आत्मा की शुद्धि का परिचय (2 का भाग 2)
विवरण: आत्मा की शुद्धि में आने वाली बाधाएं।
द्वारा Imam Kamil Mufti (© 2016 IslamReligion.com)
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·आत्मा को शुद्ध करने में आने वाली दो बाधाओं के बारे में जानना।
·यह समझना कि पाप, अविश्वास और शिर्क आत्मा को भ्रष्ट करते हैं।
·आत्मा को भ्रष्ट करने में भौतिकवाद, शैतान और बुरे वातावरण की भूमिका को समझना।
अरबी शब्द
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·कुफ्र - अविश्वास।
आत्मा की शुद्धि में आने वाली सबसे महत्वपूर्ण बाधाएं हैं:
1.इच्छा
2.संदेह
हानिकारक इच्छाएं व्यक्ति के लक्ष्यों को भ्रमित करती हैं, जिससे व्यक्ति पाप की ओर अग्रसर होता है। दूसरी ओर, संदेह व्यक्ति के विश्वासों को विकृत करता है, जिससे व्यक्ति प्रश्न करता है कि सत्य क्या है।
व्यक्ति अपनी इच्छाओं का गुलाम बन सकता है यदि उसकी इच्छाएं उसके जीवन पर नियंत्रण कर लें। अगर किसी के जीवन में कुछ भी उस स्तर तक पहुंच जाये तो वह ईश्वर या पालनहार की जगह ले लेता है। आत्मा की इच्छाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं: शक्ति, अधिकार, प्रशंसा, धन, यौन संतुष्टि, और अन्य। इनमे से कुछ हर इंसान के लिए स्वाभाविक हैं जैसे धन पाने और यौन संतुष्टि की इच्छा। उन्हें क़ुरआन और सुन्नत द्वारा निर्धारित सीमाओं में रोका जाना चाहिए।
“क्या आपने उसे देखा, जिसने बना लिया अपना पूज्य अपनी इच्छा को तथा कुपथ कर दिया अल्लाह ने उसे जानते हुए और मुहर लगा दी उसके कान तथा दिल पर और बना दिया उसकी आंख पर आवरण (पर्दा)? फिर कौन है, जो सीधी राह दिखायेगा उसे अल्लाह के पश्चात्? तो क्या तुम शिक्षा ग्रहण नहीं करते?” (क़ुरआन 45:23)
सच्चे ज्ञान की कमी के कारण संदेह उत्पन्न होता है। अज्ञानता की वजह से लोग अल्लाह को नाराज करने वाले कार्य करते हैं। संदेह एक व्यक्ति को दृढ़ विश्वास और आत्मविश्वास में कमजोर बनाता है, इसलिए व्यक्ति वास्तव में अल्लाह के लिए इस विश्वास के साथ बलिदान नहीं कर सकता कि उसकी सफलता और खुशी के वादे सच हैं।
पाप, अहंकार, अविश्वास और शिर्क
पाप विभिन्न प्रकार और स्तर के होते हैं, लेकिन एक बात निश्चित है कि पाप आत्मा के लिए हानिकारक हैं। हत्या, झूठ बोलना, चोरी करना, चुगली करना, रिश्वत लेना और देना, धोखा देना, माता-पिता की अवज्ञा करना और व्यभिचार जैसे 'बड़े' पापों से बचना चाहिए। 'छोटे' पाप भी बार-बार करने पर खतरनाक हो जाते हैं। चूंकि अल्लाह और आपके रिश्ते के लिए पाप हानिकारक हैं, इसलिए एक आस्तिक को हमेशा बड़े और छोटे पापों से सावधान रहना चाहिए।
व्यक्ति को उन सभी कार्यों को नही करना चाहिए जिन्हें अल्लाह ने मना किया है, चाहे आपकी आत्मा वो काम करने के लिए कितना ही जोर क्यों न दे।
दिल के पाप सबसे बुरे पापों मे से हैं। इसका एक कारण यह है कि वे अल्लाह की अवज्ञा के कई अन्य कार्यों को करने के लिए उकसाते हैं। अहंकार हृदय के सबसे महत्वपूर्ण पापों में से एक है। अल्लाह के दूत (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा, "जिसके दिल में एक दाने के बराबर भी अहंकार होगा, वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं करेगा।”[1]
