पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
विवरण: पैगंबर मुहम्मद के सबसे महान साथियों में से एक सलमान अल-फ़ारसी की एक संक्षिप्त जीवनी।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·सलमान अल-फ़ारसी के जीवन के बारे में जानना, और सच्चाई की तलाश करने और उसे अपनाने के लिए उनके संघर्ष के बारे मे जानना।
अरबी शब्द
·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।
·दुआ - याचना, प्रार्थना, अल्लाह से कुछ मांगना।
सलमान अल-फ़ारसी एक सहाबी थे। उन्हें सलमान फारसी भी कहा जाता है। फारस देश को पर्शिया नाम से जाना जाने लगा है। माना जाता है कि उनका जन्म एक बहुत अमीर और प्रभावशाली परिवार में हुआ था। सलमान ईसाई बन गए, अपने पिता का घर छोड़ दिया, और एक लंबी धार्मिक खोज शुरू की। उन्होंने सीरिया और फिर मध्य अरब की यात्रा की, उस पैगंबर की तलाश में जो पैगंबर इब्राहिम के धर्म को पुनर्जीवित करेगा,जैसा की उन्हें बताया गया था। रास्ते में उन्हें गुलामी में बेच दिया गया। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने सलमान को आजाद करवाने मे प्रभावशाली भूमिका निभाई और वह पैगंबर के करीबी साथी, एक अभिनव योद्धा और इस्लाम के एक महान विद्वान बन गए।
जन्म के समय सलमान का नाम रूज़ेबा था, इनका जन्म 565 सीई के आसपास इस्फ़हान, फारस के जयन गांव में हुआ था। उनके पिता गांव के मुखिया थे और एक अमीर और प्रभावशाली व्यक्ति थे। उनके पास एक उपजाऊ संपत्ति पर एक बड़ा घर था और वह स्थानीय पारसी पुजारी भी थे। सलमान का पालन-पोषण पारसी धर्म में हुआ जिसमें आग एक प्रतीकात्मक लेकिन केंद्रीय भूमिका निभाती है। छोटी सी उम्र में ही सलमान को अपने धर्म का इतना ज्ञान हो गया था कि उन्हें 'आग का संरक्षक' नियुक्त कर दिया गया था। सलमान के पिता उनके प्रति बहुत समर्पित थे और उन्हें घर के करीब रखना पसंद करते थे और उन्हें कभी भी संपत्ति या मंदिर से दूर नहीं जाने देते थे। हालांकि सलमान को ज्ञान की एक अतृप्त प्यास लगी और उन्होंने इसकी खोज हर उस जगह की जहां वो कर सकते थे।
एक दिन सलमान के पिता बहुत व्यस्त थे और उन्होंने अपने बेटे को किसी व्यवसाय की देखरेख के लिए रियासत के दूर-दराज के इलाकों में भेज दिया; सलमान इससे पहले इतना दूर कभी नहीं गए थे। रास्ते में उन्होंने ईसाइयों की प्रार्थना की मधुर ध्वनि सुनी। सलमान ईसाई धर्म के प्रति आकर्षित हुए, लेकिन घर लौटने पर उन्हें और अधिक जानने या उनकी मंडली में शामिल होने से रोक दिया गया। उनके पिता ने सलमान को जबरन रोका लेकिन वह मुक्त हो गए और सीरिया में यात्रा करने वाले एक ईसाई कारवां में शामिल हो गए। इस प्रकार उन्होंने अपना देश छोड़ दिया जिसे आत्मज्ञान की आध्यात्मिक यात्रा के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
सलमान ने एक पोप के संरक्षण में ईसाई धर्म अपना लिया, जिसके साथ उन्होंने कई वर्षों तक यात्रा की। उन्होंने ज्ञान के लिए अपनी खोज फिर से शुरू की और अरब प्रायद्वीप की ओर यात्रा की। वह कई ईसाइयों, भिक्षुओं, उपदेशकों और पुजारियों के संपर्क में आये लेकिन कोई भी उनके पिछले शिक्षक से अधिक सक्षम नहीं था। एक दिन उनकी मुलाकात एक बहुत बूढ़े और बीमार पुजारी से हुई जिसने सलमान को यथ्रिब[1] में अंतिम पैगंबर के आने के बारे में बताया और उन्हें सूचित किया कि इस पैगंबर की विशेषताओं का उल्लेख बाइबिल में विस्तार से किया गया है।
सलमान एक अरब कारवां के साथ यथ्रिब शहर के लिए रवाना हुए। यात्रा में कुछ ही समय के बाद अरबों ने सलमान के साथ अपना समझौता तोड़ दिया और उन्हें बंदी बना लिया। कुछ दिनों बाद सलमान को यथ्रिब के एक यहूदी जनजाति के एक व्यक्ति को बेच दिया गया। इस प्रकार सलमान पैगंबर मुहम्मद से कुछ साल पहले यथ्रिब पहुंचे और उन सभी वर्षों मे उन्हें परेशानी और पीड़ा का सामना करना पड़ा।
