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इस्लामी तलाक के सरलीकृत नियम (2 का भाग 1)

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विवरण: तलाक के प्रकार और प्रक्रियाएं मुस्लिम न्यायविदों के बीच एक विस्तृत विषय है, लेकिन इस दो-भाग के पाठ का उद्देश्य इस्लाम में तलाक के बुनियादी नियमों को सरल भाषा मे समझाना है।

द्वारा Imam Mufti (© 2015 IslamReligion.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,307 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·तलाक की अनुमति के लिए क़ुरआन के तर्क को समझना।

·यह समझना कि तलाक वैवाहिक संघर्ष को सुलझाने का अंतिम उपाय है, पहला कदम नहीं।

·अनिवार्य, अनुशंसित, अनुमत, नापसंद और निषिद्ध प्रकार के तलाक को समझना।

·'इद्दत' या 'प्रतीक्षा अवधि' के प्रकारों के बारे में जानना।’

अरबी शब्द

·इद्दत - प्रतीक्षा अवधि।

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

SimplifiedRulesIslamicDivorce1.jpgइस्लाम में विवाह एक गंभीर प्रतिज्ञापत्र है, ईश्वर का आशीर्वाद और प्रेम और करुणा व्यक्त करने का एक साधन।

इस्लाम मानव स्वभाव की खामियों को देखते हुए तलाक को बर्दाश्त करता है। जबकि विवाह जारी रखने को स्थाई मान लिया गया है, इसमें दूसरी संभावना को ख़ारिज नही किया जा सकता है। लोगों के दिल और दिमाग अलग-अलग कारणों से समय के साथ बदलते रहते हैं। पूर्ण निषेध का मतलब होगा कि हम कमियों से रहित एक "आदर्श" दुनिया में रह रहे हैं। इस तरह का निषेध इस्लामी विचारधारा के साथ असंगत होगा जो केवल वही निर्धारित करता है जो मानवीय रूप से प्राप्य है। परिवर्तन अपरिहार्य हो सकता है और पति-पत्नी के बीच अलगाव पैदा कर सकता है और इस प्रकार विवाह के उद्देश्य को विफल कर सकता है। क़ुरआन इस संदर्भ में तलाक के आधार का उल्लेख करता है। यदि पति या पत्नी अल्लाह द्वारा निर्धारित सीमाओं का पालन करने या वैवाहिक जीवन के नियमों को लागू करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं, तो तलाक लेने पर विचार किया जा सकता है। आमतौर पर तलाक का सहारा तब लिया जाता है जब वैवाहिक जीवन असंभव हो जाता है और सुलह की संभावना बहुत कम होती है।

पति-पत्नी के बीच विवादों की स्थिति में, क़ुरआन ने कुछ प्रारंभिक कदम निर्दिष्ट किए हैं जैसे कि विवादों को निपटाने और शादी को बनाए रखने के लिए एक तरह से नसीहत देना। यदि ये प्रारंभिक चरण विफल हो जाते हैं, तो विवाद को मध्यस्थता द्वारा हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए:

“और यदि तुम्हें दोनों के बीच वियोग का डर हो, तो एक मध्यस्त उस (पति) के घराने से तथा एक मध्यस्त उस (पत्नी) के घराने से नियुक्त करो, यदि वे दोनों संधि कराना चाहेंगे, तो अल्लाह उन दोनों के बीच संधि करा देगा। वास्तव में, अल्लाह अति ज्ञानी सर्वसूचित है।” (क़ुरआन 4:35)

जब सुलह के सभी प्रयास विफल हो जाएं और सुलह की कोई संभावना न बचे, तो ऐसी स्थिति में पति अंतिम उपाय के साधन के रूप में तलाक के अपने अधिकार का उपयोग कर सकता है।

तलाक को 'विवाह के विघटन' के रूप में परिभाषित किया गया है और क़ुरआन और सुन्नत में इसका उल्लेख किया गया है। चूंकि विवाह एक अनुबंध है, तलाक को उस अनुबंध के विघटन के रूप में देखा जाता है और कुछ शर्तों के अनुसार माना जाता है।

