लोड हो रहा है...
फ़ॉन्ट का आकारv: इस लेख के फ़ॉन्ट का आकार बढ़ाएं फ़ॉन्ट का डिफ़ॉल्ट आकार इस लेख के फॉन्ट का साइज घटाएं
लेख टूल पर जाएं

इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका

रेटिंग:

विवरण: इस्लाम में बड़े पापों का अगला भाग। इसमे हम पापों से बचने और अल्लाह से पश्चाताप करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।

द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,589 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य:

·बड़े पापों के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाना।

·बड़े पापों से बचने का तरीका जानना।

·समझना कि बड़े पापों से पश्चाताप कैसे करें।

अरबी शब्द:

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·ज़कात - अनिवार्य दान।

·रमजान - इस्लामी चंद्र कैलेंडर का नौवां महीना। यह वह महीना है जिसमें अनिवार्य उपवास निर्धारित किया गया है।

·हज - मक्का की तीर्थयात्रा जहां तीर्थयात्री कुछ अनुष्ठानों का पालन करते है। हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जिसे हर वयस्क मुसलमान को अपने जीवन में कम से कम एक बार अवश्य करना चाहिए यदि वे इसे वहन कर सकते हैं और शारीरिक रूप से सक्षम हैं।

6. युद्ध मे पीठ दिखाकर भागना प्रमुख पापों में से एक है। यह एक ऐसा कार्य है जो अन्य सैनिकों का मनोबल गिरा सकता है और पूरे समुदाय पर दुश्मन के बेरहम हमले का रास्ता खोल सकता है।

7. जो लोग पवित्र और ईमान वाली महिलाओं की बदनामी करते हैं वे इस जीवन में और परलोक में शापित हैं: उनके लिए एक गंभीर यातना है (क़ुरआन 24:23)। सर्वशक्तिमान अल्लाह यह स्पष्ट करता है कि जो कोई भी एक पवित्र महिला पर व्यभिचार करने का अन्यायपूर्ण आरोप लगाएगा, वह इस दुनिया और परलोक दोनों में शापित होगा।

MajorSins2.jpgहम जिन बड़े पापों की बात कर रहे हैं वे एक प्रामाणिक हदीस से हैं और इन्हें अक्सर सात प्रमुख पापों के रूप में संदर्भित किया जाता है। यह हदीस ये नही कहता कि सिर्फ यही बड़े पाप हैं। हालांकि कई और बड़े पाप हैं, शायद सत्तर तक, और नीचे हमने कुछ अधिक गंभीर पापों को सूचीबद्ध किया है:

·नमाज नही पढ़ना

·ज़कात नहीं देना

·रमजान के दौरान बिना किसी कारण के उपवास तोड़ना

·सक्षम होने पर भी हज नहीं करना

ये गंभीर बड़े पाप आस्था को बनाए रखने और इस्लाम का पालन करने से संबंधित हैं। अपने धार्मिक कर्तव्यों की उपेक्षा करने के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा, "इस्लाम पांच स्तंभों पर बना है: इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अलावा कोई सच्चा ईश्वर नही है और मुहम्मद अल्लाह के दूत हैं, नमाज़ पढ़ना, ज़कात देना, हज करना (काबा की तीर्थयात्रा), और रमजान के महीने का उपवास।[1]

परिवारों और समुदायों को नुकसान पहुंचाने वाले अन्य बड़े पाप अधिक चिंताजनक हैं। उदाहरण के लिए, पैगंबर मुहम्मद ने एक प्रामाणिक हदीस में कहा, "जो व्यक्ति अपने पड़ोसी का हक मारता है, वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा।[2] यही कारण है कि अल्लाह ने कई कार्यों को मना किया है और इसे बड़ा पाप माना जाता है। इनमें निम्नलिखित बड़े पाप शामिल हैं:

·अपने माता-पिता के प्रति अनादर दिखाना

·अपने रिश्तेदारो से रिश्ता तोड़ना

·शराब पीना

·जुआ खेलना

·चोरी

·रिश्वत

·व्यभिचार

·गुदामैथुन

बड़े पापों मे ऐसे पाप भी शामिल हैं जो ईमानदारी और भरोसे के बुनियादी इस्लामी आदर्शों के खिलाफ हैं। भरोसेमंद होने का अर्थ है ईमानदार, व्यवहार में निष्पक्ष और समय का पाबंद होना, साथ ही विश्वास का सम्मान करना और वादों और प्रतिबद्धताओं को निभाना। पैगंबर मुहम्मद को पैगंबरी मिलने से पहले से ही अल-अमीन (भरोसेमंद) माना जाता था। इस प्रकार निम्नलिखित को बड़े पापों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए:

·झूठी गवाही देना

·झूठ बोलना

·चुगली करना

बड़े पापों से बचना

पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "... अधर्म वह है जो आपकी आत्मा में डगमगाता है, और जिसके बारे में लोगों को पता चलना आपको पसंद नही है।”[3] उन्होंने यह भी कहा, “अपने मन को मनाओ। धार्मिकता वह है जिससे आत्मा को सुकून मिले और दिल को सुकून मिले। और अधर्म वह है जो आत्मा में डगमगाता है और छाती में बेचैनी पैदा करता है…”.

व्यक्ति दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ के, क़ुरआन पढ़ के, इस्लाम के पांच स्तंभों का पालन कर के और खुद को अल्लाह की याद मे व्यस्त रख के कई पापों से बच सकता है। ऐसा करने से हमारे पास बहुत कम खाली समय बचता है जिसमें पापपूर्ण व्यवहार हो सके। मनुष्य त्रुटियों और पापों में पड़ जाता है, कम से कम हमें सभी पापों से बचने की पूरी कोशिश करनी चाहिए, विशेष रूप से बड़े पापों से, क्योंकि वे अल्लाह को बहुत नापसंद हैं और, जैसा कि हम जानते हैं, वे इस जीवन और परलोक में हमारी सुख चैन को खतरे में डालते हैं। और जब हम किसी पाप में पड़ जाएं, तो हमें उससे पश्चाताप करना चाहिए और अल्लाह की दया और क्षमा की भीख मांगनी चाहिए।

बहुत से लोगों को लगता है कि उनके पाप बहुत बड़े हैं और वे बार-बार पाप करते हैं तो अल्लाह उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। हालांकि इस्लाम क्षमा का धर्म है और अल्लाह क्षमा करना पसंद करता है। यहां तक कि यदि मानवजाति के पाप आकाश में बादलों तक पहुंच जाए, अल्लाह उन्हें क्षमा कर देगा और तब तक क्षमा करता रहेगा जब तक कि प्रलय का समय न आ जाए।

“परन्तु जिन्होंने क्षमा मांग ली तथा विश्वास किया और सदाचार किये, तो वही स्वर्ग में प्रवेश करेंगे और उनपर तनिक अत्याचार नहीं किया जायेगा।” (क़ुरआन 19:60)

व्यक्ति को संतुष्ट जीवन जीने के लिए पश्चाताप करना आवश्यक है। पश्चाताप का प्रतिफल मन की शांति और सर्वशक्तिमान की क्षमा और प्रसन्नता है। हालांकि, पश्चाताप करने की तीन शर्तें हैं। वे हैं; पाप करना छोड़ना, पाप करने का पछतावा महसूस करना और उस पाप को कभी दोबारा न करने का संकल्प लेना। अगर इन तीन शर्तों को ईमानदारी से पूरा किया जायेगा, तो अल्लाह माफ कर देगा। यदि पाप का संबंध किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों से था तो इसके लिए चौथी शर्त भी है। यदि संभव हो तो छीने गए अधिकारों को बहाल करना।

इसके साथ ही इस्लाम में बड़े पापों पर हमारे लेख का समापन होता है।



फुटनोट:

[1] सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

[2] सहीह अल-बुखारी

[3] सहीह मुस्लिम

पाठ उपकरण
बेकार श्रेष्ठ
असफल! बाद में पुन: प्रयास। आपकी रेटिंग के लिए धन्यवाद।
हमें प्रतिक्रिया दे या कोई प्रश्न पूछें

इस पाठ पर टिप्पणी करें: इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका

तारांकित (*) फील्ड आवश्यक हैं।'

उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं। यहाँ.
अन्य पाठ स्तर 7