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पैगंबर के कथन: ईमानदारी

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विवरण: इमाम अन-नवावी का संक्षिप्त परिचय और उनके संग्रह इमाम अन-नवावी की चालीस हदीस के पहले हदीस की व्याख्या।

द्वारा Aisha Stacey (© 2017 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 23 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,317 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·यह समझना कि इमाम अन-नवावी कौन हैं, उनके हदीस संग्रह का महत्व और पहली हदीस की संक्षिप्त व्याख्या।

अरबी शब्द

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·नियत - इरादा

·इबादात - पूजा

·फ़िक़्ह - इस्लामी न्यायशास्त्र

·इखलास - ईमानदारी, पवित्रता या एकांत। इस्लामी रूप से यह अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए हमारे उद्देश्यों और इरादों को शुद्ध करने को दर्शाता है। यह क़ुरआन के 112वें अध्याय का नाम भी है।

परिचय

Corbis-42-59585768.jpgइमाम अन-नवावी (1233 - 1278 सीई) का जन्म दमिश्क के आसपास स्थित नवा नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। दस साल की उम्र से पहले ही उन्होंने पूरा क़ुरआन कंठस्थ कर लिया था और उन्नीस साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए दमिश्क चला गए थे। वहां इमाम नवावी ने हदीस और इस्लामी न्यायशास्त्र के अध्ययन सहित विभिन्न क्षेत्रों और विषयों में 20 से अधिक प्रसिद्ध आचार्यों से सीखा।

ऐसा कहा जाता है कि इमाम अन-नवावी एक तपस्वी और धर्मपरायण व्यक्ति थे, अक्सर पूजा या लेखन के कारण उनकी नींद पूरी नहीं होती थी। उन्होंने लोगों को अच्छा करने के लिए प्रेरित किया और उन्हें बुराई करने से रोका। हालांकि उन्होंने 40 से अधिक पुस्तकें लिखीं, लेकिन इनमें से सबसे प्रसिद्ध निस्संदेह उनका "चालीस हदीस" का संग्रह है।

800 से अधिक वर्षों से विद्वान और छात्र समान रूप से इस पुस्तक से लाभान्वित हुए हैं। इस संग्रह में प्रत्येक हदीस हमें इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से एक के बारे में सिखाती है और हदीस मुख्य रूप से सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम के संग्रह से ली गई है।

यह किताब में हदीस की श्रृंखला की पहली हदीस है।

हदीस 1

इस संग्रह की पहली हदीस वह है जो उमर इब्न अल-खत्ताब द्वारा सुनाई गई थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) को निम्नलिखित कहते हुए सुना:

“कार्यों को उनके करने की नियत से आंका जाता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को वह मिलेगा जो उसने नियत की होगी। इस प्रकार, जिसका प्रवास (हिज्राह) अल्लाह और उसके दूत के लिए था, उसका प्रवास अल्लाह और उसके दूत के लिए है; लेकिन जिसका प्रवास किसी सांसारिक चीज के लिए या विवाह के लिए था, उसका प्रवास उसी के लिए है जिसके लिए उसने प्रवास किया था।”

यह हदीस उस समय आई थी जब एक आदमी इस्लाम के लिए नहीं बल्कि शादी करने के लिए मक्का से मदीना गया था। इसे इस्लाम में सबसे बड़ी हदीसों में से एक कहा जाता है क्योंकि यह एक विश्वासी को दिल के कार्यों का मूल्यांकन करने और आंकने में मदद कर सकता है और यह तय कर सकता है कि उन्हें इबादत माना जाना चाहिए या नहीं। इमाम अस-शफ़ी (767 -820 सीई) ने इसे ज्ञान का एक तिहाई कहा और कहा कि यह फ़िक़्ह के लगभग सत्तर विषयों से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि इमाम अन-नवावी ने इस हदीस से इसलिए शुरुआत की क्योंकि वह किताब पढ़ने वाले हर व्यक्ति को इखलास के महत्व के बारे में याद दिलाना चाहते थे।

