जीवन का उद्देश्य
विवरण: जीवन का अर्थ क्या है? मैं यहां क्यों हूं? जिन उत्तरों की आप तलाश कर रहे हैं।
द्वारा Aisha Stacey (© 2015 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·अपनी रचना का कारण समझना।
·यह समझना कि पूजा मे दैनिक जीवन के सभी पहलु शामिल हैं और अल्लाह का आदेशों का पालन है।
अरबी शब्द
·दुनिया - यह संसार, परलोक के संसार के विपरीत।
·आख़िरत - परलोक, मृत्यु के बाद का जीवन।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·जिन्न - अल्लाह की एक रचना जो मानवजाति से पहले धुआं रहित आग से बनाई गई थी। उन्हें कभी-कभी आत्मा, बंशी, पोल्टरजिस्ट, प्रेत आदि के रूप में संदर्भित किया जाता है।
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
मैं यहां क्यों हूं यह एक सदियों पुराना प्रश्न है जिसने मानवजाति को सहस्राब्दियों से त्रस्त किया है। मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है, किसी के जीवन का उद्देश्य क्या है? लोगों ने ये और इसी तरह के अन्य प्रश्न पूछे हैं जब से मानवजीवन अस्तित्व में है। कोई न कोई, कहीं न कहीं हर समय ये पूछता है। इसे कई अलग-अलग रूपों में पूछा जाता है, जैसे "मुझे क्या करना चाहिए?", "हम यहां क्यों हैं?", "जीवन क्या है?", और "अस्तित्व का उद्देश्य क्या है?" और यहां तक कि "क्या जीवन मौजूद है?" इन सब के लिए मुसलमानों को बहुत विशेषाधिकार प्राप्त है क्योंकि जब ये अस्तित्व संबंधी प्रश्न हमारे दिमाग में आते हैं तो हम उत्तर को समझने में सक्षम होते हैं।
एक अनंत ब्रह्मांड में घूमते हुए इस छोटे से ग्रह पर हमारे (मानवजाति) होने का कारण सिर्फ अल्लाह और केवल अल्लाह की ही पूजा करना है। यही वह उद्देश्य है जिसके लिए हमें बनाया गया था। यह कोई रहस्य नहीं है और न ही यह कोई पहेली है। जीवन का अर्थ खोजना केवल एक चीज से संभव है, अल्लाह की योजना को पूरा करने की इच्छा। इसके लिए घंटों या महीनों या वर्षों की खोज और तड़प की कोई आवश्यकता नहीं है।
“और नहीं उत्पन्न किया है मैंने जिन्न तथा मनुष्य को, परन्तु ताकि मेरी ही इबादत करें।” (क़ुरआन 51:56)
“ऐ मानवजाति, केवल अल्लाह की इबादत (वंदना) करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं।” (क़ुरआन 7:59)
हालांकि यह समझना जरूरी है कि अल्लाह को इंसानी पूजा की जरूरत नहीं है। अगर एक भी इंसान अल्लाह की पूजा न करे तो अल्लाह की महिमा मे किसी भी तरह की कमी न होगी और अगर सारी मानवजाति अल्लाह की पूजा करे तो भी अल्लाह की महिमा मे कोई बढ़ोतरी न होगी।[1]
“यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो तुमपर कोई प्रभुत्व नहीं पा सकता तथा यदि तुम्हारी सहायता न करे, तो फिर कौन है, जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके? अतः विश्वासियों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिये।" (क़ुरआन 3:160)
"हे मनुष्यो! तुम सभी भिक्षु हो अल्लाह के तथा अल्लाह ही निःस्वार्थ, प्रशंसित है।" (क़ुरआन 35:15)
क्योंकि हम नाजुक इंसान हैं, हमें अल्लाह की उपासना कर के आराम और सुरक्षा की जरूरत है। इसके अलावा जब तक हम जीवन में अपने उद्देश्य को पूरा करने का कम से कम प्रयास नहीं करेंगे, तब तक हमें सच्चा सुख और संतोष नहीं मिलेगा। हमारे अस्तित्व का उद्देश्य दुनिया के गुलाम होने से ज्यादा सार्थक है। अल्लाह कहता है कि इस दुनिया की वास्तविकता धोखे से भरी है और हमें चेतावनी देता है कि हम इसके अस्थायी आनंद के लोभ मे नही पड़ना चाहिए। आख़िरत में अपना स्थान सुरक्षित करने के लिए हमें जीवन में अपने उद्देश्य पर ध्यान देना चाहिए।
एक हदीस में पैगंबर मुहम्मद हमें बताते हैं कि, "अल्लाह कहता है, 'आदम के वंश, अपना समय मेरी पूजा मे लगा दो और मैं तुम्हारे दिल को समृद्धि से भर दूंगा, और तुम्हारी गरीबी को समाप्त कर दूंगा। लेकिन अगर तुम ऐसा नहीं करोगे, तो मैं तुम्हारे हाथों को (दुनिया के मामलों में) व्यस्त कर दूंगा और मैं तुम्हारी गरीबी को खत्म नहीं करूंगा।’”[2]
