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पैगंबर मुहम्मद की विस्तृत जीवनी - मक्का अवधि (3 का भाग 2)

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विवरण: पैगंबरी मिलने से पहले और पैगंबरी मिलने के बाद से मुसलमानों के मक्का छोड़ने तक पैगंबर मुहम्मद के जीवन का विवरण देने वाला तीन-भाग का पाठ। भाग 2: उनकी जवानी, पहला रहस्योद्घाटन और गुप्त आमंत्रण।

द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 26 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,668 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·पैगंबर की शादी और उनके परिवार के बारे में जानना।

·रहस्योद्घाटन प्राप्त करने से पहले पैगंबर की एकांतता के बारे मे जानना और जानना की रहस्योद्घाटन कैसे शुरू हुआ।

·प्रारंभिक चरणों मे इस्लाम की ओर गुप्त आमंत्रण के बारे में जानना।

विवाह और परिवार

Detailed-Biography-of-Prophet-Muhammad-2.jpgखदीजा नाम की एक धनी महिला ने पैगंबर को सीरिया मे अपने माल का व्यापार करने के लिए काम पर रखा था। पैगंबर को सौदों मे से कमीशन मिलता था। उन्होंने इस कार्य को इतनी सटीकता और ईमानदारी के साथ किया कि खदीजा ने बाद मे अपने एक मित्र के जरिये पैगंबर से शादी करने का प्रस्ताव रखा। खदीजा को दूसरे पति की मृत्यु के बाद से कई प्रस्ताव मिले थे, लेकिन उन्होंने उन सभी को अस्वीकार कर दिया था। हालांकि, उन्होंने मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) मे कुछ खास देखा था, और पैगंबर ने विवाह की सहमति दे दी।

मुहम्मद को अपने दहेज के भुगतान के लिए आवश्यक धन जुटाना पड़ा जो लगभग 500 दिरहम था। वह पच्चीस वर्ष के थे, जबकि खदीजा न केवल उससे काफी बड़ी थी, बल्कि उनकी दो बार पहले शादी हो चुकी थी।

इन सब चीज़ो ने पैगंबर को नहीं रोका, क्योंकि खदीजा के पास वे सभी गुण थे जो वह चाहते थे: एक धर्मी चरित्र, महान वंश, सौंदर्य और धन। मुहम्मद और खदीजा ने विवाह कर लिया और अंततः उनके छह बच्चे हुए: दो लड़के और चार लड़कियां। दोनों लड़कों की शैशवावस्था में ही मृत्यु हो गई, जबकि केवल एक बेटी ही अपने पिता से अधिक जीवित रही। फिर भी, दो लड़कों की जगह अन्य दो लड़को ने ले ली। ज़ायद इब्न हारिश नाम का एक युवा लड़का अपने परिवार से अलग हो गया और मक्का मे आ गया। मुहम्मद और खदीजा ने उसे गोद लेने का फैसला किया और वह जायद इब्न मुहम्मद के नाम से जाना जाने लगा।

कुछ साल बाद, मक्का मे अकाल पड़ा और यह बहुत मुश्किल साबित हुआ, खासकर अबू तालिब के लिए जिन्हें एक बड़े परिवार का भरण-पोषण करना था। उनका बोझ कम करने के लिए, मुहम्मद और खदीजा ने उनके एक बेटे अली को अपने घर में पनाह दी और उसे अपने बच्चे की तरह पाला। इस प्रकार, वे आठ लोगों का एक सुखी परिवार बन गए।

बहुदेववाद के प्रति उनका विरोध

मुहम्मद ने कई वर्षों तक एक व्यापारी के रूप में अपना पेशा जारी रखा और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ एक सादा जीवन व्यतीत किया। वह अपने समाज में व्याप्त अनैतिकता से व्यथित थे। परन्तु उनकी प्रजा के सब दोषों में सबसे अधिक घृणित दोष मूर्तिपूजा थी। लोग अपने हाथों से बनाई गई मूर्तियों और चित्रों की पूजा करते थे, और बस जुबान से अल्लाह का नाम लेते थे। पैगंबर तीर्थयात्रा के दौरान अरबों द्वारा किए जाने वाले सूखे अनुष्ठानों से भी चिंतित थे।

वास्तव मे, वह अकेल मूर्ति पूजा से घृणा नही करते थे। वरकाह इब्न नौफल ने भी मूर्तिपूजा को त्याग दिया था और ईसाई बन गए थे। वह हिब्रू मे यहूदियों और ईसाइयों के धर्मग्रंथों को पढ़ने में सक्षम थे और उसने इस मार्ग पर चलने का फैसला किया। यह अज्ञात है कि उसने किस प्रकार के ईसाई धर्म का पालन किया, लेकिन चूंकि वह एक विद्वान थे, इसलिए शायद उसका अपना विचार था कि पैगंबर यीशु ने वास्तव में क्या सिखाया था।

रहस्योद्घाटन

रमजान के महीने के अंत के करीब एक रात, मुहम्मद प्रार्थना कर रहे थे और ध्यान कर रहे थे जब उन्हें गुफा मे किसी और की उपस्थिति महसूस हुई। "पढ़ो!", एक आवाज का आदेश आया। "मैं पढ़ नहीं सकता," मुहम्मद ने ईमानदारी से जवाब दिया, क्योंकि वह अधिकांश अरबों की तरह पढ़े लिखे नही थे। किस चीज़ ने उन्हें पकड़ लिया और इतनी जोर से दबाया कि वह और दर्द नहीं सह सकते थे, फिर उन्हें छोड़ दिया गे। "पढ़ो!", आवाज ने फिर से आदेश दिया। "मैं पढ़ नहीं सकता," मुहम्मद ने एक बार फिर जवाब दिया।