पैगंबर मुहम्मद ने इस हदीस को एक सिद्धांत के साथ शुरू किया - कार्यों को उनके नियत (इरादे) से आंका जाता है। फिर उन्होंने हमें तीन उदाहरण दिए; पहला एक अनुकरणीय कार्य है, अल्लाह की खातिर पलायन। दूसरा और तीसरा कार्य उन स्थितियों के उदाहरण हैं जिनमें हमें अपनी नियत का मूल्यांकन करने की आवश्यकता हो सकती है, सामान्य रूप से सांसारिक चीज़ के लिए प्रवास और विशेष रूप से विवाह करने के लिए प्रवास। यह मानते हुए कि हमारा इरादा अपने दैनिक जीवन के सभी पहलुओं को अल्लाह की खातिर करके इबादत करना है, हमें यह समझने की जरूरत है कि अगर इरादे सही हैं तो कार्य सही होगा लेकिन अगर इरादे भ्रष्ट हैं तो कार्य भी भ्रष्ट हो जाएगा। अगर हम सिर्फ अल्लाह के लिए नियत करते हैं, तो अनुमेय कार्य पुरस्कृत कार्य हो जाते हैं।

इबादत में सच्चा और ईमानदार होना एक शर्त है और यदि हम चाहते हैं कि अल्लाह हमारे अच्छे कामों को स्वीकार करे तो हमें इन शर्तो को पूरा करना होगा। बेईमानी के मूल कारणों में से एक हमारी अपनी सांसारिक इच्छाओं को पूरा करने के लिए काम करना है। इमाम अल-हरावी, जिनकी मृत्यु 846 सीई में हुई थी, ने हमें चेतावनी दी थी कि सात प्रकार की इच्छाएं हैं जो हमारे इखलास को भ्रष्ट कर सकती हैं। ये इच्छाएं है:

1.दूसरों की नजरो में खुद को अच्छा दिखाने की इच्छा।

2.दूसरों की प्रशंसा पाने की इच्छा।

3.दूसरों के द्वारा दोष लगाने से बचने की इच्छा।

4.दूसरों से गुणगान करवाने की इच्छा।

5.दूसरों से धन पाने की इच्छा।

6.दूसरों का प्यार पाने की इच्छा।

7.अल्लाह के सिवा किसी अन्य से मदद मांगने की इच्छा।

इसलिए एक विश्वासी के लिए यह बुद्धिमानी है कि वह न केवल पूजा के अनिवार्य कृत्यों से पहले, बल्कि पूरे दिन के दौरान अपने इरादों और अपने इखलास की जांच करे। यदि आवश्यक हो तो हम अपने इखलास को तीन आसान तरीकों से बढ़ा सकते हैं।

1.अधिक अच्छे कार्य करके।

2.ज्ञान प्राप्त करके।

3.अपनी नियत की जांच करके।

चार मुख्य बातें इखलास का खंडन करती हैं और इसलिए हमारे किसी भी अच्छे इरादे को खत्म कर देती है। वे चार बाते हैं:

1.पाप करना।

2.अल्लाह का साझी बनाना।

3.दिखावे के लिए पूजा का कार्य करना।

4.पाखंडी होना।

यह ध्यान रखने योग्य बात है कि चाहे हमें पता हो या नहीं पता हो, हमारे दैनिक जीवन के कार्यो के पीछे एक एक इरादा होता है। इसलिए, दिन के दौरान अक्सर अल्लाह को याद करना और उसे प्रसन्न करने के बारे में सोचना, हमें ईमानदार, सही और पुरस्कृत इरादे करने में मदद करेगा।

इमाम इब्न उथैमीन ने कहा कि यह हदीस हमें सिखाती है कि यदि कोई व्यक्ति एक अच्छा काम करने का इरादा करता है, लेकिन रास्ते में किसी भी बाधा के कारण उसे पूरा नहीं कर पाता है, तो फिर भी उसे उसके इरादे के लिए इनाम मिलेगा। यह इस तथ्य के कारण है कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा: "अल्लाह ने अच्छे कामों और बुरे कामों को दर्ज करता है। जो कोई अच्छा काम करने की नियत करता है, लेकिन कर नहीं पाता, तो अल्लाह उसे एक पूर्ण अच्छे काम के रूप में दर्ज करता है; लेकिन अगर वह अच्छा काम करने की नियत करता है और उसे पूरा करता है, तो अल्लाह इसे दस अच्छे कामों, सात सौ गुना तक, या उससे अधिक के रूप में दर्ज करता है। लेकिन अगर वह एक बुरा काम करने की नियत करता है, लेकिन बुरा काम नहीं करता है, तो अल्लाह इसे एक पूर्ण अच्छे काम के रूप में दर्ज करता है; लेकिन अगर वह बुरे काम की नियत करता है और बुरा काम कर भी लेता है, तो अल्लाह इसे एक ही बुरे काम के रूप में दर्ज करता है।

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