सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
विवरण: पैगंबर मुहम्मद के साथी, दोस्त और इस्लाम के दूसरे सही मार्गदर्शित खलीफा की एक संक्षिप्त जीवनी।
द्वारा Aisha Stacey (© 2013 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 21 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,369 (दैनिक औसत: 3)
उद्देश्य:
·उमर इब्न अल-खत्ताब के जीवन के बारे में जानना और इस्लाम के इतिहास में उनके महत्व को समझना।
अरबी शब्द:
·खलीफा (बहुवचन: खुलाफ़ा) - वह प्रमुख मुस्लिम धार्मिक और नागरिक शासक है, जिन्हें पैगंबर मुहम्मद का उत्तराधिकारी माना जाता है। खलीफा का मतलब सम्राट नही है।
·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।
·काबा - मक्का शहर में स्थित घन के आकार की एक संरचना। यह एक केंद्र बिंदु है जिसकी ओर सभी मुसलमान प्रार्थना करते समय अपना रुख करते हैं।
·राशिदुन - सही मार्गदर्शित लोग। अधिक विशेष रूप से, पहले चार खलीफाओं को संदर्भित करने का एक सामूहिक शब्द।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
सही मार्गदर्शित खलीफाओं (अल-खुलाफा 'अर-राशिदुन) में से दूसरे उमर इब्न अल-खत्ताब थे। वो पहले व्यक्ति थे जिन्हे आस्तिकों का कमांडर की उपाधि मिली थी। अबू बक्र की मृत्यु के बाद उमर ने उम्मत की कमान संभाली। वह 634 सीई था और उमर ने लगभग 10 वर्षों तक शासन किया।
उमर का जन्म पैगंबर मुहम्मद के जन्म के लगभग 11 साल बाद एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनकी परवरिश बहुत कठोर थी, उनके पिता उन्हें मारते थे और कभी-कभी उनसे थकावट की हद तक काम करवाते थे। इसके बावजूद उमर साक्षर थे जो पूर्व-इस्लामिक अरब में एक असामान्य बात थी, और वह एक अच्छे शरीर और कद काठी वाले थे जो अपने उग्र आचरण और कुश्ती कौशल के लिए जाने जाते थे।
जैसे-जैसे उमर जवान होते गए, उन्होंने अपने पिता और मौसी के लिए चरवाहे के रूप मे कार्य करके अर्जित आय के साथ-साथ कुश्ती प्रतियोगिताओं में शामिल होकर अपनी आय को बढ़ाया। उनके कौशल में वृद्धि होती गई और साथ ही साथ उनके व्यापार कौशल में भी वृद्धि हुई। जब पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने लोगों को खुले तौर पर इस्लाम में बुलाना शुरू किया, तब तक उमर एक सफल व्यापारी बन चुके थे।
उमर की सच्चाई की राह इस्लाम के प्रति अति घृणा से शुरू हुई थी। उमर मक्का के उन लोगों में से थे जो इस्लाम को आर्थिक विकास और स्थिरता के लिए एक बाधा मानते थे, इस प्रकार उन्होंने नए धर्म का उपहास करने के लिए अपनी अपार शक्ति और प्रभाव का इस्तेमाल किया और उन्होंने खुले तौर पर इस्लाम मे धर्मान्तरित कुछ कमजोर लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया और उनको यातना दी। उमर की नफरत इस्लाम के प्रति इतनी थी कि उन्होंने स्वेच्छा से पैगंबर मुहम्मद को मारने और मक्का में हो रहे परिवर्तनों को समाप्त करने का फैसला किया था।
उमर के इस्लाम में धर्मांतरण की पूरी कहानी कई वेबसाइटों पर मिल सकती है।[1] हालांकि, संक्षिप्त मे हम कह सकते हैं कि अल्लाह ने उसे पैगंबर मुहम्मद को मारने से रोका और साथ ही क़ुरआन की सुंदर ध्वनि के माध्यम से उनका दिल बदल दिया। जब उमर ने पैगंबर मुहम्मद की हत्या करने के अपने इरादे की घोषणा की, तो एक युवा आस्तिक ने यह बताकर उन्हें भटकाने की कोशिश की कि उमर की अपनी प्यारी बहन और उनके पति ने इस्लाम धर्म अपना लिया है। इसका वांछित प्रभाव पड़ा और उमर ने अपना इरादा बदल दिया। उमर इससे इतना नाराज थे कि उन्होंने अपनी बहन पर हमला किया और उसे बहुत नुकसान पहुंचाया, यहां तक कि उनकी बहन का खून भी निकलने लगा था, हाथापाई हुई लेकिन कुछ मिनटों के बाद उमर को एहसास हुआ कि उसने अपनी बहन को चोट पहुंचाई है और वह शांत हो गए। उन्होंने क़ुरआन के उन हिस्सों को सुनाने के लिए कहा जो उनकी बहन उनके घर में घुसने से पहले पढ़रही थी।
