तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
विवरण: मक्का की बड़ी तीर्थयात्रा, हज, की वो जरूरी जानकारी जो हर नए मुसलमान को पता होना चाहिए, इसकी एक आसान मार्गदर्शिका।
द्वारा Abdurrahman Murad (© 2016 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·हज करने का तरीका सीखना।
अरबी शब्द
·फज्र , ज़ुहर, असर, मगरिब, ईशा - इस्लाम में पांच दैनिक नमाज़ों के नाम।
·हज - मक्का की तीर्थयात्रा जहां तीर्थयात्री कुछ अनुष्ठानों का पालन करते है। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।
·काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।
·तलबियाह - तीर्थयात्रा के दौरान मुसलमानों द्वारा किया जाने वाल जप।
·सई - यह सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच चलना और दौड़ना है।
·ईद - त्योहार या उत्सव। मुसलमान दो प्रमुख धार्मिक अवकाश मनाते हैं, जिन्हें ईद-उल-फितर (जो रमजान के बाद आता है) और ईद-उल-अज़हा (जो हज के समय होता है) कहा जाता है।
·तवाफ़ - काबा के चारों ओर परिक्रमा। यह सात बार किया जाता है।
9वां दिन और उसके बाद
9वां दिन वास्तव में एक अनमोल दिन है, इसलिए व्यक्ति को इसके हर पल का अच्छे से उपयोग करना चाहिए! सबसे अच्छी चीजों में से एक यह है कि वे इस जीवन में और अगले जीवन में जो कुछ भी चाहते हैं, उसके लिए अल्लाह से प्रार्थना करें। कुछ लोगों को यह लगता है कि सांसारिक धन के लिए अल्लाह से मांगना अनुचित है, लेकिन ऐसा करने में कोई पाप नहीं है। वास्तव में, पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने अनस (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) के लिए प्रार्थना की थी और मांगा था: "ऐ अल्लाह उसके धन में वृद्धि कर, और उसे औलाद दे और उसमें उसे आशीर्वाद दें।”[1] पश्चाताप करने का अतिरिक्त प्रयास करना चाहिए और अल्लाह से प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वे अपने जीवन में बदलाव करेंगे।
सूर्यास्त के समय, अराफा के क्षेत्र से मुजदलिफा[2] के लिए निकलना चाहिए। चूंकि कोई हज के समूह के साथ हो सकता है, वो कुछ समय पहले निकल सकते हैं। मुजदलिफा में पहुंचने पर मग़रिब की नमाज़ और ईशा की नमाज़ (उन्हें मिलाकर ईशा को दो रकातो तक छोटा करना) पढ़ना चाहिए, ताकि इसके बाद रात भर का अच्छा आराम मिल सके। एक सामान्य गलती जो कई लोग करते हैं, वह यह है कि वे अपनी रात चैटिंग, सेल्फी लेने या नेट पर सर्फिंग करने मे बिताते हैं। यह अनुचित है, जैसा कि पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने यह संकेत दिया कि इस रात को जितना हो सके आराम करना चाहिए। तीर्थयात्रा के इस चरण में तलबियाह कहना जारी रखना चाहिए।
दसवां दिन (ईद का दिन)
तीर्थयात्रियों के लिए यह 'रोमांच से भरा' दिन होता है। अधिकांश हज अनुष्ठान यहां किए जाते हैं। यह सबसे अच्छा है कि कोई इस दिन के अनुष्ठानों का पालन उस तरीके से करे जिस तरह से पैगंबर मुहम्मद ने उन्हें किया था।
फज्र की नमाज़ के लिए उठने और नमाज़ पढ़ने के बाद, उस समय का उपयोग अल्लाह से प्रार्थना करने के लिए करना चाहिए, साथ ही इस दिन पत्थर फेंकने के रिवाज़ के लिए 7 छोटे आकार के पत्थरों को इकट्ठा करना चाहिए। इससे कुछ अधिक लेने की सलाह दी जाती है।
