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मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 2)

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विवरण: बिना जाने कि क्या करना है, मस्जिद में जाना एक डरावना अनुभव हो सकता है। ये पाठ नए मुसलमानों को मस्जिद जाने को अधिक सुलभ बनाने के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं को सिखाएगा।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 23 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,548 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·मस्जिद में जाने के 12 अतिरिक्त शिष्टाचार सीखना।

अरबी शब्द:

·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।

·इमाम - नमाज़ पढ़ाने वाला।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·अज़ान - मुसलमानों को पांच अनिवार्य प्रार्थनाओं के लिए बुलाने का एक इस्लामी तरीका।

·नफ्ल - पूजा का एक स्वैच्छिक कार्य।

·रुकु' - नमाज में झुकने की स्थिति।

·रकात - प्रार्थना की इकाई।

·फज्र - सुबह की नमाज।

·जुहर - दोपहर की नमाज।

·सूत्रह - कोई आड़ जो व्यक्ति नमाज पढ़ते समय अपने सामने रखता है।

7. अगर व्यक्ति मस्जिद में प्रवेश करता है और नमाज शुरू हो चुकी है तो उसे उस नमाज के लिए जल्दी नहीं करना चाहिए, क्योंकि पैगंबर ने ऐसा करने से मना किया था। पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

“अगर नमाज़ शुरू हो चुकी है, तो भागते हुए उसमें शामिल न हों, बल्कि आराम से चल कर और शांति से शामिल हों, और जितनी नमाज बची है उसे पढ़ें और जो छूट गया है उसकी भरपाई करें।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)

यदि कोई मुसलमान नमाज़ में देर से आता है, तो उसे "अल्लाहु अकबर" कहना चाहिए और समूह में शामिल हो जाना चाहिए। अगर किसी रकअत में रुकू के बाद शामिल होता है, तो नमाज़ के बाद पूरी रकअत दोहराई जानी चाहिए। तो जब इमाम नमाज़ पढ़ा ले तो आपको खड़े होकर छूटी हुई रकअत को पूरा करना चाहिए।

पिछली पंक्ति में शामिल होना और सभी खाली स्थान को भरना उचित है। यदि पंक्ति में कोई जगह नहीं है, तो इमाम के बिलकुल सीध में पीछे नई पंक्ति शुरू करना चाहिए, और उसके बाद आने वाले लोगों को दाएं और बाएं ओर खड़े होना चाहिए। यदि पंक्ति पीछे से शुरू हो तो महिलाओं को सामने एक नई पंक्ति शुरू करनी चाहिए।

8. नमाज पढ़ते समय चुप रहना चाहिए। सामूहिक नमाज के दौरान, जब लोग नमाज पढ़ रहे हों तो बहुत शोर नहीं करना चाहिए, फिर भी नमाज के दौरान कभी-कभी लोग बाते करते रहते हैं! यदि संभव हो तो बच्चों को नमाज में अपने माता-पिता के पास रहने के लिए सिखाना चाहिए, या यदि ऐसा न हो, तो उन्हें मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए नहीं लाना चाहिए।

9. मुसलमान को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने वाले दूसरे लोगों का ध्यान नहीं भटकाना चाहिए, क्योंकि नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति अल्लाह के संपर्क में होता है। ध्यान भटकाना एक काफी गंभीर मामला है - क़ुरआन को जोर से पढ़ कर या कोई अन्य कार्यों से लोगों को परेशान नहीं करना चाहिए।

10. जो व्यक्ति मस्जिद में प्रवेश करता है तो उसे तब तक नहीं बैठना चाहिए जब तक कि वह दो रकअत न पढ़ ले। इन दो रकातो को वैसे ही पढ़ना चाहिए जैसे आप अनिवार्य फज्र की नमाज के दो रकअत पढ़ते हैं। दो रकअत नमाज पढ़ने का कारण है कि बैठने से पहले मस्जिद का सम्मान करना। पैगंबर ने कहा:

“जब आप में से कोई मस्जिद में प्रवेश करे, तो उसे बैठने से पहले दो रकअत नमाज़ पढ़नी चाहिए।" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)

11. यदि कोई व्यक्ति अकेले नमाज पढ़ रहा है (वैकल्पिक प्रार्थना या अनिवार्य प्रार्थना), तो उसे नमाज पढ़ने के दौरान अपने और आने जाने वाले लोगो के बीच आड़ के लिए सामने कुछ रखना चाहिए। यह एक कुर्सी, दीवार या कोई स्तंभ हो सकता है। उसे भी इसके थोड़ा करीब आना चाहिए जैसा कि पैगंबर करते थे। पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

"यदि आप नमाज पढ़ते हैं, तो एक सूत्रह (आड़) की ओर नमाज पढ़ें और उसके करीब पहुंचें।" (अबू दाऊद )

