सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
विवरण: पैगंबर मुहम्मद के साथी, दोस्त और ससुर, अबू बक्र की एक संक्षिप्त जीवनी।
द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·अबू बक्र के जीवन के बारे में जानना और इस्लाम के इतिहास में उनके महत्व को समझना।
·पैगंबर मुहम्मद के साथ उनकी निकटता की सराहना करना और इस्लाम की उनकी समझ को स्वीकार करना।
अरबी शब्द
·खलीफा (बहुवचन: खुलाफ़ा) - वह प्रमुख मुस्लिम धार्मिक और नागरिक शासक है, जिन्हें पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी माना जाता है। खलीफा का मतलब सम्राट नही है।
·राशिदुन - सही मार्गदर्शित लोग। अधिक विशेष रूप से, पहले चार खलीफाओं को संदर्भित करने का एक सामूहिक शब्द।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।
·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।
अपनी मृत्यु से पहले, पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने अपने साथियों से कहा था, "मेरे उदाहरण (सुन्नत) और सही मार्ग पर चलने वाले खलीफाओं का दृढ़ता से पालन करना।”[1] जिन्हें पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद सही मार्गदर्शित खलीफा (अल-खुलाफा 'अर-राशिदुन) या राशिदुन के रूप में जाना जाता है, जो इस्लामिक राष्ट्र के पहले चार नेता हैं। आप उनके नामों से परिचित होंगे क्योंकि वे पैगंबर मुहम्मद के करीबी साथी और रिश्तेदार थे। वे अबू बक्र, उमर इब्न अल-खत्ताब, उस्मान इब्न अफ्फान और अली इब्न अबी तालिब हैं। ये लोग अपनी धार्मिकता, अपने उग्र प्रेम और इस्लाम के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते हैं।
अबू बक्र
पहले सही मार्गदर्शित खलीफा अबू बक्र थे। उन्होंने कॉमन युग (सीई) के 632-634 तक खलीफा के अधिकार क्षेत्र पर शासन किया था, लगभग 27 महीने।
अबू बक्र का पूरा नाम अब्दुल्ला इब्न अबी कुहाफा था लेकिन ऊंट पालने के अपने महान प्रेम के कारण उन्हें अबू बक्र कहा जाने लगा। उनका जन्म एक संपन्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था और वयस्क होने तक उन्होंने आसानी से एक सफल व्यापारी के रूप में खुद को स्थापित कर लिया था। वह एक बड़े सामाजिक नेटवर्क के साथ एक मिलनसार संचारी व्यक्ति थे। उस समय अरब के लोग जीवविज्ञान के बारे मे बहुत चिंतित रहते थे और अबू बक्र इसमें विशेषज्ञ थे। अपने सुखद व्यक्तित्व और ज्ञान के कारण वो मक्का समाज में आसानी से घुल-मिल गए थे।
इस्लाम और सुन्नत के इतिहास से हमें पता चलता है कि अबू बक्र पैगंबर मुहम्मद से लगभग 2 साल छोटे थे और दोनों कुरैश के कबीले में पैदा हुए थे, लेकिन अलग-अलग खानदान में। बेशक वे एक-दूसरे के बारे में जानते रहे होंगे लेकिन उनकी आजीवन दोस्ती तब स्थापित हुई जब पैगंबर मुहम्मद ने अपनी पहली पत्नी खदीजा से शादी की और वे पड़ोसी बन गए। उन दोनों मे कई समान विशेषताएं थी। दोनों व्यक्ति व्यापारी थे, जो अपने सभी मामलों को ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के साथ संचालित करते थे। अबू बक्र को अस-सिद्दीक, सच्चे के रूप में जाना जाता था। यह उपाधि स्वयं पैगंबर मुहम्मद ने उन्हें दी थी। वे दोनों ईमानदार चरित्र वाले व्यक्ति थे और उनके संबंध और भी मजबूत हो गए जब पैगंबर मुहम्मद ने अबू बक्र की बेटी आयशा (अल्लाह उन पर प्रसन्न हो) से शादी की।