आमतौर पर इसके बाद हज समूह तीर्थयात्रियों को वापस मीना ले जाता है, जहां वे मक्का के सबसे नजदीक के सबसे बड़े स्तंभ को पत्थर मारते हैं। इस स्तंभ को जमरातुल-अकबा के नाम से जाना जाता है। यह ध्यान देना चाहिए कि ये स्तंभ 'शैतान' नहीं हैं, बल्कि केवल एक स्तंभ हैं। इस रिवाज़ के पीछे का कारण पैगंबर इब्राहिम और इस्माइल की कहानी में पाई जा सकती हैं (उन दोनों पर शांति हो)। शैतान ने इस्माइल से बात की थी और उसे इन तीन स्थानों पर अपने पिता की अवज्ञा करने के लिए मनाने की कोशिश की थी। आज के समय मे अपने पैगंबर की आज्ञा का पालन करने के लिए पत्थर मारे जाते हैं। पत्थर फेंकने के साथ-साथ 'अल्लाहु अकबर' कहना होता है।
जमरातुल-अकबा पर पत्थर फेंकने के बाद, व्यक्ति को बलि के जानवरों का वध करना होता है। आजकल, यह प्रक्रिया कमोबेश एक बड़े निगम के माध्यम से स्वचालित है जो तीर्थयात्रियों की ओर से ये काम करता है। ये हो जाने के बाद, व्यक्ति को अपने बालों को समान रूप से शेव या ट्रिम करना होता है। महिलाओं के लिए, कुछ बालों को काटना पर्याप्त है।
ये क्रियाएं पूरी होने के बाद, व्यक्ति हज की तवाफ अल-इफादाह और सई को पूरा करने के लिए हरम की ओर बढ़ता है। ये वो पांच कार्य है जो इ2स दिन करने चाहिए। तवाफ़ करने के बाद, व्यक्ति को तलबियाह कहना बंद कर देना चाहिए और इसके बदले कहना चाहिए: "अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह। अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, व लिल-लाहिल-हम्द।” [3]
इस्लाम की असीम दया के कारण, पैगंबर ने हमें परमिट दिया है जिससे हमारे लिए यह महान कार्य आसान हो गया है। कल्पना कीजिए, अगर सभी तीर्थयात्रियों को इस आदेश का सख्ती से पालन करना होता, तो लोगों को कितनी ज्यादा कठिनाई होती! वास्तव में, पैगंबर के कई साथियों ने उनसे संपर्क किया था और पैगंबर को सूचित किया था कि उन्हें इस दिन के कार्यों को उनके क्रम अनुसार नहीं किया है। पैगंबर ने उनसे कहा: "आप ऐसा कर सकते हैं, और आप पर कोई पाप नहीं है!" बल्कि एक साथी उनके पास गया और कहा: "ऐ अल्लाह के पैगंबर, मैंने तवाफ करने से पहले सई कर लिया है !" पैगंबर ने कहा: "आप ऐसा कर सकते हैं, और आप पर कोई पाप नहीं है!”[4]
यदि यह तीर्थयात्री का पहला हज है, तो उन्हें अपने समूहों के साथ रहना चाहिए। हज के किसी भी चरण के दौरान खो जाना एक यादगार अनुभव होगा जिससे आप बचना चाहेंगे!
11वां , 12वां और 13वां दिन
इन दिनों को तश्रीक के दिन के रूप में जाना जाता है। पैगंबर मुहम्मद ने इन दिनों का वर्णन करते हुए कहा: "ये खाने, पीने और अल्लाह के स्मरण के दिन हैं।”[5]
इन धन्य दिनों में जो सबसे मुख्य काम कर सकते हैं, वह है तीनों जमारत पर पत्थर फेंकना। इसके लिए मीना से ही पत्थर इकठ्ठा करना होता है। आपको अपने तंबू के कालीनों के नीचे उपयुक्त आकार के पर्याप्त कंकड़ मिल जायेंगे! जब सूर्य अपने चरम से ढलने लगता है, तो वह समय पत्थर फेंकने के रिवाज़ का होता है। पहले सबसे छोटे यानि 'जमारत अल-सुघरा' से शुरुआत करते हैं, इस पर सात पत्थर फेंकते हैं और हर बार 'अल्लाहु अकबर' कहते हैं। इसके बाद थोड़ी दूर जाकर लंबी प्रार्थना करना होता है। वास्तव में, यह एक ऐसा समय होता है जब अल्लाह किसी की प्रार्थना स्वीकार करता है।
