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मुस्लिम परिवार से परिचय (2 का भाग 2)

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विवरण: एक परिवार मुस्लिम समाज के केंद्रीय संस्थानों में से एक है। यह दो-भाग वाला पाठ पारिवारिक जीवन की मूल भावनाओं पर रोशनी डालता है जो इस सामाजिक संस्था की प्रकृति और अर्थ को परिभाषित करता है। भाग 2: बच्चों का पालन-पोषण, बच्चों के अधिकार और विवाह समाप्त करने की प्रक्रिया।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,337 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·बच्चों के पालन-पोषण के महत्व को जानना।

·माता-पिता पर बच्चों के मूल अधिकारों को सीखना।

·इस्लाम में विवाह कैसे समाप्त होता है, इसकी प्रक्रिया जानना।

·'प्रतीक्षा अवधि' की इस्लामी अवधारणा सीखना।

अरबी शब्द

·तलाक - एक आदमी द्वारा शुरू किया गया विवाह-विच्छेद

·खुल' - एक महिला द्वारा शुरू की गई शादी की समाप्ति।

·इद्दा - विधवा या तलाकशुदा के लिए प्रतीक्षा अवधि।

बच्चों के अधिकार

वैवाहिक बंधन एक ऐसे परिवार को मजबूत करने में मदद करता है जिसमें बच्चों की देखभाल की जाती है और सामाजिक रूप से उत्पादक वयस्क बनने के लिए उनका पालन-पोषण किया जाता है। परिवार उचित व्यवस्था है जिसमें बच्चों की देखभाल की जाती है और उनका पालन-पोषण किया जाता है। प्यार और दायित्व की दोहरी अनिवार्यता के कारण माता-पिता को अपने आश्रित बच्चों के लिए दीर्घकालिक देखभाल प्रदान करने वाला माना जा सकता है। प्रसव को अल्लाह का आशीर्वाद माना जाता है, एक 'चिह्न' जिसकी वजह से हमें अल्लाह का आभार व्यक्त करना चाहिए:

“और अल्लाह ने तुम्हारे लिए तुम्हीं में से पत्नियां बनायीं और तुम्हारे लिए तुम्हारी पत्नियों से पुत्र तथा पौत्र बनाये और तुम्हें स्वच्छ चीज़ों से जीविका प्रदान की। तो क्या वे असत्य पर विश्वास रखते हैं और अल्लाह के पुरस्कारों के प्रति अविश्वास रखते हैं?” (क़ुरआन 16:72)

दौलत और संतान इस जीवन के 'आभूषण' हैं:

“धन और पुत्र सांसारिक जीवन की शोभा हैं” (क़ुरआन 18:46)

ईश्वर के प्रिय दास इब्राहीम ने संतान के लिए अल्लाह से प्रार्थना की:

“हे मेरे पालनहार! प्रदान कर मुझे, एक सदाचारी पुत्र।” (क़ुरआन 37:100)

ज़कारिया ने प्रार्थना की:

“मुझे अपनी ओर से एक उत्तराधिकारी प्रदान कर दे।” (क़ुरआन 19:5)

क़ुरआन हमें धर्मी की प्रार्थना के बारे में बताता है:

“हे हमारे पालनहार! हमें हमारी पत्नियों तथा संतानों से आँखों की ठंडक प्रदान कर ” (क़ुरआन 25:74)

इस प्रकार, बच्चे विवाह का उत्पाद हैं और बच्चे पैदा करना मुस्लिम विवाह का एक प्रमुख लक्ष्य है। बच्चों के अपने माता-पिता पर कुछ अधिकार होते हैं। सबसे पहले, बच्चे को जैविक पिता का पता होना चाहिए। एक पिता अपने बच्चे से इंकार नहीं कर सकता। दूसरा, मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराना चाहिए। यदि वह नहीं कर सकती है, तो पिता को दूध पिलाने वाली दाई या किसी अन्य विकल्प की व्यवस्था करनी होगी, जैसे बोतल से दूध पिलाना। तीसरा, एक बच्चे का अपनी मां पर अधिकार है कि वह उसकी देखभाल करे। दोनों माता-पिता पर बच्चों को शिक्षा, धार्मिक शिक्षा और अच्छे संस्कार देने की जिम्मेदारी होती है। चौथा, एक बच्चे को उसके भाई बहनों की तरह समान व्यवहार का अधिकार है। पांचवां, बच्चे को एक अच्छे नाम का अधिकार है।

विवाह की समाप्ति

पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे के साथ प्यार से पेश आने की सलाह दी जाती है और झगड़ों को कम करने और एक-दूसरे के दिल में प्यार और स्नेह पैदा करने के लिए अधिकार देती है। उन्हें अपनी शादी को बनाए रखने के लिए एक-दूसरे के साथ धैर्य से रहना चाहिए:

