कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
विवरण: मृत्यु के बाद व्यक्ति के साथ क्या होता है।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,788 (दैनिक औसत: 4)
उद्देश्य:
·यह समझना कि कब्र परलोक के जीवन का पहला चरण है।
अरबी शब्द:
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।
·बरज़ख - इस जीवन और पुनरुत्थान के बीच का मध्यवर्ती चरण।
·ग़ैब - छुपा हुआ, अदृश्य या अज्ञात।
कब्र मृत्यु के बाद शरीर का निवास स्थान है और मृत्यु एक ऐसी चीज है जो सबको आएगी। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता और न ही यह छिपा हुआ है। हम में से प्रत्येक को मृत्यु आएगी। अल्लाह की इच्छा के अनुसार कुछ लोग अन्य की तुलना में पहले मरेंगे, लेकिन जो भी जीवित है वह अपने नियत समय पर मर जाएगा, चाहे वह धार्मिक हो या दुष्ट। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम में से प्रत्येक यह समझे कि हमारे मरने के बाद क्या होगा। हम मरते हैं और हम दफन हो जाते हैं लेकिन वह अंत नहीं है, इसके विपरीत यह सिर्फ शुरुआत है।
“प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है...” (क़ुरआन 3:185)
अल्लाह के पैगंबरो ने लोगों को एक ईश्वर, सर्वशक्तिमान अल्लाह की पूजा करने के लिए बुलाया, और उन्होंने लोगों को मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करना भी सिखाया। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण अवधारणा थी, इतना अधिक महत्वपूर्ण कि इस पर अविश्वास करने वाले के सभी विश्वास अर्थहीन हैं। इसके अनुसार, 'आस्था के स्तंभों' में से एक मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करना है। इस जीवन को अक्सर परलोक कहा जाता है, और परलोक का पहला चरण क़ब्र का जीवन है।
एक प्रामाणिक हदीस में पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "कब्र परलोक का पहला चरण है..."[1] इस बात को ध्यान में रखते हुए यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह सांसारिक जीवन परीक्षणों और समस्याओं की एक श्रृंखला है जो परलोक में हमारा पद निर्धारित करती है। सभी कार्यों को रिकॉर्ड किया जाता है और इसके आधार पर व्यक्ति को परलोक मे सजा या इनाम मिलता है।
“ये तुम्हारे करतूतों का दुष्परिणाम है तथा वास्तव में, अल्लाह बंदों के लिए तनिक भी अत्याचारी नहीं है।” (क़ुरआन 3:182)
“और ये स्वर्ग है, जिसके तुम उत्तराधिकारी बनाये गये हो, अपने कर्मों के बदले, जो तुम कर रहे थे (संसार के जीवन में)।” (क़ुरआन 43:72)
कब्र के जीवन को अक्सर बरज़ख का जीवन कहा जाता है। बरज़ख का शाब्दिक अर्थ है एक बाधा, अवरोध या ऐसा कुछ जो एक चीज को दूसरे से अलग करता है जैसे क़ुरआन में यह निम्नलिखित विवरण:
“उसने दो सागर बहा दिये, जिनका संगम होता है। उन दोनों के बीच एक आड़ है। वह एक-दूसरे से मिल नहीं सकते।” (क़ुरआन 55:19-20)
इस तरह यह एक बाधा है जिसे अल्लाह की अनुमति के बिना पार नहीं किया जा सकता है। जीवन और मृत्यु के संदर्भ में, बरज़ख एक व्यक्ति की मृत्यु और न्याय के दिन पर उसके पुनरुत्थान के बीच की अवधि है। बरज़ख का जीवन ग़ैब की बात है और इसलिए इसका विवरण सिर्फ अल्लाह जानता है। हालांकि अल्लाह ने ग़ैब के कुछ मामलों को पैगंबर मुहम्मद को प्रकट किया और उन्होंने उन चीजों को हमें बताया।
किसी भी व्यक्ति को दफ़नाने के बाद पैगंबर मुहम्मद अपने साथियों से अपने भाई या बहन के लिए क्षमा मांगने और अल्लाह से प्रार्थना करने के लिए कहते ताकि मृत व्यक्ति कब्र की पूछताछ के समय दृढ़ रहे।[2] ऐसा इसलिए क्योंकि पैगंबर मुहम्मद ने कहा था कि दफनाने के बाद जो होता है वह वास्तव में बहुत मुश्किल हो सकता है। अपने सहाबियों को यह बताने के बाद कि कब्र परलोक का पहला चरण है, पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "... अगर कोई मोक्ष (इस स्तर पर) पाता है तो उसके लिए इसके बाद का (चरण) आसान हो जाता है, और अगर उसे इसमें मोक्ष नहीं मिलता है, इस चरण के बाद जो कुछ भी होगा है वह उसके लिए बहुत कठिन होगा।" पैगंबर मुहम्मद की प्यारी पत्नी आयशा बताती हैं कि पैगंबर नियमित रूप से कब्र की पीड़ा और समस्या से अल्लाह की शरण मांगते थे।[3] और इस्लाम के विद्वान समस्या को कब्र के प्रश्न मानते हैं।
