इस्लाम में पापों की अवधारणा (3 का भाग 2)
विवरण: इस पाठ मे हम पाठकों को पापों, उनके प्रकार, और उनकी गंभीरता से परिचित कराएंगे और बताएंगे की उनके लिए क्षमा कैसे मांगे और अगले जीवन में ये व्यक्ति को कैसे प्रभावित करेंगे।
द्वारा Imam Mufti (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य:
·बड़े और छोटे पापों की परिभाषा जानना।
·यह जानना कि बड़े पाप किसी व्यक्ति को कब और कैसे अविश्वासी बनाते हैं।
·यह जानना कि बड़े पापों को कैसे क्षमा किया जाता है।
·क्षमा न किए गए बड़े पापों के साथ मरने वाले व्यक्ति के भाग्य को जानना।
·बड़े पापों की संख्या जानना।
·जानना कि कब छोटे पाप बड़े पापों में बदल जाते हैं।
अरबी शब्द:
·कबा-ईर (एकवचन कबीरा) - बड़े पाप।
·सगा-ईर (एकवचन सगीरा) - छोटे पाप।
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·तौबा - पश्चाताप।
·तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।
पापों को उनकी गंभीरता के आधार पर बड़े और छोटे पापों में वर्गीकृत किया जाता है। बड़े पापों को कबा-ईर (एकवचन कबीरा) कहा जाता है और इसका उल्लेख क़ुरआन 4:131, 42:37, 53:32 में किया गया है। छोटे पाप, या सगा-ईर (एकवचन सगीरा) का उल्लेख क़ुरआन 18:49 में किया गया है। बड़े और छोटे पापों सहित सभी कर्मों को दर्ज किया जाता है और ये रिकॉर्ड न्याय के दिन व्यक्ति को दिए जाएंगे (क़ुरआन 18:49, 54:2-3)।
बड़े पापों की परिभाषा[1]
कोई भी पाप जिसके लिए क़ुरआन या सुन्नत इस दुनिया में सजा का प्रावधान करती है जैसे कि हत्या, व्यभिचार और चोरी; या जिसके बारे में परलोक में अल्लाह के क्रोध और दंड का ख़तरा है, साथ ही ऐसा कोई भी पाप जिसके अपराधी को हमारे पैगंबर ने बुरा कहा है।
छोटे पाप की परिभाषा
छोटा पाप हर वो पाप है जिसके लिए इस जीवन मे निर्धारित सजा नहीं है या अगले जीवन में इससे संबंधित कोई खतरा नहीं है।
क्या बड़े पाप व्यक्ति को अविश्वासी बनाते हैं?
पाप आस्था को कम करता है। एक मुसलमान की आस्था उसके गुनाहों के अनुपात में कम हो जाता है। फिर भी, न तो बड़े और न ही छोटे पाप आस्था को पूरी तरह से खत्म करते हैं। पाप एक मुसलमान को नास्तिक नहीं बनाता जब तक कि वह व्यक्ति पाप को जायज़ नहीं मानता। वह पाप को जायज़ मान सकता है क्योंकि या तो वह ये मानने से इनकार करता है कि अल्लाह ने इसे मना किया है या वह मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की पैगंबरी पर पर संदेह करता है। किसी भी मामले में, जब कोई पाप क़ुरआन को नकारने और पैगंबर मुहम्मद को खारिज करने के समान है, तो उस पाप को करने पाप किए बिना ही अविश्वासी हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति जोर देकर कहता है कि अल्लाह ने व्यभिचार की अनुमति दी है, जबकि वे जनता है कि इसे क़ुरआन में मना किया गया है, तो वह व्यक्ति अविश्वासी हो जाता है। अन्यथा, हम लोगों को उनके द्वारा किए गए पाप के कारण गैर-मुस्लिम नहीं समझते हैं।
इस बात का प्रमाण क़ुरआन और पैगंबर की परंपराओं में मिलता है कि पाप करने वाले व्यक्ति को मुसलमान माना जाता है:
1.क़ुरआन कहता है:
“निःसंदेह अल्लाह ये नहीं क्षमा करेगा कि उसका साझी बनाया जाये और उसके सिवा जिसे चाहे, क्षमा कर देगा।” (क़ुरआन 4:48)
2.जो कोई भी अल्लाह के साथ शिर्क किए बिना मर जायेगा वह स्वर्ग में दाखिल होगा।[2]
3.तौहीद पर विश्वास रखने वाला व्यक्ति व्यभिचार और चोरी करने पर भी स्वर्ग में प्रवेश करेगा।[3]
पैगंबर के समय में एक शराबी था। एक बार जब उसे सजा दी गई तो एक मुसलमान ने उसे कोसा। पैगंबर ने उस मुसलमान को उस साथी को कोसने से मना किया और कहा: 'उसे मत कोसो, क्योंकि वह अल्लाह और उसके दूत से प्यार करता है।’[4] उस शराबी का अल्लाह और उसके पैगंबर में विश्वास के कारण, वह जो बड़ा पाप कर रहा था उससे उसकी पूरी आस्था खत्म नही हुई।
बड़े पाप कैसे क्षमा किये जाते हैं?
