अच्छी नैतिकता (2 का भाग 2)
विवरण: ये दो पाठ हमें बेहतर इंसान बनाने के लिए इस्लामी नैतिकता में विभिन्न प्रकार की अच्छी नैतिकता के बारे में बताएंगे।
द्वारा Imam Mufti (© 2015 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·10 और अच्छी इस्लामी नैतिकताओं के बारे में जानना।
अरबी शब्द
·हराम - निषिद्ध या वर्जित।
·इखलास - ईमानदारी, पवित्रता या एकांत। इस्लामी रूप से यह अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए हमारे उद्देश्यों और इरादों को शुद्ध करने को दर्शाता है। यह क़ुरआन के 112वें अध्याय का नाम भी है।
1.वादे निभाना
मानव समाज वादों और उनको पूरा करने के आश्वासन के बिना नहीं चल सकता। वादों और वचनों को पूरा करना अनिवार्य है, और उन्हें तोड़ना और विश्वासघाती तरीके से कार्य करना हराम है। अल्लाह कहता है,
“और वचन पूरा करो, वास्तव में, वचन के विषय में प्रश्न किया जायेगा।” (क़ुरआन 17:34)
वादों को पूरा करना इस दुनिया में सुरक्षा प्राप्त करने और रक्तपात को रोकने और मुसलमानों और गैर-मुस्लिमो दोनों के अधिकारों की रक्षा करने का एक साधन है, जैसा कि अल्लाह कहता है:
“और यदि वे धर्म के बारें में तुमसे सहायता मांगें, तो तुमपर उनकी सहायता करना आवश्यक है। परन्तु किसी ऐसी जाति के विरुध्द नहीं, जिनके और तुम्हारे बीच संधि हो तथा तुम जो कुछ कर रहे हो, उसे अल्लाह देख रहा है।” (क़ुरआन 8:72)
2.समय का पाबंद होना
बिना किसी संदेह के किसी की समय की पाबंदी का स्तर हमें बताता है कि वह समय के प्रति कितना सम्मान रखता है। समय की पाबंदी में अन्य लोगों के समय का सम्मान करना शामिल है। जब कोई किसी को मिलने या कुछ करने का समय देता है, तो उसे पूरा करने में तत्पर रहना चाहिए।
सामुदायिक स्तर पर यदि कोई कार्यक्रम है तो उसे निर्धारित समय के अनुसार ही शुरू करना चाहिए और जो लोग समय पर पहुंचते हैं उन्हें देर से आने वालों की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। इसी तरह कार्यक्रम को समय पर समाप्त करना चाहिए और अपेक्षा से अधिक समय तक लोगो को रोक कर नही रखना चाहिए ताकि लोगों को अन्य जगह जाने का समय मिल सके।
एक मुसलमान का दिन उन नमाज़ों के इर्द-गिर्द घूमता है, जिन्हें विशिष्ट समय पर पढ़ने की आवश्यकता होती है, और इससे मुसलमान को समय का पाबंद होने मे मदद मिलती है। अल्लाह की अन्य रचनाएं जैसे सूरज, चांद, रात और दिन एक अनुशासित क्रम का पालन करते हैं,
“क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह मिला देता है, रात्रि को दिनमें और मिला देता है दिन को रात्रि में तथा वश में कर रखा है सूर्य तथा चांद को, प्रत्येक चल रहा है एक निर्धारित समय तक और अल्लाह उससे, जो तुम कर रहे हो भली-भांति अवगत है।” (क़ुरआन 31:29)
3.शिष्ट और सम्मानजनक होना
सफल होने के लिए, इस्लाम मे आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति निर्माता का पालन करना सीखे और इस प्रकार मानवजाति, पर्यावरण, विश्वासियों और स्वयं के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करें।
सम्मान में शामिल है चुगली न करना, झूठ न बोलना, बदनाम न करना और गपशप जैसे प्रमुख पापों से पूरी तरह दूर रहना।
मानवता के प्रति सम्मान का अर्थ है उन पापों से दूर रहना जो लोगों के बीच कलह बोते हैं और विनाश की ओर ले जाते हैं। सम्मान मे शामिल है अपने भाइयों और बहनों के लिए वो पसंद करना जैसा हम अपने लिए पसंद करते हैं। सम्मान में दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना शामिल है जैसा हम अपने साथ व्यवहार की अपेक्षा करते हैं और जिस तरह से हम आशा करते हैं कि अल्लाह हमारे साथ दया, प्रेम और करुणा के साथ व्यवहार करेगा।
