पतियों और पत्नियों के अधिकार और जिम्मेदारियां
विवरण: क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं के आधार पर पति-पत्नी के एक-दूसरे के प्रति अधिकारों पर चर्चा।
द्वारा Imam Mufti (© 2012 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 23 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,594 (दैनिक औसत: 3)
उद्देश्य:
·पतियों के अधिकारों को जानना।
·पत्नियों के अधिकारों को जानना।
·पति और पत्नी के बीच यौन आचरण की मूल बातें जानना।
अरबी शब्द:
·महर - दहेज, दुल्हन का उपहार, एक आदमी द्वारा अपनी पत्नी को दिया जाने वाला।
·रमजान - इस्लामी चंद्र कैलेंडर का नौवां महीना। यह वह महीना है जिसमें अनिवार्य उपवास निर्धारित किया गया है।
इस्लाम स्पष्ट रूप से एक पति का अपनी पत्नी पर और एक पत्नी का अपने पति के ऊपर अधिकारों और जिम्मेदारियों को निर्धारित करता है। पति-पत्नी का एक-दूसरे पर अधिकार है, यह विचार सिर्फ इस्लाम ने लाया है। जो चीज़ इसे और अधिक आश्चर्यजनक बनाती है वह यह है कि उन्हें कितनी स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है, ताकि संघर्ष कम से कम हो। विवाह सलाहकार इसे "अपेक्षाएं" कहते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि वे अपेक्षाएं क्या होनी चाहिए। इसलिए उन्हें तय करने के लिए पति-पत्नी पर छोड़ दिया जाता है। कई बार, वे तय नही कर पाते या सहमत नहीं हो सकते हैं, इसलिए विवाह समाप्ति की ओर जाता है।
पतियों और पत्नियों के कुछ सबसे महत्वपूर्ण अधिकार और जिम्मेदारियां इस प्रकार हैं। इन्हें पढ़ने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखें:
1. अल्लाह इन अधिकारों और जिम्मेदारियों का स्रोत है।
2. जिस तरह पति का अपनी पत्नी पर अधिकार होता है, वैसे ही पत्नी का अपने पति पर अधिकार होता है। उन दोनों को एक-दूसरे के अधिकारों को अपनी क्षमता के अनुसार पूरा करने का प्रयास करना चाहिए और एक-दूसरे को जितना संभव हो सके माफ करना चाहिए।
3. इन अधिकारों और जिम्मेदारियों के संबंध में पति और पत्नी दोनों को उदार होना चाहिए। उन्हें क्रोध और झगड़े के समय एक दूसरे के अधिकारों को याद नहीं दिलाना चाहिए, क्योंकि इससे उनका क्रोध बढ़ सकता है। दूसरे शब्दों में, अपने अधिकारों का दुरुपयोग न करें।
4. कई नए मुसलमान ऐसी वेबसाइटें पढ़ते हैं जो इस्लामी कानूनी फैसलों में माहिर हैं और ऐसी किताबें पढ़ते हैं जिसमे बेहतर जीवन जीने का मार्गदर्शन है। ये संसाधन आम तौर पर कानून बताते हैं, कानून की "आत्मा" नही। कानून की "आत्मा" अल्लाह की अवज्ञा किए बिना शांति और सद्भाव से रहना है। हमेशा याद रखें कि प्यार, नम्रता और दया एक सुखी, इस्लामी विवाह के लिए आवश्यक हैं।
पत्नी का पति के ऊपर अधिकार
इस्लाम एक पत्नी को उसके मुस्लिम पति पर अधिकार देता है। इनमे से कुछ वित्तीय हैं, अन्य नहीं हैं।
1. महर
महिला को अपने पति से महर या दुल्हन का उपहार प्राप्त करने का वित्तीय अधिकार है।
2. अच्छा व्यवहार
पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करने पर क़ुरआन बहुत जोर देता है। "...और उनके साथ दया से रहो..." (क़ुरआन 4:19) । क़ुरआन के अलावा, अल्लाह के पैगंबर ने भी जोर दिया है, 'आप में सबसे उत्कृष्ट वह है जो अपनी पत्नी के साथ अच्छे से रहता है।’ (तिर्मिज़ी)
मुस्लिम पति को अपने प्रिय पैगंबर की यह सलाह याद रखनी चाहिए, "महिलाओं के संबंध में अल्लाह से डरो। अल्लाह ने तुम्हे एक भरोसे के रूप में उन्हें दिया था और वे अल्लाह के वचन से तुम्हारे लिए वैध हो गए हैं" (मुस्लिम)। पत्नी एक विश्वास है, न गुलाम और न ही जानवर, तो उसके साथ इसके अनुसार ही व्यवहार करो।
3. वित्तीय रखरखाव
पत्नी को पति की आमदनी के अनुसार भोजन, वस्त्र और आवास सहित वित्तीय भरण-पोषण का अधिकार है। काम करना और पत्नी को सहारा देना पति की जिम्मेदारी है।
4. सुरक्षा
पति को अपनी पत्नी की शारीरिक और भावनात्मक इच्छाओ की सुरक्षा करनी चाहिए।
पति का पत्नी के ऊपर अधिकार
1. आज्ञाकारिता
इस्लाम मे, एक पत्नी को अपने पति की उन सभी बातों को मानने की आवश्यकता है जिससे अल्लाह की अवज्ञा न हो। यह अवधारणा कई पश्चिमी लोगों के लिए पूरी तरह से अलग है, इसलिए कृपया इसे अच्छी तरह समझें। पश्चिम में, वे इसे 'नियंत्रण' और कभी-कभी 'भावनात्मक शोषण' कहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए।
पहला, एक पत्नी को चाहिए कि वह अल्लाह की आज्ञाकारिता में अपने पति की आज्ञा का पालन करे। पैगंबर ने कहा, 'यदि कोई महिला अपनी पांच दैनिक प्रार्थनाएं करती है, रमजान के महीने में उपवास करती है, अपनी शुद्धता की रक्षा करती है और अपने पति की आज्ञा का पालन करती है, तो उसे न्याय के दिन कहा जाएगा, 'स्वर्ग के किसी भी द्वार से प्रवेश करो।"' (इब्न हिब्बन)
