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सूरह अल-फातिहा की सरल व्याख्या

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विवरण: एक सरल छंद-दर-छंद स्पष्टीकरण के साथ सूरह अल-फातिहा का अनुवाद।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 26 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,877 (दैनिक औसत: 4)


उद्देश्य

·सूरह अल-फातिहा का अनुवाद सीखना।

·सरल भाषा में सूरह अल-फातिहा की छंद-दर-छंद व्याख्या सीखना।

·क़ुरआन के विद्वानों के एक समूह द्वारा लिखित अल-तफ़सीर अल-मुयस्सर पर आधारित छंदों की व्याख्या का अध्ययन करना।

अरबी शब्द

·सूरह - क़ुरआन का अध्याय।

·नमाज - आस्तिक और अल्लाह के बीच सीधे संबंध को दर्शाने के लिए अरबी का एक शब्द। अधिक विशेष रूप से, इस्लाम में यह औपचारिक पाँच दैनिक प्रार्थनाओं को संदर्भित करता है और पूजा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है।

सूरह अल-फ़ातिहा

सूरह अल-फातिहा क़ुरआन का पहला सूरह है और पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के बताये अनुसार इसे प्रत्येक नमाज में पढ़ना चाहिए, "क़ुरआन के शुरुआती अध्याय के बिना कोई नमाज (वैध) नहीं है।[1] इस्लाम अपनाने के बाद व्यक्ति को सबसे पहले सूरह अल-फातिहा को याद करना चाहिए ताकि वह निर्धारित नमाज़ पढ़ सके। जब भी हम नमाज पढ़ें तो इसका अर्थ सीखना और इस पर विचार करना चाहिए।

पाठ, लिप्यंतरण, अनुवाद और व्याख्या

بِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحِيمِِ

1. बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम

अल्लाह के नाम से, जो अत्यन्त कृपाशील तथा दयावान् है।

क़ुरआन की शुरुआत ईश्वर के उचित, अद्वितीय और व्यक्तिगत नाम - अल्लाह से होती है। 'मैं अल्लाह के नाम से शुरू करता हूं' का मतलब है कि एक मुसलमान अल्लाह की मदद के लिए क़ुरआन पढ़ना शुरू करता है। अल्लाह मानवजाति का ईश्वर है और सिर्फ उसी की पूजा होनी चाहिए। कोई और अपना नाम 'अल्लाह' नही रख सकता। अल्लाह सबसे दयालु (अर-रहमान) ईश्वर है जिसकी दया पूरी सृष्टि पर है। वह विश्वासियों के लिए विशेष रूप से दयालु (अर-रहीम) भी है।

الْحَمْدُ للّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

2. अल्हम्दु लिल्लाही रब्बिल आलमीन

सब प्रशंसायें अल्लाह के लिए हैं, जो सारे संसारों का पालनहार है।

अल्लाह अपने गुणों, भौतिक उपहारों और आध्यात्मिक आशीर्वाद की पूर्णता के लिए प्रशंसा के योग्य है। इसलिए लोगों को अल्लाह की प्रशंसा हर उस चीज़ के लिए करनी चाहिए जो उसने हमें दी है। सिर्फ वही इस प्रशंसा का हकदार है। वह संसारों का स्वामी है, जिसका अर्थ है कि जो कुछ भी मौजूद है उसी ने बनाया है और वही सब चला रहा है। वह ईश्वर ही है जो विश्वासियों को आस्था और अच्छे कामों का आशीर्वाद देता है।

الرَّحْمـنِ الرَّحِيمِ

3. अर्रहमान निर्रहीम

जो अत्यंत कृपाशील और दयावान् है।

'सबसे दयालु' (अल-रहमान) और 'रहमदिल' (अर-रहीम) अल्लाह के कई नामों में से दो हैं।

مَالِكِ يَوْمِ الدِّينِ

4. मालिकी यौमिद्दीन

जो प्रतिकार (बदले) के दिन का मालिक है।

केवल अल्लाह ही न्याय के दिन का स्वामी है, वह दिन जिस दिन मनुष्य को उसके कर्मों का प्रतिफल मिलेगा। नमाज की हर रकात में इस छंद को पढ़ने से एक मुसलमान आने वाले न्याय के दिन को नही भूलता, और उसे अच्छा कर्म करने और पापों से दूर रहने के लिए प्रेरणा मिलती है।