इस्लाम धर्म स्पष्ट रूप से हमारे उद्देश्य की व्याख्या करता है, और हमारी पूजा को आसान और अधिक पूर्ण करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है। क़ुरआन और पैगंबर मुहम्मद की सुन्नत में सब कुछ समझाया गया है। वे उद्देश्य और संतोष से भरे जीवन के लिए हमारी मार्गदर्शक पुस्तकें हैं। वे ही सच्ची खुशी का एकमात्र साधन हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें आजमाया और परखा नहीं जाएगा। अल्लाह कुरआन में साफ-साफ कहता है कि वह हमारी परीक्षा लेगा।
“जिसने उत्पन्न किया है मृत्यु तथा जीवन को, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें किसका कर्म अधिक अच्छा है?...” (क़ुरआन 67:2)
बेशक मनुष्य का जीवन खेल और आनंद से भरा हो सकता है, लेकिन यह हमारे जीवन का उद्देश्य नहीं है। अल्लाह क़ुरआन में कहता है कि हम वास्तव में केवल आनंद और ख़ुशी से परे एक उद्देश्य के लिए बनाए गए थे। जीवन की वास्तविकता यह है कि हम अपने जीवन के प्रत्येक विवरण का हिसाब देने के लिए पुनरुत्थित होंगे।
“क्या तुमने समझ रखा है कि हमने तुम्हें व्यर्थ पैदा किया है और तुम हमारी ओर फिर नहीं लाये जाओगे?” (क़ुरआन 23:115)
हर चीज में सबसे अच्छा पाने का सबसे आसान तरीका है कि हम जो कुछ भी करते हैं उसमें अल्लाह की पूजा करें। इस्लाम इसे आसान बनाता है। यह हमारे लिए निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करने जितना आसान है। हर मौके पर अल्लाह को याद करना और अपने जीवन का संचालन करना यह जानते हुए कि अल्लाह हमें देख रहा है, और स्वर्गदूत हमारी हर हरकत को लिख रहे हैं। अल्लाह की पूजा करके हम खुद पर एक अहसान कर रहे हैं। जब हम ईश्वर के प्रति जागरूक होते हैं तो हम एक ईमानदार तरीके से कार्य करते हैं और दुष्ट बनने और दूसरों पर अत्याचार करने से दूर रहते हैं। और हम यह भी जानते हैं कि इस्लाम के कानून हमारे अपने फायदे के लिए बनाए गए हैं और ये सभी परिस्थितियों में सर्वोत्तम कार्रवाई के लिए हमारा मार्गदर्शन करते हैं।
अल्लाह को याद करने से तनाव और चिंता दूर होती है और व्यक्ति जीवन के सच्चे उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित करता है। हालांकि मानव स्थिति हमेशा शांतिपूर्ण नहीं होती है, चिंता हमें किसी भी क्षण छू सकती है, और हमारा उस पर कोई नियंत्रण नहीं है, हालांकि हम अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में सक्षम हैं। यदि हम अल्लाह की ओर मुड़कर तनाव और चिंता पर प्रतिक्रिया करते हैं तो हम जीवन के मार्ग को सफलतापूर्वक पार कर लेंगे।
“वास्तव में, अल्लाह के स्मरण ही से दिलों को संतोष होता है।” (क़ुरआन 13:28)
जीवन का उद्देश्य अल्लाह और उसके संकेतों को पहचानना और उसके प्रति आभारी होना है। इसमें आभारी होना, अपने आशीर्वादों का उपयोग करना और अल्लाह की आज्ञाओं का पालन करना शामिल है। जीवन का अर्थ हमारी पूजा में निहित है। हर बार जब हम अपना जीवन अल्लाह की इच्छा के सामने समर्पित करते हैं तो हम अपने उद्देश्य को पूरा कर रहे होते हैं। सृष्टिकर्ता की पूजा करना जीवन का उद्देश्य है और यह संदेश अल्लाह के सभी पैगंबरो और दूतों के माध्यम से मानवजाति तक पहुंच गया है।
“तेरे पालनहार ने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत (वंदना) न करो…” (क़ुरआन 17:23)
“और नहीं भेजा हमने आपसे पहले कोई भी दूत, परन्तु उसकी ओर यही वह़्यी (प्रकाशना) करते रहे कि मेरे सिवा कोई पूज्य नहीं है। अतः मेरी ही इबादत (वंदना) करो।” (क़ुरआन 21:25)
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- नमाज़ - उन्नत (2 का भाग 1)
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- जीवन का उद्देश्य
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 1)
- क़ुरआन क्यों और कैसे सीखें (2 का भाग 2)
- पैगंबरो के चमत्कार
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 1)
- पवित्रशास्त्र के लोगों के लिए मांस (2 का भाग 2)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 1)
- जिक्र (अल्लाह को याद करना): अर्थ और आशीर्वाद (2 का भाग 2)
- न्याय के दिन मध्यस्थता (2 का भाग 1)
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- इस्लामी स्वर्ण युग (2 का भाग 1)
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