दूसरा, पत्नी को अपने पति की आज्ञा का पालन करना उस दास के समान नहीं है जो अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करता है! वह औरत आजाद है, गुलाम नहीं। इसका मतलब यह है कि उसका पति अपनी पत्नी पर अपने अधिकार का दुरुपयोग नहीं कर सकता और अत्याचार नहीं कर सकता। उसे याद रखना चाहिए कि वह अल्लाह का दास है और उससे पूछा जायेगा कि वह अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवहार करता था।
तीसरा, पति को अपनी पत्नी के साथ आपसी परामर्श से अपने पारिवारिक मामलों से निपटना चाहिए, लेकिन निर्णय लेने वाला वही है और वह अपने फैसले के लिए अल्लाह के सामने जिम्मेदार होगा। एक पत्नी को उसके निर्णय लेने के अधिकार पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि जैसे हर कंपनी का एक सीईओ होता है, वैसे ही "परिवार" एक कंपनी की तरह है और पति उसका सीईओ है। याद रखें, पति को अपने अधिकार को अच्छे व्यवहार के साथ संतुलित करना चाहिए जो कि उसकी पत्नी का उसके ऊपर अधिकार है।
2. पति के मान-सम्मान की रक्षा करना
पत्नी को अपने घर की अन्य बातों के अलावा, अपने धन और बच्चों की रक्षा करनी चाहिए। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "पत्नी अपने पति और उसके बच्चों के घर की संरक्षक है" (सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम)। उसे अपने बच्चों को इस्लामी मूल्यों के आधार पर पालना चाहिए।
3. पति की अनुमति के बिना घर से बाहर नही जाना चाहिए
पैगंबर ने कहा, "यदि आप में से किसी की पत्नी मस्जिद में जाने की अनुमति लेती है, तो उसे मना न करें" (मुस्लिम)। इसका मतलब यह नही है कि हर बार घर से निकलने से पहले पति की अनुमति लेनी होगी, यह पूछकर, "क्या मैं जा सकती हूं?" इसका मतलब यह है कि उसे ऐसी जगह नहीं जाना चाहिए जिसे उसका पति पसंद नहीं करता हो। यह संघर्ष को कम करेगा और परिवार में खुशियां बनाए रखेगा। इसका एक अपवाद मस्जिद है। वह अपने पति की अनुमति और मंजूरी के बिना मस्जिद जा सकती है।
4. पति की अनुमति के बिना किसी को अपने घर में न आने देना
पैगंबर ने कहा, "और तुम्हारा उन पर अधिकार यह है कि जिसे तुम पसंद नही करते हो उसे तुम्हारे घर मे बैठने की अनुमति न दें।”[1] इसका मतलब यह है कि किसी ऐसे को घर में न आने दें जिसे आपका पति नापसंद करता है, ऐसा करने से संघर्ष कम होगा और सद्भाव बना रहेगा।
5. अपने बेडरूम के रहस्य छुपाना
पति या पत्नी किसी को भी अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के साथ अपने यौन जीवन के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। इसे अनुचित, अशोभनीय और शर्मनाक माना जाता है। दोनों को इस संबंध में एक-दूसरे की निजता का सम्मान करना चाहिए।
संभोग एक ऐसा अधिकार है जो दोनों का एक दूसरे पर है। प्रत्येक पति या पत्नी को संभोग का अधिकार है। महिला के मासिक धर्म चक्र और प्रसवोत्तर रक्तस्राव के दौरान योनि संभोग निषिद्ध है। गुदा मैथुन हर समय सख्त वर्जित है।
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 1)
- मस्जिद में जाने के शिष्टाचार (2 का भाग 2)
- अच्छी आदतें जो नए मुसलमानों को सीखना चाहिए
- पैगंबर नूह के जीवन की झलकियां
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 1)
- शुक्रवार की नमाज़ (2 का भाग 2)
- पैगंबर इब्राहिम के जीवन की झलकियां
- विवाह सलाह (2 का भाग 1)
- विवाह सलाह (2 का भाग 2): व्यावहारिक कदम
- पतियों और पत्नियों के अधिकार और जिम्मेदारियां
- इस्लामी विवाह के विस्तृत व्यावहारिक पहलू
- पैगंबर लूत के जीवन की झलकियां
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 1): धैर्य, कृतज्ञता और विश्वास
- उदासी और चिंता से कैसे निपटें (2 का भाग 2): अल्लाह के साथ संबंध स्थापित करें
- पैगंबर युसूफ के जीवन की झलकियां
- इस्तिखारा प्रार्थना
- पैगंबर अय्यूब के जीवन की झलकियां
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 1)
- ज़कात के लिए आसान मार्गदर्शन (2 का भाग 2)
- पैगंबर मूसा के जीवन की झलकियां
- क्या मुझे अपना नाम बदलना चाहिए?
- पैगंबर ईसा के जीवन की झलकियां
- संदेह से निपटना
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 1): मक्का अवधि
- पैगंबर मुहम्मद की एक संक्षिप्त जीवनी (2 का भाग 2): मदीना अवधि
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 1)
- ड्रग्स, शराब और जुआ (2 का भाग 2)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 1)
- जिन्न की दुनिया (2 का भाग 2)