इससे पहले कि सलमान पैगंबर मुहम्मद से मिलते और उनसे बात करते, सच्चाई की उनकी खोज प्रभावशाली थी और आज कई लोगों द्वारा की गई खोज के विपरीत नहीं है। नए मुसलमानों को एक धर्म से दूसरे धर्म में जाने की बात करते हुए सुनना असामान्य नहीं है, सच्चाई के प्रकाश की तलाश में और उस चिंगारी के लिए जिसे केवल उनकी आत्मा पहचानती है। अब तक सलमान ने ज्ञान प्राप्त करने में कई साल बिताए दिए थे और यह जान गए थे कि कुछ छूट रहा है। उन्होंने दिल की पीड़ा और प्रताड़ना को सहन किया है और विपरीत परिस्थितियों में उनका धैर्य एक मनोरम फल देने वाला था।
जब सलमान ने पहली बार यथ्रिब में एक आदमी के खुद को पैगंबर कहने के बारे में सुना, तो वह उससे मिलने के लिए उत्सुक हुए और उन्होंने अपने क्रूर मालिक की नज़रों से बचकर उस आदमी से मिलने का रास्ता निकाला। सलमान ने पैगंबरी के संकेतों की पुष्टि करने का एक तरीका खोजा, जिसके बारे में पुराने पुजारी ने उन्हें बताया था और जब वह उन संकेतों के बारे में आश्वस्त हो गए, तो उन्होंने रोते हुए खुद को पैगंबर मुहम्मद को समर्पित कर दिया और उनके हाथों और पैरों को चूमने लगे। पैगंबर मुहम्मद ने उन्हें खड़ा किया और कहा, "ऐ सलमान, अपनी कहानी सुनाओ।”[2] सहाबा ने शायद उसी तरह से विस्मय से सुना जैसे आज नए मुसलमान उन लोगों की कहानियां सुनते हैं जो इस्लाम में परिवर्तित हो गए हैं और ऐसा करने के लिए अक्सर सब कुछ छोड़ देते हैं।
आइए देखते हैं आगे क्या हुआ, इस बारे में खुद सलमान का क्या कहना है। वह कहते हैं... "जब मैंने बता दिया, तो पैगंबर ने कहा, 'ऐ सलमान! अपने आपको मुक्त करने के लिए अपने स्वामी के साथ एक समझौता करो।' मेरे स्वामी ने मुझे निम्नलिखित के बदले में मुक्त करने के लिए सहमति व्यक्त की: 'तीन सौ खजूर के पेड़, साथ ही एक हजार छह सौ चांदी के सिक्के।' इसलिए, प्रत्येक सहाबा ने लगभग बीस से तीस खजूर के पौधे देकर मदद की…। पैगंबर ने मुझसे कहा, 'हर खजूर के पौधे के लिए एक गड्ढा खोदो और जब ये कर लो, तो मुझे बताना ताकि मैं खुद सभी खजूर के पौधों को अपने हाथों से लगा सकूं।' इस प्रकार, अपने दोस्तों की मदद से मैंने खजूर के पौधे लगाने के लिए गड्ढे खोदे।
इसके बाद पैगंबर आए। पैगंबर जब पौधों को जमीन में गाड़ रहे थे तो हम उनके साथ खड़े थे... एक भी पौधा नहीं मरा... मुझे अभी भी चांदी के सिक्के देने थे। एक आदमी सोना लेकर आया जो लगभग एक कबूतर के अंडे के आकार का था। पैगंबर ने कहा, 'ऐ सलमान! इसे ले लो और आपको जो भुगतान करना है उसे करो। अल्लाह निश्चित रूप से इसे तुम्हारे कर्ज के लिए पर्याप्त कर देगा।' यह एक हजार छह सौ सिक्कों से अधिक था। मैंने न केवल अपना भुगतान किया, बल्कि जितना भुगतान किया था उतना ही मेरे पास बच गया था।”
सलमान की कहानी उन कहानियों से भिन्न नहीं है जो आज हम नए मुसलमानों से सुनते हैं। बहुत से लोग उन पर अल्लाह के आशीर्वाद की बात करेंगे, या बताएंगे कि उनकी दुआ का जवाब लगभग तुरंत मिल गया। अल्लाह नए मुसलमानों का खास ख्याल रखता है और जानता है कि उन्होंने किन मुश्किलों का सामना किया है और आगे क्या संघर्ष आने वाला है। सलमान इस बात का एक बड़ा उदाहरण हैं कि कैसे इस्लाम में परिवर्तित होने वाले अपने नए धर्म और जीवन के तरीके को अपनाने में सक्षम होते हैं। उन्होंने दिखाया कि आत्मज्ञान की खोज अंततः व्यक्ति को सत्य की ओर ले जाती है। सलमान फ़ारसी इस्लाम में परिवर्तित होने वाले पहले व्यक्ति थे और क़ुरआन के कुछ हिस्सों का अरबी के अलावा किसी अन्य भाषा में अनुवाद करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्हें इस्लामी इतिहास में युद्ध के अपने अभिनव तरीकों और पैगंबर मुहम्मद के साथ उनकी निकटता के लिए जाना जाता है। सलमान अल-फ़ारसी ने इस्लाम के इतिहास पर अपनी अनूठी छाप छोड़ी और माना जाता है कि उनकी मृत्यु 655 सीई के आसपास हुई थी।
पिछला पाठ: वैध कमाई
अगला पाठ: पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्?
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)