आयशा ने खुद हमें अपने पिता के चरित्र के बारे में बहुत कुछ बताया है। उन्होंने अपने पिता के बारे में जो बाते बताई हैं उनमें से एक यह थी कि उन्होंने कभी किसी मूर्ति की पूजा नहीं की। अन्य आख्यानों में अबू बक्र ने स्वयं हमें बताया है कि जब वह छोटे बच्चे थे तो उनके पिता उन्हें उस स्थान पर ले जाते थे जहां मूर्तियां रखी होती थी और उन्हें वहां अकेला छोड़ देते थे। उन्होंने इन मूर्तियों का आकलन किया और सोचा कि वास्तव में ये क्या लाभ देते हैं। उन्होंने अपने पिता से पूछा और निश्चित रूप से वे जवाब देने में असमर्थ थे। अबू बक्र सहज रूप से जानते थे कि मूर्तियां पूजा के योग्य नहीं हैं। इससे उनके लिए अपने करीबी दोस्त मुहम्मद द्वारा प्रस्तुत किए गए नए धर्म पर विश्वास करना और उसे अपनाना आसान हो गया।
पहले अबू बक्र।
·वह इस्लाम अपनाने वाले पहले वयस्क पुरुष थे। पैगंबर मुहम्मद ने जब कहा था कि अल्लाह के अलावा पूजा के लायक कुछ भी नहीं है और वह (मुहम्मद) अल्लाह के दूत हैं, तो अबू बक्र ने यह सुन के तुरंत इस्लाम स्वीकार कर लिया था।
·वह इस्लाम के पहले सार्वजनिक वक्ता थे। जब मुसलमानो की संख्या 40 से कम थी, तब अबू बक्र सार्वजनिक रूप से इस्लाम के संदेश का प्रचार करना चाहते थे। पैगंबर मुहम्मद ने यह सोचकर ये करने से मना कर दिया था कि जोखिम उठाने के लिए ये संख्या बहुत कम है, लेकिन अबू बक्र ने इस पर जोर दिया। पैगंबर मुहम्मद को अंततः अल्लाह ने संदेश को सार्वजनिक करने का आदेश दिया और वो अबू बक्र के साथ काबा गए जहां अबू बक्र ने घोषणा की, "अल्लाह के अलावा कोई भी पूजा के योग्य नहीं है, और मुहम्मद उनके दास और दूत हैं।”
·वह सभी अच्छा काम करने वाले मुसलमानों में, अच्छा काम करने वाले पहले व्यक्ति होते थे। इसका मतलब यह है कि उन्होंने कभी संकोच नहीं किया बल्कि सही तरीके से काम करने का कोई मौका जाने नही दिया। पैगंबर मुहम्मद के भतीजे, अली इब्न अबी तालिब ने अबू बक्र की कोई भी अच्छे काम को करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में प्रशंसा की।[2] इस्लाम में, अच्छा काम करने के लिए एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाता है।
·वह पहले खलीफा थे। पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद मुसलमान दुखी और परेशान थे लेकिन इस महान संकट के दौरान उन्होंने अबू बक्र को अपना सरदार चुना।
·वह इस उम्मत के पहले व्यक्ति होंगे जो स्वर्ग में जायेंगे। हम अबू बक्र के बारे में पैगंबर की सुन्नत से सीखते हैं।[3]पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "स्वर्गदूत जिब्रील (गेब्रियल) मेरे पास आए और मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वह द्वार दिखाया जिससे मेरी उम्मत स्वर्ग में जाएगी।" अबू बक्र ने तब कहा "काश मैं उस द्वार को देखने के लिए आपके साथ होता", जिस पर पैगंबर मुहम्मद ने उत्तर दिया "अबू बक्र, आपको पता होना चाहिए कि आप स्वर्ग में प्रवेश करने वाली मेरी उम्मत के पहले व्यक्ति होंगे।” [4]
रक्षक अबू बक्र।
·इस्लाम के आगमन पर मक्का के नेताओं ने क्रूरता का एक अभियान चलाया जिससे नए मुसलमानों का जीवन बहुत कठिन हो गया, विशेष रूप से आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्ति जिसमे कई गुलाम शामिल है। उत्पीड़न और दुर्व्यवहार नए धर्म को तोड़ने के लिए था और यह सफल भी हो गया होता यदि अबू बक्र जैसे लोगों की ताकत और साहस न होती। वह उस समय एक अमीर और प्रभावशाली व्यापारी थे जो कई दासों को उनके स्वामी से खरीदकर और उन्हें मुक्त करके उनकी पीड़ा को कम करते थे। जिन दासों को उन्होंने आज़ाद किया था उनमें से एक बिलाल थे, वह व्यक्ति जिसने सबसे पहले विश्वासियों को प्रार्थना के लिए बुलाया था।
भाग 2 में जारी रहेगा।
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