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इस्लाम कुछ विचित्र के रूप में शुरू हुआ

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विवरण: विचित्रता के बारे में हदीस का संक्षिप्त विवरण। इसके बाद विचित्रता शब्द पर चर्चा, और यह आज और अतीत दोनों में इस्लाम से कैसे संबंधित है।

द्वारा Aisha Stacey (© 2017 NewMuslims.com)

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,378 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·विचित्रता की इस्लामी अवधारणा को समझना।

अरबी शब्द

·सहाबा - "सहाबी" का बहुवचन, जिसका अर्थ है पैगंबर के साथी। एक सहाबी, जैसा कि आज आमतौर पर इस शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह है जिसने पैगंबर मुहम्मद को देखा, उन पर विश्वास किया और एक मुसलमान के रूप में मर गया।

·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·दीन - इस्लामी रहस्योद्घाटन पर आधारित जीवन जीने का तरीका; मुसलमान की आस्था और आचरण का कुल योग। दीन का प्रयोग अक्सर आस्था, या इस्लाम धर्म के लिए किया जाता है।

·दुनिया - यह संसार, परलोक के संसार के विपरीत।

Islam-Began-as-Something-Strange.jpgडिक्शनरी.कॉम पर अजनबी की परिभाषाओं में हम पाते हैं, कुछ या कोई असामान्य, असाधारण, या अपरिचित। एक अजनबी वह होता है जिससे अपरिचित होते हैं या अनजान होते हैं। हम कह सकते हैं कि कोई अजनबी, जैसे कि, "मैंने उस व्यक्ति को पहले कभी यहां नहीं देखा।" या हम अजनबी हो सकते हैं, जैसे कि, "मैं इस जगह से जुड़ नही पाता, यह मेरे लिए अजीब और अपरिचित है।" मुसलमान आज अजीब समझे जाने या अजीब महसूस करने से अच्छी तरह परिचित हैं। हमें लगता है कि यह 21वीं सदी की घटना है लेकिन हम इसके बारे में गलत हैं।

सिर्फ एक ईश्वर की आराधना करने वालों ने कभी न कभी इस विचित्रता का अनुभव किया है। पैगंबरो और दूतों ने महसूस किया कि वे कई अन्य लोगों के बीच अकेले हैं। ज्यादातर लोगों ने उस तरह नहीं सोचा जैसा वे सोचते थे। उनके परिवार भीड़ से अलग दिखते थे, उनके अनुयायियों ने अपने-अपने समाजों में अजीब महसूस किया। मक्का के शुरुआती मुसलमानों को भी अजीब लगा होगा। कल्पना कीजिए कि वे सोच रहे होंगे कि उनके प्रियजनों को वैसा ही महसूस क्यों नहीं हो रहा जैसा वे महसूस कर रहे हैं। कल्पना कीजिए कि कई लोगों के बीच वह अकेले थे या भीड़ में एक छोटा समूह होना कैसा लगता है। पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने सहाबा से कहा कि उनकी विचित्रता एक अच्छा संकेत है; उन्होंने कहा, खुशखबरी विचित्रो के लिए है।

एक बहुत ही प्रसिद्ध हदीस हमें उस विचित्रता के बारे में बताती है जो हम महसूस करते हैं। "इस्लाम कुछ विचित्र के रूप में शुरू हुआ, और यह फिर से कुछ विचित्र हो जाएगा, इसलिए विचित्रो को खुशखबरी दे दो"[1]उसके सुननेवालों ने पूछा, "ऐ अल्लाह के दूत, वे विचित्र कौन हैं?" पैगंबर ने उत्तर दिया, "वे जो भ्रष्ट होने वाले लोगों को सुधारते हैं।[2]हदीस के एक अन्य कथन में उन्होंने इसी प्रश्न के उत्तर में कहा, "वे एक बड़ी दुष्ट आबादी के बीच लोगों का एक छोटा समूह हैं। जो उनका विरोध करते हैं, वे उनका अनुसरण करने वालों से अधिक हैं।[3]

जब पैगंबर मुहम्मद ने लोगों को इस्लाम में बुलाना शुरू किया तो बहुत कम लोग थे जिन्होंने उनकी चेतावनियों और संदेश को सुना। सुनने वालों को अजीब माना जाता था। फिर जैसे-जैसे लोगों की भीड़ अल्लाह के दीन में आती गई, वे कम अजीब होते गए, जिन्होंने संदेश को स्वीकार करने से इनकार कर दिया अब वे अजनबी हो गए थे। विपुल इस्लामी विद्वान इब्न अल-क़य्यिम (1292 - 1350 सीई) ने समझाया कि विचित्र के बीच भी विचित्र होते हैं। उन्होंने कहा, मुसलमान मानवजाति के बीच विचित्र हैं; सच्चे ईमान वाले मुसलमानों में विचित्र हैं; और विद्वान सच्चे विश्वासियों के बीच विचित्र हैं। और सुन्नत के अनुयायी, जो किसी भी प्रकार के नवाचारों को नही मानते, वे उसी तरह ही अजनबी हैं।[4]

