शिर्क और इसके प्रकार (3 का भाग 3)
विवरण: अन्य देवताओं को अल्लाह के साथ जोड़ने और जो चीज़े सिर्फ अल्लाह के लिए अनन्य और अद्वितीय हैं उसको दूसरों की बताने के संबंध में इस्लामी रुख। भाग 3: छोटे शिर्क की परिभाषा, छोटे शिर्क के रूप और बड़े और छोटे शिर्क के बीच अंतर।
द्वारा Imam Mufti
प्रकाशित हुआ 08 Nov 2022 - अंतिम बार संशोधित 07 Nov 2022
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आवश्यक शर्तें
·अल्लाह पर विश्वास (2 भाग)।
उद्देश्य
·छोटे शिर्क की परिभाषा जानना।
·छोटे शिर्क के कुछ सामान्य उदाहरण जानना।
oटोटका और शकुन
oअल्लाह के सिवा किसी और की कसम खाना।
oदिखावा करना
·रिया का अर्थ और गंभीरता जानना।
·यह समझना कि रिया पूजा को कैसे प्रभावित करती है।
·रिया से सुरक्षा के लिए प्रार्थना सीखना।
·बड़े और छोटे शिर्क के बीच पांच अंतर जानना।
अरबी शब्द
·शिर्क - एक ऐसा शब्द जिसका अर्थ है अल्लाह के साथ भागीदारों को जोड़ना, या अल्लाह के अलावा किसी अन्य को दैवीय बताना, या यह विश्वास करना कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य में शक्ति है या वो नुकसान या फायदा पहुंचा सकता है।
·सुन्नत - अध्ययन के क्षेत्र के आधार पर सुन्नत शब्द के कई अर्थ हैं, हालांकि आम तौर पर इसका अर्थ है जो कुछ भी पैगंबर ने कहा, किया या करने को कहा।
·उम्मत - मुस्लिम समुदाय चाहे वो किसी भी रंग, जाति, भाषा या राष्ट्रीयता का हो।
·रिया - यह र'आ शब्द से बना है जिसका अर्थ है देखना। इस प्रकार रिया शब्द का अर्थ है दिखावा, पाखंड और ढोंग। इस्लाम में रिया का अर्थ है किसी अन्य को प्रसन्न करने के इरादे से ऐसे कार्य करना जो अल्लाह को पसंद है।
छोटे शिर्क की परिभाषा
छोटा शिर्क वह है जिसे क़ुरआन और सुन्नत में विशेष रूप से शिर्क कहा गया है, लेकिन यह बड़े शिर्क के स्तर का नहीं होता है। इसके अलावा, छोटे शिर्क को बड़े शिर्क की ओर ले जाने वाला कहा जाता है। कुछ विद्वानों ने कहा है कि छोटे शिर्क की संख्या इतनी है कि इसे ठीक-ठीक बताना कठिन है। छोटे शिर्क के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण हैं:
टोटका और शकुन
बुरी नजर और दुर्भाग्य से बचने के लिए टोटका, जंतर और ताबीज पहनना और यह सोचना कि अल्लाह ने इनमे शक्तियां दे रखी हैं, छोटा शिर्क है। इसके बारे में यहां परhere और अधिक विस्तार से चर्चा की गई है।
अल्लाह के सिवा किसी और की कसम खाना
अल्लाह के अलावा किसी और की शपथ लेना या कसम खाना एक प्रकार का छोटा शिर्क है यदि वह व्यक्ति जिसकी कसम खा रहा है उसकी पूजा करने का इरादा नहीं रखता है, अन्यथा यह बड़े शिर्क में बदल जायेगा। अल्लाह के दूत (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा,
“जो कोई अल्लाह के अलावा किसी और की कसम खाता है वह अविश्वास या शिर्क करता है।”[1]
रिया (दिखावा करना)
अल्लाह के दूत ने कहा:
“जिस चीज से मुझे आपके लिए सबसे ज्यादा डर लगता है वह है छोटा शिर्क।”
साथियों ने कहा: "ऐ अल्लाह के दूत, छोटा शिर्क क्या है ?" पैगंबर ने जवाब दिया:
“रिया (दिखावा करना), क्योंकि जिस दिन लोगों को उनके कार्यों के लिए पुरस्कृत किया जाएगा उस दिन अल्लाह कहेगा: 'उनके पास जाओ जिनके लिए तुमने दुनिया में दिखावा किया था, और देखो कि तुम्हे उनसे क्या इनाम मिलता है।’” (अहमद)
लोगों द्वारा देखे जाने और सराहना के लिए पूजा करना रिया है। रिया किये गए कार्य को शून्य कर देता है; व्यक्ति अल्लाह से इनाम के बदले पाप कमाता है, और यह उसे दंड का भागीदार बनाता है।
प्रशंसा करवाना मनुष्य को स्वभाविक रूप से पसंद है, वह आलोचना पसंद नहीं करता है, और किसी भी तरह से उसे खुद को कम देखना पसंद नही है। अल्लाह को खुश करने के बजाय दूसरों को खुश करने के लिए धार्मिक कार्य करने को इस्लाम मे शिर्क माना जाता है, जैसे जो कार्य अल्लाह के लिए किया जाना चाहिए था वह लोगों के लिए किया जाता है। अल्लाह के दूत ने कहा:
“अल्लाह ने कहा: 'मैं इतना आत्मनिर्भर हूं कि मुझे सहयोगी की कोई आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार जो कोई मेरे साथ-साथ किसी और को प्रसन्न करने के लिए कोई कार्य करेगा, तो मेरे साथ किसी को जोड़ने के लिए मै उसके कर्म को त्याग दूंगा।'’” (सहीह मुस्लिम)
एक आस्तिक के रिया में फसने की एक अच्छी संभावना है क्योंकि यह छिपा हुआ होता है, यह दिल में बैठता है, इरादे को दूषित करता है, और एक व्यक्ति को इसे सुधारने के लिए बेहद सतर्क रहना पड़ता है। पैगंबर के साथियों में से एक इब्न अब्बास ने कहा,
“मुस्लिम राष्ट्र में शिर्क एक काली रात में एक काले पत्थर पर रेंगने वाली काली चींटी से ज्यादा छिपा हुआ है।”[2]
इरादा एक साधारण बात है, लेकिन कभी-कभी इसे बदलना मुश्किल हो सकता है। एक व्यक्ति को अपने दिल की बात सुननी होती है और देखना होता है कि कोई कार्य करने के लिए उसे क्या प्रेरित करता है। एक मुसलमान को ध्यान रखना चाहिए कि जब भी वह नमाज (अनुष्ठान प्रार्थना) पढ़े, दान दे, उपवास करे, अपने माता-पिता की सेवा करे या यहां तक कि मुस्कुराने जैसा कोई अच्छा काम करे, तो उसे अपना इरादा शुद्ध रखना चाहिए । शायद यही कारण है कि दैनिक जीवन में सभी महत्वपूर्ण कार्यों से पहले अल्लाह का नाम लेना निर्धारित किया गया है, जैसे खाना, पीना, शौचालय जाना, जागना और सोना। अल्लाह को याद करने से दिल अल्लाह से सचेत रहता है और इरादा साफ रहता है।
आइए सरल उदाहरणों से समझें कि रिया पूजा को कैसे प्रभावित कर सकती है:
(ए) मान लो कि जब आप प्रार्थना करने के लिए खड़े होते हैं तो मूल मकसद यह होता है कि लोग आपको देखें, या नोटिस करें कि आप प्रार्थना कर रहे हैं, और आपकी प्रशंसा करें। यह पूजा के कार्य को अमान्य बना देता है।
