लोड हो रहा है...
फ़ॉन्ट का आकारv: इस लेख के फ़ॉन्ट का आकार बढ़ाएं फ़ॉन्ट का डिफ़ॉल्ट आकार इस लेख के फॉन्ट का साइज घटाएं
लेख टूल पर जाएं

गैर-मुस्लिमों का भाग्य

रेटिंग:

विवरण: इस्लाम से पहले और बाद में आने वाले गैर-मुस्लिमों के भाग्य पर इस्लामी दृष्टिकोण।

द्वारा NewMuslims.com

प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022

प्रिंट किया गया: 22 - ईमेल भेजा गया: 0 - देखा गया: 2,394 (दैनिक औसत: 3)


आवश्यक शर्तें

·इस्लाम के स्तंभों और आस्था के अनुच्छेदों का परिचय (2 भाग)।

उद्देश्य

·यह जानना कि यहूदियों और ईसाइयों को क़ुरआन में स्वर्ग का वादा किया गया था।

·क़ुरआन के उन दो छंदो का सही अर्थ जानना जिसका अक्सर गलत अर्थ निकाला जाता है।

·गैर-मुस्लिमों के भाग्य पर इस्लामी दृष्टिकोण जानना।

अरबी शब्द

·तौहीद - प्रभुत्व, नाम और गुणों के संबंध में और पूजा की जाने के अधिकार में अल्लाह की एकता और विशिष्टता।

·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।

·काफ़िर - (बहुवचन: कुफ़्फ़ार) अविश्वासी।

यहूदियों और ईसाइयों को क़ुरआन में स्वर्ग का वादा किया गया था

जिन यहूदियों और ईसाइयों को क़ुरआन में स्वर्ग का वादा किया गया था वे मुसलमान थे, जो सच्चे एकेश्वरवादी थे, तौहीद का पालन करते थे, अपने पैगंबरो में विश्वास करते थे, अल्लाह के साथ शिर्क नहीं करते थे, लेकिन वो मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) की पैगंबरी से पहले ही मर गए थे। क़ुरआन का एक छंद जिसका लोग अक्सर गलत अर्थ समझते हैं उन्हें संदर्भित करती है:

“वस्तुतः जिन्होंने विश्वास किया तथा जो यहूदी हुए और ईसाई तथा साबी, जो भी अल्लाह तथा अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान लायेगा और सत्कर्म करेगा, उनका प्रतिफल उनके पालनहार के पास है और उन्हें कोई डर नहीं होगा और न ही वे उदासीन होंगे।” (क़ुरआन 2:62)

इस्लाम के विद्वान इस बात से सहमत हैं कि यह छंद उन लोगों के बारे में बात नहीं कर रही है जो मानते हैं कि यीशु ईश्वर का पुत्र है, या यीशु ईश्वर के समान है, या जो लोग मानते हैं कि अल्लाह गरीब है और वे अमीर हैं, या जो पैगंबर मुहम्मद (उन पर ईश्वर की दया और आशीर्वाद हो) को अस्वीकार करते हैं। यह छंद मूसा और यीशु के मूल अनुयायियों के बारे में बात कर रहा है जो अपने पैगंबरों पर विश्वास करते थे और सिर्फ अल्लाह की पूजा करते थे, लेकिन पैगंबर मुहम्मद के आने से पहले उनका निधन हो गया था। वास्तव में, क़ुरआन में एक पूरा अध्याय है, सूरह अल-बुरुज (क़ुरआन 85), जो 'खाई के लोग' की कहानी में पैगंबर मुहम्मद के आगमन से पहले के ईसाई शहीदों की बात करता है।

छंद:

“आप उनका, जो विश्वासी हैं, सबसे कड़ा शत्रु यहूदियों तथा मिश्रणवादियों को पायेंगे और जो विश्वास करते हैं उनके सबसे अधिक समीप आप उन्हें पायेंगे, जो अपने को ईसाई कहते हैं।’”(क़ुरआन 5:82)

