पश्चाताप (3 का भाग 1): मोक्ष का द्वार
विवरण: इस्लामी दृष्टिकोण से मोक्ष का अर्थ। भाग 1: पाप और मोक्ष पर इस्लामी शिक्षाएं।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·पापों के संबंध में इस्लामी दृष्टिकोण जानना।
·इस्लामी दृष्टिकोण से पश्चाताप का अर्थ जानना।
·पश्चाताप के संबंध में अल्लाह की दया को समझना।
अरबी शब्द
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·तौबा - पश्चाताप।
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
पाप और मोक्ष सभी धर्मों में गहन मानवीय चिंता के मुद्दे हैं। जब तक किसी की सही और गलत समझने की भावना विकृत नहीं होती, मनुष्य अपने पापों के प्रति सचेत रहता है और उसे लगता है कि उसे इसके लिए सजा मिलेगी। मनोवैज्ञानिक रूप से, मनुष्य जब कोई बुरा व्यवहार करता है तो उसे अपराधबोध महसूस होता है। स्वाभाविक रूप से, सभी धर्म मनुष्य को पाप के बोझ से मुक्त करने की कोई न कोई विधि बताते हैं। आम तौर पर, वे या तो सिर्फ धर्म के द्वारा मोक्ष की गारंटी देते हैं या व्यक्तिगत कार्यों और प्रयास के द्वारा।
इस पाठ में, हम पाप और मोक्ष पर इस्लामी शिक्षाओं के बारे मे सीखेंगे। दूसरे पाठ में, हम पश्चाताप के वैध होने की शर्तों के बारे मे सीखेंगे। तीसरे और आखिरी भाग में, हम क़ुरआन और पैगंबर से पश्चाताप करने के कुछ सुंदर शब्द सीखेंगे।
पाप क्या है?
इस्लाम पापों को कैसे देखता है? इस्लाम में प्रमुख पाप क्या हैं?
सभी पाप एक समान नहीं होते। उन्हें गंभीर या प्रमुख पापों और निम्न पापों में वर्गीकृत किया गया है। एक बड़ा पाप वह है जिसके लिए ईश्वर नरक में दंड देगा, अपना श्राप देगा, या अप्रसन्न होगा। बाकी को निम्न पाप माना जाता है।
कुछ बड़े पाप वास्तव में किसी व्यक्ति को इस्लाम से बाहर कर सकते हैं। इसका एक उदाहरण शिर्क है, जो सबसे बड़ा पाप है। मानव सृष्टि का उद्देश्य केवल अल्लाह की पूजा करना है। शिर्क इस उद्देश्य की अवहेलना करता है। न तो अल्लाह के अलावा किसी की पूजा की जा सकती है और न ही अल्लाह के साथ किसी और की पूजा की जा सकती है। एक बार पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने पूछा:
“क्या मैं आपको सबसे बड़े पापों के बारे में न बताऊं?”
साथियों ने उत्तर दिया, 'हां।’
पैगंबर ने समझाया: "अल्लाह के साथ किसी और की भी पूजा करना और अपने माता-पिता के प्रति आज्ञाकारी न होना।” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
कुछ प्रमुख पाप जादू टोना, हत्या, नशीला पदार्थ पीना, समलैंगिकता, व्यभिचार और चोरी हैं।
पश्चाताप क्या है?
