बुरी नैतिकता से दूर रहना चाहिए (2 का भाग 1)
विवरण: ये दो पाठ एक बेहतर इंसान बनने के लिए इस्लामी नैतिकता के अनुसार विभिन्न प्रकार की बुरी नैतिकताओं से दूर रहने की व्याख्या करेंगे।
द्वारा Imam Mufti (© 2016 NewMuslims.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·इस्लाम की शिक्षाओं के अनुसार 10 बुरी नैतिकताओं के बारे में जानना।
परिचय
जैसा कि हम जानते हैं कि अच्छे शिष्टाचार की उत्कृष्टता पर जोर देते हुए पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के कई वर्णन हैं। अच्छे शिष्टाचार का एक हिस्सा बुरी नैतिकता को जानना और उसे छोड़ना है जैसे:
1.बेईमानी करना
बेईमानी करना और धोखा देना नीच गुण हैं जो एक सभ्य व्यक्ति को शोभा नही देता है। पैगंबर ने कहा:
“जो कोई हमारे विरुद्ध हथियार उठाता है वह हम में से नहीं है, और जो हमें धोखा देता है, वह हम में से नहीं है।”[1]
इस्लाम बेईमानी और धोखे को घृणित पाप मानता है; ये इस दुनिया में और परलोक मे शर्मिंदगी का कारण बनते हैं। पैगंबर ने बेईमानी और धोखे को इस दुनिया मे मुस्लिम समुदाय से बाहर करके केवल उनकी निंदा नहीं की; बल्कि उन्होंने यह भी घोषणा की कि न्याय के दिन:
“पुनरोत्थान के दिन हर गद्दार का एक बैनर होगा और कहा जाएगा: यह फलाने का विश्वासघाती है।”[2]
2.रिश्वत
रिश्वत का अर्थ है किसी ऐसे व्यक्ति को पैसा देना जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति कुछ ऐसा प्राप्त करता है जिस पर उसका कोई अधिकार नहीं है। उदाहरण के लिए, अपने पक्ष में निर्णय लेने के लिए किसी न्यायाधीश को रिश्वत देना, या किसी अधिकारी को आपको दूसरों पर वरीयता देने के लिए रिश्वत देना या अनुबंध के आवंटन आदि जैसे अन्य कार्य के लिए पक्षपात करना।
इस्लाम में रिश्वत एक बड़ा पाप है। महान अल्लाह कहता है:
“तथा आपस में एक-दूसरे का धन अवैध रूप से न खाओ और न अधिकारियों के पास उसे इस धेय से ले जाओ कि लोगों के धन का कोई भाग, जान-बूझ कर पाप द्वारा खा जाओ।” (क़ुरआन 2:188)
अल्लाह के दूत ने रिश्वत देने वाले और रिश्वत लेने वाले को शाप दिया।[3]
3.ईर्ष्या
ईर्ष्या सबसे विनाशकारी भावनाओं में से एक है जो एक आदमी को अपने साथी इंसान के प्रति हो सकती है। इससे व्यक्ति दूसरों के लिए बुरे की कामना करता है और दुर्भाग्य आने पर खुश होता है। पैगंबर ने ईर्ष्या की तुलना उस आग से की जो लकड़ी को पूरी तरह से जला देती है।
ईर्ष्या एक बीमारी है और यह हृदय को अशुद्ध कर देती है। जब अल्लाह के दूत से पूछा गया: "सबसे अच्छे लोग कौन हैं?" उन्होंने जवाब दिया: “जिसका हृदय शुद्ध और जुबान सच्ची है।” लोगो ने पूछा: "हम एक सच्ची जुबान को समझते हैं, लेकिन शुद्ध हृदय का क्या अर्थ है?" पैगंबर ने उत्तर दिया: "यह उसका हृदय है जो पवित्र और शुद्ध है और पाप, अपराध, घृणा और ईर्ष्या से मुक्त है।”[4]
4.चुगली और बदनाम करना
अल्लाह कहता है:
“और किसी का भेद न लो और न एक-दूसरे की चुगली करो। क्या चाहेगा तुममें से कोई अपने मरे भाई का मांस खाना? अतः, तुम्हें इससे घृणा होगी (इसलिए चुगली से बचो)।” (क़ुरआन 49:12)
अबू ज़र (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) ने एक बार पैगंबर मुहम्मद से पूछा, "ऐ अल्लाह के दूत, चुगली क्या है?" पैगंबर ने उत्तर दिया, "अपने भाई के बारे में वो बाते करना जिससे वह घृणा करता है।" अबू ज़र ने कहा, "अल्लाह के दूत, क्या होगा यदि जो बाते कही गई है वह उसकी विशेषता हो?" पैगंबर ने उत्तर दिया, "यह जान लो कि जब तुम उसकी चर्चा करते हो जो उसमें है, तो तुमने उसकी चुगली की है, और जब तुम उसकी चर्चा करते हो जो उसमें नहीं है, तो तुमने उसे बदनाम किया है।”
5.अफवाह फैलाना
अफवाह फैलाना खतरनाक और हानिकारक है; यह समाज के ताने-बाने और नैतिकता को नष्ट कर सकता है। लोग कई कारणों से अफवाह फैलाते हैं जैसे श्रेष्ठ महसूस करने के लिए (वे बेहतर महसूस करते हैं यदि कोई उनसे भी बदतर है), ईर्ष्या से, किसी समूह मे घुसने के लिए, ध्यान आकर्षित करने के लिए (वे कुछ क्षणों के लिए ध्यान का केंद्र बन जाते हैं), बदला लेने के लिए और यहां तक कि बोरियत से भी (एक निष्क्रिय दिमाग एक शैतान की कार्यशाला है)।