उमर की आंखो में पश्चाताप और खुशी के आंसू भर गए और वह इस्लाम और अल्लाह के दूत के लिए अपने प्यार की घोषणा करते हुए पैगंबर मुहम्मद के पास पहुंचे। कुछ ही दिनों में उमर विश्वासियों के एक जुलूस को काबा तक ले गए जहां उन्होंने खुलेआम प्रार्थना की। उमर ने इस्लाम को मजबूत किया; उनकी भयंकर घृणा प्रेम बन गई और उन्होंने घोषणा की कि उनका जीवन और उनकी मृत्यु अब अल्लाह और उसके दूत मुहम्मद की है। पहले दो राशिदुन, अबू बक्र और उमर इब्न अल-खत्ताब करीबी दोस्त बन गए और वे पैगंबर मुहम्मद के सबसे करीबी साथी थे। अली इब्न अबी तालिब ने कहा है कि पैगंबर मुहम्मद अबू बक्र और उमर के साथ सुबह बाहर जाते और वह रात में अबू बक्र और उमर के साथ लौटते।
उमर इब्न अल-खत्ताब एक पवित्र और उदार व्यक्ति थे। वह अक्सर रातें उपासना में बिताते थे, और वह अल्लाह के स्वर्ग के वादे में पक्का विश्वास रखते थे। उमर ने अपनी दौलत अल्लाह की खातिर और ईमान वालों की भलाई के लिए ख़र्च कर दी। उमर ने एक बार 22,000 दिरहम जरूरतमंदों मे बांटे थे और उन्हें चीनी के बैग बांटने की आदत थी। जब उमर से पूछा गया कि वो चीनी क्यों बांटते हैं, तो उन्होंने कहा, "क्योंकि ये मुझे पसंद है और ईश्वर ने कहा है, 'तुम पुण्य नहीं पा सकोगे, जब तक उसमें से दान न करो, जिससे मोह रखते हो तथा तुम जो भी दान करोगे, वास्तव में, अल्लाह उसे भली-भांति जानता है।(क़ुरआन 3:92)
पैगंबर और अबू बक्र के बाद उमर धार्मिकता में सबसे अच्छे थे। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "मेरे बाद आने वाले दो लोगों के उदाहरण का पालन करें, अबू बक्र और उमर।[2]सुन्नत उमर इब्न अल-खत्ताब के गुणों के उदाहरणों से भरी हुई है, जिसमें पैगंबर मुहम्मद का यह गहरा और महत्वपूर्ण कथन शामिल है। “तुम से पहले जो जातियां आई है उसमे से कुछ प्रेरित हुए थे; अगर मेरी उम्मत में से किसी को प्रेरणा मिलती तो वह उमर होता।"[3]
उमर पैगंबर मुहम्मद से इतना प्यार करते थे कि मुस्लिम सेनाओं ने जितनी लड़ाइयां लड़ी उसमे वे पैगंबर के करीब रहना चाहते थे। यह माना जाता है कि उमर पहली लड़ाई, अर्थात बद्र की लड़ाई और उन सभी लड़ाइयों में मौजूद थे जिसमे अल्लाह के दूत मौजूद थे। उमर एक महान व्यक्ति और एक महान नेता थे; वास्तव में उनकी आस्था, ज्ञान, बुद्धि, दृष्टिकोण और प्रभाव सभी असाधारण थे और सभी अल्लाह और उनके दूत के साथ उनके मजबूत संबंधों पर आधारित थे।
जब पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु हुई तो पूरी उम्मत सदमे की स्थिति में चली गई। लेकिन कोई भी उमर से ज्यादा सदमे मे नही था, उन्होंने खुद को खोया हुआ और नियंत्रण से बाहर महसूस किया, यहां तक कि उन्होंने मानने से भी इनकार कर दिया कि पैगंबर मुहम्मद का निधन हो गया है। अबू बक्र को मामलों को अपने हाथों में लेना पड़ा और उन्होंने लोगों को उमर से दूर रहने के लिए कहा। अपने प्रसिद्ध संबोधन में उन्होंने (अबू बक्र) ने कहा, "तुम में से जिसने भी मुहम्मद की पूजा की, वह जान लें कि मुहम्मद मर गया है, लेकिन जिसने भी अल्लाह की पूजा की, वह जान लें कि अल्लाह जीवित है और कभी नहीं मरेगा।" फिर उन्होंने क़ुरआन 3:144 को पढ़ा, "मुह़म्मद केवल एक दूत हैं, इससे पहले बहुत-से दूत हो चुके हैं, तो क्या यदि वो मर गये अथवा मार दिये गये, तो तुम अपनी एड़ियों के बल फिर जाओगे (अविश्वासी हो जाओगे)? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जायेगा, वो अल्लाह को कुछ हानि नहीं पहुंचा सकेगा और अल्लाह शीघ्र ही कृतज्ञों को प्रतिफल प्रदान करेगा।" लोग सदमे से बाहर आये, जैसे कि उन्होंने इस छंद को पहले कभी नहीं सुना था, निश्चित रूप से उन्होंने इसे पहले सुना था। जो लोग दुखी थे वे सब इसे पढ़ने लगे। उमर ने कहा कि अबू बक्र का पाठ सुनते ही उन्हें चक्कर आने लगा और वे जमीन पर गिर पड़े। तब वह समझ गए कि पैगंबर मुहम्मद मर चुके हैं।
जब अबू बक्र पहले सही निर्देशित खलीफा बने, तो उमर ने उनके प्रति निष्ठा की शपथ ली और दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से निष्ठा की शपथ ली। उमर इब्न अल-खत्ताब को यह नही पता था कि केवल दो वर्षों में वह दूसरे खलीफा के रूप में उम्मत के सामने खड़े होंगे।
भाग 2 में जारी रहेगा
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास