क्या हम अल्लाह को देख सकते हैं?
विवरण: यह पाठ इस प्रश्न को संबोधित करता है कि क्या यहूदी-ईसाई शिक्षाओं की तुलना में अल्लाह को इस्लामी दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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उद्देश्य
·यह जानना कि अल्लाह को न तो देखा जा सकता है और न ही कल्पना की जा सकती है।
·ईश्वर को देखने की इस्लामी शिक्षा की तुलना यहूदी-ईसाई शिक्षाओं से करना।
·अल्लाह को देखने के लिए मूसा के अनुरोध को समझना।
·यह जानना कि क्या पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने अल्लाह को देखा या नहीं।
·आध्यात्मिक अनुभवों से 'ईश्वर के दर्शन' पर विचार करना।
·परलोक के जीवन में अल्लाह को देखने के बारे में जानना।
अरबी शब्द
·नमाज - आस्तिक और अल्लाह के बीच सीधे संबंध को दर्शाने के लिए अरबी का एक शब्द। अधिक विशेष रूप से, इस्लाम में यह औपचारिक पाँच दैनिक प्रार्थनाओं को संदर्भित करता है और पूजा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·हदीस - (बहुवचन - हदीसें) यह एक जानकारी या कहानी का एक टुकड़ा है। इस्लाम में यह पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों के कथनों और कार्यों का एक वर्णनात्मक रिकॉर्ड है।
मानव का दिमाग एक सच्चा चमत्कार है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में यह सीमित है। अल्लाह उन सभी चीजों से अलग है जिसके बारे में मानव का दिमाग सोच सकता है या कल्पना कर सकता है। इसलिए, यदि दिमाग अल्लाह को चित्रित करने की कोशिश करता है, तो कुछ पहलू अस्पष्ट होंगे और अनिश्चित होंगे। फिर भी, अल्लाह के उन गुणों को समझना संभव है जिन्हें किसी मानसिक चित्र की आवश्यकता नहीं है। उदाहरण के लिए, अल्लाह के नामों में से एक अल-गफ्फार है, जिसका अर्थ है 'अक्सर-क्षमा करने वाला'। इसे हर कोई आसानी से समझ सकता है क्योंकि इसी तरह इंसान का दिमाग अल्लाह के बारे में स्पष्ट सोच सकता है। ईश्वर पर यहूदी और ईसाई शिक्षाएं आंशिक रूप से इस मुद्दे की गलत समझ के कारण भ्रमित हैं। यहूदीयों की तौरात बताती है कि ईश्वर मनुष्य के समान है:
“फिर ईश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं…तब ईश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया’ (उत्पत्ति 1:26-27)
इसके अलावा, कुछ ईसाई अपने चर्चों में ईश्वर का चित्रण करने वाले एक बूढ़े सफेद दाढ़ी वाले व्यक्ति की मूर्तियां या चित्र लगाते हैं। इनमें से कुछ माइकल एंजेलो ने बनाये थे, जिसने चित्रों में 'ईश्वर' के चेहरे और हाथ को चित्रित किया था - जो एक बूढ़े व्यक्ति की तरह दिखता था।
इस्लाम में ईश्वर का चित्र बनाना एक असंभव बात है, और अविश्वास का काम है, जैसा कि अल्लाह हमें क़ुरआन में बताता है कि कुछ भी उसके जैसा नहीं है:
“उसकी कोई प्रतिमा नहीं और वह सब कुछ सुनने-जानने वाला है।” (क़ुरआन 42:11)
“और न उसके बराबर कोई है।” (क़ुरआन 112:4)
अल्लाह को देखने के लिए मूसा का अनुरोध
आंखें अल्लाह को नहीं देख सकती, अल्लाह हमें क़ुरआन में बताता है:
“आंखे उसे देख नहीं सकती, जबकी वह सब कुछ देख रहा है।” (क़ुरआन 6:103)
ईश्वर ने मूसा से बात की और महान चमत्कार दिए, और अल्लाह ने उन्हें अपना पैगंबर चुना। ऐसा कहा जाता है कि मूसा ने सोचा कि चूंकि अल्लाह उनसे बात करता है, अगर वह अनुरोध करें तो वह वास्तव में अल्लाह को देख सकते हैं। ये कहानी क़ुरआन में है, जहां अल्लाह हमें बताता है कि क्या हुआ:
“और जब मूसा हमारे निर्धारित समय पर आ गया और उसके पालनहार ने उससे बात की, तो उसने कहाः हे मेरे पालनहार! मेरे लिए अपने आपको दिखा दे, ताकि मैं तेरा दर्शन कर लूं। अल्लाहने कहाः तू मेरा दर्शन नहीं कर सकेगा। परन्तु इस पर्वत की ओर देख! यदि ये अपने स्थान पर स्थिर रह गया, तो तू मेरा दर्शन कर सकेगा। फिर जब उसका पालनहार पर्वत की ओर प्रकाशित हुआ, तो उसे चूर-चूर कर दिया और मूसा बेहोश होकर गिर गया। फिर जब होश आया, तो उसने कहाः तू पवित्र है! मैं तुझसे क्षमा मांगता हूं। तथा मैं सर्व प्रथम विश्वास करने वालों में से हूं।’” (क़ुरआन 7:143)
