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अल्लाह कहां है?

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विवरण: अल्लाह के होने के प्रश्न का उत्तर, इस प्रमाण द्वारा समर्थित है कि वह वास्तव में आसमान और उसकी रचना से ऊपर है।

द्वारा Imam Mufti

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 19 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,459 (दैनिक औसत: 3)


उद्देश्य

·'उलुव' के दैवीय गुण और उसके अर्थ को समझना।

·इस विशेषता के महत्व को समझना।

·पांच सबूत जानना।

·जानना कि इस विशेषता में विश्वास करने का मतलब यह नहीं है कि अल्लाह अपनी रचना से बेखबर है।

अरबी शब्द

·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।

·नमाज - आस्तिक और अल्लाह के बीच सीधे संबंध को दर्शाने के लिए अरबी का एक शब्द। अधिक विशेष रूप से, इस्लाम में यह औपचारिक पाँच दैनिक प्रार्थनाओं को संदर्भित करता है और इबादत का सबसे महत्वपूर्ण रूप है।

दयावान अल्लाह क़ुरआन में खुद का वर्णन करता है, और पैगंबर ने सुन्नत में अपने अल्लाह का वर्णन किया है, क्योंकि मानव बुद्धि सीमित है और ईश्वर के असीम दायरे की थाह नहीं ले सकती है। अल्लाह हमें बताता है कि हमें उसके बारे में क्या जानना आवश्यक है, ताकि उसके अस्तित्व, कार्यों और स्थान के बारे में कोई भ्रम न हो। आखिर हम किसी ऐसे व्यक्ति से कैसे प्यार कर सकते हैं जिसे हम नहीं जानते? इसलिए, क़ुरआन और सुन्नत हमें वह सब कुछ बताते हैं जो हमें हमारे निर्माता की इबादत करने के लिए जानना आवश्यक है। इस पाठ का विषय 'उलुव' (उच्चता या श्रेष्ठता) का दैवीय गुण है।

अर्थ और महत्व

दैवीय गुण 'उलुव' का अर्थ है कि अल्लाह उसकी रचना से ऊपर है, और उसके ऊपर कुछ भी नहीं है। अल्लाह न तो अपनी रचना के भीतर है, न ही अपनी रचना का हिस्सा है। सृष्टि उसे घेर नहीं सकती। सृष्टिकर्ता अपनी रचना से पूरी तरह से अलग और भिन्न है।

इस्लाम से पहले, हिंदुओं का मानना ​​था कि ईश्वर जानवरों, इंसानों और अनगिनत मूर्तियों में रहते हैं। यहूदी धर्मग्रंथ में कहा गया है कि ईश्वर एक आदमी के रूप में पृथ्वी पर आए और पैगंबर याक़ूब के साथ कुश्ती की, जिन्होंने ईश्वर को हराया (उत्पत्ति 32:24-30)। ईसाइयों ने दावा किया है कि ईश्वर देह बने और एक आदमी के रूप में सूली पर चढ़ाए जाने के लिए पृथ्वी पर आए। कुछ विधर्मि भी ऐसे विचारों को इस्लाम में लेकर आये। उदाहरण के लिए, एक विक्षिप्त फकीर हलाज ने खुले तौर पर दावा किया कि वह और अल्लाह एक हैं। ये विकृत विचार इतने व्यापक हो गए हैं कि अगर आज कोई मुसलमानों से पूछे कि 'अल्लाह कहां है?' वे कहेंगे कि वह हर जगह है।

इस विचार मे मुख्य खतरा यह है कि इससे निर्मित चीजों की पूजा का रास्ता खुल जायेगा। अगर ईश्वर हर जगह है, तो इसका मतलब है कि वह अपनी रचना में है। अगर यह सच है तो क्यों न खुद रचना की पूजा की जाए? लोगों के लिए यह कहना विशेष रूप से आसान हो जाता है कि ईश्वर उनकी अपनी आत्मा में हैं और पूजा स्वीकार करते हैं। अनगिनत राजाओं, मिस्र के फिरौन और यीशु जैसे सामान्य व्यक्तियों की पूजा की जाती थी, हालांकि यीशु ने अपने अनुयायियों द्वारा पूजा जाना स्वीकार नहीं किया था।

सबूत

अल्लाह हर जगह नहीं है। इसके पांच प्रमुख प्रमाण हैं:

(1) इस्लाम कहता है कि प्रत्येक मनुष्य कुछ प्रवृत्तियों के साथ पैदा होता है जो उसके परिवेश की वजह से नहीं हैं। मनुष्य जब पैदा होता है तो उसे पता होता है कि एक निर्माता है जो अपनी रचना से अलग और ऊपर है। यदि आप मानते हैं कि ईश्वर हर जगह है तो गंदगी के स्थानों में ईश्वर के होने का सिर्फ सोचना मानव स्वभाव के लिए अप्रिय है।