अहंकार व्यक्ति और सत्य को स्वीकार करने के बीच एक बाधा है। उदाहरण के लिए, व्यक्ति सत्य को स्वीकार नहीं करेगा यदि उसे वो लोग समझाये जिन्हें वह पसंद नहीं करता है। पैगंबर मुहम्मद ने अहंकार को "सच्चाई को अस्वीकार करने और लोगों को नीचा दिखाने" के रूप में परिभाषित किया (मुस्लिम)। अहंकार इतना मजबूत हो सकता है कि यह व्यक्ति को अपने जीवन में इस्लाम को अपनाने और उसका पालन करने से रोकता है।
अविश्वास (कुफ्र) और शिर्क सबसे बड़े पाप हैं। यदि कोई विश्वासी चाहे की वो अपनी प्रार्थनाओं, अच्छे कर्मों, या जीवन में सहन की गई कठिनाइयों से किसी अन्य के अविश्वास और शिर्क को दूर कर दे, तो वो ऐसा नहीं कर सकता है। व्यक्ति को हर कीमत पर अविश्वास और शिर्क से बचना चाहिए । एक हदीस क़ुदसी[2]में पैगंबर ने कहा, "ऐ आदम के पुत्र, अगर तुम्हारे पाप इतने हैं कि सारी पृथ्वी भर जाये और तुम मेरे पास मेरा कोई साझी बनाये बिना आओ, तो मैं निश्चित रूप से तुम्हें क्षमा कर दूंगा।”[3]
दुनिया की तड़क-भड़क
इस जीवन का आनंद व्यक्ति को अल्लाह और उसके जीवन के सच्चे उद्देश्य को भुला सकता है। अल्लाह ने हमें याद दिलाता है, "ऐ विश्वासियों! तुम्हें अचेत न करें तुम्हारे धन तथा तुम्हारी संतान अल्लाह के स्मर्ण (याद) से और जो ऐसा करेंगे, वही क्षति ग्रस्त हैं।” (क़ुरआन 63:9)
इस्लाम व्यक्ति को जीने के उचित तरीके और इस जीवन और बाद के जीवन के कार्यों के बीच एक स्वस्थ संतुलन बनाए रखने मे मार्गदर्शन करता है। यह इस दुनिया को अपना अंतिम लक्ष्य बनाने के खिलाफ चेतावनी भी देता है।
बुरे साथी और माहौल
आपकी संगत आपको प्रभावित करती है, भले ही वह कम अवधि के लिए ही क्यों न हो। जो कोई यह सोचता है कि उसके मित्र उसे प्रभावित नहीं करते, वह गलत है। मित्र किसी व्यक्ति को पापों की ओर ले जा सकते हैं, और पापी लोगों की निरंतर संगति में रहने से देर-सबेर मनुष्य पाप करना शुरू कर देता है। आधुनिक युग में, मीडिया कई लोगो के लिए उनका साथी बन गया है। अपनी आत्मा की परवाह करने वाले व्यक्ति को मीडिया के साथ अपने संबंधों का मूल्यांकन करना चाहिए।
शैतान
शैतान के मन में मानवता के प्रति ईर्ष्या और अहंकार से उत्पन्न तीव्र घृणा होती है। उसका लक्ष्य मानव जाति का शाश्वत विनाश है। अल्लाह हमें आदेश देता है, "ऐ ईमान वालो! शैतान के पद्चिन्हों पर न चलो।"(क़ुरआन 24:21) शैतान अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक साधनों का प्रयोग करता है। वह लोगों को चरम पर जाने के लिए प्रोत्साहित करता है, उन्हें झूठी उम्मीदें देता है, और उन्हें लेट-लतीफ और आलसी बनाता है। शैतान की सबसे बड़ी योजना बुराई को अच्छा दिखाना है। इसी प्रकार उसने मानवजाति के पहले मनुष्यों (मानवजाति के माता-पिता) को धोखा दिया था। शैतान की चाल से हमें आगाह करने के लिए अल्लाह ने हमें उनकी कहानी बताई (क़ुरआन 7:20-21 देखें)। शैतान आज भी लोगों पर यही चाल चलता है! एक और तरीका है जिससे शैतान लोगों को भटकाता है, उन्हें यह विश्वास दिलाना कि ऐसे कई मार्ग हैं जो ईश्वर की ओर ले जाते हैं। लोग यह सोचकर अपनी इच्छा का पालन करते हैं कि वे 'ईश्वर के मार्ग' का अनुसरण कर रहे हैं। पैगंबर मुहम्मद के आने के बाद, ईश्वर की ओर जाने का केवल एक ही रास्ता है और वह रास्ता खुद पैगंबर ने बताया है। पैगंबर द्वारा बताया गया मार्ग व्यापक है और वह उन सभी को समायोजित कर सकता है जो इस पर चलना चाहते हैं।
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