समूह में नमाज़ पढ़ते समय व्यक्ति को आड़ करने की आवश्यक नहीं है, सिर्फ इमाम के आगे आड़ होना चाहिए जो अन्य लोगो के लिए भी आड़ की तरह काम करेगा।

12. मुसलमानों को नमाज़ पढ़ने वाले व्यक्ति के सामने से नहीं गुजरना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति एक सूत्रह (आड़) के साथ प्रार्थना कर रहा है, मान लीजिए कि एक कुर्सी के पीछे, तो आप व्यक्ति और कुर्सी के बीच से नहीं गुजर सकते, लेकिन कुर्सी के आगे से जा सकते हैं। पैगंबर मुहम्मद ने कहा: "यदि कोई नमाज पढ़ने वाले के सामने गुजरने का पाप जानता, तो वह उसके सामने से गुजरने के बजाय चालीस प्रतीक्षा करता।" हदीस बताने वाले में से एक अबू अल-नादर ने कहा: "मुझे ठीक से याद नहीं है कि उन्होंने चालीस दिन, महीने या साल कहा था।" (बुखारी, मुस्लिम)

13. मस्जिद में जहां जगह मिल जाये वहीं बैठ जाना चाहिए। मुसलमान को व्यक्ति के ऊपर से कूद कर नहीं जाना चाहिए या पहले से बैठे दो लोगों के बीच से हो कर नहीं जाना चाहिए ताकि उन्हें परेशानी या नुकसान न पहुंचे। पैगंबर के कई हदीस इस अर्थ को व्यक्त करते हैं।

14. बाते करने और गपशप करने के बजाय, एक मुसलमान के लिए बेहतर है कि वह खुद को दुआ और अल्लाह की याद में व्यस्त रखे, क्योंकि जब तक वह नमाज़ का इंतज़ार कर रहा होता है उसे नमाज़ में माना जाता है।

15. मुसलमान को चाहिए कि वह मस्जिद को साफ सुथरा और सुगन्धित रखे क्योंकि यह अल्लाह का घर है। पैगंबर ने मस्जिद में थूकना एक पाप माना, जिसे तभी माफ किया जा सकता है जब मुसलमान थूकने वाली जगह को साफ कर दे। इस्लाम के पैगंबर ने कहा:

“मस्जिद में थूकना पाप है और इसका पश्चाताप उसे साफ करना है।" (सहीह मुस्लिम)

पैगंबर के साथी मस्जिद को साफ रखते थे, जैसे प्रसिद्ध साथी इब्न उमर मस्जिद के अंदर इत्र डालते थे जब उनके पिता उमर शुक्रवार का उपदेश देने के लिए उपदेश-मंच पर बैठते थे (अबू दाऊद)। पारंपरिक अगरबत्ती या आधुनिक समय का स्प्रे और बिजली के उपकरणों का उपयोग इस उद्देश्य के लिए किया जा सकता है।

16. अज़ान होने के बाद मुसलमान को अन्य मुसलमानों के साथ समूह मे नमाज पढ़े बिना मस्जिद से बाहर नहीं आना चाहिए। उदाहरण के लिए, मान लें कि आपने घर पर या किसी अन्य मस्जिद में पहले जुहर की नमाज़ पढ़ ली, फिर आप किसी अन्य मस्जिद में जाते हैं जहां जुहर की अज़ान हो जाए। यह एक नफ़ल (अतिरिक्त/वैकल्पिक) नमाज मानी जाएगी, भले ही आप इसे समूह में पढ़ें। आपका इरादा नफ़ल नमाज़ का होगा, जबकि अन्य इसे अनिवार्य जुहर की नमाज़ के इरादे से पढ़ेंगे।

17. अज़ान को सुनना और पुकारने वाले के बाद उसे दोहराना उचित है। सब कुछ दोहराएं, सिवाय इसके कि जब वह कहे:

हय्या 'अलस-सलाह" (आओ नमाज की ओर) और

हय्या अलल-फलाह" (आओ कामयाबी की ओर)।

यहां आपको कहना चाहिए: "ला हवला व ला कुव्वता 'इल्ला बिल्लाह" (अल्लाह के अलावा कोई शक्तिशाली नही है और कोई ताकत नही है)। (बुखारी, मुस्लिम)

अज़ान को दोहराना एक पुरस्कृत कार्य है, हालांकि यह वैकल्पिक है।

18. मुसलमान को मस्जिद से बाहर निकलते समय पहले अपना बायां पैर निकालना चाहिए और वह कहना चाहिए जो पैगंबर मुहम्मद कहते थे:

“अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका मिन फज़लिका।”

“ऐ अल्लाह, मैं आपकी कृपा चाहता हूं।" (सहीह मुस्लिम)

यह प्रार्थना वैकल्पिक है, हालांकि इसे पढ़ना एक पुरस्कृत कार्य है।

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