इब्न अल-कय्यिम ने विचित्रता को भी तीन श्रेणियों में विभाजित किया है:

1.प्रशंसनीय विचित्रता। यही वह विचित्रता है जो तब आती है जब कोई व्यक्ति कहता है कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और मुहम्मद उसके दूत हैं। अविश्वासियों से भरी दुनिया में विश्वासी होना एक प्रशंसनीय विचित्रता है, एक सुकून देने वाली विचित्रता है।

2.निंदनीय विचित्रता। यह वह विचित्रता है जो विश्वासियों के बीच न होने से आती है। यह कुछ ऐसा है जिससे हम सभी को अल्लाह की सुरक्षा लेनी चाहिए क्योंकि ये लोग ईश्वर के लिए अजनबी हैं।

3.यह वह विचित्रता है जो यात्री महसूस करता है। यह तटस्थ है, न तो प्रशंसनीय है और न ही दोष देने योग्य है। इब्न अल-क़य्यिम इस विचार का समर्थन करते हैं कि इसमें प्रशंसनीय बनने की क्षमता है।

यात्री की विचित्रता वह अजीबोगरीब एहसास है जो एक व्यक्ति को तब होता है जब वह उस जगह से बहुत दूर होता है जिसमें वह सबसे अधिक आरामदायक महसूस करता है, यानि उसका घर। जब कोई व्यक्ति किसी स्थान पर थोड़े समय के लिए रुकता है, यह जानते हुए कि उसे आगे बढ़ जाना है, तो उसे अजीब लगता है, जैसे कि वह वहां का नहीं है, या शायद कहीं और का है। पैगंबर मुहम्मद ने कहा, "इस दुनिया में ऐसे जियो जैसे कि तुम एक अजनबी या एक यात्री हो।”[5]

कई विश्वासी है जो इस दुनिया में अजनबी की तरह महसूस करते हैं। नए मुसलमान अक्सर यह देखकर हैरान हो जाते हैं कि जब वे इस्लाम धर्म अपनाते हैं तो उनका अपनेपन का एहसास पूरी तरह से खत्म नहीं होता है। और यह भावना नए मुसलमानों तक ही सीमित नहीं है। बहुत से लोग जो इस्लाम के दीन में पैदा हुए थे, उन्हें भी यहां का न होने का एहसास होता है। इसलिए ऐसे कई लोग हैं जो मानते हैं कि जब तक हम अपने सच्चे घर, स्वर्ग में सुरक्षित नहीं होंगे, तब तक अजनबीपन की भावना नहीं खत्म होगी।

पूरे क़ुरआन में अल्लाह विश्वासियों को याद दिलाता है कि परलोक ही हमारी आख़िरी मंज़िल है। वह हमें बताता है कि यह दुनिया एक मोड़, एक परीक्षा और एक परीक्षण से ज्यादा कुछ नहीं है। इब्न रजब (1335 -1393 सीई) ने बताया कि पैगंबर मुहम्मद ने एक अजनबी की सादृश्यता का इस्तेमाल किया क्योंकि एक अजनबी आमतौर पर वह व्यक्ति होता है जो यात्रा कर रहा होता है और हमेशा घर जाने के लिए तैयार रहता है; इस दुनिया के माध्यम से यात्रा करते हुए परलोक की तैयारी और स्वर्ग की लालसा करना।

इसके अलावा, एक अजनबी अन्य लोगों की तरह नहीं दिखता है, वह अलग होता है। ये फर्क ही उसे अजनबी बनाते हैं। सच्चे विश्वासी अजनबी होते हैं और यह उचित है कि हम उन लोगों की तरह नहीं हैं जो विश्वास नहीं करते। ऐसी दुनिया में जहां इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करना विचित्र माना जाता है, कभी-कभी मुसलमानों में भी यह विचार आता है कि इस्लाम आने वाले समय मे विचित्र हो जाएगा। इसलिए, अपनी विचित्रता को गले लगाओ और इसके साथ आने वाली खुशखबरी के लिए आभारी रहो।



फुटनोट:

[1] सहीह मुस्लिम, अत-तिर्मिज़ी, इब्न माजा और अहमद।

[2] इब्न मसूद की हदीस से अबू अम्र अल-दानी द्वारा बताया गया।

[3] इब्न असाकिर द्वारा बताया गया।

[4] अल-ग़ुरबासु वा अल-ग़ुरबा, इमाम इब्न अल-क़य्यिम अल-जौज़ियाह की एक पुस्तिका।

[5] सहीह बुखारी।

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