इसके बाद, दूसरा स्तंभ 'जमारत अल-वुस्ता' है, जो बीच का स्तंभ है। जो पहले स्तंभ पर किया था वही यहां भी करना है। प्रार्थना करने के बाद, व्यक्ति 'जमारत अल-अकबा' या मक्का के निकटतम स्तंभ की ओर जाता है। यहां भी वैसा ही करना है, सिवाय इसके कि यहां पत्थर फेंकने के बाद प्रार्थना नही करना है।
इसी के साथ इस दिन के मुख्य रिवाज़ पुरे होते हैं। इसके अलावा, प्रत्येक नमाज़ को उसके समय के अनुसार पढ़ना है, और चार रकात वाली नमाज़ को केवल दो रकात तक छोटा करना है। यदि कोई अतिरिक्त दिन रुकना चाहता है तो इन चरणों को 12वें दिन और 13वें दिन दोहराया जाता है।
अंतिम चरण
महान अल्लाह कहता है:
“तथा इन गिनती के कुछ दिनों में अल्लाह को स्मरण (याद) करो, फिर जो व्यक्ति शीघ्रता से दो ही दिन में (मीना से) चल दे, उसपर कोई दोष नहीं और जो विलम्ब करे, उसपर भी कोई दोष नहीं, उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह से डरा तथा तुम अल्लाह से डरते रहो और ये समझ लो कि तुम उसी के पास प्रलय के दिन एकत्र किए जाओगो।” (क़ुरआन 2:203)
इसके आधार पर, कोई भी 12 या 13 तारीख को अपना हज पूरा कर सकता है। यदि कोई 12वें दिन अपना हज पूरा करना चाहता है, तो उसे जमारत पर पत्थर फेंकने के बाद काबा की ओर प्रस्थान करना चाहिए और विदाई तवाफ करना चाहिए। पैगंबर ने कहा:
“आप जो आखिरी रस्म (मक्का छोड़ने से पहले) करें, वो इस घर (यानी काबा) का तवाफ होना चाहिए।”[6]
यदि कोई 13 तारीख को निकलने वाला है तो उसे 13 तारीख को यह रस्म करना चाहिए। यदि कोई तीर्थयात्री लंबे समय तक मक्का में रहने वाला है, तो उन्हें मक्का छोड़ने से पहले यह तवाफ करना चाहिए।
महान पुरस्कार
पैगंबर से पूछा गया: "हज के रस्म करने वाले का इनाम क्या है?" उन्होंने जवाब दिया: "जब कोई व्यक्ति हज करने के लिए अपना घर छोड़ता है, उसे हर कदम पर इनाम मिलता है या अल्लाह उसके हिसाब-किताब से एक पाप को हटा देता है। जब कोई अराफा पर खड़ा होता है, तो अल्लाह सबसे निचले आसमान पर आता है और कहता है: 'मेरे दासों को देखो, जो उलझे हुए बालों के साथ धूल-धूसरित हैं। तुम (अर्थात स्वर्गदूत) मेरे गवाह रहो कि मैंने उनके सभी पापों को क्षमा कर दिया है, भले ही वे आकाश के सितारों के समान असंख्य हों या आलिज के रेगिस्तान में रेत के कणों के समान हों। और जब कोई जमारत पर पत्थर फेंकेगा, तो मेरे दासों को पुनरुत्थान के दिन तक न पता चलेगा कि मैंने इसका क्या प्रतिफल दिया है!' तीर्थयात्री के सिर से गिरने वाले प्रत्येक बाल के साथ (गंजे होने पर) तीर्थयात्री को पुनरुत्थान के दिन एक प्रकाश प्राप्त होगा! विदाई तवाफ पूरा करने के बाद, वह ऐसी पाप-मुक्त अवस्था में लौट जायेगा, मानो वह उसी दिन पैदा हुआ है।”[7]
फुटनोट:
[1] सहीह अल-बुखारी
[2] मीना और अराफा के बीच का एक क्षेत्र। तीर्थयात्री अराफा से निकलने के बाद यहीं ठहरते हैं।
[3] अर्थ: अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह के सिवा कोई पूज्य देवता नहीं है, अल्लाह सबसे बड़ा है, अल्लाह सबसे बड़ा है, और सारी प्रशंसा अल्लाह के लिए है।
[4] अबू दाऊद
[5] अबू दाऊद
[6] सहीह मुस्लिम
[7] तरग़िब
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