अल्लाह ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी यहां तक कि महान पैगंबर मूसा भी अल्लाह को नही देख सकते, क्योंकि इस जीवन में मानव आंखें महान अल्लाह को नही देख सकते हैं। क़ुरआन के अनुसार, मूसा ने महसूस किया कि उनका अनुरोध गलत था; इसलिए, उन्होंने अल्लाह से क्षमा मांगी कि उन्होंने ऐसा सोच भी कैसे लिया।
पैगंबर मुहम्मद ने इस जीवन में अल्लाह को नहीं देखा
पैगंबर मुहम्मद (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने अल्लाह से मिलने के लिए आसमान के रास्ते एक चमत्कारी यात्रा की। लोगों को लगा कि पैगंबर मुहम्मद ने उस यात्रा में अल्लाह से बात की, तो उन्होंने शायद अल्लाह को देखा भी होगा। पैगंबर के साथियों में से एक अबू ज़र ने पैगंबर से इसके बारे में पूछा। पैगंबर ने उत्तर दिया:
“वहां केवल प्रकाश था, मैं उसे कैसे देख पाता?’[1]
वह प्रकाश क्या था जो उन्होंने देखा? पैगंबर ने समझाया:
“बेशक, अल्लाह न तो सोता है और न ही सोना उसका गुण है। वह तो वो है जो स्तर को कम करता है और बढ़ाता है। उसके पास रात के कर्म दिन के कर्मों से पहले जाते हैं और दिन के कर्म रात के कर्मों से पहले, और उसका आवरण प्रकाश है।”[2]
आध्यात्मिक अनुभवों में ईश्वर का दर्शन
कुछ लोग, जिनमें कुछ मुसलमान भी हैं, आध्यात्मिक अनुभव बताते हैं जहां वो दावा करते हैं कि उन्होंने ईश्वर को देखा है। सामान्य अनुभवों में रोशनी देखना या किसी को सिंहासन पर बैठे देखना भी शामिल है। लोग इस तरह का अनुभव होने के बाद आम तौर पर नमाज और उपवास जैसी बुनियादी इस्लामी प्रथाओं को छोड़ देते हैं, उनको ग़लतफ़हमी होती है कि ऐसी प्रथाएं केवल उन आम लोगों के लिए हैं जिन्होंने ऐसा अनुभव नहीं किया है।
इस्लाम की मूलभूत नींव में से एक यह है कि पैगंबर मुहम्मद को बताए गए कानून को बदला या रद्द नहीं किया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि ईश्वर किसी चीज को कुछ लोगों के लिए वैध बनाता है और कुछ लोगों के लिए अवैध, और न ही वह ऐसे अनुभवों के माध्यम से लोगों को अपने कानून बताता है। बल्कि पैगंबरो के रहस्योद्घाटन के उचित माध्यम से ईश्वरीय कानून का पता चलता है, एक ऐसा माध्यम जो पैगंबर मुहम्मद के आने के बाद बंद हो गया है, जो ईश्वर के अंतिम पैगंबर हैं। यह शैतान है जो ऐसे अनुभवों में विश्वास करने वाले अज्ञानी लोगों को धोखा देने और भटकाने के लिए अल्लाह होने का दिखावा करता है।
बाद के जीवन में अल्लाह को देखना
इस जीवन में अल्लाह को नहीं देखा जा सकता, लेकिन आस्तिक बाद के जीवन में अल्लाह को देखेंगे, यह क़ुरआन और सुन्नत में स्पष्ट रूप से कहा गया है। पैगंबर ने कहा, "पुनरुत्थान का दिन पहला दिन होगा जब कोई भी आंख महान अल्लाह को देखेगी।”[3] पुनरुत्थान के दिन की घटनाओं का वर्णन करते हुए, अल्लाह क़ुरआन में कहता है:
“बहुत से मुख उस दिन प्रफुल्ल होंगे। अपने पालनहार की ओर देख रहे होंगे।” (क़ुरआन 75:22-23)
पैगंबर से पूछा गया कि क्या हम पुनरुत्थान के दिन अल्लाह को देखेंगे। पैगंबर ने उत्तर दिया, "क्या पुरे चांद को देखने पर आपको नुकसान होता है?”[4] ‘नहीं,' उन्होंने जवाब दिया। फिर पैगंबर ने कहा, "निश्चय ही तुम अल्लाह को भी वैसे ही देखोगे।" एक अन्य हदीस में पैगंबर ने कहा, "निश्चित रूप से, आप में से प्रत्येक उस दिन अल्लाह को देखेगा जब आप उससे मिलोगे, और अल्लाह के और आपके बीच कोई पर्दा या अनुवादक नहीं होगा।”[5] स्वर्ग के मुसलमानों के लिए अल्लाह को देखना स्वर्ग के अलावा एक उपकार होगा। वास्तव में, एक आस्तिक के लिए अल्लाह को देखने का आनंद स्वर्ग की सभी खुशियों से अधिक होगा। दूसरी ओर, अविश्वासियों को अल्लाह को देखने से वंचित किया जाएगा और यह उनके लिए नर्क के सभी दर्द और पीड़ा से बड़ी सजा होगी।
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