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सुन्नत का संरक्षण (4 का भाग 3)

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विवरण: हदीस के संग्रह, इसके संरक्षण और प्रसारण का परिचय। भाग 3: हम्माम इब्न मुनाबिह से हदीस और सहीफ़ा के संग्रह का दूसरा चरण।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 25 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,310 (दैनिक औसत: 3)


शर्त

·हदीस और सुन्नत के लिए शुरुआती मार्गदर्शक

उद्देश्य

·सुन्नत को संरक्षित और प्रसारित करने में साथियों के प्रयासों और उत्साह की सराहना करना।

·प्रारंभिक मुसलमानों द्वारा हदीस की तलाश में की गई यात्रा की सराहना करना।

·शुरुआती समय से सुन्नत के लिखित संरक्षण को निर्णायक रूप से साबित करने में हम्माम इब्न मुनाबिह के सहिफा के महत्व को समझना।

अरबी शब्द

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·फ़िक़्ह - इस्लामी न्यायशास्त्र।

हदीस के संग्रह का दूसरा चरण

पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की मृत्यु के बाद, सुन्नत के संरक्षण और हदीस के संग्रह का दूसरा चरण शुरू हुआ।

साथियों ने ज्ञान फैलाया क्योंकि उन्हें लगा कि लोगों को इसकी आवश्यकता है, और वे ज्ञान को छिपाने के पाप को अच्छी तरह से जानते थे। इसलिए, उन्होंने अपना अधिकांश समय नियमित रूप से पढ़ाने में समर्पित किया। पैगंबर के साथियों के लिए पैगंबर द्वारा लाया गया धर्म एक अमूल्य रत्न था; यह एक ऐसी चीज थी जिसे वे दुनिया की हर चीज से ऊपर रखते थे। इसके लिए उन्होंने अपने संबंध, अपने व्यवसाय और अपने घरों को त्याग दिया था; इसकी रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी; इस दिव्य आशीर्वाद, ईश्वर के इस महान उपहार को अन्य लोगों तक पहुंचाना ही उनके जीवन का उद्देश्य था। इसलिए इसके ज्ञान का प्रसार उनकी पहली और सबसे महत्वपूर्ण चिंता थी। इसके अलावा, जिन लोगो ने पैगंबर को देखा और उनके शब्दों को सुना उन लोगो को पैगंबर ने आदेश दिया था कि उन्होंने जो देखा और सुना है उसको आने वाले लोगों तक पहुंचाएं।

पैगंबर की मृत्यु के बाद, उनके साथियों ने इस्लाम के संदेश को दुनिया के कोने-कोने तक ले जाने का काम किया। वे जिस भी दिशा और जिस भी देश में गए, क़ुरआन और सुन्नत ले गए। नतीजतन, महान पैगंबर की मृत्यु के एक चौथाई सदी के भीतर, उनके साथियों ने इस्लाम के प्रकाश को अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, इराक, मिस्र और लीबिया तक पहुंचाया। वो साथी सुन्नत के ज्ञान को अपने साथ ले गए। इसलिए, सुन्नत का सारा ज्ञान सिर्फ मदीना में ही नहीं रहा। कुछ साथी जो इराक गए (जैसे अब्दुल्ला इब्न मसूद) या मिस्र गए (जैसे 'अम्र इब्न अल-आस) सुन्नत का ज्ञान अपने साथ ले गए। साथियों ने उनकी मृत्यु से पहले अपने छात्रों को सुन्नत का ज्ञान सौंपा।

उनमें से हर किसी ने इसे दूसरों तक पहुंचाना अपना कर्तव्य समझा, भले ही उन्हें पैगंबर के जीवन से संबंधित एक घटना का ही ज्ञान था। अबू हुरैरा, आयशा, अब्दुल्ला इब्न अब्बास, अब्दुल्ला इब्न उमर, अब्दुल्ला इब्न अम्र, अनस इब्न मलिक जैसे कई अन्य व्यक्ति थे जिन्होंने सुन्नत के संरक्षण को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था, और वो ऐसे प्रतिनिधि बन गए थे जिन्हें लोगों ने पैगंबर और उनके धर्म के ज्ञान के स्रोत के रूप में इस्लामी दुनिया के विभिन्न हिस्सों से सहारा लिया।

अकेले अबू हुरैरा के आठ सौ शिष्य थे। सैकड़ों उत्साही शिष्यों ने आयशा के घर का भी सहारा लिया। 'अब्दुल्ला इब्न' अब्बास की प्रतिष्ठा समान रूप से महान थी, और अपनी कम उम्र के बावजूद, क़ुरआन और सुन्नत के अपने ज्ञान के कारण 'उमर के सलाहकारों में उनका प्रमुख स्थान था। इस प्रकार बड़ी संख्या में पैगंबर के साथियों ने धार्मिक शिक्षा का प्रसार किया।

धार्मिक ज्ञान सीखने के लिए नई पीढ़ी का उत्साह ऐसा था कि छात्र सुन्नत के अपने ज्ञान को पूरा करने और पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की हदीस को सत्यापित करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान की यात्रा करते थे। उनमें से कुछ सिर्फ एक हदीस के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी के लिए भी लंबी दूरी तय करते थे। उदाहरण के लिए, जाबिर इब्न अब्दुल्ला ने एक हदीस की खातिर मदीना से सीरिया की यात्रा की। यह एक महीने का सफर था, जैसा कि जाबिर खुद बताते हैं।[1] एक अन्य साथी अबू अयूब एक निश्चित हदीस के बारे में उक़बा बिन अम्र से पूछने के लिए मिस्र तक गए थे। उसने उक़बा से कहा कि केवल वह और उक़बा ही बचे हैं जिन्होंने उस हदीस को पैगंबर से सुना था। हदीस सुनने के बाद मिस्र में उसका काम पूरा हो गया और वह मदीना लौट आया। सईद इब्न मुसैयब ने कहा है कि वह सिर्फ एक हदीस की तलाश में दिन और रात यात्रा करता था। कहा जाता है कि पैगंबर के एक अन्य साथी ने एक हदीस की खातिर मिस्र की यात्रा की थी। अगली पीढ़ी का उत्साह भी उतना ही बड़ा था। अबुल 'आलिया के बारे में कहा जाता है: "हमने पैगंबर के बारे में एक हदीस सुनी, लेकिन हम तब तक संतुष्ट नहीं हुए जब तक कि हम व्यक्तिगत रूप से इससे संबंधित साथी के पास गए और ये हदीस सीधा उनसे सुनी।”