(बी) मान लो कि आपने ईमानदारी से प्रार्थना करना शुरू कर दिया, आपका इरादा अल्लाह के लिए प्रार्थना करना था, लेकिन फिर आप लोगों को खुश करने के बारे में सोचने लगे, और धीरे-धीरे आपका इरादा बदल जाये। आप दो चीजों में से एक करते हैं। यदि आप दिखावे वाली बात पे ध्यान न दें, तो इसका आप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा: "मेरी उम्मत के दिमाग में जो कुछ भी आएगा उसके लिए अल्लाह ने उन्हें माफ कर दिया है, जब तक कि वे उस पर कार्रवाई न करें और न ही उसके बारे में बात करें।" लेकिन अगर आप इसके लिए कुछ नहीं करते हैं और किसी को दिखाने के लिए पूजा करते हैं, उदहारण के लिए आप लोगों को दिखाने के लिए धीरे-धीरे अपनी नमाज (अनुष्ठान प्रार्थना) को सुशोभित करना शुरू करते हैं, तो आपकी पूजा का पूरा कार्य अमान्य हो जायेगा।
(सी) बिना किसी इरादे के प्रशंसा करना हानिकारक नहीं है। पैगंबर से इस बारे में पूछा गया और उन्होंने कहा: "यह आस्तिक के लिए पहली खुशखबरी है।" यह दिखावा नहीं है कि कोई व्यक्ति खुश है क्योंकि उसने पूजा की है; वास्तव में, यह उसके विश्वास का प्रतीक है। पैगंबर (उन पर अल्लाह की दया और आशीर्वाद हो) ने कहा:
“जो कोई अपने अच्छे कामों से खुश और अपने बुरे कामों से दुखी होता है, वह विश्वासी है।”
पैगंबर ने हमें इस शिर्क से बचने के लिए कुछ शब्द बताए हैं जिन्हें दिन में कभी भी पढ़ा जा सकता है। एक दिन पैगंबर ने यह कहते हुए एक उपदेश दिया,
‘ऐ लोगों, 'शिर्क' से डरो, क्योंकि यह चींटी के रेंगने से भी ज्यादा छिपा है।’ (अत-तबरानी)
लोगों ने पूछा, 'और जब यह चींटी के रेंगने से भी ज्यादा छिपी हुई है, तो हम इससे कैसे बचें, ऐ अल्लाह के दूत?' पैगंबर ने उत्तर दिया, "कहो,
‘अल्लाहुम्मा इन्नी अऊजोबिका अन-उशरिका बिका शाय-एन अन्ना-आलमु व असतगफिरुका लिमा ला-आलम।’
‘ऐ अल्लाह, हम आपके साथ जानबूझकर शिर्क करने से आपकी शरण चाहते हैं, और हम अनजाने में जो कुछ भी करते हैं उसके लिए हम आपकी क्षमा चाहते हैं।’”[3]
बड़े शिर्क और छोटे शिर्क के बीच अंतर
(1) दोनों को अलग-अलग तरीके से परिभाषित किया गया है।
(2) बड़ा शिर्क व्यक्ति को इस्लाम से बाहर निकाल देता है, जबकि छोटा शिर्क किसी को इस्लाम से बाहर नहीं निकालता है, बल्कि अल्लाह में विश्वास को कम करता है।
(3) कोई व्यक्ति जो बड़ा शिर्क करते हुए मर जाता है, वह अनंत काल के लिए नरक की आग में रहेगा; छोटा शिर्क करने वाले के साथ ऐसा नहीं है।
(4) बड़ा शिर्क सभी अच्छे कर्मों को मिटा देता है और नष्ट कर देता है, जबकि छोटा शिर्क केवल उन कार्यों को नष्ट कर देता है जो इसे प्रेरित करते हैं या इसका हिस्सा हैं।
(5) बड़े शिर्क को अल्लाह तब तक माफ नहीं करेगा जब तक मृत्यु से पहले ईमानदारी से इसका पश्चाताप न कर लिया जाये; जबकि छोटे शिर्क की सजा देना या क्षमा करना अल्लाह के ऊपर है।
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