इस प्रकार हमारे लिए यह उचित होगा कि हम उनके उदाहरण का अनुसरण करें और कब्र में दंड से बचने के लिए अल्लाह की शरण मांगे। पैगंबर मुहम्मद खुद, अपेक्षाकृत लंबे लेकिन बहुत वर्णनात्मक और जानकारीपूर्ण हदीस में बहुत स्पष्ट रूप से बताते हैं कि पूछताछ से पहले क्या होगा। यह एक ऐसा विषय था जिसमें साहबा को बहुत दिलचस्पी थी और जब भी पैगंबर मुहम्मद कब्र के जीवन के बारे में बताते, सभी सहाबी पक्षियों की तरह स्थिर और शान्ति से बैठ के सुनते।[4]
“जब कोई विश्वासी दास इस दुनिया को छोड़कर परलोक में प्रवेश करने वाला होता है, तो उसके पास सूरज की तरह सफेद चेहरे वाले स्वर्गदूत आते हैं, और वे उसके चारों ओर बैठते हैं जहां तक उसकी आंख देख सकती है। वे अपने साथ जन्नत से कफन और जन्नत से इत्र लाते हैं। फिर मृत्यु का दूत आता है और उसके सिर के पास बैठता है, और वह कहता है, 'ऐ अच्छी आत्मा, अल्लाह की खुशी और उसकी क्षमा के लिए आगे आओ।' फिर उसकी आत्मा बड़ी आसानी से निकलेगी जैसे चमड़े वाले पानी के बर्तन से पानी की एक बूंद निकलती है। जब स्वर्गदूत उसकी आत्मा पकड़ लेंगे, तो वे उसे अपने हाथ में एक पल के लिए भी नहीं रखेंगे और उसे कफन में इत्र के साथ डालेंगे, और उसमें से पूरी पृथ्वी पर मौजूद सबसे बेहतरीन कस्तूरी जैसी सुगंध आएगी। फिर वे उसकी आत्मा लेकर आसमान मे चढ़ेंगे, और सबसे निचले आसमान तक पहुंचने से पहले स्वर्गदूतों के सभी समूह जो उसके पास से गुजरेंगे वो पूछेंगे, 'यह भली आत्मा कौन है?' और वे उसके सबसे अच्छे नाम लेंगे जिससे वह इस दुनिया में जाना जाता था और कहेंगे, 'ये फलां है और फलां का बेटा है।' वे आसमान को उनके लिए खोलने के लिए कहेंगे और उसे खोल दिया जायेगा, और (आत्मा) का स्वागत किया जायेगा और फिर उसके साथ अगले आसमान तक वे जायेंगे जो अल्लाह के सबसे करीब हैं, जब तक वे सातवें आसमान तक नहीं पहुंच जाएं। फिर अल्लाह कहेगा: 'इसका पद पुस्तक में लिख लो और उसे पृथ्वी पर वापस लौटा दो, क्योंकि उसी से मैं ने उन्हें उत्पन्न किया है, मैं उन्हें उसी की ओर लौटा रहा हूं और उसी में से एक बार फिर उन्हें निकलूंगा।' फिर उसकी आत्मा उसके शरीर मे फिर से प्रवेश कर जाएगी, और दो स्वर्गदूत उसके पास आएंगे और उसे बैठाएंगे।”
इस लेख के दूसरे भाग में जारी रहेगा।
- इस्लाम में परवरिश (2 का भाग 1)
- इस्लाम मे परवरिश (2 का भाग 2)
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 1): बड़ा पाप क्या होता है?
- इस्लाम में बड़े पाप (2 का भाग 2): बड़े पाप और इनसे पश्चाताप करने का तरीका
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 1)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 2)
- तीर्थयात्रा (हज) (3 का भाग 3)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अबू बक्र (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उमर इब्न अल-खत्ताब (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: उस्मान इब्न अफ्फान (2 का भाग 2)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 1)
- सही मार्गदर्शित खलीफा: अली इब्न अबी तालिब (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 1): दिन शुरू होगा
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 2): न्याय से पहले
- न्याय के दिन की घटनाएं (3 का भाग 3): न्याय शुरू होगा
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 1)
- इस्लाम में ब्याज (2 का भाग 2)
- सूरह अल-अस्र की व्याख्या
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 1): मृत्यु अंत नहीं है
- कब्र में प्रश्न (2 का भाग 2): न्याय के दिन तक आपका ठिकाना
- तकवा के फल (2 का भाग 1)
- तकवा के फल (2 का भाग 2)
- सूरह अल-इखलास की व्याख्या
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 1): पड़ोसियों के साथ दयालु व्यवहार
- इस्लाम में पड़ोसियों के अधिकार (2 का भाग 2): पड़ोसी - अच्छा और बुरा
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 1): अल्लाह की दया प्रकट होगी
- जब कोई छाया न होगी तो इन लोगो को छाया में रखा जायेगा (2 का भाग 2): छाया मे रहने का प्रयास