“उनके साथ उचित व्यवहार से रहो। फिर यदि वे तुम्हें अप्रिय लगें, तो संभव है कि तुम किसी चीज़ को अप्रिय समझो और अल्लाह ने उसमें बड़ी भलाई रख दी है।” (क़ुरआन 4:19)

शादी जीवन भर के लिए होती है। इस्लाम में अस्थायी विवाह की कोई अवधारणा नहीं है। लंबे और स्थायी विवाह का आधार पति-पत्नी के बीच स्नेह और अनुकूलता है जिसके बिना ये असंभव हो जाता है। यही कारण है कि इस्लाम पति-पत्नी दोनों को दयालु और लचीला होने के लिए प्रोत्साहित करता है, और परिवार के लोगों की मदद से अपने मतभेदों को सुलझाने को कहता है। व्यक्तित्व के मेल न खाने से और काम पर सामाजिक तत्वों की वजह से आधुनिक विवाहों के टूटने का खतरा हमेशा बना रहता है। यदि विवाह को बचाने के सभी उपाय विफल हो जाते हैं, और प्रेम की जगह शत्रुता आ जाती है जिससे वैवाहिक जीवन असंभव हो जाता है, तो इस्लाम अंतिम उपाय के रूप में अलगाव की अनुमति देता है। पति और पत्नी दोनों को अपने तरीके से बेहतर और खुशहाल समाधान खोजने की अनुमति है। तलाक या खुल के जरिए अलगाव हो सकता है।

तलाक को आमतौर पर डिवोर्स के नाम से जाना जाता है। इस्लाम में डिवोर्स कुछ मामलों में सिविल डिवोर्स से अलग है। यह दो प्रकार का होता है, प्रतिसंहरणीय (रद्द करने) और अप्रतिसंहरणीय (बेबदल)। महिला का मासिक चक्र समाप्त होने के बाद और यौन संबंध बनाने से पहले एक बार तलाक बोलना चाहिए। इस अवधि में वह एक बार यह कहकर तलाक की घोषणा कर देता है, 'मैं तुम्हें तलाक देता हूं।' एक तलाक देने के बाद एक 'प्रतीक्षा अवधि' (इद्दा) निर्धारित की जाती है जिसमें पति अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकता है और अपने तलाक को रद्द कर सकता है और वैवाहिक संबंधों को 'फिर से शुरू' कर सकता है। अपनी पत्नी से अलग होने पर उसे विवाहित जीवन की बेहतर यादें आ सकती हैं और वह पुनर्विचार कर सकता है। इसी तरह, वैवाहिक झगड़े के मूल कारण को हल करने के लिए दोनों परिवारों के सदस्य मदद कर सकते हैं।

“और यदि तुम्हें दोनों के बीच वियोग का डर हो, तो एक मध्यस्त उस (पति) के घराने से तथा एक मध्यस्त उस (पत्नी) के घराने से नियुक्त करो, यदि वे दोनों संधि कराना चाहेंगे” (क़ुरआन 4:35)

'प्रतीक्षा अवधि' के दौरान पति तलाक को रद्द कर के शादी को फिर से शुरू कर सकता है, लेकिन 'प्रतीक्षा अवधि' बीत जाने के बाद, वह तलाक को रद्द करने का अपना अधिकार खो देता है और पुनर्विवाह के लिए उसे एक नए विवाह अनुबंध, 'दुल्हन उपहार' और महिला की सहमति की आवश्यकता होती है।

खुल'

एक महिला को दुर्व्यवहार या वित्तीय सहायता न मिलने के कारण तलाक मांगने का अधिकार है, और इस्लामी व्यवस्था में वह एक मुस्लिम न्यायाधीश का सहारा ले सकती है जो दोनों को अलग कर सकता है। एक महिला द्वारा अपने पति से 'दुल्हन का तोहफा' लौटाने के एवज में तलाक मांगना खुल' है।

'प्रतीक्षा अवधि' - इद्दा

पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने किसी भी मामले में तलाक को सबसे खराब समाधान माना, जिसे किसी भी कीमत पर टाला जाना चाहिए। यदि किसी को तलाक देना है, तो इसे एक समय अवधि में देना चाहिए जिसे इद्दा कहते हैं। यह दोनों यह सुनिश्चित करने के लिए है कि महिला गर्भवती न हो और यह पुरुष को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का मौका देती है, ताकि एक पल के गुस्से के कारण शादी को टूटने से बचाया जा सके। एक महिला को तलाक के लिए इद्दा की अवधि पूरी करनी पड़ती है जो तीन मासिक धर्म का चक्र है। विधवा के लिए इद्दा चार महीने दस दिन का होता है।

इद्दा और पारिवारिक मध्यस्थता इस्लामी कानून के भीतर विवाह को बचाने के दो साधन हैं।

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