अन्य शेष श्लोक सही अर्थ बताते हैं। यह उन ईसाइयों की बात कर रहा है जिन्होंने इस्लाम में प्रवेश किया, पैगंबर मुहम्मद में विश्वास किया, और क़ुरआन की शिक्षाओं से प्रभावित हुए। क़ुरआन के विद्वानों का कहना है कि यह छंद नेगस और उसके सहयोगियों के बारे में आई थी, जिन्होंने इस्लाम में प्रवेश किया था जब सताए गए मुसलमानों का एक समूह मक्का से इथियोपिया चला गया था। जब उसका निधन हुआ तो पैगंबर ने अनुपस्थिति में नेगस के लिए अंतिम संस्कार की प्रार्थना की। अतीत में और आज भी ज्यादातर ईसाई इस्लाम में प्रवेश करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि ईसाइयों को मुसलमानों से प्यार है।

“ये बात इसलिए है कि उनमें उपासक तथा सन्यासी हैं और वे अभिमान नहीं करते। तथा जब वे (ईसाई) उस (क़ुरआन) को सुनते हैं, जो दूत पर उतरा है, तो आप देखते हैं कि उनकी आंखे आंसू से उबल रही हैं, उस सत्य के कारण, जिसे उन्होंने पहचान लिया है। वे कहते हैं, ऐ हमारे पालनहार! हम विश्वास करते हैं, अतः हमें (सत्य) के साथियों में लिख ले। (तथा कहते हैं) क्या कारण है कि हम अल्लाह पर तथा इस सत्य (क़ुरआन) पर विश्वास न करें? और हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों में सम्मिलित कर देगा। तो अल्लाह ने उनके ये कहने के कारण उन्हें ऐसे स्वर्ग प्रदान कर दिये, जिनमें नहरें प्रवाहित हैं, वे उनमें सदावासी होंगे तथा यही सत्कर्मियों का प्रतिफल (बदला) है। तथा जो अविश्वासी हो गये और हमारे छंदो को झुठला दिया, तो वह नर्क के वासी हैं।” (क़ुरआन 5:82-86)

गैर-मुस्लिमों का अंत

यहूदियों, ईसाइयों और अन्य गैर-मुस्लिमों के काफिर होने पर इस्लामी दृष्टिकोण का मतलब यह नहीं है कि हर गैर-मुस्लिम को नर्क में भेजा जायेगा। हमारे समय में पुस्तक के लोग (यहूदी और ईसाई) को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:

(I) जिनके पास इस्लाम का संदेश पहुंचा है, जो पैगंबर मुहम्मद को जानते हैं जिन पर ईश्वर का प्रमाण स्थापित किया गया है, फिर भी उन्होंने उन पर विश्वास नहीं किया। मुस्लिम विद्वानों के अनुसार, वे इस दुनिया में काफिर हैं और मरने के बाद वे हमेशा के लिए नर्क की आग के निवासी होंगे यदि वे अविश्वास पर और अस्वीकृति पर मर गए। ऊपर बताये गए क़ुरआन के छंदों के अलावा, पैगंबर मुहम्मद ने कहा:

“जिसको मुहम्मद के बारे मे पता है, वह जो यहूदियों या ईसाइयों के समुदाय में से मेरे बारे में सुनता है, लेकिन विश्वास नहीं करता है जो मेरे साथ भेजा गया है और अविश्वास की स्थिति मे मर जाता है, वह सिर्फ नरक-अग्नि के निवासियों में से एक होगा।” [1]