إِيَّاكَ نَعْبُدُ وإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ

5. इय्याका नअबुदु वइय्याका नस्तईन

(ऐ अल्लाह!) हम केवल तुझी को पूजते हैं और केवल तुझी से सहायता मांगते हैं।

हम पूजा में सिर्फ आपके सामने झुकते हैं और हम जो कुछ भी करते हैं उसमें केवल आपकी सहायता चाहते हैं। सब कुछ आपके हाथ में है। इस छंद से हमें पता चलता है कि पूजा के किसी भी कार्य को सिर्फ अल्लाह के लिए करने की अनुमति है, जैसे प्रार्थना करना और अलौकिक सहायता मांगना। यह छंद दिल को अल्लाह से जोड़ता है और इसे गर्व और दिखावे की इच्छा से शुद्ध करता है।

اهدِنَــــا الصِّرَاطَ المُستَقِيمَ

6. इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम

हमें सुपथ (सीधा मार्ग) दिखा।

हमारा मार्गदर्शन कर और हमें सीधा रास्ता दिखा और इसे हमारे लिए आसान बना दे। और हमें इस पर दृढ़ बनाए रख जब तक कि हम आपसे न मिल लें। 'सीधा पथ' इस्लाम है, ईश्वर के अंतिम पैगंबर मुहम्मद द्वारा दिखाए गए दिव्य आनंद और स्वर्ग की ओर जाने वाला स्पष्ट मार्ग। अल्लाह का गुलाम इसका पालन करे बिना सुखी और समृद्ध नहीं हो सकता।

صِرَاطَ الَّذِينَ أَنعَمتَ عَلَيهِمْ غَيرِ المَغضُوبِ عَلَيهِمْ وَلاَ الضَّالِّينَ

7. सिरातल लज़ीना अनअम्ता अलैहिम गै़रिल मग़दूबी अलैहिम वलद दॉल्लीन

उनका मार्ग, जिनपर तूने पुरस्कार किया। उनका नहीं, जिनपर तेरा प्रकोप हुआ और न ही उनका, जो कुपथ (गुमराह) हो गये।

धर्मी लोगों का मार्ग - पैगंबर, सत्यवादी, शहीद और धर्मी। वे सुपथ पे थे। हमें दो लोगों के मार्ग पर न चला। पहला, जिन्हें ईश्वरीय क्रोध का सामना करना पड़ा क्योंकि वे सत्य को जानते थे लेकिन उसका पालन नहीं करते थे, और यह यहूदियों और जो उनके जैसें है उसका उदाहरण है। दूसरा, हमें उन लोगों के मार्ग पर न चला जो अपना रास्ता भटक गए हैं और सुपथ पे नही हैं, और यह ईसाइयों और जो उनके जैसें है उसका उदाहरण है। यह एक मुसलमान के लिए अपने दिल को हठधर्मिता, अज्ञानता और पथभ्रष्टता से शुद्ध करने की प्रार्थना है। यह छंद ये भी बताता है कि इस्लाम ईश्वर का सबसे बड़ा आशीर्वाद है। जो लोग रास्ता जानते हैं और उस पर चलते हैं, वे सुपथ पर हैं और पैगंबरो के बाद निस्संदेह वे पैगंबर मुहम्मद के साथी थे। नमाज मे सूरह अल-फातिहा पढ़ने के बाद 'अमीन' कहने को कहा जाता है। 'अमीन' का अर्थ है 'ऐ अल्लाह, कृपया स्वीकार करो।'



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

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