतों के अनुसार जब उन्होंने शादी की तब वह लगभग 40 वर्ष की थीं और मुहम्मद लगभग 25 वर्ष के थे। खदीजा ने छह बच्चों को जन्म दिया, जिनमें वो दो बेटे शामिल थे जिनकी बचपन में ही मृत्यु हो गई थी। जब मुहम्मद को पहला रहस्योद्घाटन मिला तो खदीजा ने उनका समर्थन किया और उन्हें प्रोत्साहित किया और उनके प्रति वफादार बनी रही जब मक्का के कई प्रमुख लोग पैगंबर का विरोध कर रहे थे। जब तक वह जीवित रही, मुहम्मद ने और कोई शादी नही की। उन्होंने जीवन भर खदीजा को प्यार किया और याद किया।

·ज़मा की बेटी सवदाह ( जन्म अज्ञात – मृत्यु 674 सीई)

पच्चीस साल की शादी के बाद पैगंबर की पहली पत्नी खदीजा का निधन हो गया। वह एक छोटे परिवार को पालने के लिए अकेले रह गए थे और उन्होंने देखा कि वह लोगों को इस्लाम में बुलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रहे हैं, इसलिए उन्होंने फिर से शादी करने का फैसला किया। उन्होंने ज़मा की बेटी सवदाह नाम की एक विधवा को चुना।

सवदाह और उनके पहले पति इस्लाम में पहले धर्मांतरित होने वालों में से थे, जो एबिसिनिया में आकर बस गए थे। उनके पति का निर्वासन में निधन हो गया था और वह एक गरीब विधवा थी जिसके छोटे बच्चे थे। पैगंबर मुहम्मद ने सवदाह के गैर-मुस्लिम माता-पिता से उनकी शादी के लिए मंजूरी मांगी। माता-पिता ने सहमति व्यक्त की और फिर उन्हें स्वयं सवदाह से अनुमति मांगने का निर्देश दिया। इसके साथ ही, सवदाह और पैगंबर के घर एक हो गए और पैगंबर के पास पैगंबरी के मिशन को पूरा करने के लिए अधिक समय था। उनकी शादी के तीन साल बाद पैगंबर ने दूसरी शादी की। सवदाह को दो मौकों पर इस्लाम के लिए अप्रवासी होने का बड़ा सम्मान मिला, पहले एबिसिनिया और फिर मदीना में। पैगंबर ने जिन विधवाओं से शादी की, उनमें से वह पहली थीं। सवदाह एक दयालु, परोपकारी और खुशमिजाज महिला के रूप मे प्रतिष्ठित थी।

जिस समय सवदाह से पैगंबर मुहम्मद की शादी हुई थी, लगभग उसी समय अबू बक्र की बेटी आयशा के साथ पैगंबर मुहम्मद की सगाई हो गई थी। कुछ साल बाद आयशा एक युवा दुल्हन के रूप में उनके घर में शामिल हो गई और सवदाह ने उसका स्वागत किया; उन्होंने एक घनिष्ठ बंधन बनाया जो पैगंबर की मृत्यु के बाद भी अटूट रहा।

·अबू बक्र की बेटी आयशा (जन्म 612 – मृत्यु 678 सीई)

आयशा पैगंबर मुहम्मद के सबसे करीबी दोस्तों और समर्थकों में से एक जो अबू बक्र की बेटी थी। छोटी सी उम्र में उनसे हुई सगाई ने उस रिश्ते को और मजबूत कर दिया था। आयशा का पालन-पोषण एक मुस्लिम के रूप में हुआ था, जबकि अधिकांश करीबी सहाबा इस्लाम में परिवर्तित हुए थे। शादी के बाद वह और पैगंबर बेहद करीब हो गए और कई हदीस इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं। वह उनकी प्यारी पत्नी और इस्लाम की बेहद बुद्धिमान विद्वान थीं। उन्हें 2000 से अधिक हदीसों का वर्णन करने का श्रेय दिया जाता हैऔर वह अपनी तेज बुद्धि, सीखने के प्रति प्यार और त्रुटिहीन निर्णय के लिए विख्यात हो गई। आयशा पैगंबर मुहम्मद की उन तीन पत्नियों में से एक थी जिन्होंने पूरा क़ुरआन याद किया था। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों मे यह था कि वह एकमात्र पत्नी थी जो पैगंबर को रहस्योद्घाटन मिलने के समय उनके साथ थी और आयशा की बाहों में ही पैगंबर की मृत्यु हुई थी। आयशा 18 या 19 साल की उम्र में विधवा हो गई थी और उन्होंने 40 से अधिक वर्षों तक इस्लाम के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पढ़ाया।

·उमर इब्न अल-खत्ताब की बेटी हफ्सा (जन्म 605 – मृत्यु 665 सीई)

पैगंबर मुहम्मद की चौथी पत्नी हफ्सा थी, जो पैगंबर मुहम्मद के सबसे करीबी विश्वासपात्रों में से एक उमर इब्न अल-खत्ताब की बेटी थी। उनका विवाह एक चतुर राजनीतिक गठबंधन था। हफ़्सा की शादी कम उम्र में हो गई थी और उन्होंने एबिसिनिया और मदीना दोनों के प्रवास में भाग लिया था। दुख की बात है कि वह केवल अठारह वर्ष की उम्र में विधवा हो गई थी, लेकिन उस समय उन्हें पैगंबर मुहम्मद से शादी करने और अल-खत्ताब परिवार को पैगंबर के परिवार से जोड़ने का सम्मान मिला था। हफ्सा और आयशा पैगंबर मुहम्मद की पत्नियों में सबसे छोटे थे और दोनों का व्यक्तित्व एक समान था; वे मजबूत, दृढ़निश्चयी महिलाएं थीं। हफ्सा पढ़ने और लिखने दोनों में सक्षम थीं और आयशा की तरह ही पूरा क़ुरआन याद किया था। वह धर्मनिष्ठ और बुद्धिमान थी और क़ुरआन के छंदो पर विचार करने में घंटों बिताती थी। वह हफ्सा ही थी जिसे पहले मुशफ के संरक्षक होने का बड़ा सम्मान मिला था जो उनके पिता की मृत्यु के बाद उनको मिला था। हफ्सा और पैगंबर की शादी आठ साल की थी, और पैगंबर की मृत्यु के बाद वह और चौंतीस साल तक जीवित रहीं।



फुटनोट:

[1] अरबी में बिंत का अर्थ होता है उसकी बेटी।

[2] सहीह अल-बुखारी

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