पश्चाताप पाप से दूर होने और अपने जीवन को ठीक करने की प्रक्रिया है। पश्चाताप अफसोस और दुख महसूस करना है। इसके लिए अरबी शब्द तौबा है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'वापस आना'। इस्लामी रूप से, अल्लाह ने जो कार्य मना किया है उसे छोड़कर और जिसका आदेश दिया है उस पर लौटने को पश्चाताप कहते हैं।
इस्लाम का एक मूल सिद्धांत यह है कि मनुष्य जब पैदा होता है तो वह पापों से मुक्त और अल्लाह के अधीन होता है, जिसे फितरा कहते हैं:
“हर बच्चा फितरा की स्थिति में पैदा होता है, फिर उसके माता-पिता उसे यहूदी, ईसाई या मागिआन बनाते हैं।” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
पाप कर के मनुष्य अल्लाह से दूर हो जाता है, और पश्चाताप से वह ईश्वर की ओर 'वापस' जाता है। पश्चाताप से वह फितरा की अपनी मूल, पापरहित स्थिति में लौट आता है।
इस्लाम में, पश्चाताप पूजा का एक ऐसा कार्य है जिसके माध्यम से मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है, जैसा कि अल्लाह विश्वासियों को आदेश देते हैं:
“और तुमसब मिलकर अल्लाह से क्षमा मांगो, ऐ विश्वासियों! ताकि तुम सफल हो जाओ।” (क़ुरआन 24:31)
इस्लाम के पैगंबर ने अपने साथियों को नियमित रूप से पश्चाताप कर के अल्लाह की ओर मुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया:
“ऐ लोगों, पश्चाताप में अल्लाह की ओर मुड़ो और उससे क्षमा मांगो।” (सहीह मुस्लिम)
ईश्वरीय दया की दानशीलता
सारी सृष्टि ईश्वरीय दया के अंतर्गत है। दया हम में से हर एक के बहुत करीब है, ये हमें अपने अंदर समाने की प्रतीक्षा में रहती है जब भी हम तैयार हों। इस्लाम मनुष्य की पाप करने की प्रवृत्ति को समझती है, क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य को कमजोर बनाया है। पैगंबर ने कहा:
“आदम के सभी वंशज बार-बार गलती करते हैं, लेकिन जो बार-बार गलती करते हैं उनमें से सर्वश्रेष्ठ वे हैं जो बार-बार पश्चाताप करते हैं।” (अल-तिर्मिज़ी, इब्न माजा, अहमद, हकीम)
इसके साथ ही अल्लाह हमें बताता है कि वह पापों को क्षमा करता है:
“आप कह दें मेरे उन भक्तों से, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किये हैं कि तुम निराश न हो अल्लाह की दया से। वास्तव में, अल्लाह क्षमा कर देता है सब पापों को। निश्चय वह अति क्षमी, दयावान् है’” (क़ुरआन 39:53)
पैगंबर मुहम्मद को यह खुशखबरी देने को कहा गया था:
“आप मेरे भक्तों को सूचित कर दें कि वास्तव में, मैं बड़ा क्षमाशील दयावान् हूं।” (क़ुरआन 15:49)
1. अल्लाह पश्चाताप कबूल करता है
“और अल्लाह चाहता है कि तुमपर दया करे तथा जो लोग आकांक्षाओं के पीछे पड़े हुए हैं, वे चाहते हैं कि आप (विश्वासी) को सही रास्ते से बहुत दूर हट जाओ।” (क़ुरआन 4:27)
“क्या वे नहीं जानते कि अल्लाह ही अपने भक्तों की क्षमा स्वीकार करता तथा (उनके) दानों को अंगीकार करता है और वास्तव में, अल्लाह अति क्षमी दयावान् है” (क़ुरआन 9:104)
2. अल्लाह पश्चाताप करने वाले पापी को पसन्द करता है
“निश्चय अल्लाह पश्चाताप करने वालों से प्रेम करता है।” (क़ुरआन 2:222)
पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“यदि मनुष्य पाप नहीं करता, तो अल्लाह अन्य प्राणियों को पैदा करता जो पाप करते और फिर वह उन्हें क्षमा करता, क्योंकि वह क्षमा करने वाला, सबसे दयालु है।” (अल-तिर्मिज़ी, इब्न माजा, मुसनद)
3. अल्लाह पश्चाताप करने वाले पापी से प्रसन्न होता है, क्योंकि पापी को पता है कि एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा करता है!
