पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
विवरण: सहाबी अबू हुरैरा की एक संक्षिप्त जीवनी।
द्वारा Aisha Stacey (© 2014 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
प्रिंट किया गया: 20 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,789 (दैनिक औसत: 4)
उद्देश्य:
·यह समझना कि हर किसी के पास अद्वितीय और विशेष उपहार होते हैं।
·इस्लाम और मानवजाति को लाभ पहुंचाने के लिए मुसलमानों को अपने उपहारों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना।
अरबी शब्द:
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
·हिज्राह - एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना। इस्लाम में, हिज्राह मक्का से मदीना की ओर पलायन करने वाले मुसलमानों को संदर्भित करता है और इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत का भी प्रतीक है।
·कुन्या - यह अक्सर अरबी नाम का पहला भाग होता है, सैद्धांतिक रूप से यह वाहक के पहले जन्मे बेटे या बेटी को संदर्भित करता है। विस्तार से, इसमें काल्पनिक या रूपक संदर्भ भी हो सकते हैं, उदाहरण के लिए एक उपनाम, बिना किसी बेटे या बेटी का शाब्दिक उल्लेख किए। इसे अबू या उम्म के प्रयोग से व्यक्त किया जाता है, उदाहरण के लिए उम्म मुहम्मद का अर्थ है मुहम्मद की मां।
·मस्जिद - प्रार्थना स्थल का अरबी शब्द।
·सदक़ा - स्वैच्छिक दान।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।
कई लोग अबू हुरैरा को बड़ी संख्या में हदीसों को याद करने वाले और प्रसारित करने वाले के रूप मे जानते हैं। जबकि यह वास्तव में एक महान गुण है और सुन्नत की संपत्ति को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए मुसलमान उनके कृतज्ञ हैं, अबू हुरैरा एक विपुल स्मृति वाले व्यक्ति से कहीं अधिक थे।
अबू हुरैरा को बिल्ली के बच्चे और बिल्लियां बहुत पसंद थीं! वह अपनी मां के प्रति समर्पित थे और उससे भी अधिक अल्लाह और उसके दूत के प्रति समर्पित थे। वह अहल अस-सुफ़ा के नाम से जाने जाने वाले समूह का सदस्य थे और खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब के शासनकाल में उन्हें बहरीन का गवर्नर नियुक्त किया गया था। अबू हुरैरा की मृत्यु 681 ईस्वी में 78 वर्ष की आयु में हुई थी।
अबू हुरैरा का जन्म तिहामा नामक क्षेत्र से दाऊ के यमनी जनजाति के सदस्य के रूप में हुआ था। उन्होंने कबीले के सरदार के निमंत्रण पर इस्लाम धर्म अपनाया और ऐसा करने वाले वह अपनी जनजाति के पहले लोगों में से एक थे। हिज्राह के सात साल बाद वह एक छोटे से प्रतिनिधिमंडल के साथ मदीना गए और पैगंबर मुहम्मद से मिले। यह एक आजीवन रिश्ते की शुरुआत थी, एक ऐसा रिश्ता जिससे आज भी मुसलमान लाभान्वित हो रहे हैं।
अबू हुरैरा नाम इस असाधारण व्यक्ति को जन्म के समय दिया गया नाम नहीं था, यह उनका कुन्या था, और इसका अर्थ है 'बिल्ली के बच्चे का पिता'। अबू हुरैरा को बिल्लियां और बिल्ली के बच्चे बहुत पसंद थे। दोनों के बीच इस हद तक सहजीवी संबंध थे कि जब पैगंबर मुहम्मद ने उनके जन्म का नाम अब्द अश-शम्स से अब्द-अर-रहमान में बदल दिया, तब भी उनका कुन्या वही बना रहा। सूरज का गुलाम (अब्द अश -शम्स) सबसे दयालु (अब्द अर-रहमान) का गुलाम बन गया और वह अपने पैगंबर को समर्पित थे। उन्होंने जितना संभव हो उतना समय पैगंबर की संगति मे बिताया और शुरू से ही उनके द्वारा बोले गए हर शब्द को याद रखने की कोशिश की।