(2) नमाज़ वहां पढ़ी जानी चाहिए जहां तस्वीरें या मूर्तियां न हो। एक मुसलमान को पूजा के लिए किसी भी रचना के सामने झुकना या सजदा करना मना है। अगर अल्लाह हर जगह और हर चीज में होता, तो लोग दूसरे लोगों की या खुद की पूजा कर सकते थे।

(3) पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के मक्का से मदीना जाने के दो साल पहले, उन्हें मक्का से यरुशलम की और यरुशलम से सात आसमानों से ऊपर अल्लाह से मिलने एक चमत्कारी यात्रा पर ले जाया गया। अल्लाह ने सीधे पैगंबर मुहम्मद से बात की। अगर अल्लाह हर जगह मौजूद होता तो पैगंबर को अल्लाह से मिलने के लिए सात आसमानों से ऊपर जाने की कोई जरूरत नहीं होती।

(4) क़ुरआन के कई छंद हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं कि अल्लाह अपनी रचना से ऊपर है।

क़ुरआन अल्लाह के पास ऊपर जाने वाले स्वर्गदूतों की बात करता है:

“ऊपर उसके पास जाता है, एक दिन में, जिसका माप एक हज़ार वर्ष है, तुम्हारी गणना से।” (क़ुरआन 32:5)

प्रार्थनाएं भी अल्लाह के पास ऊपर जाती हैं:

“और उसी की ओर चढ़ते हैं पवित्र वाक्य” (क़ुरआन 35:10)

अल्लाह खुद को अपने दासों से ऊपर बताता है:

“तथा वही है, जो अपने सेवकों पर पूरा अधिकार रखता है” (क़ुरआन 6:18, 61)

वह अपने उपासकों का वर्णन इस प्रकार करता है:

“वे अपने पालनहार से डरते हैं, जो उनके ऊपर है” (क़ुरआन 16:50)

अल्लाह के खूबसूरत नामों में से एक अल-अली है जिसका अर्थ है 'सबसे ऊंचा'; अल्लाह से ऊपर कुछ भी नहीं है।

(5) पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) के एक साथी इब्न अल-हकम के पास एक गुलाम था जो उसकी भेड़ों को चराता था। एक दिन वह उससे मिलने गया और उसे पता चला कि एक भेड़िये ने उस भेड़ में से एक को खा लिया जिसकी वह देखभाल करती थी। यह जानकर उसे गुस्सा आया और उसने उसके चेहरे पर थप्पड़ मारा, लेकिन बाद में ऐसा करने पर पछताया। तो वह अल्लाह के दूत के पास आया और उन्हें ये बात बताई, जिस पर पैगंबर ने उसे उस गुलाम को बुलाने को कहा।

जब वह आई, तो पैगंबर ने उससे पूछा, 'अल्लाह कहां है?' उसने जवाब दिया, 'आसमान के ऊपर।' पैगंबर ने उससे पूछा, 'मैं कौन हूं?' उसने कहा, 'आप अल्लाह के दूत हो।' पैगंबर ने कहा, 'इसे आजाद कर दो, क्योंकि यह विश्वासी है।'[1]

यहां पैगंबर ने उस गुलाम के बयान की पुष्टि की कि अल्लाह आसमान से ऊपर है। अगर अल्लाह ऊपर नहीं होता, तो पैगंबर ने वास्तव में उसे फटकार लगाई होती जैसा उन्होंने अन्य गलत मान्यताओं के लिए फटकार लगाई थी।

क्या अल्लाह अपनी रचना से बेखबर है?

अल्लाह के अपनी रचना से ऊपर होने का मतलब यह नहीं है कि वह अपनी रचना से बेखबर है। वह ब्रह्मांड में होने वाली हर चीज को जानता है। अल्लाह की दृष्टि, श्रवण, शक्ति और क्षमता से कुछ भी बाहर नहीं है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित छंदो को समझना चाहिए:

“हम तो अधिक समीप हैं उससे उसकी प्राणनाड़ी से।” (क़ुरआन 50:16)

“और जान लो कि अल्लाह मानव और उसके दिल के बीच आड़े आ जाता है” (क़ुरआन 8:24)

इन छंदो का मतलब यह नहीं है कि अल्लाह मनुष्य के अंदर है। इसका सीधा सा मतलब है कि अल्लाह के ज्ञान से कुछ भी नहीं बचता है। वह मनुष्य के सबसे अंतरतम विचारों को भी जानता है, जैसा कि अल्लाह क़ुरआन के एक अन्य छंद में कहता है:

“क्या वे नहीं जानते कि वे जो कुछ छुपाते तथा व्यक्त करते हैं, वो सब अल्लाह जानता है?” (क़ुरआन 2:77)

संक्षेप में, क़ुरआन और सुन्नत के आधार पर अल्लाह अपनी महानता के अनुरूप ब्रह्मांड से ऊपर है; रचना उसमें नहीं है, न ही वह अपनी रचना में समाया हुआ है। हालांकि, वह अपने ज्ञान, शक्ति और क्षमता से ब्रह्मांड के हर एक कण के भीतर का सब जानता है और सक्षम है।

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[1] सहीह मुस्लिम

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