पांच नियमों के अनुसार तलाक की श्रेणियां

1. अनिवार्य

आमतौर पर पत्नी की ओर से असहनीय नुकसान होने पर तलाक अनिवार्य हो जाता है।

2. नापसंद

बिना किसी जरुरी आवश्यकता के किया गया तलाक नापसंद है। यदि कोई अच्छा कारण नहीं है तो पति को अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति नहीं है क्योंकि इससे नुकसान, तनाव और भावनात्मक दर्द होता है जो निषिद्ध है।

3. अनुमेय

तलाक वैध हो जाता है जब एक विवाह अपने उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहता है।

4. अनुशंसित

यदि पत्नी अपने मूल धार्मिक कर्तव्यों का पालन नहीं करती है, अल्लाह के अधिकारों की उपेक्षा के मामलों में, या बेवफाई के मामलों में, तो पति को तलाक का सहारा लेने की सलाह दी जाती है।

5. निषिद्ध

विद्वानों की सहमति से, एक महिला के मासिक धर्म के दौरान या एक महिला के मासिक चक्र के बीच के अंतराल में तलाक निषिद्ध है जिसमें उन्होंने संभोग किया हो।

तलाक से संबंधित सभी कारक - समय, शुरुआती कदम और परिणाम - तलाक पर सीमाएं लगाने वाले जांच के बिंदु हैं। पति के तलाक "कहने"[1] से पहले कई शर्तों को पूरा किया जाना चाहिए:

ए)पति को होश मे, जागरूक, सतर्क और अत्यधिक क्रोध मे नही होना चाहिए। यदि वह नशे के प्रभाव मे तलाक कहता, तो कुछ न्यायविदों के अनुसार उसका तलाक अमान्य है।

बी)वह बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए। यदि वह अपनी इच्छा के विरुद्ध तलाक की घोषणा करता है, अर्थात दबाव में होने के कारण, तो यह अमान्य है।

सी)उसकी ओर से विवाह को समाप्त करने का स्पष्ट इरादा होना चाहिए।

डी)तलाक पवित्रता की अवधि में दिया जाना चाहिए। पति की मर्जी से किसी भी समय शादी का अनुबंध रद्द नहीं किया जा सकता है। क़ुरआन कहता है, 'जब तुम लोग त़लाक़ दो अपनी पत्नियों को, तो उन्हें उनके निर्धारित समय पर तलाक दो' (क़ुरआन 65:1)। इस छंद मे उल्लिखित 'निर्धारित समय' का अर्थ है पवित्रता की अवधि जिसमें यौन संबंध नहीं बने हो। एक निश्चित समय निर्धारित करने का लाभ यह है कि सुलह की संभावना बनी रहती है, गुस्सा शांत हो सकता है और इस अवधि में सामान्य जीवन बहाल हो सकता है।

इद्दत या 'प्रतीक्षा अवधि'

दूसरे पाठ में 'प्रतीक्षा अवधि' की अवधारणा स्पष्ट हो जाएगी। अभी के लिए, कृपया विभिन्न प्रकार की इद्दत को समझें।

1. जिस महिला को मासिक धर्म आता है, उसके लिए प्रतीक्षा की अनिवार्य अवधि तीन मासिक चक्र है:

‘और तलाकशुदा महिलाएं तीन मासिक धर्म की प्रतीक्षा करें।’ (क़ुरआन 2:228)

2. मासिक चक्र की आयु पार करने वाली महिलाओं को तीन महीने की अवधि तक प्रतीक्षा करनी होगी:

‘तथा जो निराश हो जाती हैं मासिक धर्म से तुम्हारी स्त्रियों में से, यदि तुम्हें संदेह हो तो उनकी निर्धारित अवधि तीन मास है तथा उनकी, जिन्हें मासिक धर्म न आता हो’ (क़ुरआन 65:4)

3. गर्भवती महिलाओं के मामले में, 'प्रतीक्षा अवधि' बच्चे के जन्म तक है:

‘गर्भवती स्त्रियों की निर्धारित अवधि ये है कि प्रसव हो जाये ’ (क़ुरआन 65:4)



फुटनोट:

[1] इस पर अधिक विवरण भाग 2 में है

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