ऐसा अनुमान है कि अबू हुरैरा ने लगभग 5,375 हदीसों को सुनाया। उन्हें एक अभूतपूर्व स्मृति के रूप में वर्णित किया गया है और इसका कारण हदीस में पाया जा सकता है। मैंने (अबू हुरैरा) ने अल्लाह के दूत से कहा, "मैं आपसे कई बातें सुनता हूं लेकिन मैं उन्हें भूल जाता हूं।" अल्लाह के दूत ने कहा, "अपना वस्त्र फैलाओ।" मैंने वैसा ही किया और फिर उन्होंने अपने हाथों को ऐसे हिलाया जैसे कि उन्हें किसी चीज़ से भर रहे हों और उन्हें मेरे वस्त्र में खाली कर दिया और फिर कहा, "इस चादर को अपने शरीर पर लपेटो।" मैंने ऐसा ही किया और उसके बाद से मैं एक भी बात कभी नहीं भूला।[1]
जब अबू हुरैरा ने पैगंबर के करीब रहने के लिए मदीना में रहने का फैसला किया, तो वह अहल अस-सुफ्फा नामक एक समूह के सदस्य बन गए। ये समूह गरीबो का था जिन्होंने मस्जिद में निवास किया, जब तक कि समय और परिस्थिति ने उन्हें खुद के निवास मे रहने की अनुमति नहीं दी। इस समय वे सदक़ा पर निर्भर रहते थे और पैगंबर मुहम्मद को मिलने वाले किसी भी सदके और उपहार को पैगंबर मुहम्मद खुद उन्हें भेजते थे। अधिकांश, अबू हुरैरा की तरह, अपने तन के कपड़ों के अलावा बेसहारा थे। अबू हुरैरा ने खुद बताया है कि कैसे वह अपनी तीव्र भूख के दर्द को शांत करने के लिए जमीन पर लेटते या अपने पेट पर पत्थर बांधते थे।
जब अबू हुरैरा मदीना पहुंचे तो उनकी मां उनके साथ थी। वह अपनी मां के प्रति समर्पित थे और इस बात से दुखी होते थे कि उनकी मां ने इस्लाम को अपनाने से इनकार किया था। एक विशेष दुखद घटना के एक दिन बाद, जिसमें अबू हुरैरा की मां ने पैगंबर का अपमान किया था, वह पैगंबर मुहम्मद के पास आंखों में आंसू लिए गए। पैगंबर मुहम्मद ने पूछा कि वो क्यों रो रहे हैं और उन्होंने जवाब दिया, "मैंने अपनी मां को इस्लाम में आमंत्रित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन उन्होंने हमेशा मुझे फटकार लगाई। आज, मैंने उन्हें फिर से आमंत्रित किया और मैंने उनसे ऐसे शब्द सुने जिससे मै शर्मिंदा हूं। कृपया सर्वशक्तिमान अल्लाह से प्रार्थना करें कि उसका दिल इस्लाम की ओर झुक जाए।”
पैगंबर ने अबू हुरैरा की मां के लिए प्रार्थना की। अबू हुरैरा ने अपनी कहानी यह कहते हुए समाप्त की, "मैं घर गया और मैंने दरवाजा बंद पाया। मैंने पानी के छींटे सुनी और जब मैंने घर मे घुसने की कोशिश की तो मेरी मां ने कहा, 'अरे अबू हुरैरा, जहां तुम हो वहीं रहो।' फिर उन्होंने कहा, 'अंदर आ जाओ!' मैं अंदर गया और उन्होंने कहा, 'मैं गवाही देती हूं कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और मैं गवाही देती हूं कि मुहम्मद उनके दास और उनके दूत हैं।'”
अबू हुरैरा ने हमेशा दूसरों को अपने माता-पिता के प्रति दयालु और अच्छा बनने के लिए प्रोत्साहित किया। एक दिन उन्होंने दो आदमियों को एक साथ चलते देखा और छोटे से पूछा, "यह आदमी तुम्हारा क्या लगता है ?" युवक ने उत्तर दिया, "यह मेरे पिता हैं"। अबू हुरैरा ने उसे यह कहते हुए सलाह दी, "उन्हें उनके नाम से न बुलाना, उनके आगे न चलना, और उनसे पहले न बैठना।”