हदीस का लेखन: हम्माम इब्न मुनाबिह की सहिफा

यह हदीस के सबसे पहले संग्रहों में से एक है। साथी अबू हुरैरा की हदीस का लिखित संग्रह उनके छात्र हम्माम को दिया गया था। अबू हुरैरा खुद रात को 3 भागों में बांटते थे: एक तिहाई नींद के लिए, एक तिहाई प्रार्थना के लिए और एक तिहाई पैगंबर की हदीस को याद करने के लिए। चूंकि अबू हुरैरा की मृत्यु पैगंबर (58 एएच) के लगभग 48 साल बाद हुई थी, इसलिए यह साहिफ़ा इससे कुछ समय पहले हम्माम को दिया गया होगा। हम्माम की मृत्यु 101 एएच में हुई, हम्माम ने इन हदीसों को अपने छात्र मामार (मृत्यु 113 एएच) को सुनाया था। मामार ने इसे अब्दुर-रज्जाक इब्न हम्माम को सुनाया, जिन्होंने इसे अपने दो छात्रों: इमाम अहमद इब्न हंबल और यूसुफ अल-सुलामी को संचारित किया।

इमाम अहमद ने अपनी मुसनद में दो हदीस को छोड़कर सभी हदीसों को लगभग उसी क्रम में लिखा जैसा कि वे सहिफा में लिखे गए थे, जबकि यूसुफ अल-सुलामी ने सभी हदीसों को एक बड़ी किताब में लिखे बिना ऐसे ही संचारित करना जारी रखा। इसे 9वीं शताब्दी तक लगातार ऐसे ही संचारित किया गया था, जो कि बर्लिन हस्तलिपि का समय था, इसकी 4 हस्तलिपियों में से एक आज भी मौजूद है।

इमाम अहमद की मुसनद को हदीस सुनाने वाले साथी के अनुसार व्यवस्थित किया गया है, अबू हुरैरा के अधिकार पर हम्माम से सभी हदीस को खोजना बहुत आसान है। अन्य किताबें जिसमे हदीस को फ़िक़्ह विषयों के अनुसार व्यवस्थित किया गया है, उनमे में भी बहुत हद तक साहिफ़ा शामिल है। हम्माम के सहिफा की 137 हदीस में से:

29 बुखारी और मुस्लिम दोनों में दर्ज हैं,

22 अन्य केवल बुखारी मे दर्ज हैं,

48 अन्य केवल मुस्लिम में दर्ज हैं।

तो 137 हदीसों में से 99 केवल बुखारी और मुस्लिम में है। जब कोई हदीस के प्रकाशित हो चुके विभिन्न संग्रहों का अध्ययन करता है, तो यह देखता है कि हदीस के अर्थ (वास्तव में शब्द) अबू हुरैरा के समय से अल-बुखारी (194-256 एएच) के समय तक नहीं बदले गए हैं। हमीदुल्लाह टिप्पणी करते हैं:

“मान लीजिए कि अल-बुखारी एक हदीस का हवाला देते स्रोतों की उपरोक्त श्रृंखला के अधिकार पर (अहमद - अब्दुर-रज्जाक - मामार - हम्माम - अबू हुरैरा)। और पुराने स्रोत उपलब्ध नहीं होने पर, कोई संशयवादी निश्चित रूप से संदेह करता और यह कहता कि शायद अल-बुखारी ने सच नहीं बताया, और श्रृंखला या हदीस दोनों को बदल दिया। लेकिन अब जबकि पहले के सभी हदीस हमारे पास हैं, यह कल्पना करने की कोई संभावना नहीं है कि अल-बुखारी ने इसमें अपनी तरफ से कुछ भी लिखा है, या जालसाजों से सुनी गई किसी भी बात का वर्णन किया है... हाल के दिनों में पहले की इन हदीसों की खोज से, हमारे लिए प्रत्येक की सत्यता को सत्यापित करना संभव है। अब हमें ये मानना पड़ेगा कि इन सभी परंपराओं को न केवल अबू हुरैरा ने प्रसारित किया है, बल्कि पैगंबर के अन्य साथियों ने भी स्वतंत्र रूप से प्रसारित किया है, और प्रत्येक मामले में श्रृंखला या इसनद अलग है। 13 शताब्दियों से अधिक बीत जाने के बाद भी संग्रह के पाठ में एक भी परिवर्तन नहीं हुआ है। यदि पढ़ने वालो की उबाऊ की सवाल न होता तो उचित विवरण में यह दिखाना आसान होता कि कैसे अबू हुरैरा और हम्माम की सहीफ़ा में निहित प्रत्येक परंपरा, विभिन्न अन्य साथियों से संबंधित है। इन परंपराओं को तीसरी या चौथी शताब्दी में कभी नहीं बनाया जा सकता था।"”[2]

टिप्पणी



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी #???

[2] मुहम्मद हमीदुल्लाह द्वारा लिखित सहिफ़ा हम्माम इब्न मुनाबिह, पृष्ठ 79-81।

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