4.मिलनसार होना
वह मुसलमान जो वास्तव में अपने धर्म की शिक्षाओं को समझता है, वह सौम्य और मिलनसार होता है। वह लोगों के साथ घुल-मिल जाता है। वह समझता है कि लोगों के संपर्क में रहना और उनका विश्वास अर्जित करना 'मुसलमान का कार्य' है। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“क्या मै आप लोगों को न बताऊं कि आप मे से कौन मुझे सबसे प्रिय है और न्याय के दिन मेरे सबसे क़रीब होगा?" उन्होंने इसे दो या तीन बार दोहराया, और लोगो ने कहा, "हां, अल्लाह के दूत।" पैगंबर ने कहा: "आप में से जो व्यवहार और चरित्र में सबसे अच्छे हैं।”[1]
कुछ वर्णन इसमे जोड़ते हैं: “वे जो व्यावहारिक और विनम्र हैं, जो दूसरों के साथ मिलते हैं और जिनके साथ दूसरे सहज महसूस करते हैं।”
5.आत्म-नियंत्रण
आत्म-नियंत्रण एक ऐसा गुण है जो इस्लाम धर्म में अंतर्निहित है। हमें हर तरफ विकल्पों और प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है। हमें अपनी निगाहें नीची करने, अपने क्रोध को नियंत्रित करने और बोलने से पहले अपने शब्दों पर विचार करने के लिए कहा जाता है। उपवास का महीना रमजान आत्म-नियंत्रण का अभ्यास है। हम सुबह से सूर्यास्त तक खाने-पीने से परहेज करते हैं। हम भूखे-प्यासे रह सकते हैं लेकिन हम अल्लाह को खुश करने और अपना लचीलापन बनाने के लिए आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करते हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करना वो चीज है जिसे इस्लाम प्रोत्साहित नहीं करता है।
“…वे मनमानी कर रहे हैं और उससे अधिक कुपथ कौन है, जो अपनी मनमानी करे, अल्लाह की ओर से बिना किसी मार्गदर्शन के?” (क़ुरआन 28:50)
6.मददगार और सहयोगी होना
आइए एक साथ काम करें: खेल के मैदान पर, कार्यालय में, बच्चों की परवरिश करने मे। मानवजाति दूसरों के सहयोग के बिना जीवित नहीं रह सकती। हमें एक दूसरे की जरूरत है। प्रत्येक पेशेवर को दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है। सहयोग से जीवन सुचारू रूप से चलता रहता है; लेकिन सहयोग नहीं मिला तो जीवन थम जाएगा। इस्लाम सहयोग का आह्वान करता है और मुसलमानों से अपनी एकता बनाए रखने के लिए सहयोग करने का आग्रह करता है। अल्लाह कहता है:
“सदाचार तथा संयम में एक-दूसरे की सहायता करो तथा पाप और अत्याचार में एक-दूसरे की सहायता न करो” (क़ुरआन 5:2)
7.सहानुभूति रखना
सहानुभूति दूसरों की भावनाओं को पहचानना, समझना और साझा करने की क्षमता है, जैसे किसी और के जैसा महसूस करना। क्या इस्लाम में सहानुभूति को बढ़ावा दिया जाता है? बिल्कुल! हमारे पैगंबर मुहम्मद के बारे में इस छंद पर विचार करें:
“तुम्हारे पास तुम्हीं में से अल्लाह का एक दूत आ गया है। उसे वो बात भारी लगती है, जिससे तुम्हें दुख हो, वह तुम्हारी सफलता की लालसा रखते हैं और ईमान वालों के लिए करुणामय दयावान् हैं।” (क़ुरआन 9:128)
हमारे पैगंबर हमेशा हमारी पीड़ा को महसूस करते और उनके सहानुभूतिपूर्ण स्वभाव के लिए अल्लाह उनकी प्रशंसा करता है।
पैगंबर ने खुद हमें एक दूसरे के लिए सहानुभूति महसूस करने के लिए प्रोत्साहित किया था, उन्होंने कहा था:
“आपस में दया, करुणा और सहानुभूति में विश्वासी एक शरीर की तरह हैं। जब किसी एक अंग में दर्द होता है, तो पुरे शरीर मे बुखार और थकावट होती है।”[2]
8.विनयशीलता
सभी पैगंबरो और दूतों ने विनयशीलता को प्रोत्साहित किया, जैसा कि पैगंबर ने कहा:
“वास्तव में पहले के पैगंबरो की शिक्षाओं में से जो आप तक पहुंची है, 'यदि आप शील नहीं है, तो आप जो कर सकते हैं करें।”[3]
मनुष्य में लज्जा या शीलता की भावना बुरे आचरण से आत्मा का सिकुड़ना है, एक ऐसा गुण जो किसी को दूसरों के प्रति बुरा व्यवहार करने से रोकता है या दूसरों को आपके प्रति बुरा व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस्लामी नैतिकता विनयशीलता को केवल कपड़े पहनने और लोगों के सामने शील बनने से अधिक मानती है; बल्कि यह एक मुस्लिम की भाषा, पोशाक और आचरण में दिखता है: सार्वजनिक रूप से लोगों के संबंध में, और निजी तौर पर अल्लाह के संबंध में।
9.ईमानदारी
इखलास (ईमानदारी) आंतरिक और बाहरी रूप से सिर्फ अल्लाह की खुशी के लिए कार्य करना है। इसमे लोगों की नजरो को भूल जाना है, और यह ध्यान न देना कि वे आपके कर्मों को देख रहे हैं या नहीं, आपके दिमाग में केवल यही होना चाहिए कि अल्लाह आपको देख रहा है। इस संबंध में क़ुरआन में सुंदर छंद हैं, जहां अल्लाह स्वर्ग में धर्मी लोगों का वर्णन करता है:
“जो (संसार में) पूरी करते रहे मनोतियां और डरते रहे उस दिन से जिसकी आपदा चारों ओर फैली हुई होगी। और भोजन कराते रहे उस (भोजन) को प्रेम करने के बावजूद, निर्धन, अनाथ और कैदी को (अपने मन में ये सोचकर) हम तुम्हें भोजन कराते हैं केवल अल्लाह की प्रसन्नता के लिए। तुमसे नहीं चाहते हैं कोई बदला और न कोई कृतज्ञता।” (क़ुरआन 76:7-9)
10.बुराई को अच्छाई से दूर करना
अल्लाह ने उन लोगों की प्रशंसा की है जो अच्छे कर्मों के साथ बुराई का जवाब देते हैं। जो लोग बुराई को अच्छाई कर के दूर भगाते हैं, वे देखेंगे कि उनके दुश्मन उनके दोस्त बन रहे हैं। अल्लाह कहता है,
“और समान नहीं होते पुण्य तथा पाप, आप दूर करें (बुराई को) उसके द्वारा, जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा आपके तथा जिसके बीच बैर हो, मानो वह हार्दिक मित्र हो गया। और ये गुण उन्हीं को प्राप्त होता है, जो सहन करें तथा उन्हीं को होता है, जो बड़े भाग्यशाली हों।” (क़ुरआन 41:34-35)
अल्लाह ने विश्वासियों को कई छंदो मे याद दिलाया है कि धैर्यवान, दयालु और क्षमाशील होकर भलाई कर के बुराई को दूर भगाएं।
पिछला पाठ: अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
अगला पाठ: इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 2)
- जीवन का उद्देश्य
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 1)
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 2)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 1)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 2)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 1)
- क़ुरआन के गुण (2 का भाग 2)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 1)
- अच्छी नैतिकता (2 का भाग 2)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 2)
- इस्लाम मे सोशल मीडिया
- आराम, मस्ती और मनोरंजन
- ज्योतिष और भविष्यवाणी
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद के चमत्कार (2 का भाग 2)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 1)
- बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 2)
- उपवास और दान के आध्यात्मिक लाभ
- सपने की व्याख्या
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 1)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 2)
- पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 3)