जब अबू हुरैरा अपने जीवन को पीछे मुड़कर देखते तो कहते कि उन्होंने तीन बड़ी त्रासदियों को देखा है; पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु, उस्मान की हत्या और मिजवाद का गायब होना। जब उनसे पूछा गया कि मिजवाद क्या है, तो उन्होंने कहा कि पैगंबर ने अपनी एक यात्रा पर पूछा कि क्या किसी के पास कुछ खाना है। किसी ने कहा कि उसके पास मिजवाद है, सामान रखने के लिए एक छोटा सा थैला और उसमें कुछ खजूर थे। पैगंबर ने मिजवाद मांगा, उन्होंने खजूरों पर दुआ की और उन्हें सभी उपस्थित लोगों को बांट दिया। अबू हुरैरा ने बताया कि वो अपने हिस्से मे से पैगंबर के जीवनकाल के दौरान और अबू बक्र, उमर और उस्मान की खिलाफत के दौरान खाते रहे।[2]
खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब ने अबू हुरैरा को बहरीन का गवर्नर नियुक्त किया, लेकिन थोड़े समय के बाद वह सेवानिवृत्त हो गए और मदीना लौट आए जहां उन्होंने अपना शेष जीवन अकेले बिताया। समय बदल रहा था और अबू हुरैरा ने अल्लाह को याद करते हुए और मुस्लिम उम्मत के जन्म को याद करते हुए एक तपस्वी जीवन जीना पसंद किया।
जब अबू हुरैरा ने अल्लाह से मिले उपहार का इस्तेमाल इस्लाम के लाभ के लिए किया, तो उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक अरब से अधिक मुसलमान जब भी पैगंबर मुहम्मद के जीवन और समय और धर्म के बारे में सीखेंगे तो उनका नाम लेंगे। "अबू हुरैरा के अधिकार पर, जैसा की उन्होंने कहा, अल्लाह के दूत ने कहा ..."यह एक ऐसा वाक्यांश है जिसे हम कभी न कभी उपयोग करेंगे। अबू हुरैरा का जीवन इस बात की गवाही है कि अल्लाह हमें इस दुनिया में सबसे अच्छे तरीके से जीने और अपने भाग्य को पूरा करने के लिए आवश्यक क्षमता और उपहार देता है।
पिछला पाठ: पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
अगला पाठ: इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास क्या है? (भाग 2 का 1)
- ईमानदारी से पूजा करना: इखलास बनाम रिया (2 का भाग 2)
- वैध कमाई
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: सलमान अल-फ़ारसी
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: बिलाल इब्न रबाह
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अम्मार इब्न यासिर
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: ज़ायद इब्न थाबित
- पैगंबर मुहम्मद के साथी: अबू हुरैरा
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 1)
- इस्लामी शब्द (2 का भाग 2)
- नमाज़ में खुशू
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 1): संदेश को यथासंभव सर्वोत्तम तरीके से फैलाएं
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 2): सबसे पहले तौहीद
- गैर-मुस्लिमो को सही राह पर आमंत्रित करना (3 का भाग 3): परिवार के लोगो, दोस्तों और सहकर्मियों को आमंत्?
- अल्लाह पर भरोसा और निर्भरता
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (2 का भाग 1)
- एक अच्छा दोस्त कौन है? (भाग 2 का 2)
- अभिमान और अहंकार
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 1): विश्वासियों की माताएँ कौन हैं?
- विश्वासियों की माताएं (2 का भाग 2): परोपकारिता और गठबंधन
- मुस्लिम समुदाय में शामिल होना
- उम्मत: मुस्लिम राष्ट्र
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)
- इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 2)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 1)
- एक मुस्लिम विद्वान की भूमिका (2 का भाग 2)
- मुसलमान होने के लाभ
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 1)
- पवित्र शहरें; मक्का, मदीना और जेरूसलम (2 का भाग 2)