हमें खुद को बार-बार याद दिलाने की जरूरत है कि हम अल्लाह के सामने अपने कामों के लिए जवाबदेह हैं। अल्लाह कहता है:
“ऐ विश्वासियों! यदि तुम्हारे पास कोई दुराचारी कोई सूचना लाये, तो भली-भांति उसका अनुसंधान (छान-बीन) कर लिया करो। ऐसा न हो कि तुम हानि पहुंचा दो किसी समुदाय को, अज्ञानता के कारण, फिर अपने किये पर पछताओ।” (क़ुरआन 49:6)
6.झूठ बोलना
झूठ बोलना इतना घृणित है कि सभी मनुष्य इसे अस्वीकार करते हैं। पैगंबर ने कहा:
“एक व्यक्ति झूठ बोलता है और फिर झूठ बोलता है, जब तक कि ईश्वर उसे झूठ बोलने वाले के रूप में नहीं लिख लेता है।”[5]
पैगंबर के सबसे करीबी दोस्त और तत्काल उत्तराधिकारी, अबू बक्र अस-सिद्दीक (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) ने कहा:
“झूठ से सावधान रहें, क्योंकि झूठ (सच्ची) आस्था का विरोध करता है।”[6]
और अबू बक्र की बेटी, आयशा (अल्लाह उनसे प्रसन्न हो) जो पैगंबर की प्यारी पत्नी थी, ने बताया:
“ईश्वर के दूत (उन पर ईश्वर की दया और आशीर्वाद हो) के लिए झूठ बोलने से अधिक घृणित कोई कार्य नहीं था।”[7]
7.संदेह करना
“संदेह से सावधान रहें, क्योंकि संदेह सबसे बड़ा झूठ है। एक दूसरे में दोष न ढूंढो, एक दूसरे की जासूसी न करो, एक दूसरे से होड़ न करो, एक दूसरे से ईर्ष्या न करो, एक दूसरे पर क्रोधित न हो, एक दूसरे से मुंह न मोड़ो, और अल्लाह के दास बनो, भाईचारा करो जैसा तुम्हें आज्ञा दी गई है।”[8]
संदेह, दोष खोजना, ईर्ष्या और परित्याग जैसी बुराइयां ऐसी बुराइयां है जो किसी समुदाय को शत्रु से अधिक नुकसान पहुंचाती हैं।
8.दूसरों में दोष ढूंढ़ना
कुछ लोगों का व्यक्तित्व तर्कवादी होता है। "मुझे आपत्ति है", "यह आपकी गलती है" और "आपका दोष है" उनके कुछ पसंदीदा वाक्यांश होते हैं।
मनुष्य की सबसे बड़ी व्यवहारिक कमजोरियों में से एक अपने स्वयं की गलती को न मानना है। कई बार हम दूसरों में दोष खोजने में अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन हम अपने बारे मे भूल जाते हैं। पैगंबर ने कहा,
“एक विश्वासी दोष खोजने वाला नही होता है और न ही अपमानजनक, अश्लील, या अशिष्ट होता है।”[9]
9.मौखिक या शारीरिक रूप से दूसरों को नुकसान पहुंचाना
पैगंबर ने सच्चे मुसलमान को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जो अपनी जुबान (शब्दों) और हाथ (कार्यों) से दूसरे मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने से बचता है। पैगंबर के एक साथी ने कहा,
‘मैंने अल्लाह के दूत से पूछा: "मुसलमानों में सबसे अच्छा कौन है?" उन्होंने कहा, "वह जिसकी जुबान और हाथों से दूसरे मुसलमान सुरक्षित हैं।”‘[10]
एक सामान्य नियम के तहत मुसलमानों को अन्य लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। पैगंबर मुहम्मद ने कहा,
“न तो नुकसान पहुंचाना चाहिए और न ही पारस्परिक रूप से नुकसान पहुंचाना चाहिए”[11]
हमें अपने समुदाय के लोगों की रक्षा के लिए विशेष रूप से सावधान रहना चाहिए, लेकिन ये सिद्धांत केवल मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है। बल्कि, यह पूरी मानवता और यहां तक कि जानवरों पर भी लागू होता है।
10.घमंडी होना
पैगंबर ने कहा: "अल्लाह ने मुझ पर खुलासा किया है कि आप सभी को एक-दूसरे के प्रति विनम्र होना चाहिए, ताकि कोई भी दूसरे की अवहेलना न करे या अपने आप को दूसरे से ऊंचा न दिखाए।”[12]
दुर्भाग्य से, आज कल हम इसे अपने बारे में शेखी बघारने के लिए आत्मविश्वास की निशानी मानते हैं। जो कुछ तुम्हारे पास है, वह इसलिए है कि अल्लाह ने तुम्हें दिया है या तुम्हें लेने दिया है; चाहे वह बुद्धि हो, रूप हो, धन हो, वंश हो, आस्था हो, चरित्र हो या कुछ और।
अगर किसी को लगता है कि उन्होंने कड़ी मेहनत की और अपनी योग्यता से कुछ हासिल किया, तो उन्हें उन सभी को देखना चाहिए जो कड़ी मेहनत भी करते हैं लेकिन अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचते हैं। यदि आपने कड़ी मेहनत से अध्ययन कर के उत्कृष्टता प्राप्त की है, तो आपको अध्ययन करके उत्कृष्टता प्राप्त करने का समय किसने दिया?
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