पैगंबर ने कहा:
“अल्लाह का दास जब पश्चाताप करता है तो अल्लाह बहुत प्रसन्न होता है, उस व्यक्ति से भी ज्यादा जिसे अपना वह ऊंट मिल जाए जिस पर वह एक बंजर रेगिस्तान में सवार होकर आया और ऊंट उसका भोजन और पानी ले कर भाग गया, और वह इससे निराश हुआ और एक पेड़ की छाया में लेट गया, फिर जब वह निराश हो और ऊंट आ जाये और वह उसकी लगाम पकड़ के खुशी से चिल्लाये और अत्यधिक खुशी के कारण यह गलती से बोले कि 'ऐ अल्लाह! तुम मेरे दास हो और मैं तुम्हारा रब!” (सहीह मुस्लिम)
4. पश्चाताप का द्वार दिन-रात खुला है
पापों की क्षमा वर्ष के किसी विशेष दिन के लिए नहीं है। ईश्वरीय दया वर्ष के हर दिन और हर रात क्षमा करती है। पैगंबर ने कहा:
“दिन में पाप करने वाले के पश्चाताप को अल्लाह रात में स्वीकार करता है; और रात में पाप करने वाले के पश्चाताप को अल्लाह दिन में स्वीकार करता है - और ऐसा तब तक होगा जब तक कि सूर्य पश्चिम से न उदय हो।[1].” (सहीह मुस्लिम)
5. बार-बार पाप करने पर भी अल्लाह पश्चाताप स्वीकार करता है
हदीस क़ुदसी[2] में पैगंबर ने कहा:
“एक आदमी ने पाप किया, फिर कहा, 'ऐ मेरे ईश्वर, मेरे पाप को क्षमा कर दे,' तो अल्लाह ने कहा, 'मेरे दास ने पाप किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसका एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा करता है और इसके लिए दंडित भी करता है।" उस व्यक्ति ने दोबारा पाप किया और फिर कहा, 'ऐ मेरे ईश्वर, मेरे पाप को क्षमा दे।' अल्लाह ने कहा, 'मेरे दास ने पाप किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसका एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा करता है और इसके लिए दंडित भी करता है।' आदमी ने फिर से पाप किया (तीसरी बार), और फिर कहा, 'ऐ मेरे ईश्वर, मेरे पाप को क्षमा कर दे,' और अल्लाह ने कहा, 'मेरे दास ने पाप किया, तब उसे एहसास हुआ कि उसका एक ईश्वर है जो पापों को क्षमा करता है और इसके लिए दंडित भी करता है।' तुम जो चाहो करो, क्योंकि मैंने तुम्हें क्षमा कर दिया है।’” (सहीह मुस्लिम)
6. इस्लाम अपनाने पर पिछले सभी पाप मिट जाते हैं
पैगंबर ने समझाया है कि इस्लाम अपनाने से नए मुसलमान के सभी पिछले पाप मिट जाते हैं, चाहे वे कितने भी गंभीर क्यों न हों, बस एक शर्त है कि नया मुसलमान इस्लाम को ईमानदारी से स्वीकार करे। कुछ लोगों ने अल्लाह के दूत से पूछा, "ऐ अल्लाह के दूत! इस्लाम अपनाने से पहले अज्ञानता के कारण हमने जो किया उसके लिए क्या हम जिम्मेदार होंगे?” पैगंबर ने जवाब दिया:
“जो कोई भी ईमानदारी से इस्लाम स्वीकार करता है, उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा, लेकिन जो ऐसा दिखावे के लिए करता है, वह इस्लाम अपनाने से पहले और बाद के कार्यो के लिए जवाबदेह होगा।” (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)
अल्लाह की असीम दया से, यदि कोई अपने पाप के लिए पश्चाताप करता है या इस्लाम अपनाता है, तो उसके पिछले पाप अच्छे कर्मों में बदल जाते हैं। अल्लाह कहता है:
“उसके सिवा, जिसने क्षमा याचना कर ली और विश्वास किया तथा अच्छा कर्म किया, तो वही हैं, बदल देगा अल्लाह, जिनके पापों को पुण्य से तथा अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है।” (क़ुरआन 25:70)
पिछला पाठ: गैर-मुस्लिमों का भाग्य
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