“जब न्याय का दिन आएगा तो एक उद्घोषक बोलेगा: हर एक व्यक्ति उसी का अनुसरण करे जिसकी वे उपासना करते थे। फिर जो लोग अल्लाह के अलावा मूर्तियों और पत्थरों की पूजा करते थे, वे आग में गिर जायेंगे, जब तक कि सिर्फ अल्लाह की पूजा करने वालों और किताब के लोगों में से केवल धर्मी और पापी नहीं रह जाते। तब यहूदियों को बुलया जायेगा, और उन से कहा जायेगा: तू ने किसकी उपासना की? वे कहेंगेः हमने अल्लाह के बेटे उजैर की उपासना की। उनसे कहा जाएगा कि तुम झूट बोलते हो, अल्लाह का कभी कोई साथी या बेटा नहीं था। तुम अब क्या चाहते हो? वो कहेंगे; हमें प्यास लगी है, ऐ हमारे पालनहार! हमारी प्यास बुझाओ। उन्हें एक निश्चित दिशा में जाने का आदेश दिया जाएगा और कहा जायेगा: तुम पानी पीने वहां क्यों नहीं जाते हो? तब उन्हें आग की ओर धकेला जाएगा (और वे बड़ी निराशा से देखेंगे कि) यह एक मृगतृष्णा (आग की लपटें) है जो एक दूसरे को भस्म कर रही है, और वे आग में गिर जाएंगे। फिर ईसाइयों को बुलाकर उनसे पूछा जायेगा कि तुम किसकी उपासना करते थे? वे कहेंगे: हमने ईश्वर के पुत्र यीशु की उपासना की। उनसे कहा जाएगा कि तुम झूट बोलते हो, अल्लाह का न तो साथी था और न ही पुत्र। फिर उनसे कहा जाएगा कि तुम क्या चाहते हो? वो कहेंगे; हमें प्यास लगी है, ऐ हमारे पालनहार! हमारी प्यास बुझाओ, और उनका भी यही परिणाम होगा।” [2]

(II) दूसरी श्रेणी: जिन लोगों तक इस्लाम का संदेश नहीं पहुंचा, या हो सकता है कि उन तक पहुंच गया हो लेकिन विकृत हो के, या उन्होंने पैगंबर मुहम्मद के बारे में नहीं सुना हो। न्याय के दिन उनकी परीक्षा ली जाएगी। जो आज्ञा मानेंगे वे बच जाएंगे, जो अवज्ञा करेंगे वे बर्बाद हो जाएंगे।

जैसा कि देखा जा सकता है, मृत्यु के बाद के जीवन में दोनों का भाग्य अलग होगा, लेकिन इस दुनिया में मुस्लिम न्यायविदों के अनुसार दोनों को कुफ्फार माना जाता है। इसका क्या मतलब है? सबसे पहला, उन्हें इस्लाम का संदेश देना अनिवार्य है। दूसरा, मोक्ष की सार्वभौमिक योजना के साथ इस्लाम ही सभी पैगंबरो का एकमात्र सच्चा धर्म है; अन्य सभी धर्म अल्लाह की दृष्टि में झूठे और अस्वीकार्य हैं। तीसरा, उन पर गैर-मुस्लिमों के नियम लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, इस्लाम का संदेश गैर-मुस्लिम तक पहुंचा हो या नहीं, एक मुस्लिम महिला यहूदी या ईसाई पुरुष से शादी नहीं कर सकती। इसके अलावा, उन्हें मुस्लिम कब्रिस्तान में दफनाया नहीं जा सकता है। उनके अंतिम संस्कार की नमाज मुसलमान नहीं पढ़ सकता है।

अंत में, इस्लाम एक सार्वभौमिक धर्म है। इसकी समावेशिता मूसा, यीशु और मुहम्मद सहित सभी पैगंबरो के सच्चे अनुयायियों तक फैली हुई है। फिर भी, इसमें वो लोग शामिल नहीं है जिन्होंने पैगंबरो की शुद्ध शिक्षाओं को विकृत किया, और जो सत्य तक पहुंचने के बाद भी झूठ का पालन करते रहे।



फुटनोट:

[1]सहीह मुस्लिम

[2]सहीह अल-बुखारी, सहीह मुस्लिम

पाठ उपकरण
बेकार श्रेष्ठ
असफल! बाद में पुन: प्रयास। आपकी रेटिंग के लिए धन्यवाद।
हमें प्रतिक्रिया दे या कोई प्रश्न पूछें

इस पाठ पर टिप्पणी करें: गैर-मुस्लिमों का भाग्य

तारांकित (*) फील्ड आवश्यक हैं।'

उपलब्ध लाइव चैट के माध्यम से भी पूछ सकते हैं। यहाँ.
अन्य पाठ स्तर 3