बड़े पाप निम्नलिखित तरीकों से क्षमा किये जा सकते हैं:
ए) ईमानदारी से पश्चाताप करने से, जिसमें पाप को छोड़ना, उसे करने के लिए पश्चाताप करना, और इसे फिर कभी न करने का संकल्प करना शामिल है। यदि पाप में दूसरों के प्रति अन्याय शामिल है, तो उपरोक्त के अलावा, उसे उनके अधिकार या संपत्ति को भी बहाल करना चाहिए या उनसे क्षमा मांगनी चाहिए।
जब अल्लाह अपने दासों में से एक से इस ईमानदार पश्चाताप को देखता है - एक दास जो वास्तव में डर और आशा से अपने ईश्वर की ओर मुड़ता है - तो अल्लाह न केवल उसके पाप को क्षमा करता है, बल्कि उन पापों को अच्छे कामों मे बदल देता है। यह अल्लाह की असीम कृपा और दया है। अल्लाह ऐसा शिर्क, हत्या और व्यभिचार के पापों का उल्लेख करने के ठीक बाद कहता है, वह कहता है: "उसके सिवा, जिसने क्षमा याचना कर ली और ईमान लाया तथा कर्म किया अच्छा कर्म, तो वही हैं, बदल देगा अल्लाह, जिनके पापों को पुण्य से तथा अल्लाह अति क्षमी, दयावान् है" (क़ुरआन 25:70)। यह आशीर्वाद केवल उसी के लिए है जो आस्था रखता है, जिसका पश्चाताप सच्चा है, और जो अच्छे कर्म करने का प्रयास करता है।
बी) अल्लाह की शुद्ध कृपा, उदारता और दुआ से। इसलिए अल्लाह जिसे चाहेगा उसे माफ करेगा, व्यक्ति के वास्तव में पश्चाताप किए बिना।
सी) कुछ विद्वानों के अनुसार हज करने जैसे कुछ कृत्यों के करने से।
उस व्यक्ति का भाग्य जो बड़े पापों को करते हुए मर जाता है
वह व्यक्ति जो बड़े पापों का पश्चाताप किये बिना मर जाता है, वह परलोक में अल्लाह की दया पर है। यदि अल्लाह चाहे तो पहले उसे उसके पापो के हिसाब से सजा दे और फिर स्वर्ग में भेज दे। अल्लाह उसे आसानी से भी माफ कर सकता है और बिना किसी सजा के सीधे स्वर्ग भेज सकता है।[5]
बड़े पापों के उदाहरण
दिल के कुछ बड़े पाप हैं घमंड, पाखंड, ईश्वर की दया से निराश होना और ईश्वरीय योजना से सुरक्षित महसूस करना, लालच और ईर्ष्या।
जुबान के कुछ बड़े पाप झूठ बोलना, झूठे वादे करना, बिना ज्ञान के बोलना, पवित्र महिलाओं की निंदा करना, शेखी बघारना और दूसरों का उपहास करना है।
अन्य बड़े पापों में जातिवाद (अन्य लोगों की जाति को नीचा दिखाना), रिश्वतखोरी, माता-पिता की अवज्ञा करना, रिश्तेदारों के साथ संबंध तोड़ना, पड़ोसी को नुकसान पहुंचाना, जानवरों के साथ दुर्व्यवहार करना, ड्रग्स और मादक पेय लेना, व्यभिचार और चोरी करना शामिल हैं।
छोटे और बड़े पापों और बड़े पापों की संख्या के बीच संबंध
बड़े पाप के कितने प्रकार हैं? इनकी संख्या चार सौ से सात सौ तक होती है। एक प्रसिद्ध विद्वान, इमाम अध-धाबी ने 70 पापो को बड़े पापों की सूची मे रखा है। एक अन्य विद्वान इमाम हयतामी ने लगभग 476 प्रमुख पापों का वर्णन किया है। पैगंबर मुहम्मद के प्रसिद्ध साथी इब्न अब्बास (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) ने कहा कि प्रमुख पाप "7 की तुलना में 700 के करीब हैं, सिवाय इसके कि कोई भी पाप 'बड़ा' नहीं होता है जब इसके लिए क्षमा मांग ली जाये (यह तब होता है जब व्यक्ति उचित पश्चाताप (तौबा) कर ले), इसी तरह कोई पाप 'छोटा' नहीं होता है यदि कोई इसे करता रहे।”[6]
छोटे पाप इस तरह बड़े पाप बन सकते हैं:
·पाप मे लगे रहना और बार-बार करते रहना।
·पाप को छोटा आंकना।
·पाप का जश्न मनाना और उस पर गर्व करना।
·पाप की घोषणा करना और दूसरों को बताना।
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