उन्हें दूसरी बार फिर पकड़ लिया गया और जकड़ा गया। यह कोई सपना नहीं था। अगर सपना होता तो उनके जगाने के लिए एक चुटकी ही काफी होती।

जब वह और दर्द बर्दाश्त नहीं कर सके, तो उन्हें छोड़ दिया गया। "पढ़ो!", आवाज ने तीसरी बार आदेश दिया। मुहम्मद डर गए। यह क्या है? क्या हो रहा था? सवाल बहुत थे लेकिन सोचने का समय नहीं था। उन्हें जल्दी से जवाब देना था, "मैं पढ़ नहीं सकता।" एक बार फिर उन्हें जबरदस्त ताकत से पकड़ लिया गया, और फिर छोड़ दिया गया। आवाज ने निम्नलिखित शब्द बोले: “अपने पालनहार के नाम से पढ़, जिसने पैदा किया। जिस ने मनुष्य को रक्त को लोथड़े से पैदा किया। पढ़, और तेरा पालनहार बड़ा दया वाला है। जिस ने लेखनी के द्वारा ज्ञान सिखाया। इन्सान को उसका ज्ञान दिया जिस को वह नहीं जानता था। (क़ुरआन 96:1-5)

यह रहस्योद्घाटन के दूत, गेब्रियल (जिब्रील) थे। यह स्पष्ट था कि उसने जो सुना था उसे दोहराने के लिए कहा जा रहा था, और उसने पूरी तरह से पालन किया। वे शब्द पूरी तरह से उनकी स्मृति में अंकित थे। तब जिब्रील चले गए, और पैगंबर फिर से अकेले थे।

अभी क्या हुआ? वे छंद क्या थे? मुहम्मद एक अरबी होने के कारण कविता को जानते थे, लेकिन यह न तो कविता थी और न ही गद्य। विचार करने का समय नहीं था। वह डर गए और पहाड़ पर से चले गए। वह सीधे अपनी पत्नी के घर गए, जो उन्हें सबसे ज्यादा दिलासा दे सकती थी। "मुझे छुपाओ! मुझे छुपाओ!" खदीजा ने उनके ऊपर तब तक एक कंबल रखा जब तक वह शांत नहीं हो गए। फिर उन्होंने खदीजा को अपने इस अनुभव के बारे में बताया और स्वीकार किया कि वह डर गए थे। पैगंबर ने उन छंदों को याद किया, शब्द दर शब्द। खदीजा ने तुरंत उन्हें यह कहते हुए सांत्वना दी कि, “अल्लाह तुम्हारा अपमान नहीं करेगा। आप अपने परिवार के प्रति दयालु हैं, आप कमजोरों की सहायता करते हैं, आप जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं, आप अपने मेहमानों के प्रति उदार हैं और सच्चाई के लिए संघर्ष करते हैं।" उनका दृढ़ विश्वास था कि अल्लाह एक नेक आदमी के साथ कुछ भी बुरा नहीं होने देगा।

गुप्त आमंत्रण

पैगंबर ने अपने शेष जीवन मे रहस्योद्घाटन प्राप्त करना जारी रखा। उन्होंने शुरू में केवल उन लोगों पर विश्वास किया जिनके बारे मे वह जानते थे कि उन पर भरोसा किया जा सकता है। मक्का मूर्तिपूजा का केंद्र था और रातों-रात चीजों को बदलना आसान नहीं होता। मिशन को दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता थी और इसलिए सिर्फ उन लोगों के लिए एक गुप्त आमंत्रण से शुरू हुआ जो संभवतः रुचि रखते थे। पैगंबर ने अपने घर से शुरुआत की। वरका से मुलाकात के बाद, खदीजा पहले से ही आश्वस्त थी कि उनका पति वास्तव में एक पैगंबर है। वह पिछले पंद्रह वर्षों से अपने पति को अंदर और बाहर जानती थी और उनके लिए यह स्पष्ट था कि वह न तो झूठे हैं और न ही किसी के बस मे है। इसलिए उन्हें प्रथम विश्वासी माना जाता था। फिर उनके चचेरे भाई अली और उनके दत्तक पुत्र जायद ने उनका अनुसरण किया। वे दोनों युवा वयस्क थे और एक धोखेबाज और एक सच्चे आदमी के बीच अंतर कर सकते थे।

परिवार के बाहर संदेश को स्वीकार करने वाला पहले व्यक्ति अबू बक्र थे। वह कई सालों तक पैगंबर के सबसे अच्छे दोस्त रहे थे। वह कुलीन वंश के व्यापारी थे और एक परोपकारी और विशेषज्ञ वंशावलीविद् होने के कारण पूरे मक्का में उनका सम्मान किया जाता था। अबू बक्र ने तुरंत अपने करीबी सहयोगियों को पैगंबर के बारे मे बताना शुरू कर दिया। काफी लोगो ने स्वीकार किया जैसे कि अल-जुबैर, अब्द अल-रहमान, सईद और तलहा। यह संदेश मक्का मे फैलना शुरू हो गया था, हालांकि गुप्त रूप से।

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